< Lamentations 3 >
1 I [am] the man [that] hath seen affliction by the rod of his wrath.
१उसके रोष की छड़ी से दुःख भोगनेवाला पुरुष मैं ही हूँ;
2 He hath led me, and brought [me into] darkness, but not [into] light.
२वह मुझे ले जाकर उजियाले में नहीं, अंधियारे ही में चलाता है;
3 Surely against me is he turned; he turneth his hand [against me] all the day.
३उसका हाथ दिन भर मेरे ही विरुद्ध उठता रहता है।
4 My flesh and my skin hath he made old; he hath broken my bones.
४उसने मेरा माँस और चमड़ा गला दिया है, और मेरी हड्डियों को तोड़ दिया है;
5 He hath built against me, and compassed [me] with gall and labor.
५उसने मुझे रोकने के लिये किला बनाया, और मुझ को कठिन दुःख और श्रम से घेरा है;
6 He hath set me in dark places, as [they that are] dead of old.
६उसने मुझे बहुत दिन के मरे हुए लोगों के समान अंधेरे स्थानों में बसा दिया है।
7 He hath hedged me about, that I cannot get out: he hath made my chain heavy.
७मेरे चारों ओर उसने बाड़ा बाँधा है कि मैं निकल नहीं सकता; उसने मुझे भारी साँकल से जकड़ा है;
8 Also when I cry and shout, he shutteth out my prayer.
८मैं चिल्ला-चिल्ला के दुहाई देता हूँ, तो भी वह मेरी प्रार्थना नहीं सुनता;
9 He hath inclosed my ways with hewn stone, he hath made my paths crooked.
९मेरे मार्गों को उसने गढ़े हुए पत्थरों से रोक रखा है, मेरी डगरों को उसने टेढ़ी कर दिया है।
10 He [was] to me [as] a bear lying in wait, [and as] a lion in secret places.
१०वह मेरे लिये घात में बैठे हुए रीछ और घात लगाए हुए सिंह के समान है;
11 He hath turned aside my ways, and pulled me in pieces: he hath made me desolate.
११उसने मुझे मेरे मार्गों से भुला दिया, और मुझे फाड़ डाला; उसने मुझ को उजाड़ दिया है।
12 He hath bent his bow, and set me as a mark for the arrow.
१२उसने धनुष चढ़ाकर मुझे अपने तीर का निशाना बनाया है।
13 He hath caused the arrows of his quiver to enter into my reins.
१३उसने अपनी तीरों से मेरे हृदय को बेध दिया है;
14 I was a derision to all my people; [and] their song all the day.
१४सब लोग मुझ पर हँसते हैं और दिन भर मुझ पर ढालकर गीत गाते हैं,
15 He hath filled me with bitterness, he hath made me drunken with wormwood.
१५उसने मुझे कठिन दुःख से भर दिया, और नागदौना पिलाकर तृप्त किया है।
16 He hath also broken my teeth with gravel stones, he hath covered me with ashes.
१६उसने मेरे दाँतों को कंकड़ से तोड़ डाला, और मुझे राख से ढाँप दिया है;
17 And thou hast removed my soul far off from peace: I forgat prosperity.
१७और मुझ को मन से उतारकर कुशल से रहित किया है; मैं कल्याण भूल गया हूँ;
18 And I said, My strength and my hope hath perished from the LORD:
१८इसलिए मैंने कहा, “मेरा बल नष्ट हुआ, और मेरी आशा जो यहोवा पर थी, वह टूट गई है।”
19 Remembering my affliction and my misery, the wormwood and the gall.
१९मेरा दुःख और मारा-मारा फिरना, मेरा नागदौने और विष का पीना स्मरण कर!
20 My soul hath [them] still in remembrance, and is humbled in me.
२०मैं उन्हीं पर सोचता रहता हूँ, इससे मेरा प्राण ढला जाता है।
21 This I recall to my mind, therefore have I hope.
२१परन्तु मैं यह स्मरण करता हूँ, इसलिए मुझे आशा है:
22 [It is of] the LORD'S mercies that we are not consumed, because his compassions fail not.
२२हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरुणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है।
23 [They are] new every morning: great [is] thy faithfulness.
२३प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान है।
24 The LORD [is] my portion, saith my soul; therefore will I hope in him.
२४मेरे मन ने कहा, “यहोवा मेरा भाग है, इस कारण मैं उसमें आशा रखूँगा।”
25 The LORD [is] good to them that wait for him, to the soul [that] seeketh him.
२५जो यहोवा की बाट जोहते और उसके पास जाते हैं, उनके लिये यहोवा भला है।
26 [It is] good that [a man] should both hope and quietly wait for the salvation of the LORD.
२६यहोवा से उद्धार पाने की आशा रखकर चुपचाप रहना भला है।
27 [It is] good for a man that he should bear the yoke in his youth.
२७पुरुष के लिये जवानी में जूआ उठाना भला है।
28 He sitteth alone, and keepeth silence, because he hath borne [it] upon him.
२८वह यह जानकर अकेला चुपचाप रहे, कि परमेश्वर ही ने उस पर यह बोझ डाला है;
29 He putteth his mouth in the dust; if there may be hope.
२९वह अपना मुँह धूल में रखे, क्या जाने इसमें कुछ आशा हो;
30 He giveth [his] cheek to him that smiteth him: he is filled full with reproach.
३०वह अपना गाल अपने मारनेवाले की ओर फेरे, और नामधराई सहता रहे।
31 For the LORD will not cast off for ever:
३१क्योंकि प्रभु मन से सर्वदा उतारे नहीं रहता,
32 But though he causeth grief, yet will he have compassion according to the multitude of his mercies.
३२चाहे वह दुःख भी दे, तो भी अपनी करुणा की बहुतायत के कारण वह दया भी करता है;
33 For he doth not afflict willingly nor grieve the children of men.
३३क्योंकि वह मनुष्यों को अपने मन से न तो दबाता है और न दुःख देता है।
34 To crush under his feet all the prisoners of the earth,
३४पृथ्वी भर के बन्दियों को पाँव के तले दलित करना,
35 To turn aside the right of a man before the face of the most High,
३५किसी पुरुष का हक़ परमप्रधान के सामने मारना,
36 To subvert a man in his cause, the LORD approveth not.
३६और किसी मनुष्य का मुकद्दमा बिगाड़ना, इन तीन कामों को यहोवा देख नहीं सकता।
37 Who [is] he [that] saith, and it cometh to pass, [when] the LORD commandeth [it] not?
३७यदि यहोवा ने आज्ञा न दी हो, तब कौन है कि वचन कहे और वह पूरा हो जाए?
38 Out of the mouth of the most High proceedeth not evil and good?
३८विपत्ति और कल्याण, क्या दोनों परमप्रधान की आज्ञा से नहीं होते?
39 Why doth a living man complain, a man for the punishment of his sins?
३९इसलिए जीवित मनुष्य क्यों कुड़कुड़ाए? और पुरुष अपने पाप के दण्ड को क्यों बुरा माने?
40 Let us search and try our ways, and turn again to the LORD.
४०हम अपने चाल चलन को ध्यान से परखें, और यहोवा की ओर फिरें!
41 Let us lift up our heart with [our] hands to God in the heavens.
४१हम स्वर्ग में वास करनेवाले परमेश्वर की ओर मन लगाएँ और हाथ फैलाएँ और कहें:
42 We have transgressed and have rebelled: thou hast not pardoned.
४२“हमने तो अपराध और बलवा किया है, और तूने क्षमा नहीं किया।
43 Thou hast covered with anger, and persecuted us: thou hast slain, thou hast not pitied.
४३तेरा कोप हम पर है, तू हमारे पीछे पड़ा है, तूने बिना तरस खाए घात किया है।
44 Thou hast covered thyself with a cloud, that [our] prayer should not pass through.
४४तूने अपने को मेघ से घेर लिया है कि तुझ तक प्रार्थना न पहुँच सके।
45 Thou hast made us [as] the offscouring and refuse in the midst of the people.
४५तूने हमको जाति-जाति के लोगों के बीच में कूड़ा-करकट सा ठहराया है।
46 All our enemies have opened their mouths against us.
४६हमारे सब शत्रुओं ने हम पर अपना-अपना मुँह फैलाया है;
47 Fear and a snare is come upon us, desolation and destruction.
४७भय और गड्ढा, उजाड़ और विनाश, हम पर आ पड़े हैं;
48 My eye runneth down with rivers of water for the destruction of the daughter of my people.
४८मेरी आँखों से मेरी प्रजा की पुत्री के विनाश के कारण जल की धाराएँ बह रही है।
49 My eye trickleth down, and ceaseth not, without any intermission,
४९मेरी आँख से लगातार आँसू बहते रहेंगे,
50 Till the LORD shall look down, and behold from heaven.
५०जब तक यहोवा स्वर्ग से मेरी ओर न देखे;
51 My eye affecteth my heart because of all the daughters of my city.
५१अपनी नगरी की सब स्त्रियों का हाल देखने पर मेरा दुःख बढ़ता है।
52 My enemies chased me fiercely, like a bird without cause.
५२जो व्यर्थ मेरे शत्रु बने हैं, उन्होंने निर्दयता से चिड़िया के समान मेरा आहेर किया है;
53 They have cut off my life in the dungeon, and cast a stone upon me.
५३उन्होंने मुझे गड्ढे में डालकर मेरे जीवन का अन्त करने के लिये मेरे ऊपर पत्थर लुढ़काए हैं;
54 Waters flowed over my head; [then] I said, I am cut off.
५४मेरे सिर पर से जल बह गया, मैंने कहा, ‘मैं अब नाश हो गया।’
55 I called upon thy name, O LORD, out of the low dungeon.
५५हे यहोवा, गहरे गड्ढे में से मैंने तुझ से प्रार्थना की;
56 Thou hast heard my voice: hide not thy ear at my breathing, at my cry.
५६तूने मेरी सुनी कि जो दुहाई देकर मैं चिल्लाता हूँ उससे कान न फेर ले!
57 Thou drewest near in the day [that] I called upon thee: thou saidst, Fear not.
५७जब मैंने तुझे पुकारा, तब तूने मुझसे कहा, ‘मत डर!’
58 O LORD, thou hast pleaded the causes of my soul; thou hast redeemed my life.
५८हे यहोवा, तूने मेरा मुकद्दमा लड़कर मेरा प्राण बचा लिया है।
59 O LORD, thou hast seen my wrong: judge thou my cause.
५९हे यहोवा, जो अन्याय मुझ पर हुआ है उसे तूने देखा है; तू मेरा न्याय चुका।
60 Thou hast seen all their vengeance [and] all their imaginations against me.
६०जो बदला उन्होंने मुझसे लिया, और जो कल्पनाएँ मेरे विरुद्ध की, उन्हें भी तूने देखा है।
61 Thou hast heard their reproach, O LORD, [and] all their imaginations against me;
६१हे यहोवा, जो कल्पनाएँ और निन्दा वे मेरे विरुद्ध करते हैं, वे भी तूने सुनी हैं।
62 The lips of those that rose up against me, and their device against me all the day.
६२मेरे विरोधियों के वचन, और जो कुछ भी वे मेरे विरुद्ध लगातार सोचते हैं, उन्हें तू जानता है।
63 Behold their sitting down, and their rising up; I [am] their music.
६३उनका उठना-बैठना ध्यान से देख; वे मुझ पर लगते हुए गीत गाते हैं।
64 Render to them a recompense, O LORD, according to the work of their hands.
६४हे यहोवा, तू उनके कामों के अनुसार उनको बदला देगा।
65 Give them sorrow of heart, thy curse to them.
६५तू उनका मन सुन्न कर देगा; तेरा श्राप उन पर होगा।
66 Persecute and destroy them in anger from under the heavens of the LORD.
६६हे यहोवा, तू अपने कोप से उनको खदेड़-खदेड़कर धरती पर से नाश कर देगा।”