< 1 Chronicles 17 >
1 And it came to pass, when David dwelt in his house, that David said unto Nathan the prophet, Lo, I dwell in a house of cedar, while the ark of the covenant of the Lord is under curtains.
१जब दाऊद अपने भवन में रहने लगा, तब दाऊद ने नातान नबी से कहा, “देख, मैं तो देवदार के बने हुए घर में रहता हूँ, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक तम्बू में रहता है।”
2 And Nathan said unto David, All that is in thy heart do; for God is with thee.
२नातान ने दाऊद से कहा, “जो कुछ तेरे मन में हो उसे कर, क्योंकि परमेश्वर तेरे संग है।”
3 And it came to pass during that night, that the word of God came unto Nathan, saying,
३उसी दिन-रात को परमेश्वर का यह वचन नातान के पास पहुँचा, “जाकर मेरे दास दाऊद से कह,
4 Go and say unto David my servant, Thus hath said the Lord, Not thou shalt build for me the house to dwell in;
४‘यहोवा यह कहता है: मेरे निवास के लिये तू घर बनवाने न पाएगा।
5 For I have not dwelt in a house since the day that I brought up Israel even until this day; but have been [moving] from tent to tent, and from [one] tabernacle [to another].
५क्योंकि जिस दिन से मैं इस्राएलियों को मिस्र से ले आया, आज के दिन तक मैं कभी घर में नहीं रहा; परन्तु एक तम्बू से दूसरे तम्बू को और एक निवास से दूसरे निवास को आया-जाया करता हूँ।
6 In all the places where I moved about among all Israel, did I speak a word to any one of the judges of Israel, whom I had ordained to feed my people, saying, Why have ye not built for me a house of cedar?
६जहाँ-जहाँ मैंने सब इस्राएलियों के बीच आना-जाना किया, क्या मैंने इस्राएल के न्यायियों में से जिनको मैंने अपनी प्रजा की चरवाही करने को ठहराया था, किसी से ऐसी बात कभी कही कि तुम लोगों ने मेरे लिये देवदार का घर क्यों नहीं बनवाया?
7 Now therefore, thus shalt thou say unto my servant, to David, Thus hath said the Lord of hosts, I took thee away from the sheepcote, from behind the flocks, to be a ruler over my people Israel;
७अत: अब तू मेरे दास दाऊद से ऐसा कह, कि सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि मैंने तो तुझको भेड़शाला से और भेड़-बकरियों के पीछे-पीछे फिरने से इस मनसा से बुला लिया, कि तू मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान हो जाए;
8 And I have been with thee withersoever thou didst go, and I have cut off all thy enemies from thy presence, and I have made thee a name; like the name of the great men who are on the earth;
८और जहाँ कहीं तू आया और गया, वहाँ मैं तेरे संग रहा, और तेरे सब शत्रुओं को तेरे सामने से नष्ट किया है। अब मैं तेरे नाम को पृथ्वी के बड़े-बड़े लोगों के नामों के समान बड़ा कर दूँगा।
9 And I have procured a place for my people Israel, and I have planted them, that they may dwell in a place of their own, and be no more troubled; and that the children of wickedness shall not waste them any more, as aforetimes,
९और मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिये एक स्थान ठहराऊँगा, और उसको स्थिर करूँगा कि वह अपने ही स्थान में बसी रहे और कभी चलायमान न हो; और कुटिल लोग उनको नाश न करने पाएँगे, जैसे कि पहले दिनों में करते थे,
10 And [as it was] since the time that I ordained judges to be over my people Israel; and I have humbled all thy enemies; and now I tell thee that the Lord will build for thee a house.
१०वरन् उस समय भी जब मैं अपनी प्रजा इस्राएल के ऊपर न्यायी ठहराता था; अतः मैं तेरे सब शत्रुओं को दबा दूँगा। फिर मैं तुझे यह भी बताता हूँ, कि यहोवा तेरा घर बनाए रखेगा।
11 And it shall come to pass, that, when thy days will be completed that thou must go [to sleep] with thy fathers, I will set up thy seed after thee, who shall be of thy sons, and I will establish his kingdom.
११जब तेरी आयु पूरी हो जाएगी और तुझे अपने पितरों के संग जाना पड़ेगा, तब मैं तेरे बाद तेरे वंश को जो तेरे पुत्रों में से होगा, खड़ा करके उसके राज्य को स्थिर करूँगा।
12 He it is that shall build for me a house, and I will establish his throne for ever.
१२मेरे लिये एक घर वही बनाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूँगा।
13 I too will be to him as a father, and he shall indeed be unto me as a son: and my kindness will I not cause to depart from him, as I caused it to depart from him that was before thee;
१३मैं उसका पिता ठहरूँगा और वह मेरा पुत्र ठहरेगा; और जैसे मैंने अपनी करुणा उस पर से जो तुझ से पहले था हटाई, वैसे मैं उस पर से न हटाऊँगा,
14 But I will place him firmly in my house and in my kingdom for evermore; and his throne shall be established for ever.
१४वरन् मैं उसको अपने घर और अपने राज्य में सदैव स्थिर रखूँगा और उसकी राजगद्दी सदैव अटल रहेगी।’”
15 In accordance with all these words, and in accordance with all this vision, so did Nathan speak unto David.
१५इन सब बातों और इस दर्शन के अनुसार नातान ने दाऊद को समझा दिया।
16 Then went king David in and sat down before the Lord, and he said, Who am I, O Lord God, and what is my house, that thou hast brought me as far as hitherward?
१६तब दाऊद राजा भीतर जाकर यहोवा के सम्मुख बैठा, और कहने लगा, “हे यहोवा परमेश्वर! मैं क्या हूँ? और मेरा घराना क्या है? कि तूने मुझे यहाँ तक पहुँचाया है?
17 And this was [yet] too small a thing in thy eyes, O God, and thou hast spoken concerning thy servant's house for a distant time, and hast regarded me as though I belonged to the rank of a man of high degree, O Lord God.
१७हे परमेश्वर! यह तेरी दृष्टि में छोटी सी बात हुई, क्योंकि तूने अपने दास के घराने के विषय भविष्य के बहुत दिनों तक की चर्चा की है, और हे यहोवा परमेश्वर! तूने मुझे ऊँचे पद का मनुष्य सा जाना है।
18 What can David add yet more [to speak] unto thee of the honor of thy servant? since thou knowest well thy servant.
१८जो महिमा तेरे दास पर दिखाई गई है, उसके विषय दाऊद तुझ से और क्या कह सकता है? तू तो अपने दास को जानता है।
19 O Lord, for the sake of thy servant, and in accordance with thy own heart, hast thou done all this great thing, to make known all these great things.
१९हे यहोवा! तूने अपने दास के निमित्त और अपने मन के अनुसार यह बड़ा काम किया है, कि तेरा दास उसको जान ले।
20 O Lord, there is none like thee, and there is no god beside thee, in accordance with all that we have heard with our ears.
२०हे यहोवा! जो कुछ हमने अपने कानों से सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ और कोई परमेश्वर है।
21 And who is like thy people Israel, the only nation on the earth which God went to redeem for himself as a people, to acquire for thyself a name for great and terrible deeds, by driving out nations from before thy people, which thou hadst redeemed out of Egypt?
२१फिर तेरी प्रजा इस्राएल के भी तुल्य कौन है? वह तो पृथ्वी भर में एक ही जाति है, उसे परमेश्वर ने जाकर अपनी निज प्रजा करने को छुड़ाया, इसलिए कि तू बड़े और डरावने काम करके अपना नाम करे, और अपनी प्रजा के सामने से जो तूने मिस्र से छुड़ा ली थी, जाति-जाति के लोगों को निकाल दे।
22 And thou hast instituted thy people Israel unto thyself as a people for ever; and thou, Lord, art indeed become their God.
२२क्योंकि तूने अपनी प्रजा इस्राएल को अपनी सदा की प्रजा होने के लिये ठहराया, और हे यहोवा! तू आप उसका परमेश्वर ठहरा।
23 And now, O Lord, let the thing that thou hast spoken concerning thy servant and concerning his house be verified for ever, and do as thou hast spoken.
२३इसलिए, अब हे यहोवा, तूने जो वचन अपने दास के और उसके घराने के विषय दिया है, वह सदैव अटल रहे, और अपने वचन के अनुसार ही कर।
24 Yea, let it be verified, and let thy name be magnified unto everlasting, that men may say, The Lord of hosts is the God of Israel, even a God for Israel; and may the house of David thy servant be established before thee.
२४और तेरा नाम सदैव अटल रहे, और यह कहकर तेरी बड़ाई सदा की जाए, कि सेनाओं का यहोवा इस्राएल का परमेश्वर है, वरन् वह इस्राएल ही के लिये परमेश्वर है, और तेरे दास दाऊद का घराना तेरे सामने स्थिर रहे।
25 For thou, O my God, hast revealed to the ear of thy servant, that thou wilt build for him a house; therefore hath thy servant found himself able to pray before thee.
२५क्योंकि हे मेरे परमेश्वर, तूने यह कहकर अपने दास पर प्रगट किया है कि मैं तेरा घर बनाए रखूँगा, इस कारण तेरे दास को तेरे सम्मुख प्रार्थना करने का हियाव हुआ है।
26 And now, O Lord, thou art the [true] God, and thou hast spoken concerning thy servant this goodness:
२६और अब हे यहोवा तू ही परमेश्वर है, और तूने अपने दास को यह भलाई करने का वचन दिया है;
27 And now hast thou been pleased to bless the house of thy servant, that it may continue for ever before thee; for thou, O Lord, hast blessed, and [it will remain] blessed for ever.
२७और अब तूने प्रसन्न होकर, अपने दास के घराने पर ऐसी आशीष दी है, कि वह तेरे सम्मुख सदैव बना रहे, क्योंकि हे यहोवा, तू आशीष दे चुका है, इसलिए वह सदैव आशीषित बना रहे।”