< Lamentations 5 >
1 Remember, O LORD, what is come upon us: consider, and behold our reproach.
१हे यहोवा, स्मरण कर कि हम पर क्या-क्या बिता है; हमारी ओर दृष्टि करके हमारी नामधराई को देख!
2 Our inheritance is turned to strangers, our houses to aliens.
२हमारा भाग परदेशियों का हो गया और हमारे घर परायों के हो गए हैं।
3 We are orphans and fatherless, our mothers [are] as widows.
३हम अनाथ और पिताहीन हो गए; हमारी माताएँ विधवा सी हो गई हैं।
4 We have drank our water for money; our wood is sold to us.
४हम मोल लेकर पानी पीते हैं, हमको लकड़ी भी दाम से मिलती है।
5 Our necks [are] under persecution: we labor, [and] have no rest.
५खदेड़नेवाले हमारी गर्दन पर टूट पड़े हैं; हम थक गए हैं, हमें विश्राम नहीं मिलता।
6 We have given the hand [to] the Egyptians, [and to] the Assyrians, to be satisfied with bread.
६हम स्वयं मिस्र के अधीन हो गए, और अश्शूर के भी, ताकि पेट भर सके।
7 Our fathers have sinned, [and are] not; and we have borne their iniquities.
७हमारे पुरखाओं ने पाप किया, और मर मिटे हैं; परन्तु उनके अधर्म के कामों का भार हमको उठाना पड़ा है।
8 Servants have ruled over us: [there is] none that doth deliver [us] out of their hand.
८हमारे ऊपर दास अधिकार रखते हैं; उनके हाथ से कोई हमें नहीं छुड़ाता।
9 We procured our bread with [the peril of] our lives, because of the sword of the wilderness.
९जंगल में की तलवार के कारण हम अपने प्राण जोखिम में डालकर भोजनवस्तु ले आते हैं।
10 Our skin was black like an oven because of the terrible famine.
१०भूख की झुलसाने वाली आग के कारण, हमारा चमड़ा तंदूर के समान काला हो गया है।
11 They ravished the women in Zion, [and] the maids in the cities of Judah.
११सिय्योन में स्त्रियाँ, और यहूदा के नगरों में कुमारियाँ भ्रष्ट की गईं हैं।
12 Princes were hanged by their hand: the faces of elders were not honored.
१२हाकिम हाथ के बल टाँगें गए हैं; और पुरनियों का कुछ भी आदर नहीं किया गया।
13 They took the young men to grind, and the children fell under the wood.
१३जवानों को चक्की चलानी पड़ती है; और बाल-बच्चे लकड़ी का बोझ उठाते हुए लड़खड़ाते हैं।
14 The elders have ceased from the gate, the young men from their music.
१४अब फाटक पर पुरनिये नहीं बैठते, न जवानों का गीत सुनाई पड़ता है।
15 The joy of our heart hath ceased; our dance is turned into mourning.
१५हमारे मन का हर्ष जाता रहा, हमारा नाचना विलाप में बदल गया है।
16 The crown is fallen [from] our head: woe to us, that we have sinned!
१६हमारे सिर पर का मुकुट गिर पड़ा है; हम पर हाय, क्योंकि हमने पाप किया है!
17 For this our heart is faint; for these [things] our eyes are dim.
१७इस कारण हमारा हृदय निर्बल हो गया है, इन्हीं बातों से हमारी आँखें धुंधली पड़ गई हैं,
18 Because of the mountain of Zion, which is desolate, the foxes walk upon it.
१८क्योंकि सिय्योन पर्वत उजाड़ पड़ा है; उसमें सियार घूमते हैं।
19 Thou, O LORD, remainest for ever; thy throne from generation to generation.
१९परन्तु हे यहोवा, तू तो सदा तक विराजमान रहेगा; तेरा राज्य पीढ़ी-पीढ़ी बना रहेगा।
20 Why dost thou forget us for ever, [and] forsake us so long time?
२०तूने क्यों हमको सदा के लिये भुला दिया है, और क्यों बहुत काल के लिये हमें छोड़ दिया है?
21 Turn thou us to thee, O LORD, and we shall be turned; renew our days as of old.
२१हे यहोवा, हमको अपनी ओर फेर, तब हम फिर सुधर जाएँगे। प्राचीनकाल के समान हमारे दिन बदलकर ज्यों के त्यों कर दे!
22 But thou hast utterly rejected us; thou art very wroth against us.
२२क्या तूने हमें बिल्कुल त्याग दिया है? क्या तू हम से अत्यन्त क्रोधित है?