< Philippians 4 >

1 Therefore, my brothers, whom I love and long for, my joy and crown, so stand firm in the Lord, my beloved.
इसलिए हे मेरे प्रिय भाइयों, जिनमें मेरा जी लगा रहता है, जो मेरे आनन्द और मुकुट हो, हे प्रिय भाइयों, प्रभु में इसी प्रकार स्थिर रहो।
2 I appeal to Euodia and I appeal to Syntyche to agree in the Lord.
मैं यूओदिया से निवेदन करता हूँ, और सुन्तुखे से भी, कि वे प्रभु में एक मन रहें।
3 Yes, I ask you also, true companion, help these women, for they labored with me in the Good News, with Clement also, and the rest of my fellow workers, whose names are in the Book of Life.
हे सच्चे सहकर्मी, मैं तुझ से भी विनती करता हूँ, कि तू उन स्त्रियों की सहायता कर, क्योंकि उन्होंने मेरे साथ सुसमाचार फैलाने में, क्लेमेंस और मेरे अन्य सहकर्मियों समेत परिश्रम किया, जिनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हुए हैं।
4 Rejoice in the Lord always. Again I will say, Rejoice.
प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूँ, आनन्दित रहो।
5 Let your gentleness be evident to all people. The Lord is near.
तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो। प्रभु निकट है।
6 Do not be anxious about anything, but in everything, by prayer and petition with thanksgiving, let your requests be made known to God.
किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ।
7 And the peace of God, which surpasses all understanding, will guard your hearts and your minds in Christ Jesus.
तब परमेश्वर की शान्ति, जो सारी समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।
8 Finally, brothers, whatever things are true, whatever things are honorable, whatever things are just, whatever things are pure, whatever things are lovely, whatever things are of good report; if there is any virtue, and if there is any praise, think on these things.
इसलिए, हे भाइयों, जो-जो बातें सत्य हैं, और जो-जो बातें आदरणीय हैं, और जो-जो बातें उचित हैं, और जो-जो बातें पवित्र हैं, और जो-जो बातें सुहावनी हैं, और जो-जो बातें मनभावनी हैं, अर्थात्, जो भी सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो।
9 And the things you learned and received and heard and saw in me, do these things. And the God of peace will be with you.
जो बातें तुम ने मुझसे सीखी, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।
10 Now I rejoice in the Lord greatly that at last you have revived your concern for me; in which you were indeed concerned, but you lacked opportunity.
१०मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूँ कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इसका विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला।
11 I'm not saying this because I am in need, for I have learned to be content in any circumstance.
११यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूँ; क्योंकि मैंने यह सीखा है कि जिस दशा में हूँ, उसी में सन्तोष करूँ।
12 I know what it is to be in need, and I know what it is to have a lot. In any and all circumstances I have learned the secret, whether full or hungry, whether having a lot or being in need.
१२मैं दीन होना भी जानता हूँ और बढ़ना भी जानता हूँ; हर एक बात और सब दशाओं में मैंने तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है।
13 I can do all things through him who strengthens me.
१३जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ।
14 Still, you have done well to share my hardship.
१४तो भी तुम ने भला किया कि मेरे क्लेश में मेरे सहभागी हुए।
15 And you Philippians yourselves know that in the beginning of the Good News, when I departed from Macedonia, no church shared with me in the matter of giving and receiving but you only.
१५हे फिलिप्पियों, तुम आप भी जानते हो कि सुसमाचार प्रचार के आरम्भ में जब मैंने मकिदुनिया से कूच किया तब तुम्हें छोड़ और किसी कलीसिया ने लेने-देने के विषय में मेरी सहायता नहीं की।
16 For even in Thessalonica you sent me aid twice.
१६इसी प्रकार जब मैं थिस्सलुनीके में था; तब भी तुम ने मेरी घटी पूरी करने के लिये एक बार क्या वरन् दो बार कुछ भेजा था।
17 Not that I seek the gift, but I seek the fruit that increases to your account.
१७यह नहीं कि मैं दान चाहता हूँ परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूँ, जो तुम्हारे लाभ के लिये बढ़ता जाए।
18 But I have received everything in full, and I have an abundance. I am fully supplied, having received from Epaphroditus the things that came from you, a sweet-smelling fragrance, an acceptable and well-pleasing sacrifice to God.
१८मेरे पास सब कुछ है, वरन् बहुतायत से भी है; जो वस्तुएँ तुम ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से भेजी थीं उन्हें पाकर मैं तृप्त हो गया हूँ, वह तो सुखदायक सुगन्ध और ग्रहण करने के योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है।
19 And my God will supply all your needs according to his glorious riches in Christ Jesus.
१९और मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा।
20 Now to our God and Father be the glory forever and ever. Amen. (aiōn g165)
२०हमारे परमेश्वर और पिता की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन। (aiōn g165)
21 Greet every saint in Christ Jesus. The brothers who are with me greet you.
२१हर एक पवित्र जन को जो यीशु मसीह में हैं नमस्कार कहो। जो भाई मेरे साथ हैं तुम्हें नमस्कार कहते हैं।
22 All the saints greet you, especially those who are of Caesar's household.
२२सब पवित्र लोग, विशेष करके जो कैसर के घराने के हैं तुम को नमस्कार कहते हैं।
23 The grace of the Lord Jesus Christ be with your spirit.
२३हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा के साथ रहे।

< Philippians 4 >