< Job 30 >
1 But, now, they who are of fewer days than I, have poured derision upon me; whose fathers I refused—to set with the dogs of my flock.
१“परन्तु अब जिनकी आयु मुझसे कम है, वे मेरी हँसी करते हैं, वे जिनके पिताओं को मैं अपनी भेड़-बकरियों के कुत्तों के काम के योग्य भी न जानता था।
2 Even the strength of their hands, wherefore was it mine? Upon them, vigour was lost;
२उनके भुजबल से मुझे क्या लाभ हो सकता था? उनका पौरुष तो जाता रहा।
3 In want and hunger, they were lean, —who used to gnaw the dry ground, a dark night of desolation!
३वे दरिद्रता और काल के मारे दुबले पड़े हुए हैं, वे अंधेरे और सुनसान स्थानों में सुखी धूल फाँकते हैं।
4 Who used to pluck off the mallow by the bushes, with the root of the broom for their food;
४वे झाड़ी के आस-पास का लोनिया साग तोड़ लेते, और झाऊ की जड़ें खाते हैं।
5 Out of the midst, were they driven, men shouted after them, as after a thief;
५वे मनुष्यों के बीच में से निकाले जाते हैं, उनके पीछे ऐसी पुकार होती है, जैसी चोर के पीछे।
6 In the fissures, of the ravines had they to dwell, in holes of dust and crags;
६डरावने नालों में, भूमि के बिलों में, और चट्टानों में, उन्हें रहना पड़ता है।
7 Among the bushes, used they to shriek, Under the bramble, were they huddled together:
७वे झाड़ियों के बीच रेंकते, और बिच्छू पौधों के नीचे इकट्ठे पड़े रहते हैं।
8 Sons of the base, yea sons of the nameless, they were scourged out of the land.
८वे मूर्खों और नीच लोगों के वंश हैं जो मार-मार के इस देश से निकाले गए थे।
9 But, now, their song, have I become, Yea I serve them for a byword;
९“ऐसे ही लोग अब मुझ पर लगते गीत गाते, और मुझ पर ताना मारते हैं।
10 They abhor me—have put themselves far from me, and, from my face, have not withheld—spittle!
१०वे मुझसे घिन खाकर दूर रहते, व मेरे मुँह पर थूकने से भी नहीं डरते।
11 Because, my girdle, he had loosened and had humbled me, therefore, the bridle—in my presence, cast they off;
११परमेश्वर ने जो मेरी रस्सी खोलकर मुझे दुःख दिया है, इसलिए वे मेरे सामने मुँह में लगाम नहीं रखते।
12 On my right hand, the young brood rose up, —My feet, they thrust aside, and cast up against me their earthworks of destruction;
१२मेरी दाहिनी ओर बाज़ारू लोग उठ खड़े होते हैं, वे मेरे पाँव सरका देते हैं, और मेरे नाश के लिये अपने उपाय बाँधते हैं।
13 They brake up my path, —My engulfing ruin, they helped forward, unaided;
१३जिनके कोई सहायक नहीं, वे भी मेरे रास्तों को बिगाड़ते, और मेरी विपत्ति को बढ़ाते हैं।
14 As through a wide breach, came they on, with a crashing noise, they rolled themselves along.
१४मानो बड़े नाके से घुसकर वे आ पड़ते हैं, और उजाड़ के बीच में होकर मुझ पर धावा करते हैं।
15 There are turned upon me terrors, —Chased away as with a wind, is mine abundance, and, as a cloud, hath passed away my prosperity.
१५मुझ में घबराहट छा गई है, और मेरा रईसपन मानो वायु से उड़ाया गया है, और मेरा कुशल बादल के समान जाता रहा।
16 Now, therefore, over myself, my soul poureth itself out, There seize me days of affliction:
१६“और अब मैं शोकसागर में डूबा जाता हूँ; दुःख के दिनों ने मुझे जकड़ लिया है।
17 Night, boreth, my bones, all over me, —and, my sinews, find no rest;
१७रात को मेरी हड्डियाँ मेरे अन्दर छिद जाती हैं और मेरी नसों में चैन नहीं पड़ती
18 Most effectually, is my skin disfigured, —Like the collar of my tunic, it girdeth me about:
१८मेरी बीमारी की बहुतायत से मेरे वस्त्र का रूप बदल गया है; वह मेरे कुर्त्ते के गले के समान मुझसे लिपटी हुई है।
19 He hath cast me into the mire, and I have become like dust and ashes.
१९उसने मुझ को कीचड़ में फेंक दिया है, और मैं मिट्टी और राख के तुल्य हो गया हूँ।
20 I cry out for help unto thee, and thou dost not answer, I stand still, and thou dost gaze at me;
२०मैं तेरी दुहाई देता हूँ, परन्तु तू नहीं सुनता; मैं खड़ा होता हूँ परन्तु तू मेरी ओर घूरने लगता है।
21 Thou art turned to become a cruel one unto me, With the might of thy hand, thou assailest me;
२१तू बदलकर मुझ पर कठोर हो गया है; और अपने बलवन्त हाथ से मुझे सताता हे।
22 Thou liftest up me to the wind, thou carriest me away, and the storm maketh me faint;
२२तू मुझे वायु पर सवार करके उड़ाता है, और आँधी के पानी में मुझे गला देता है।
23 For I know that, unto death, thou wilt bring me back, even unto the house of meeting for every one living.
२३हाँ, मुझे निश्चय है, कि तू मुझे मृत्यु के वश में कर देगा, और उस घर में पहुँचाएगा, जो सब जीवित प्राणियों के लिये ठहराया गया है।
24 Only, against a heap of ruins, will one not thrust a hand! Surely, when one is in calamity—for that very reason, is there an outcry for help.
२४“तो भी क्या कोई गिरते समय हाथ न बढ़ाएगा? और क्या कोई विपत्ति के समय दुहाई न देगा?
25 Verily I wept, for him whose lot was hard, Grieved was my soul, for the needy.
२५क्या मैं उसके लिये रोता नहीं था, जिसके दुर्दिन आते थे? और क्या दरिद्र जन के कारण मैं प्राण में दुःखित न होता था?
26 Surely, for good, I looked, but there came in evil, And I waited for light, but there came in darkness;
२६जब मैं कुशल का मार्ग जोहता था, तब विपत्ति आ पड़ी; और जब मैं उजियाले की आशा लगाए था, तब अंधकार छा गया।
27 I boiled within me, and rested not, There confronted me—days of affliction;
२७मेरी अंतड़ियाँ निरन्तर उबलती रहती हैं और आराम नहीं पातीं; मेरे दुःख के दिन आ गए हैं।
28 In gloom, I walked along, without sun, I arose—in the convocation, I cried out for help;
२८मैं शोक का पहरावा पहने हुए मानो बिना सूर्य की गर्मी के काला हो गया हूँ। और मैं सभा में खड़ा होकर सहायता के लिये दुहाई देता हूँ।
29 A brother, became I to the brutes that howl, and a companion to the birds that screech:
२९मैं गीदड़ों का भाई और शुतुर्मुर्गों का संगी हो गया हूँ।
30 My skin, turned black, and peeled off me, and, my bones, burned with heat:
३०मेरा चमड़ा काला होकर मुझ पर से गिरता जाता है, और ताप के मारे मेरी हड्डियाँ जल गई हैं।
31 Thus is attuned to mourning—my lyre, and my flute, to the noise of them who weep.
३१इस कारण मेरी वीणा से विलाप और मेरी बाँसुरी से रोने की ध्वनि निकलती है।