< Ezekiel 41 >
1 Afterward he brought me to the temple, and measured the posts, six cubits broad on the one side, and six cubits broad on the other side, [which was] the breadth of the tabernacle.
१फिर वह पुरुष मुझे मन्दिर के पास ले गया, और उसके दोनों ओर के खम्भों को मापकर छः छः हाथ चौड़े पाया, यह तो तम्बू की चौड़ाई थी।
2 And the breadth of the door [was] ten cubits; and the sides of the door [were] five cubits on the one side, and five cubits on the other side: and he measured the length of it forty cubits: and the breadth, twenty cubits.
२द्वार की चौड़ाई दस हाथ की थी, और द्वार की दोनों ओर की दीवारें पाँच-पाँच हाथ की थीं; और उसने मन्दिर की लम्बाई मापकर चालीस हाथ की, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की पाई।
3 Then he went inward, and measured the post of the door, two cubits; and the door, six cubits; and the breadth of the door, seven cubits.
३तब उसने भीतर जाकर द्वार के खम्भों को मापा, और दो-दो हाथ का पाया; और द्वार छः हाथ का था; और द्वार की चौड़ाई सात हाथ की थी।
4 So he measured the length of it twenty cubits; and the breadth, twenty cubits, before the temple: and he said to me, This [is] the most holy [place].
४तब उसने भीतर के भवन की लम्बाई और चौड़ाई मन्दिर के सामने मापकर बीस-बीस हाथ की पाई; और उसने मुझसे कहा, “यह तो परमपवित्र स्थान है।”
5 Afterward he measured the wall of the house, six cubits; and the breadth of [every] side-chamber, four cubits, round the house on every side.
५फिर उसने भवन की दीवार को मापकर छः हाथ की पाया, और भवन के आस-पास चार-चार हाथ चौड़ी बाहरी कोठरियाँ थीं।
6 And the side-chambers [were] three, one over another, and thirty in order; and they entered into the wall which [was] of the house for the side-chambers around, that they might have hold, but they had not hold in the wall of the house.
६ये बाहरी कोठरियाँ तीन मंजिला थीं; और एक-एक महल में तीस-तीस कोठरियाँ थीं। भवन के आस-पास की दीवार इसलिए थी कि बाहरी कोठरियाँ उसके सहारे में हो; और उसी में कोठरियों की कड़ियाँ बैठाई हुई थीं और भवन की दीवार के सहारे में न थीं।
7 And [there was] an enlarging, and a winding about still upward to the side-chambers: for the winding about of the house went still upward around the house; therefore the breadth of the house [was still] upward, and so increased [from] the lowest [chamber] to the highest by the midst.
७भवन के आस-पास जो कोठरियाँ बाहर थीं, उनमें से जो ऊपर थीं, वे अधिक चौड़ी थीं; अर्थात् भवन के आस-पास जो कुछ बना था, वह जैसे-जैसे ऊपर की ओर चढ़ता गया, वैसे-वैसे चौड़ा होता गया; इस रीति, इस घर की चौड़ाई ऊपर की ओर बढ़ी हुई थी, और लोग निचली मंजिल के बीच से ऊपरी मंजिल को चढ़ सकते थे।
8 I saw also the hight of the house around: the foundations of the side-chambers [were] a full reed of six great cubits.
८फिर मैंने भवन के आस-पास ऊँची भूमि देखी, और बाहरी कोठरियों की ऊँचाई जोड़ तक छः हाथ के बाँस की थी।
9 The thickness of the wall, which [was] for the side-chamber without, [was] five cubits: and [that] which [was] left [was] the place of the side-chambers that [were] within.
९बाहरी कोठरियों के लिये जो दीवार थी, वह पाँच हाथ मोटी थी, और जो स्थान खाली रह गया था, वह भवन की बाहरी कोठरियों का स्थान था।
10 And between the chambers [was] the width of twenty cubits around the house on every side.
१०बाहरी कोठरियों के बीच-बीच भवन के आस-पास बीस हाथ का अन्तर था।
11 And the doors of the side-chambers [were] towards [the place that was] left, one door towards the north, and another door towards the south: and the breadth of the place that was left [was] five cubits around.
११बाहरी कोठरियों के द्वार उस स्थान की ओर थे, जो खाली था, अर्थात् एक द्वार उत्तर की ओर और दूसरा दक्षिण की ओर था; और जो स्थान रह गया, उसकी चौड़ाई चारों ओर पाँच-पाँच हाथ की थी।
12 Now the building that was before the separate place at the end towards the west [was] seventy cubits broad; and the wall of the building [was] five cubits thick around, and its length ninety cubits.
१२फिर जो भवन मन्दिर के पश्चिमी आँगन के सामने था, वह सत्तर हाथ चौड़ा था; और भवन के आस-पास की दीवार पाँच हाथ मोटी थी, और उसकी लम्बाई नब्बे हाथ की थी। मन्दिर की सम्पूर्ण माप
13 So he measured the house, a hundred cubits long; and the separate place, and the building, with its walls, a hundred cubits long;
१३तब उसने भवन की लम्बाई मापकर सौ हाथ की पाई; और दीवारों समेत आँगन की भी लम्बाई मापकर सौ हाथ की पाई।
14 Also the breadth of the face of the house, and of the separate place towards the east, a hundred cubits.
१४भवन का पूर्वी सामना और उसका आँगन सौ हाथ चौड़ा था।
15 And he measured the length of the building over against the separate place which [was] behind it, and its galleries on the one side and on the other side, a hundred cubits, with the inner temple, and the porches of the court;
१५फिर उसने पीछे के आँगन के सामने की दीवार की लम्बाई जिसके दोनों ओर छज्जे थे, मापकर सौ हाथ की पाई; और भीतरी भवन और आँगन के ओसारों को भी मापा।
16 The door posts, and the narrow windows, and the galleries around on their three stories, over against the door, ceiled with wood around, and from the ground up to the windows, and the windows [were] covered;
१६तब उसने डेवढ़ियों और झिलमिलीदार खिड़कियों, और आस-पास की तीनों मंजिल के छज्जों को मापा जो डेवढ़ी के सामने थे, और चारों ओर उनकी तख्ता बन्दी हुई थी; और भूमि से खिड़कियों तक और खिड़कियों के आस-पास सब कहीं तख्ताबंदी हुई थी।
17 To that above the door, even to the inner house, and without, and by all the wall around within and without, by measure.
१७फिर उसने द्वार के ऊपर का स्थान भीतरी भवन तक और उसके बाहर भी और आस-पास की सारी दीवार के भीतर और बाहर भी मापा।
18 And [it was] made with cherubim and palm-trees, so that a palm-tree [was] between a cherub and a cherub; and [every] cherub had two faces;
१८उसमें करूब और खजूर के पेड़ ऐसे खुदे हुए थे कि दो-दो करूबों के बीच एक-एक खजूर का पेड़ था; और करूबों के दो-दो मुख थे।
19 So that the face of a man [was] towards the palm-tree on the one side, and the face of a young lion towards the palm-tree on the other side: [it was] made through all the house around.
१९इस प्रकार से एक-एक खजूर की एक ओर मनुष्य का मुख बनाया हुआ था, और दूसरी ओर जवान सिंह का मुख बनाया हुआ था। इसी रीति सारे भवन के चारों ओर बना था।
20 From the ground to above the door [were] cherubim and palm-trees made, and [on] the wall of the temple.
२०भूमि से लेकर द्वार के ऊपर तक करूब और खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, मन्दिर की दीवार इसी भाँति बनी हुई थी।
21 The posts of the temple [were] squared, [and] the face of the sanctuary; the appearance [of the one] as the appearance [of the other].
२१भवन के द्वारों के खम्भे चौकोर थे, और पवित्रस्थान के सामने का रूप मन्दिर का सा था।
22 The altar of wood [was] three cubits high, and its length two cubits; and its corners, and its length, and its walls, [were] of wood: and he said to me, This [is] the table that [is] before the LORD.
२२वेदी काठ की बनी थी, और उसकी ऊँचाई तीन हाथ, और लम्बाई दो हाथ की थी; और उसके कोने और उसका सारा पाट और अलंगें भी काठ की थीं। और उसने मुझसे कहा, “यह तो यहोवा के सम्मुख की मेज है।”
23 And the temple and the sanctuary had two doors.
२३मन्दिर और पवित्रस्थान के द्वारों के दो-दो किवाड़ थे।
24 And the doors had two leaves each, two turning leaves; two [leaves] for the one door, and two leaves for the other [door].
२४और हर एक किवाड़ में दो-दो मुड़नेवाले पल्ले थे, हर एक किवाड़ के लिये दो-दो पल्ले।
25 And [there were] made on them, on the doors of the temple, cherubim and palm-trees, as [were] made upon the walls; and [there were] thick planks upon the face of the porch without.
२५जैसे मन्दिर की दीवारों में करूब और खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, वैसे ही उसके किवाड़ों में भी थे, और ओसारे की बाहरी ओर लकड़ी की मोटी-मोटी धरनें थीं।
26 And [there were] narrow windows and palm-trees on the one side and on the other side, on the sides of the porch, and [upon] the side-chambers of the house, and thick planks.
२६ओसारे के दोनों ओर झिलमिलीदार खिड़कियाँ थीं और खजूर के पेड़ खुदे थे; और भवन की बाहरी कोठरियाँ और मोटी-मोटी धरनें भी थीं।