< Acts 5 >

1 But a certain man named Ananias, with Sappirah, his wife, sold a possession,
हनन्याह नामक एक मनुष्य, और उसकी पत्नी सफीरा ने कुछ भूमि बेची।
2 and kept back part of the price, his wife also being aware of it, and brought a certain part, and put it at the apostles' feet.
और उसके दाम में से कुछ रख छोड़ा; और यह बात उसकी पत्नी भी जानती थी, और उसका एक भाग लाकर प्रेरितों के पाँवों के आगे रख दिया।
3 But Peter said, "Ananias, why has Satan filled your heart to lie to the Holy Spirit, and to keep back part of the price of the land?
परन्तु पतरस ने कहा, “हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में यह बात क्यों डाली है कि तू पवित्र आत्मा से झूठ बोले, और भूमि के दाम में से कुछ रख छोड़े?
4 While you kept it, did not it remain your own? After it was sold, was not it in your power? How is it that you have conceived this thing in your heart? You have not lied to people, but to God."
जब तक वह तेरे पास रही, क्या तेरी न थी? और जब बिक गई तो उसकी कीमत क्या तेरे वश में न थी? तूने यह बात अपने मन में क्यों सोची? तूने मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से झूठ बोला है।”
5 Ananias, hearing these words, fell down and died. Great fear came on all who heard it.
ये बातें सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा, और प्राण छोड़ दिए; और सब सुननेवालों पर बड़ा भय छा गया।
6 The young men arose and wrapped him up, and they carried him out and buried him.
फिर जवानों ने उठकर उसकी अर्थी बनाई और बाहर ले जाकर गाड़ दिया।
7 About three hours later, his wife, not knowing what had happened, came in.
लगभग तीन घंटे के बाद उसकी पत्नी, जो कुछ हुआ था न जानकर, भीतर आई।
8 Peter answered her, "Tell me whether you sold the land for so much." She said, "Yes, for so much."
तब पतरस ने उससे कहा, “मुझे बता क्या तुम ने वह भूमि इतने ही में बेची थी?” उसने कहा, “हाँ, इतने ही में।”
9 But Peter asked her, "How is it that you have agreed together to tempt the Spirit of the Lord? Look, the feet of those who have buried your husband are at the door, and they will carry you out."
पतरस ने उससे कहा, “यह क्या बात है, कि तुम दोनों प्रभु के आत्मा की परीक्षा के लिए एक साथ सहमत हो गए? देख, तेरे पति के गाड़नेवाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएँगे।”
10 She fell down immediately at his feet, and died. The young men came in and found her dead, and they carried her out and buried her by her husband.
१०तब वह तुरन्त उसके पाँवों पर गिर पड़ी, और प्राण छोड़ दिए; और जवानों ने भीतर आकर उसे मरा पाया, और बाहर ले जाकर उसके पति के पास गाड़ दिया।
11 Great fear came on the whole church, and on all who heard these things.
११और सारी कलीसिया पर और इन बातों के सब सुननेवालों पर, बड़ा भय छा गया।
12 By the hands of the apostles many signs and wonders were done among the people. They were all with one accord in Solomon's porch.
१२प्रेरितों के हाथों से बहुत चिन्ह और अद्भुत काम लोगों के बीच में दिखाए जाते थे, और वे सब एक चित्त होकर सुलैमान के ओसारे में इकट्ठे हुआ करते थे।
13 None of the rest dared to join them, however the people honored them.
१३परन्तु औरों में से किसी को यह साहस न होता था कि, उनमें जा मिलें; फिर भी लोग उनकी बड़ाई करते थे।
14 More believers were added to the Lord, crowds of both men and women.
१४और विश्वास करनेवाले बहुत सारे पुरुष और स्त्रियाँ प्रभु की कलीसिया में और भी अधिक आकर मिलते रहे।
15 They even carried out the sick into the streets, and put them on cots and mats, so that as Peter came by at the least his shadow would fall on some of them.
१५यहाँ तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला-लाकर, खाटों और खटोलों पर लिटा देते थे, कि जब पतरस आए, तो उसकी छाया ही उनमें से किसी पर पड़ जाए।
16 Crowds also came together from the cities around Jerusalem, bringing sick people, and those who were tormented by unclean spirits: and they were all healed.
१६और यरूशलेम के आस-पास के नगरों से भी बहुत लोग बीमारों और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुओं को ला-लाकर, इकट्ठे होते थे, और सब अच्छे कर दिए जाते थे।
17 But the high priest rose up, and all those who were with him (which is the sect of the Sadducees), and they were filled with jealousy,
१७तब महायाजक और उसके सब साथी जो सदूकियों के पंथ के थे, ईर्ष्या से भर उठे।
18 and laid hands on the apostles, and put them in public custody.
१८और प्रेरितों को पकड़कर बन्दीगृह में बन्द कर दिया।
19 But an angel of the Lord opened the prison doors by night, and brought them out, and said,
१९परन्तु रात को प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बन्दीगृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर लाकर कहा,
20 "Go stand and speak in the temple to the people all the words of this life."
२०“जाओ, मन्दिर में खड़े होकर, इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।”
21 When they heard this, they entered into the temple about daybreak, and taught. But the high priest came, and those who were with him, and called the council together, and all the elders of the children of Israel, and sent to the prison to have them brought.
२१वे यह सुनकर भोर होते ही मन्दिर में जाकर उपदेश देने लगे। परन्तु महायाजक और उसके साथियों ने आकर महासभा को और इस्राएलियों के सब प्राचीनों को इकट्ठा किया, और बन्दीगृह में कहला भेजा कि उन्हें लाएँ।
22 But the officers who came did not find them in the prison. They returned and reported,
२२परन्तु अधिकारियों ने वहाँ पहुँचकर उन्हें बन्दीगृह में न पाया, और लौटकर सन्देश दिया,
23 "We found the prison shut and locked, and the guards standing before the doors, but when we opened them, we found no one inside."
२३“हमने बन्दीगृह को बड़ी सावधानी से बन्द किया हुआ, और पहरेवालों को बाहर द्वारों पर खड़े हुए पाया; परन्तु जब खोला, तो भीतर कोई न मिला।”
24 Now when the captain of the temple, and the chief priests heard these words, they were very perplexed about them and what might become of this.
२४जब मन्दिर के सरदार और प्रधान याजकों ने ये बातें सुनीं, तो उनके विषय में भारी चिन्ता में पड़ गए कि उनका क्या हुआ!
25 One came and told them, "Look, the men whom you put in prison are in the temple, standing and teaching the people."
२५इतने में किसी ने आकर उन्हें बताया, “देखो, जिन्हें तुम ने बन्दीगृह में बन्द रखा था, वे मनुष्य मन्दिर में खड़े हुए लोगों को उपदेश दे रहे हैं।”
26 Then the captain went with the officers, and brought them without violence, for they were afraid that the people might stone them.
२६तब सरदार, अधिकारियों के साथ जाकर, उन्हें ले आया, परन्तु बलपूर्वक नहीं, क्योंकि वे लोगों से डरते थे, कि उन पर पथराव न करें।
27 When they had brought them, they set them before the council. The high priest questioned them,
२७उन्होंने उन्हें फिर लाकर महासभा के सामने खड़ा कर दिया और महायाजक ने उनसे पूछा,
28 saying, "Did we not strictly command you not to teach in this name? And look, you have filled Jerusalem with your teaching, and intend to bring this man's blood on us."
२८“क्या हमने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि तुम इस नाम से उपदेश न करना? फिर भी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो।”
29 But Peter and the apostles answered, "We must obey God rather than people.
२९तब पतरस और, अन्य प्रेरितों ने उत्तर दिया, “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है।
30 The God of our fathers raised up Jesus, whom you killed, hanging him on a tree.
३०हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटकाकर मार डाला था।
31 God exalted him with his right hand to be a Leader and a Savior, to give repentance to Israel, and forgiveness of sins.
३१उसी को परमेश्वर ने प्रभु और उद्धारकर्ता ठहराकर, अपने दाहिने हाथ से सर्वोच्च किया, कि वह इस्राएलियों को मन फिराव और पापों की क्षमा प्रदान करे।
32 We are witnesses of these things; and so also is the Holy Spirit, whom God has given to those who obey him."
३२और हम इन बातों के गवाह हैं, और पवित्र आत्मा भी, जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है, जो उसकी आज्ञा मानते हैं।”
33 But they, when they heard this, were furious, and wanted to kill them.
३३यह सुनकर वे जल उठे, और उन्हें मार डालना चाहा।
34 But one stood up in the council, a Pharisee named Gamaliel, a teacher of the Law, honored by all the people, and commanded to put the men out for a little while.
३४परन्तु गमलीएल नामक एक फरीसी ने जो व्यवस्थापक और सब लोगों में माननीय था, महासभा में खड़े होकर प्रेरितों को थोड़ी देर के लिये बाहर कर देने की आज्ञा दी।
35 He said to them, "You men of Israel, be careful concerning these men, what you are about to do.
३५तब उसने कहा, “हे इस्राएलियों, जो कुछ इन मनुष्यों से करना चाहते हो, सोच समझ के करना।
36 For before these days Todah rose up, making himself out to be somebody; to whom a number of men, about four hundred, joined themselves: who was slain; and all, as many as obeyed him, were dispersed, and came to nothing.
३६क्योंकि इन दिनों से पहले थियूदास यह कहता हुआ उठा, कि मैं भी कुछ हूँ; और कोई चार सौ मनुष्य उसके साथ हो लिए, परन्तु वह मारा गया; और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हुए और मिट गए।
37 After this man, Judas of Galilee rose up in the days of the enrollment, and drew away some people after him. He also perished, and all, as many as obeyed him, were scattered abroad.
३७उसके बाद नाम लिखाई के दिनों में यहूदा गलीली उठा, और कुछ लोग अपनी ओर कर लिए; वह भी नाश हो गया, और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हो गए।
38 Now I tell you, withdraw from these men, and leave them alone. For if this counsel or this work is of human origin, it will be overthrown.
३८इसलिए अब मैं तुम से कहता हूँ, इन मनुष्यों से दूर ही रहो और उनसे कुछ काम न रखो; क्योंकि यदि यह योजना या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा;
39 But if it is of God, you will not be able to overthrow them, and you would be found even to be fighting against God."
३९परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़नेवाले ठहरो।”
40 They agreed with him. Summoning the apostles, they beat them and commanded them not to speak in the name of Jesus, and let them go.
४०तब उन्होंने उसकी बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना।
41 They therefore departed from the presence of the council, rejoicing that they were counted worthy to suffer dishonor for the Name.
४१वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के सामने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे।
42 Every day, in the temple and at home, they never stopped teaching and proclaiming that Jesus is the Christ.
४२इसके बाद हर दिन, मन्दिर में और घर-घर में, वे लगातार सिखाते और प्रचार करते थे कि यीशु ही मसीह है।

< Acts 5 >