< Zechariah 7 >

1 And it comes to pass, in the fourth year of Darius the king, a word of YHWH has been to Zechariah, in the fourth of the ninth month, in Chisleu.
फिर दारा राजा के चौथे वर्ष में किसलेव नामक नौवें महीने के चौथे दिन को, यहोवा का वचन जकर्याह के पास पहुँचा।
2 And Beth-El sends Sherezer and Regem-Melech, and its men, to appease the face of YHWH,
बेतेलवासियों ने शरेसेर और रेगेम्मेलेक को इसलिए भेजा था कि यहोवा से विनती करें,
3 speaking to the priests who [are] at the house of YHWH of Hosts, and to the prophets, saying, “Do I weep in the fifth month—being separated—as I have done these so many years?”
और सेनाओं के यहोवा के भवन के याजकों से और भविष्यद्वक्ताओं से भी यह पूछें, “क्या हमें उपवास करके रोना चाहिये जैसे कि कितने वर्षों से हम पाँचवें महीने में करते आए हैं?”
4 And there is a word of YHWH of Hosts to me, saying,
तब सेनाओं के यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा;
5 “Speak to all the people of the land, and to the priests, saying,
“सब साधारण लोगों से और याजकों से कह, कि जब तुम इन सत्तर वर्षों के बीच पाँचवें और सातवें महीनों में उपवास और विलाप करते थे, तब क्या तुम सचमुच मेरे ही लिये उपवास करते थे?
6 When you fasted with mourning in the fifth and in the seventh [months]—even these seventy years—did you keep the fast [to] Me? And when you eat, and when you drink, is it not you who are eating, and you who are drinking?
और जब तुम खाते पीते हो, तो क्या तुम अपने ही लिये नहीं खाते, और क्या तुम अपने ही लिये नहीं पीते हो?
7 Are [these] not the words that YHWH proclaimed by the hand of the former prophets, in Jerusalem’s being inhabited, and [in] safety, and its cities around it, and the south and the plain—abiding?”
क्या यह वही वचन नहीं है, जो यहोवा पूर्वकाल के भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा उस समय पुकारकर कहता रहा जब यरूशलेम अपने चारों ओर के नगरों समेत चैन से बसा हुआ था, और दक्षिण देश और नीचे का देश भी बसा हुआ था?”
8 And there is a word of YHWH to Zechariah, saying,
फिर यहोवा का यह वचन जकर्याह के पास पहुँचा: “सेनाओं के यहोवा ने यह कहा है,
9 “Thus spoke YHWH of Hosts, saying, Judge [with] true judgment, And do kindness and mercy with one another.
खराई से न्याय चुकाना, और एक दूसरे के साथ कृपा और दया से काम करना,
10 And do not oppress widow, and fatherless, Sojourner, and poor, And you do not devise the calamity of one another in your heart.
१०न तो विधवा पर अंधेर करना, न अनाथों पर, न परदेशी पर, और न दीन जन पर; और न अपने-अपने मन में एक दूसरे की हानि की कल्पना करना।”
11 And they refuse to attend, And they give a stubborn shoulder, And their ears are made heavy against hearing.
११परन्तु उन्होंने चित्त लगाना न चाहा, और हठ किया, और अपने कानों को बन्द कर लिया ताकि सुन न सके।
12 And their heart they have made adamant, Against hearing the Law, and the words, That YHWH of Hosts sent by His Spirit, By the hand of the former prophets, And there is great wrath from YHWH of Hosts.
१२वरन् उन्होंने अपने हृदय को इसलिए पत्थर सा बना लिया, कि वे उस व्यवस्था और उन वचनों को न मान सके जिन्हें सेनाओं के यहोवा ने अपने आत्मा के द्वारा पूर्वकाल के भविष्यद्वक्ताओं से कहला भेजा था। इस कारण सेनाओं के यहोवा की ओर से उन पर बड़ा क्रोध भड़का।
13 And it comes to pass, as He called, And they have not listened, So they call, and I do not listen,” said YHWH of Hosts.
१३सेनाओं के यहोवा का यही वचन है, “जैसे मेरे पुकारने पर उन्होंने नहीं सुना, वैसे ही उनके पुकारने पर मैं भी न सुनूँगा;
14 “And I toss them on all the nations, That they have not known, The land has been desolate behind them, Of any passing by and turning back, And they set a desirable land for a desolation!”
१४वरन् मैं उन्हें उन सब जातियों के बीच जिन्हें वे नहीं जानते, आँधी के द्वारा तितर-बितर कर दूँगा, और उनका देश उनके पीछे ऐसा उजाड़ पड़ा रहेगा कि उसमें किसी का आना-जाना न होगा; इसी प्रकार से उन्होंने मनोहर देश को उजाड़ कर दिया।”

< Zechariah 7 >