< Ecclesiastes 3 >

1 For, every thing, there is a season, —and a time for every pursuit, under the heavens: —
हर एक काम के लिए एक तय समय है, और धरती पर हर एक काम करने का एक समय होता है:
2 A time to be born, and a time to die, —A time to plant, and a time to uproot what is planted;
जन्म का समय और मृत्यु का समय; बोने का समय और बोए हुए को उखाड़ने का समय.
3 A time to kill, and a time to heal, —A time to break down, and a time to build up;
मार डालने का समय और स्वस्थ करने का समय; गिराने का समय और बनाने का समय;
4 A time to weep, and a time to laugh, —A time to wail, and a time to dance for joy;
रोने का समय और हंसने का समय; शोक करने का समय और नाचने का समय.
5 A time to cast away stones, and a time to heap up stones, —A time to embrace, and a time to be far from loving embrace;
पत्थर फेंकने का समय और पत्थर इकट्ठा करने का समय; गले लगाने का समय और गले न लगाने का समय.
6 A time to seek, and a time to give up as lost, —A time to keep, and a time to cast away;
खोजने का समय और छोड़ देने का समय; बचाकर रखने का समय और फेंक देने का समय.
7 A time to rend, and a time to sew, —A time to be silent, and a time to speak;
फाड़ने का समय और सीने का समय; चुप रहने का समय और बोलने का समय.
8 A time to love and a time to hate, —A time of war, and a time of peace.
प्रेम का समय और नफरत का समय; युद्ध का समय और शांति का समय.
9 What profit hath he that worketh, in that wherein, himself, hath toiled?
मेहनत करनेवाले को उससे क्या लाभ जिसके लिए वह मेहनत करता है?
10 I looked at the employment which God hath given to the sons of men, to work therein:
मनुष्य को व्यस्त रखने के लिए परमेश्वर द्वारा ठहराए गए कामों का अनुभव मैंने किया है.
11 Everything, hath he made beautiful in its own time, —also, intelligence, hath he put in their heart, without which men could not find out the work which God hath wrought, from the beginning even unto the end.
उन्होंने हर एक वस्तु को उसके लिए सही समय में ही बनाया है. उन्होंने मनुष्य के हृदय में अनंत काल का अहसास जगाया, फिर भी मनुष्य नहीं समझ पाता कि परमेश्वर ने शुरू से अंत तक क्या किया है.
12 I know that there is no blessedness in them, —save to be glad, and to do well with one’s life.
मैं जानता हूं कि मनुष्य के लिए इससे सही और कुछ नहीं कि वह जीवन में खुश रहे तथा दूसरों के साथ भलाई करने में लगा रहे.
13 Though indeed, that any man should eat and drink, and see blessedness, in all his toil, it is, the gift of God.
हर एक व्यक्ति खाते-पीते अपनी मेहनत के कामों में संतुष्ट रहे—यह मनुष्य के लिए परमेश्वर द्वारा दिया गया वरदान है.
14 I know, that, whatsoever God doeth, the same, shall be age-abiding, unto it, there is nothing to add, and, from it, there is nothing to take away, —and, God, hath done it, that men should stand in awe before him.
मुझे मालूम है कि परमेश्वर द्वारा किया गया-हर-एक काम सदा बना रहेगा; ऐसा कुछ भी नहीं कि इसमें जोड़ा नहीं जा सकता या इससे अलग किया जा सके. परमेश्वर ने ऐसा इसलिये किया है कि लोग उनके सामने श्रद्धा और भय में रहें.
15 That which was, already, had been, and, that which shall be, already, shall have been, —but, God, seeketh that which hath been chased away.
वह जो है, पहले ही हो चुका तथा वह भी जो होने पर है, पहले ही हो चुका; क्योंकि परमेश्वर बीती हुई बातों को फिर से दोहराते हैं.
16 Then, again, I saw under the sun, the place of justice, that there was lawlessness, and, the place of righteousness, that there was lawlessness.
इसके अलावा मैंने धरती पर यह भी देखा कि: न्याय की जगह दुष्टता है, तथा अच्छाई की जगह में भी दुष्टता ही होती है.
17 Said, I, in my heart, Both the righteous and the lawless, will God judge, —for [there will be] a time for every pursuit, and concerning every work—there.
मैंने सोचा, “परमेश्वर धर्मी और दुष्ट दोनों का ही न्याय करेंगे, क्योंकि हर एक काम और हर एक आरंभ का एक समय तय है.”
18 Said, I, in my heart, as concerning the sons of men, That God was minded to prove them, —and that they might see, that they were beasts, of themselves.
मनुष्यों के बारे में मैंने सोचा, “परमेश्वर निश्चित ही उनको परखते हैं कि मनुष्य यह समझ लें कि वे पशु के अलावा और कुछ नहीं.
19 For, as regardeth the destiny of the sons of men and the destiny of beasts, one fate, have they, as dieth the one, so, dieth the other, and, one spirit, have they all, —and, the pre-eminence of man over beast, is nothing, for, all, were vanity:
क्योंकि मनुष्य तथा पशु का अंत एक ही है: जैसे एक की मृत्यु होती है वैसे दूसरे की भी. उनकी सांस एक जैसी है; मनुष्य पशु से किसी भी तरह से बेहतर नहीं, क्योंकि सब कुछ बेकार है.
20 all, go unto one place, —all, came from the dust, and all, return to the dust.
सब की मंज़िल एक है. सभी मिट्टी से बने हैं और मिट्टी में मिल भी जाते हैं.
21 Who knoweth the spirit of the sons of men, whether it, ascendeth, above, —or the spirit of the beast, whether it, descendeth, below, to the earth?
किसे मालूम है कि मनुष्य के प्राण ऊपरी लोक में जाते हैं तथा पशु के प्राण पाताल में?”
22 So I saw, that there was nothing better than that a man should be glad in his works, for, that, is his portion, —for who can bring him in, to look upon that which shall be after him?
मैंने यह पाया कि मनुष्य के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं है कि वह अपने कामों में संतुष्ट रहे, यही है उसकी मंज़िल. उसे कौन इस स्थिति में ला सकता है कि वह देख पाए कि क्या होगा उसके बाद?

< Ecclesiastes 3 >