< Psalms 42 >

1 Deer pant, desiring to drink water from a stream [when there is a drought] (OR, [when they are being pursued by hunters].) In the same way [SIM], God, I need you very much.
प्रधान बजानेवाले के लिये कोरहवंशियों का मश्कील जैसे हिरनी नदी के जल के लिये हाँफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिये हाँफता हूँ।
2 I desire to have fellowship with [MET] you, the all-powerful God. [I wonder], “When will I be able to go [back to the temple in Israel] and worship in your presence again?”
जीविते परमेश्वर, हाँ परमेश्वर, का मैं प्यासा हूँ, मैं कब जाकर परमेश्वर को अपना मुँह दिखाऊँगा?
3 Every day and every night I cry; [it is as though] the only thing I have to drink is my tears; and while I do that, my enemies are continually asking me, “Why does your god not [help you]?”
मेरे आँसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं; और लोग दिन भर मुझसे कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहाँ है?
4 I am very distressed [IDM] as I remember when I went with the crowd of people to the temple [in Jerusalem], leading them as we walked along; we were all shouting joyfully and singing to thank God [for what he had done]; we were a large group who were celebrating.
मैं कैसे भीड़ के संग जाया करता था, मैं जयजयकार और धन्यवाद के साथ उत्सव करनेवाली भीड़ के बीच में परमेश्वर के भवन को धीरे धीरे जाया करता था; यह स्मरण करके मेरा प्राण शोकित हो जाता है।
5 So [I say to] myself, “(Why am I sad and discouraged?/I should not be sad and discouraged!) [RHQ] I confidently expect God [to help me], and again I will praise him, my God, the one who saves me.”
हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूँगा।
6 [But now, Yahweh], I am very discouraged [IDM], so I think about you, even from where the Jordan [River] gushes out from the bottom of Hermon [Mountain] and from Mizar Mountain.
हे मेरे परमेश्वर; मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है, इसलिए मैं यरदन के पास के देश से और हेर्मोन के पहाड़ों और मिसगार की पहाड़ी के ऊपर से तुझे स्मरण करता हूँ।
7 But here, the great sorrow that I feel is like water that you send down [MET]; [it is like] a waterfall that tumbles down and floods over me.
तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल, जल को पुकारता है; तेरी सारी तरंगों और लहरों में मैं डूब गया हूँ।
8 Yahweh shows me each day that he faithfully loves me, and each night I sing to him and pray to him, the God who causes me to live.
तो भी दिन को यहोवा अपनी शक्ति और करुणा प्रगट करेगा; और रात को भी मैं उसका गीत गाऊँगा, और अपने जीवनदाता परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा।
9 I say to God, [who is like] an [overhanging] rock [under which I can hide] [MET], “It seems that you have forgotten me. I (mourn/cry) constantly because my enemies act cruelly toward me” [RHQ].
मैं परमेश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूँगा, “तू मुझे क्यों भूल गया? मैं शत्रु के अत्याचार के मारे क्यों शोक का पहरावा पहने हुए चलता फिरता हूँ?”
10 They make fun of me constantly; they continually ask, “Why does your god not help you?” [RHQ] And when they insult me [like that], [it is like] wounds that I feel even in my bones.
१०मेरे सतानेवाले जो मेरी निन्दा करते हैं, मानो उससे मेरी हड्डियाँ चूर-चूर होती हैं, मानो कटार से छिदी जाती हैं, क्योंकि वे दिन भर मुझसे कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहाँ है?
11 But [I think, ] “(Why am I sad and discouraged?/I should not be sad and discouraged!) [RHQ] I will confidently expect God [to help me], and I will praise him again, my God, the one who saves me.”
११हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा।

< Psalms 42 >