< Psalms 4 >
1 Unto the end, in verses. A psalm for David. When I called upon him, the God of my justice heard me: when I was in distress, thou hast enlarged me. Have mercy on me: and hear my prayer.
जब मै पुकारूँ तो मुझे जबाब दे ऐ मेरी सदाक़त के ख़ुदा! तंगी में तूने मुझे कुशादगी बख़्शी, मुझ पर रहम कर और मेरी दुआ सुन ले।
2 O ye sons of men, how long will you be dull of heart? why do you love vanity, and seek after lying?
ऐ बनी आदम! कब तक मेरी 'इज़्ज़त के बदले रुस्वाई होगी? तुम कब तक बकवास से मुहब्बत रखोगे और झूट के दर पे रहोगे?
3 Know ye also that the Lord hath made his holy one wonderful: the Lord will hear me when I shall cry unto him.
जान लो कि ख़ुदावन्द ने दीनदार को अपने लिए अलग कर रखा है; जब मैं ख़ुदावन्द को पुकारूँगा तो वह सुन लेगा।
4 Be angry, and sin not: the things you say in your hearts, be sorry for them upon your beds.
थरथराओ और गुनाह न करो; अपने अपने बिस्तर पर दिल में सोचो और ख़ामोश रहो।
5 Offer up the sacrifice of justice, and trust in the Lord: many say, Who sheweth us good things?
सदाक़त की कु़र्बानियाँ पेश करो, और ख़ुदावन्द पर भरोसा करो।
6 The light of thy countenance O Lord, is signed upon us: thou hast given gladness in my heart.
बहुत से कहते हैं कौन हम को कुछ भलाई दिखाएगा? ऐ ख़ुदावन्द तू अपने चेहरे का नूर हम पर जलवह गर फ़रमा।
7 By the fruit of their corn, their wine and oil, they are multiplied.
तूने मेरे दिल को उससे ज़्यादा खु़शी बख़्शी है, जो उनको ग़ल्ले और मय की बहुतायत से होती थी।
8 In peace in the selfsame I will sleep, and I will rest: For thou, O Lord, singularly hast settled me in hope.
मैं सलामती से लेट जाऊँगा और सो रहूँगाः क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द! सिर्फ़ तू ही मुझे मुत्मईन रखता है!