< Ezekiel 17 >

1 And the word of Jehovah came unto me, saying,
याहवेह का यह वचन मेरे पास आया:
2 Son of man, put forth a riddle, and speak a parable unto the house of Israel,
“हे मनुष्य के पुत्र, एक पहेली बनाओ और इसे इस्राएलियों को एक दृष्टांत के रूप में सुनाओ.
3 and say, Thus saith the Lord Jehovah: A great eagle with great wings, long-pinioned, full of feathers, which was of divers colours, came unto Lebanon, and took the highest branch of the cedar.
उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: एक बड़ा गरुड़ लबानोन में आया, जिसके शक्तिशाली डैने और लंबे पंख थे और उसके पूरे पंख विभिन्‍न रंगों के थे. उसने देवदार के पेड़ की चोटी के शाखा को पकड़कर.
4 He cropped off the top of its young shoots, and carried it into a merchants' land; he set it in a city of traders.
उसने सबसे ऊपर की कोमल शाखा को तोड़ लिया और उसे व्यापारियों के एक देश में ले गया, और उसने उसे वहां एक व्यापारियों के शहर में रोप दिया.
5 And he took of the seed of the land, and planted it in a fruitful field; he placed it by great waters, he set it as a willow tree.
“‘उसने देश के छोटे पौधों में से एक पौधा लेकर उसे उपजाऊ भूमि में लगा दिया. उसने उसे एक बहुत पानी वाले जगह में एक सरई की तरह लगाया,
6 And it grew, and became a spreading vine of low stature, so that its branches should turn toward him, and the roots thereof be under him; and it became a vine, and brought forth branches, and shot forth sprigs.
और वह बढ़ने लगा और फैलकर अंगूर की एक लता हो गया. उसकी डालियां उसकी ओर झुकी, पर उसकी जड़ें उसके नीचे में ही रहीं. वह अंगूर की एक लता हो गई और उसमें से डालियां निकलीं और ये डालियां पत्तियों से भर गईं.
7 And there was another great eagle with great wings and many feathers; and behold, from the beds of her plantation, this vine did bend her roots unto him, and shot forth her branches toward him, that he might water it.
“‘पर वहां एक और बड़ा गरुड़ था जिसके शक्तिशाली डैने थे और वह पंखों से भरा हुआ था. अब अंगूर की लता, जहां वह लगायी गई थी, वहां से उसकी जड़ें उस दूसरे गरुड़ की ओर बढ़ने लगीं और उसकी डालियां पानी के लिये उसकी तरफ फैलने लगीं.
8 It was planted in a good field by many waters, that it might bring forth branches and bear fruit, that it might be a noble vine.
उस लता को अच्छी भूमि पर बहुत पानी वाले जगह में लगाया गया था ताकि उसमें डालियां निकलें; उसमें फल लगें और वह एक बहुत बढ़िया अंगूर की लता हो.’
9 Say, Thus saith the Lord Jehovah: Shall it prosper? Shall he not pull up its roots, and cut off its fruit, that it may wither? All its fresh sprouting leaves shall wither, even without a great arm and many people to pluck it up by its roots.
“उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: क्या यह बढ़ेगा? क्या इसे उखाड़कर इसके फलों को गिरा दिया नहीं जाएगा ताकि यह सूख जाए? इसकी सब नई अंकुरित पत्तियां सूख जाएंगी. इसे इसके जड़ से उखाड़ने के लिये किसी मजबूत हाथ या बहुत से लोगों की ज़रूरत नहीं होगी.
10 And behold, being planted, shall it prosper? shall it not utterly wither when the east wind toucheth it? It shall wither in the beds where it grew.
इसे लगाया गया है, पर क्या यह बढ़ेगा? क्या यह पूरी तरह सूख नहीं जाएगी जब इस पर पूर्वी हवा चलेगी? यह उसी भूमि में ही सूख जाएगी, जहां यह उगी थी.’”
11 And the word of Jehovah came unto me, saying,
तब याहवेह का वचन मेरे पास आया:
12 Say now to the rebellious house, Know ye not what these things are? Say, Behold, the king of Babylon came to Jerusalem, and took its king and its princes, and led them with him to Babylon.
“इन विद्रोही लोगों से कहो, ‘क्या तुम इन बातों का अर्थ नहीं समझते?’ उनसे कहो: ‘बाबेल का राजा येरूशलेम गया और उसके राजा और उसके प्रभावशाली लोगों को अपने साथ वापस बाबेल ले आया.
13 And he took of the king's seed, and made a covenant with him, and brought him under an oath, and he took away the mighty of the land;
तब उसने राजपरिवार के एक सदस्य को लिया और उसे सौगंध दिलाकर उससे एक संधि की. वह अपने साथ देश के मुख्य लोगों को भी ले गया,
14 that the kingdom might be abased, that it might not lift itself up, that it might keep his covenant in order to stand.
ताकि वह राज्य कमजोर हो जाए और फिर उन्‍नति न कर सके, पर सिर्फ उसके द्वारा किए गये संधि पर चलने से बचा रहे.
15 But he rebelled against him in sending his ambassadors into Egypt, that they might give him horses and much people. Shall he prosper? shall he escape that doeth such things? shall he break the covenant, and yet escape?
परंतु उस राज्य के राजा ने अपने दूतों को घोड़े और एक बड़ी सेना लाने के लिये मिस्र देश भेजा और इस प्रकार उसने बाबेल के राजा से विद्रोह किया. क्या वह सफल होगा? क्या वह, जो ऐसा काम करता है, बच निकलेगा? क्या वह संधि को तोड़कर भी बच जाएगा?
16 [As] I live, saith the Lord Jehovah, verily in the place of the king that made him king, whose oath he despised, and whose covenant he broke, even with him, in the midst of Babylon, shall he die.
“‘मेरे जीवन की सौगंध, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है, वह उस राजा के देश बाबेल में मरेगा, जिसने उसे सिंहासन पर बैठाया, जिसकी शपथ को उसने तुच्छ जाना और जिसके संधि को उसने तोड़ा.
17 Neither shall Pharaoh with a mighty army and a great assemblage do anything for him in the war, when they cast up mounds and build forts to cut off many persons.
जब ढलानें बनायी जाएंगी और लोगों को मारने के लिये घेराबंदी का काम किया जाएगा, तो फ़रोह, उसकी बड़ी सेना और उसका बड़ा उपद्रवी झुंड भी युद्ध में उसके कोई काम न आएगा.
18 He despised the oath, and broke the covenant; and behold, he had given his hand, yet hath he done all these things: he shall not escape.
उसने वाचा को तोड़ने के द्वारा शपथ को तुच्छ जाना. क्योंकि उसने अपने हाथ को गिरवी रखा और फिर भी ये सब काम किया, इसलिये वह बच नहीं पाएगा.
19 Therefore thus saith the Lord Jehovah: [As] I live, verily, mine oath which he hath despised, and my covenant which he hath broken, even it will I recompense upon his head.
“‘इसलिये परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, निश्चयतः, मैं उससे मेरी शपथ को तुच्छ समझने और मेरी वाचा को तोड़ने का बदला लूंगा.
20 And I will spread my net upon him, and he shall be taken in my snare; and I will bring him to Babylon, and will enter into judgment with him there for his unfaithfulness in which he hath been unfaithful against me.
मैं उसके लिये अपना जाल फैलाऊंगा, और वह मेरे फंदे में फंसेगा. मैं उसे बाबेल ले जाऊंगा और वहां उसे दंड दूंगा क्योंकि उसने मेरे साथ विश्वासघात किया.
21 And all his fugitives with all his bands shall fall by the sword, and they that remain shall be scattered toward every wind; and ye shall know that I Jehovah have spoken.
उसके उत्तम सैन्य दल तलवार से मारे जाएंगे, और बचे हुए लोग चारों तरफ तितर-बितर हो जाएंगे. तब तुम जानोगे कि मैं, याहवेह ने यह कहा है.
22 Thus saith the Lord Jehovah: I will also take of the highest branch of the lofty cedar, and will set it; I will crop off from the top of its young shoots a tender one, and I will plant it upon a high and eminent mountain:
“‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मैं एक देवदार वृक्ष की सबसे ऊंची डाली के अंकुर को लेकर लगाऊंगा; मैं उसकी सबसे ऊंची शाखाओं में से एक कोमल डाली को तोड़ूंगा और उसे एक ऊंचे पहाड़ पर लगाऊंगा.
23 upon the mountain of the height of Israel will I plant it; and it shall bring forth branches, and bear fruit, and become a noble cedar; and under it shall dwell all birds of every wing; in the shadow of the branches thereof shall they dwell.
मैं उसे इस्राएल के पहाड़ की ऊंचाइयों में लगाऊंगा; इसमें शाखाएं निकलेंगी और फल लगेगा और यह एक शानदार देवदार का पेड़ होगा. हर प्रकार के पक्षी उसमें घोंसला बनाएंगे; वे उसकी शाखाओं की छाया में बसेरा करेंगे.
24 And all the trees of the field shall know that I Jehovah have brought down the high tree, have exalted the low tree, have dried up the green tree, and made the dry tree to flourish: I Jehovah have spoken, and will do [it].
बंजर भूमि के सब वृक्ष जान लेंगे कि मैं याहवेह ऊंचे वृक्ष को नीचे लाता और छोटे वृक्ष को बढ़ाकर ऊंचा करता हूं. मैं हरे-भरे वृक्ष को सुखा देता और सूखे वृक्ष को हरा-भरा करके बढ़ाता हूं. “‘मैं याहवेह ने कहा है, और मैं इसे पूरा करूंगा.’”

< Ezekiel 17 >