< Zechariah 1 >
1 [I am] Zechariah, a prophet, the son of Berekiah and grandson of Iddo. When Darius [had been the emperor of Persia] for almost two years, during November [of that year], Yahweh gave me this message:
राजा दारयावेश के शासनकाल के दूसरे साल के आठवें महीने में याहवेह का यह वचन बेरेखियाह के पुत्र और इद्दो के पोते ज़करयाह भविष्यवक्ता के पास आया:
2 “I was very angry with your ancestors.
“याहवेह तुम्हारे पूर्वजों से बहुत क्रोधित थे.
3 So tell this to the people: [I, ] the Commander of the armies of angels, say, ‘Return to me, and [if you do that], I will [help] you again.
इसलिये लोगों को बताओ: सर्वशक्तिमान याहवेह का यह कहना है: ‘मेरे पास लौट आओ,’ सर्वशक्तिमान याहवेह की यह घोषणा है, ‘तो मैं भी तुम्हारे पास लौट आऊंगा,’ सर्वशक्तिमान याहवेह का कहना है.
4 Do not be like your ancestors. [Other] prophets, who have now died, [continually] proclaimed to your ancestors that they should stop doing the evil things that they were continually doing. But they refused to pay attention to what I said.
अपने पूर्वजों के समान मत बनो, जिन्हें पहले के भविष्यवक्ताओं ने पुकार-पुकारकर कहा था: सर्वशक्तिमान याहवेह का यह कहना है: ‘अपने बुरे चालचलन और अपने बुरे कार्यों को छोड़ो.’ किंतु उन्होंने न तो मेरी बातों को सुना और न ही मेरी ओर ध्यान दिया, याहवेह की घोषणा है.
5 Your ancestors [have died and are now in their graves] [RHQ]. And the prophets did not [RHQ] live forever, [either].
तुम्हारे पूर्वज अब कहां हैं? और भविष्यवक्ता, भविष्यद्वक्ता, क्या वे सदाकाल तक जीवित हैं?
6 But I punished [IDM] [the people for disobeying] the commands and the decrees which I commanded my servants the prophets [to tell to the people]. Then they (repented/turned away from their evil behavior) and said, ‘The Commander of the armies of angels has done to us what we deserved for our evil behavior, just like he said that he would do.’”
पर मेरे वचन और कानून, जो मैंने अपने सेवक भविष्यवक्ताओं को दिये थे, क्या वे तुम्हारे पूर्वजों की मृत्यु के बाद भी बने हुए नहीं हैं? “तब उन्होंने प्रायश्चित किया और कहा, ‘सर्वशक्तिमान याहवेह ने ठीक वही किया है जैसा कि हमारे चालचलन और हमारे कर्मों के कारण हमारे साथ किया जाना चाहिये, जैसा कि उन्होंने करने की ठानी थी.’”
7 [Three months later], on February 15, Yahweh gave [another] message to me.
राजा दारयावेश के शासनकाल के दूसरे साल के ग्यारहवें महीने अर्थात् शबात महीने के चौबीसवें दिन याहवेह का यह वचन बेरेखियाह के पुत्र और इद्दो के पोते ज़करयाह भविष्यवक्ता के पास पहुंचा.
8 During the night [I had a vision. In the vision] I saw an [angel] who was on a red horse. He was in a narrow valley among some myrtle trees. Behind him were [angels on] red, brown, and white horses.
रात के समय मैंने एक दर्शन में देखा कि मेरे सामने लाल घोड़े पर सवार एक व्यक्ति था. वह घाटी में मेंहदी के पेड़ों के बीच खड़ा था, और उसके पीछे लाल, भूरे और सफेद रंग के घोड़े थे.
9 I asked the angel who had been talking to me, “Sir, who are those [angels on the horses]?” He replied, “I will show you who they are.”
तब मैंने पूछा, “हे मेरे प्रभु, ये क्या हैं?” जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था, उसने उत्तर दिया, “मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि ये क्या हैं.”
10 Then the [angel] who had been under the myrtle trees explained. [He said, ] “They are the [angels] whom Yahweh sent [to (patrol/see what is happening in)] the [entire] world.”
तब जो व्यक्ति मेंहदी के पेड़ों के बीच खड़ा था, उसने कहा, “ये वे हैं जिन्हें याहवेह ने पूरे पृथ्वी पर भेजा है.”
11 Then those angels reported to the angel who was [there] among the myrtle trees, “We have traveled throughout the world, and we have found out that [the army of the emperor of Persia has conquered nations] throughout the world, [and that] those nations are now (helpless/unable to resist his army).”
और उन्होंने याहवेह के उस स्वर्गदूत को यह सूचित किया, जो मेंहदी के पेड़ों के बीच खड़ा था, “हम पूरी पृथ्वी में गये और देखा कि सारी पृथ्वी में चैन और शांति है.”
12 Then the angel asked, “Commander of the armies of angels, how long will you continue to not be merciful to Jerusalem and the [other] towns in Judah? You have been angry with them for 70 years!”
तब याहवेह के दूत ने कहा, “हे सर्वशक्तिमान याहवेह, आप जो येरूशलेम तथा यहूदिया के शहरों पर पिछले सत्तर सालों से क्रोधित हैं, कब तक आप इन पर अपनी दया नहीं दिखाएंगे?”
13 [So] Yahweh spoke kindly to the angel who had talked to me, saying things that comforted/encouraged him.
तब याहवेह ने उस स्वर्गदूत से, जो मुझसे बात कर रहा था, दयालु और सांत्वनापूर्ण शब्द कहा.
14 Then the angel who had been talking with me said to me, “Proclaim this [to the people of Jerusalem]: The Commander of the armies of angels says that he is very concerned about [the people who live on] Zion [Hill] and [in the other parts of] Jerusalem.
फिर वह स्वर्गदूत जो मुझसे बातें कर रहा था, उसने कहा, “इन बातों की घोषणा करो: सर्वशक्तिमान याहवेह का यह कहना है: ‘येरूशलेम तथा ज़ियोन के प्रति मेरी बहुत जलन है,
15 But he is very angry with the nations that are [proud and feel] safe. He was only a little bit angry [with the people of Judah], but [he is very angry with the surrounding nations because] they caused [the people of Judah to experience] complete disaster.
और मैं उन जनताओं से बहुत क्रोधित हूं जो आराम में हैं. पहले मैं सिर्फ थोड़ा क्रोधित था, किंतु उन्होंने खुद ही अपनी विपत्तियां बढ़ा ली हैं.’
16 Therefore, this is what he says: ‘I will again be merciful to [the people of] Jerusalem, and they will rebuild my temple. Men will measure [all the land in] the city [before they start rebuilding the houses].’
“इसलिये याहवेह का यह कहना है: ‘मैं कृपा करने के लिये येरूशलेम लौटूंगा, और वहां मेरे भवन को फिर से बनाया जाएगा. और येरूशलेम के ऊपर नापने की लकीर खींची जाएगी,’ सर्वशक्तिमान याहवेह की घोषणा है.
17 The Commander of the armies of angels [also] said this: ‘Tell the people that [the people in] my towns [in Judah] will soon be very prosperous again, and I will encourage [the people of] Jerusalem, and their city will again be my chosen [city].’”
“आगे और घोषणा करो: सर्वशक्तिमान याहवेह का यह कहना है: ‘मेरे नगर फिर समृद्ध होंगे, और याहवेह फिर ज़ियोन को सांत्वना देंगे तथा येरूशलेम को अपना ठहराएंगे.’”
18 Then I looked up, and I saw in front of me four [animal] horns.
फिर मैंने देखा, और वहां मेरे सामने चार सींग थे.
19 I asked the angel who had been speaking to me, “What are those [horns]?” He replied, “Those horns [represent the armies that] forced [the people of] Jerusalem and [other places in] Judah and Israel to go [to other countries].”
तो मैंने उस स्वर्गदूत, जो मुझसे बातें कर रहा था, उससे पूछा, “ये क्या हैं?” उसने मुझे उत्तर दिया, “ये वे सींग हैं जिन्होंने यहूदिया, इस्राएल और येरूशलेम को तितर-बितर कर दिया है.”
20 Then Yahweh showed me four (craftsmen/men who make things from metal).
फिर याहवेह ने मुझे चार शिल्पकार दिखाये.
21 I asked, “What are those men coming to do?” He replied, “[The armies represented by] those horns caused [the people of] Judah to be scattered, with the result that they suffered greatly. But the craftsmen have come to cause those who attacked [IDM] Judah to be terrified and crushed.”
मैंने पूछा, “ये क्या करने के लिये आये हैं?” उन्होंने उत्तर दिया, “ये वे सींग हैं जिन्होंने यहूदिया को तितर-बितर कर दिया है, ताकि कोई अपना सिर न उठा सके, पर ये शिल्पकार उन्हें भयभीत करने उन जनताओं के इन सीगों को काट डालने के लिये आए हैं जो यहूदिया देश के शत्रुओं को भयभीत कर देंगे और उन राष्ट्रों के सींग काट डालेंगे, जिन्होंने यहूदिया के लोगों को तितर-बितर करने के लिये आक्रमण किया है.”