< Proverbes 18 >
1 L'homme qui veut rompre avec ses amis cherche des prétextes, et en tout temps il sera digne de blâme.
१जो दूसरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है, और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है।
2 Celui qui manque de sens n'a que faire de la sagesse; il est plutôt conduit par la folie.
२मूर्ख का मन समझ की बातों में नहीं लगता, वह केवल अपने मन की बात प्रगट करना चाहता है।
3 Lorsque l'impie est tombé en un abîme de fautes, il n'en tient compte; mais la honte et les ignominies lui arrivent.
३जहाँ दुष्टता आती, वहाँ अपमान भी आता है; और निरादर के साथ निन्दा आती है।
4 La parole dans le cœur de l'homme est une eau profonde; un fleuve en jaillit, et une fontaine de vie.
४मनुष्य के मुँह के वचन गहरे जल होते है; बुद्धि का स्रोत बहती धारा के समान हैं।
5 Il n'est pas bien d'avoir égard à la parole de l'impie; se détourner de l'équité dans la jeunesse est une impiété.
५दुष्ट का पक्ष करना, और धर्मी का हक़ मारना, अच्छा नहीं है।
6 Les lèvres de l'insensé le mènent à mal, et sa bouche hardie appelle la mort.
६बात बढ़ाने से मूर्ख मुकद्दमा खड़ा करता है, और अपने को मार खाने के योग्य दिखाता है।
7 La bouche de l'insensé est sa ruine; ses lèvres sont un piège pour son âme.
७मूर्ख का विनाश उसकी बातों से होता है, और उसके वचन उसके प्राण के लिये फंदे होते हैं।
8 La crainte abat les paresseux; les âmes des efféminés sont toujours affamées.
८कानाफूसी करनेवाले के वचन स्वादिष्ट भोजन के समान लगते हैं; वे पेट में पच जाते हैं।
9 Qui n'a point d'ardeur en ses travaux est frère de celui qui se détruit lui-même.
९जो काम में आलस करता है, वह बिगाड़नेवाले का भाई ठहरता है।
10 Le Nom du Seigneur est d'une force toute-puissante; les justes qui courent à Lui sont glorifiés.
१०यहोवा का नाम दृढ़ गढ़ है; धर्मी उसमें भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है।
11 Les biens du riche sont une forteresse; sa gloire projette au loin de l'ombre.
११धनी का धन उसकी दृष्टि में शक्तिशाली नगर है, और उसकी कल्पना ऊँची शहरपनाह के समान है।
12 Le cœur de l'homme s'exalte avant d'être brisé; ils s'humilie avant d'être glorifié.
१२नाश होने से पहले मनुष्य के मन में घमण्ड, और महिमा पाने से पहले नम्रता होती है।
13 Répondre avant d'avoir entendu, c'est insensé et blâmable.
१३जो बिना बात सुने उत्तर देता है, वह मूर्ख ठहरता है, और उसका अनादर होता है।
14 Un serviteur prudent apaise la colère de l'homme; qui peut supporter un homme pusillanime?
१४रोग में मनुष्य अपनी आत्मा से सम्भलता है; परन्तु जब आत्मा हार जाती है तब इसे कौन सह सकता है?
15 Le cœur de l'homme sensé possède la doctrine; les oreilles du sage cherchent l'intelligence.
१५समझवाले का मन ज्ञान प्राप्त करता है; और बुद्धिमान ज्ञान की बात की खोज में रहते हैं।
16 Les présents que fait un homme le grandissent et le font siéger parmi les puissants.
१६भेंट मनुष्य के लिये मार्ग खोल देती है, और उसे बड़े लोगों के सामने पहुँचाती है।
17 Le juste s'accuse le premier; mais s'il est ensuite attaqué, c'est son adversaire qu'on blâme.
१७मुकद्दमे में जो पहले बोलता, वही सच्चा जान पड़ता है, परन्तु बाद में दूसरे पक्षवाला आकर उसे जाँच लेता है।
18 L'homme silencieux apaise les contradictions; il juge entre les puissants.
१८चिट्ठी डालने से झगड़े बन्द होते हैं, और बलवन्तों की लड़ाई का अन्त होता है।
19 Un frère, soutenu par son frère, est comme une puissante et haute cité; il est fort comme un palais solidement bâti.
१९चिढ़े हुए भाई को मनाना दृढ़ नगर के ले लेने से कठिन होता है, और झगड़े राजभवन के बेंड़ों के समान हैं।
20 L'homme remplit ses entrailles des fruits de sa bouche, et se rassasiera du fruit de ses lèvres.
२०मनुष्य का पेट मुँह की बातों के फल से भरता है; और बोलने से जो कुछ प्राप्त होता है उससे वह तृप्त होता है।
21 La mort et la vie sont au pouvoir de la langue; ceux qui la maîtrisent mangeront ses fruits.
२१जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं, और जो उसे काम में लाना जानता है वह उसका फल भोगेगा।
22 Celui qui a trouvé une femme bonne a trouvé des grâces; il a reçu de Dieu l'allégresse. Celui qui répudie une femme bonne répudie une bonne fortune; celui qui garde une adultère est impie et insensé.
२२जिसने स्त्री ब्याह ली, उसने उत्तम पदार्थ पाया, और यहोवा का अनुग्रह उस पर हुआ है।
२३निर्धन गिड़गिड़ाकर बोलता है, परन्तु धनी कड़ा उत्तर देता है।
२४मित्रों के बढ़ाने से तो नाश होता है, परन्तु ऐसा मित्र होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है।