< Isaiah 18 >
1 Ho! thou land of rustling wings, Beyond the rivers of Ethiopia!
१हाय, पंखों की फड़फड़ाहट से भरे हुए देश, तू जो कूश की नदियों के परे है;
2 That sendest thy messengers upon the sea, In reed-boats upon the face of the waters: Go, ye swift messengers, to a nation tall and fair, To a people terrible from the first and onward, To a mighty, victorious people, Whose land is divided by rivers!
२और समुद्र पर दूतों को सरकण्डों की नावों में बैठाकर जल के मार्ग से यह कह के भेजता है, हे फुर्तीले दूतों, उस जाति के पास जाओ जिसके लोग बलिष्ठ और सुन्दर हैं, जो आदि से अब तक डरावने हैं, जो मापने और रौंदनेवाला भी हैं, और जिनका देश नदियों से विभाजित किया हुआ है।
3 All ye inhabitants of the world, ye that dwell on the earth, When the standard is lifted up on the mountains, behold! When the trumpet is sounded, hear!
३हे जगत के सब रहनेवालों, और पृथ्वी के सब निवासियों, जब झण्डा पहाड़ों पर खड़ा किया जाए, उसे देखो! जब नरसिंगा फूँका जाए, तब सुनो!
4 For thus hath Jehovah said to me: “I will sit still, and look on from my dwelling-place, Like a serene heat when the sun shineth, Like a dewy cloud in the heat of harvest.”
४क्योंकि यहोवा ने मुझसे यह कहा है, “धूप की तेज गर्मी या कटनी के समय के ओसवाले बादल के समान मैं शान्त होकर निहारूँगा।”
5 But before the vintage, when the bud is gone, And the blossom is ripening into a swelling grape, He shall cut off the shoots with pruning-hooks, And the branches he shall take away and cut down.
५क्योंकि दाख तोड़ने के समय से पहले जब फूल फूल चुकें, और दाख के गुच्छे पकने लगें, तब वह टहनियों को हँसुओं से काट डालेगा, और फैली हुई डालियों को तोड़-तोड़कर अलग फेंक देगा।
6 They shall be left together to the ravenous birds of the mountains, And to the wild beasts of the earth. The ravenous birds shall summer upon it, And every wild beast of the earth shall winter upon it.
६वे पहाड़ों के माँसाहारी पक्षियों और वन-पशुओं के लिये इकट्ठे पड़े रहेंगे। और माँसाहारी पक्षी तो उनको नोचते-नोचते धूपकाल बिताएँगे, और सब भाँति के वन पशु उनको खाते-खाते सर्दी काटेंगे।
7 At that time shall gifts be brought to Jehovah of hosts From a nation tall and fair, From a people terrible from the first and onward, A mighty, victorious people, Whose land is divided by rivers, To the dwelling-place of Jehovah of hosts, to mount Zion.
७उस समय जिस जाति के लोग बलिष्ठ और सुन्दर हैं, और जो आदि ही से डरावने होते आए हैं, और जो सामर्थी और रौंदनेवाले हैं, और जिनका देश नदियों से विभाजित किया हुआ है, उस जाति से सेनाओं के यहोवा के नाम के स्थान सिय्योन पर्वत पर सेनाओं के यहोवा के पास भेंट पहुँचाई जाएगी।