< Ezekiel 12 >
1 The word of the LORD also came to me, saying,
याहवेह का यह वचन मेरे पास आया:
2 Son of man, thou dwellest in the midst of a rebellious house, who have eyes to see, and see not; they have ears to hear, and hear not: for they [are] a rebellious house.
“हे मनुष्य के पुत्र, तुम विद्रोही लोगों के बीच रह रहे हो. उनकी आंख तो हैं, परंतु देखते नहीं और कान तो हैं, परंतु सुनते नहीं, क्योंकि वे विद्रोही लोग हैं.
3 Therefore, thou son of man, prepare thee stuff for removing, and remove by day in their sight; and thou shalt remove from thy place to another place in their sight; it may be they will consider, though they [are] a rebellious house.
“इसलिये, हे मनुष्य के पुत्र, बंधुवाई में जाने के लिये अपना सामान बांधो और दिन के समय, उनके देखते में चल पड़ो और जहां तुम हो, वहां से दूसरी जगह चले जाओ. यद्यपि वे विद्रोही लोग हैं, फिर भी, शायद वे समझ जाएं.
4 Then shalt thou bring forth thy stuff by day in their sight, as stuff for removing: and thou shalt go forth at evening in their sight, as they that go forth into captivity.
दिन के समय, उनके देखते में बंधुवाई के लिये तैयार अपने सामान को बाहर ले आओ. तब शाम के समय, जब वे देख रहे हों, तब ऐसे जाओ जैसे लोग बंधुवाई में जाते हैं.
5 Dig thou through the wall in their sight, and carry out thereby.
जब वे देख रहे हों, तो दीवार को फोड़ना और उसमें से अपना सामान बाहर ले जाना.
6 In their sight shalt thou bear [it] upon [thy] shoulders, [and] carry [it] forth in the twilight: thou shalt cover thy face, that thou mayest not see the ground: for I have set thee [for] a sign to the house of Israel.
उनके देखते ही में सामान को अपने कंधे पर रखना और सूर्यास्त के समय उनको बाहर ले जाना. अपने चेहरे को ढांपे रहना ताकि तुम्हें भूमि दिखाई न दे, क्योंकि मैंने तुम्हें इस्राएलियों के लिए एक चिन्ह ठहराया है.”
7 And I did so as I was commanded: I brought forth my stuff by day, as stuff for captivity, and in the evening I digged through the wall with my hand; I brought [it] forth in the twilight, [and] I bore [it] upon [my] shoulder in their sight.
मुझे जैसी आज्ञा दी गई, तब मैंने वैसा ही किया. दिन के समय, बंधुवाई के लिये तैयार, मैं अपना सामान बाहर ले आया. तब संध्या के समय, मैंने दीवार को अपने हाथों से फोड़ा. सूर्यास्त के समय, मैं अपना सामान बाहर ले गया, और उनको अपने कंधों पर उठाकर लोगों के देखते में चला गया.
8 And in the morning came the word of the LORD to me, saying,
सुबह याहवेह का यह वचन मेरे पास आया:
9 Son of man, hath not the house of Israel, the rebellious house, said to thee, What doest thou?
“हे मनुष्य के पुत्र, वे विद्रोही इस्राएली लोग क्या तुमसे नहीं पूछे, ‘तुम क्या कर रहे हो?’
10 Say thou to them, Thus saith the Lord GOD, This burden [concerneth] the prince in Jerusalem, and all the house of Israel that [are] among them.
“उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: इस भविष्यवाणी का संबंध येरूशलेम के राजकुमार और उन सब इस्राएलियों से है, जो वहां रहते हैं.’
11 Say, I [am] your sign: as I have done, so shall it be done to them: they shall remove [and] go into captivity.
उनसे कहो, ‘मैं तुम्हारे लिये एक चिन्ह हूं.’ “जैसा मैंने किया है, ठीक वैसा ही उनके साथ भी किया जाएगा. ‘वे बंदी के रूप में बंधुवाई में चले जाएंगे.’
12 And the prince that [is] among them shall bear upon [his] shoulder in the twilight, and shall go forth: they shall dig through the wall to carry out thereby: he shall cover his face, that he may not see the ground with [his] eyes.
“उनके बीच का राजकुमार शाम के समय अपने सामान को अपने कंधों पर रखकर चला जाएगा, और दीवार में एक बड़ा छेद बनाया जाएगा, ताकि वह उसमें से निकलकर जा सके. वह अपना चेहरा ढांक लेगा ताकि उसे भूमि न दिखे.
13 My net also will I spread upon him, and he shall be taken in my snare: and I will bring him to Babylon [to] the land of the Chaldeans, yet shall he not see it, though he shall die there.
मैं उसके लिये अपना जाल बिछाऊंगा, और वह मेरे फंदे में फंस जाएगा; मैं उसे कसदियों के देश बाबेल में ले आऊंगा, पर वह इसे देख न सकेगा, और वहां वह मर जाएगा.
14 And I will scatter towards every wind all that [are] about him to help him, and all his bands; and I will draw out the sword after them.
मैं उसके आस-पास के सब लोगों को तितर-बितर कर दूंगा—उसके कर्मचारी और उसकी सब सेना—और नंगी तलवार लेकर मैं उनका पीछा करूंगा.
15 And they shall know that I [am] the LORD, when I shall scatter them among the nations, and disperse them in the countries.
“जब मैं उन्हें जाति-जाति और देश-देश के बीच तितर-बितर कर दूंगा, तब वे जानेंगे कि मैं याहवेह हूं.
16 But I will leave a few men of them from the sword, from the famine, and from the pestilence; that they may declare all their abominations among the heathen whither they come; and they shall know that I [am] the LORD.
परंतु मैं उनमें से कुछ को तलवार की मार, अकाल और महामारी से बचाऊंगा, ताकि उन जनताओं के बीच, जहां वे जाएं, वहां वे अपने सब घृणित कार्यों को मान लें. तब वे जानेंगे कि मैं याहवेह हूं.”
17 Moreover the word of the LORD came to me, saying,
याहवेह का यह वचन मेरे पास आया:
18 Son of man, eat thy bread with quaking, and drink thy water with trembling and with solicitude.
“हे मनुष्य के पुत्र, कांपते हुए अपना भोजन करना और थरथराते हुए अपना पानी पीना.
19 And say to the people of the land, Thus saith the Lord GOD of the inhabitants of Jerusalem, [and] of the land of Israel; They shall eat their bread with solicitude, and drink their water with astonishment, that her land may be desolate from all that is therein, because of the violence of all them that dwell therein.
तब देश के लोगों से कहो: ‘येरूशलेम और इस्राएल देश में रहनेवालों के विषय में परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: वे चिंतित मन से अपना भोजन करेंगे और निराश मन से अपना पानी पिएंगे, क्योंकि देश में रहनेवाले सब लोगों की हिंसा के कारण, देश की सब चीज़ें ले ली जाएंगी.
20 And the cities that are inhabited shall be laid waste, and the land shall be desolate; and ye shall know that I [am] the LORD.
बसे हुए नगर उजाड़ दिए जाएंगे और देश निर्जन हो जाएगा. तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह हूं.’”
21 And the word of the LORD came to me, saying,
याहवेह का यह वचन मेरे पास आया:
22 Son of man, what [is] that proverb [that] ye have in the land of Israel, saying, The days are prolonged, and every vision faileth?
“हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल देश में यह क्या कहावत है: ‘दिन बीतते जा रहे हैं और कोई भी दर्शन पूरा नहीं हो रहा है’?
23 Tell them therefore, Thus saith the Lord GOD: I will make this proverb to cease, and they shall no more use it as a proverb in Israel; but say to them, The days are at hand, and the effect of every vision.
अतः उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मैं इस कहावत का अंत करनेवाला हूं, और वे फिर कभी इस्राएल में इस कहावत का प्रयोग नहीं करेंगे.’ उनसे कहो, ‘वे दिन निकट हैं जब हर एक दर्शन पूरा होगा.
24 For there shall no more be any vain vision nor flattering divination within the house of Israel.
क्योंकि तब इस्राएल के लोगों के बीच कोई झूठा दर्शन और चापलूसीपूर्ण भविष्य की बातें न होंगी.
25 For I [am] the LORD: I will speak, and the word that I shall speak shall come to pass; it shall no more be prolonged: for in your days, O rebellious house, will I say the word, and will perform it, saith the Lord GOD.
क्योंकि जो भी बोलूंगा, मैं, याहवेह ही बोलूंगा, और वह बिना देरी के पूरा होगा. क्योंकि हे विद्रोही लोगों, तुम्हारे ही दिनों में, जो कुछ मैं कहता हूं, उसे मैं पूरा करूंगा, यह परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.’”
26 Again the word of the LORD came to me, saying,
फिर याहवेह का यह वचन मेरे पास आया:
27 Son of man, behold, [they of] the house of Israel say, The vision that he seeth [is] for many days [to come], and he prophesieth of the times [that are] distant.
“हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएली कह रहे हैं, ‘जो दर्शन वह देख रहा है, वह अब से लेकर बहुत सालों बाद पूरा होगा, और जो भविष्यवाणी वह कर रहा है, वह अब से लेकर बहुत समय बाद की बात कर रहा है.’
28 Therefore say to them, Thus saith the Lord GOD; There shall none of my words be further deferred, but the word which I have spoken shall be done, saith the Lord GOD.
“इसलिये उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मेरे कहे गये किसी भी वचन के पूरा होने में और देरी नहीं होगी; जो भी मैं कहता हूं, वह पूरा होगा, यह परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.’”