< James 1 >
1 James, a servant of God and of the Lord Jesus Christ, greets the twelve tribes that are living abroad.
१परमेश्वर के और प्रभु यीशु मसीह के दास याकूब की ओर से उन बारहों गोत्रों को जो तितर-बितर होकर रहते हैं नमस्कार पहुँचे।
2 My friends, whatever trials you may face from time to time, always regard them as a reason for rejoicing,
२हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो,
3 knowing, as you do, that the testing of your faith develops endurance.
३यह जानकर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है।
4 And let endurance do its work perfectly, so that you may be altogether perfect, and in no respect lacking.
४पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।
5 If any one of you lacks wisdom, they should ask wisdom from the God who gives freely to everyone without reproach, and it will be given to them.
५पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से माँगो, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उसको दी जाएगी।
6 But they should ask with confidence, never doubting; for the person who doubts is like a wave of the sea driven here and there at the mercy of the wind –
६पर विश्वास से माँगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है।
7 Such a person must not expect that they will receive anything from the Lord,
७ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा,
8 vacillating as they are, irresolute at every turn.
८वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।
9 Let a follower in humble circumstances be proud of their exalted position,
९दीन भाई अपने ऊँचे पद पर घमण्ड करे।
10 but a rich follower of their humiliation; for the rich will pass away like a wild flower.
१०और धनवान अपनी नीच दशा पर; क्योंकि वह घास के फूल की तरह मिट जाएगा।
11 As the sun rises, and the hot wind blows, the plant withers, its flower fades, and all its beauty is gone. So is it with the rich. In the midst of their pursuits they will wither away.
११क्योंकि सूर्य उदय होते ही कड़ी धूप पड़ती है और घास को सुखा देती है, और उसका फूल झड़ जाता है, और उसकी शोभा मिटती जाती है; उसी प्रकार धनवान भी अपने कार्यों के मध्य में ही लोप हो जाएँगे।
12 Blessed is the person who remains firm under temptation, for, when they have stood the test, they will receive the crown of life, which the Lord has promised to those who love him.
१२धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिसकी प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करनेवालों को दी है।
13 Let no one say, when they are tempted, ‘It is God who is tempting me!’ For God, who cannot be tempted to do wrong, does not himself tempt anyone.
१३जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।
14 A man is in every case tempted by their own passions – allured and enticed by them.
१४परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंचकर, और फँसकर परीक्षा में पड़ता है।
15 Then passion conceives and gives birth to sin, and sin, on reaching maturity, brings forth death.
१५फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।
16 Do not be deceived, my dear friends.
१६हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ।
17 Every good thing given us, and every perfect gift, is from above, and comes down to us from the Father of the lights in the heavens, who is himself never subject to change or to eclipse.
१७क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिसमें न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, और न ही वह परछाई के समान बदलता है।
18 Because he so willed, he gave us life, through the message of the truth, so that we should be, as it were, a kind of first fruits of his creation.
१८उसने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्पन्न किया, ताकि हम उसकी सृष्टि किए हुए प्राणियों के बीच पहले फल के समान हो।
19 Mark this, my dear friends – Let everyone be quick to listen, slow to speak, and slow to get angry;
१९हे मेरे प्रिय भाइयों, यह बात तुम जान लो, हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो।
20 for human anger does not forward the righteous purpose of God.
२०क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धार्मिकता का निर्वाह नहीं कर सकता है।
21 Therefore, get rid of all filthiness and whatever wickedness still remains, and in a humble spirit receive that message which has been planted in your hearts and is able to save your souls.
२१इसलिए सारी मलिनता और बैर-भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।
22 Put that message into practice, and do not merely listen to it – deceiving yourselves.
२२परन्तु वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आपको धोखा देते हैं।
23 For, when anyone listens to it and does not practice it, they are like a person looking at their own face in a mirror.
२३क्योंकि जो कोई वचन का सुननेवाला हो, और उस पर चलनेवाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुँह दर्पण में देखता है।
24 They look at themselves, then go on their way,
२४इसलिए कि वह अपने आपको देखकर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि वह कैसा था।
25 but the person who looks carefully into the perfect Law, the Law of freedom, and continues to do so, not listening to it and then forgetting it, but putting it into practice – that person will be blessed in what they do.
२५पर जो व्यक्ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिए आशीष पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं, पर वैसा ही काम करता है।
26 When a person appears to be religious, yet does not bridle their tongue, but imposes on their own conscience, that person’s religious observances are valueless.
२६यदि कोई अपने आपको भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उसकी भक्ति व्यर्थ है।
27 That religious observance which is pure and spotless in the eyes of God our Father is this – to visit orphans and widows in their trouble, and to keep oneself uncontaminated by the world.
२७हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उनकी सुधि लें, और अपने आपको संसार से निष्कलंक रखें।