< Jeremiah 45 >

1 The word which he spoke Jeremiah the prophet to Baruch [the] son of Neriah when wrote he the words these on a scroll from [the] mouth of Jeremiah in the year fourth of Jehoiakim [the] son of Josiah [the] king of Judah saying.
योशिय्याह के पुत्र यहूदा के राजा यहोयाकीम के राज्य के चौथे वर्ष में, जब नेरिय्याह का पुत्र बारूक यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता से भविष्यद्वाणी के ये वचन सुनकर पुस्तक में लिख चुका था,
2 Thus he says Yahweh [the] God of Israel to you O Baruch.
तब उसने उससे यह वचन कहा: “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, तुझ से यह कहता है,
3 You said woe! please to me for he has added Yahweh sorrow to pain my I am weary with groaning my and rest not I have found.
हे बारूक, तूने कहा, ‘हाय मुझ पर! क्योंकि यहोवा ने मुझे दुःख पर दुःख दिया है; मैं कराहते-कराहते थक गया और मुझे कुछ चैन नहीं मिलता।’
4 Thus - you will say to him thus he says Yahweh here! [that] which I have built I [am] about to tear down and [that] which I have planted I [am] about to pluck up and all the land it.
तू इस प्रकार कह, यहोवा यह कहता है: देख, इस सारे देश को जिसे मैंने बनाया था, उसे मैं आप ढा दूँगा, और जिनको मैंने रोपा था, उन्हें स्वयं उखाड़ फेंकूँगा।
5 And you you are seeking for yourself great [things] may not you seek [them] for here I [am] about to bring calamity on all flesh [the] utterance of Yahweh and I will give to you life your to plunder at all the places where you will go there.
इसलिए सुन, क्या तू अपने लिये बड़ाई खोज रहा है? उसे मत खोज; क्योंकि यहोवा की यह वाणी है, कि मैं सारे मनुष्यों पर विपत्ति डालूँगा; परन्तु जहाँ कहीं तू जाएगा वहाँ मैं तेरा प्राण बचाकर तुझे जीवित रखूँगा।”

< Jeremiah 45 >