< Kings I 14 >
1 And when a certain day arrived, Jonathan the son of Saul said to the young man that bore his armour, Come, and let us go over to Messab of the Philistines that is on the other side yonder; but he told not his father.
एक दिन योनातन ने अपने शस्त्रवाहक से कहा, “चलो, उस ओर चलें, जहां फिलिस्तीनी सेना की छावनी है.” उसकी सूचना उसने अपने पिता को नहीं दी.
2 And Saul sat on the top of the hill under the pomegranate tree that is in Magdon, and there were with him about six hundred men.
शाऊल मिगरोन नामक स्थान पर एक अनार के पेड़ के नीचे बैठे हुए थे. यह स्थान गिबियाह की सीमा के निकट था. उनके साथ के सैनिकों की संख्या लगभग छः सौ थी,
3 And Achia son of Achitob, the brother of Jochabed the son of Phinees, the son of Heli, [was] the priest of God in Selom wearing an ephod: and the people knew not that Jonathan was gone.
इस समय अहीयाह एफ़ोद धारण किए हुए उनके साथ था. वह अहीतूब का पुत्र था, जो एली के पुत्र, फिनिहास के पुत्र इखाबोद का भाई था. एली शीलो में याहवेह के पुरोहित थे. सेना इस बात से बिलकुल अनजान थी कि योनातन वहां से जा चुके थे.
4 And in the midst of the passage whereby Jonathan sought to pass over to the encampment of the Philistines, there was both a sharp rock on this side, and a sharp rock on the other side: the name of the one [was] Bases, and the name of the other Senna.
उस संकरे मार्ग के दोनों ओर चट्टानों की तीव्र ढलान थी. योनातन यहीं से होकर फिलिस्तीनी सेना शिविर तक पहुंचने की योजना बना रहे थे. एक चट्टान का नाम था बोसेस और दूसरी का सेनेह.
5 The one way [was] northward to one coming to Machmas, and the other way [was] southward to one coming to Gabae.
उत्तरी दिशा की चट्टान मिकमाश के निकट थी तथा दक्षिण दिशा की चट्टान गेबा के.
6 And Jonathan said to the young man that bore his armour, Come, let us go over to Messab of these uncircumcised, if [peradventure] the Lord may do something for us; for the Lord is not straitened to save by many or by few.
योनातन ने अपने शस्त्रवाहक से कहा, “चलो, इन खतना-रहितों की छावनी तक चलें. संभव है कि याहवेह हमारे लिए सक्रिय हो जाएं. किसमें है यह क्षमता कि याहवेह को रोके? वह छुड़ौती किसी भी परिस्थिति में दे सकते हैं, चाहे थोड़ों के द्वारा या बहुतों के द्वारा.”
7 And his armour-bearer said to him, Do all that thine heart inclines toward: behold, I [am] with thee, my heart [is] as thy heart.
उनके शस्त्रवाहक ने उनसे कहा, “जो कुछ आपको सही लग रहा है, वही कीजिए. जो आपने निश्चय कर लिया है, उसे पूरा कीजिए. मैं हर एक परिस्थिति में आपके साथ हूं.”
8 And Jonathan said, Behold, we will go over to the men, and will come down suddenly upon them.
योनातन ने कहा, “बहुत बढ़िया! हम उन लोगों के सामने जाएंगे कि वे हमें देख सकें.
9 If they should say thus to us, Stand aloof there until we shall send you word; then we will stand still by ourselves, and will not go up against them.
यदि वे हमसे यह कहें, ‘हमारे वहां पहुंचने तक वहीं ठहरे रहना,’ तब हम वहीं खड़े रहेंगे, और उनके पास नहीं जाएंगे.
10 [But] if they should say thus to us, Come up to us; then will we go up, for the Lord has delivered them into our hands; this [shall be] a sign to us.
मगर यदि वे यह कहें, ‘यहां हमारे पास आओ,’ तब हम उनके निकट चले जाएंगे; क्योंकि यह हमारे लिए एक चिन्ह होगा कि याहवेह ने उन्हें हमारे अधीन कर दिया है.”
11 And they both went in to Messab of the Philistines; and the Philistines said, Behold, the Hebrews come forth out of their Caves, where they had hidden themselves.
जब उन दोनों ने स्वयं को फिलिस्तीनी सेना पर प्रकट किया, फिलिस्तीनियों ने उन्हें देखा, वे आपस में विचार करने लगे, “देखो, देखो, इब्री अब अपनी उन गुफाओं में से निकलकर बाहर आ रहे हैं, जहां वे अब तक छिपे हुए थे.”
12 And the men of Messab answered Jonathan and his armour-bearer, and said, Come up to us, and we will shew you a thing: and Jonathan said to his armour-bearer, Come up after me, for the Lord has delivered them into the hands of Israel.
तब उन सैनिकों ने योनातन तथा उनके हथियार उठानेवाले से कहा, “इधर आ जाओ कि हम तुम्हें एक-दो पाठ पढ़ा सकें.” योनातन ने अपने हथियार उठानेवाले से कहा, “चलो, चलो. मेरे पीछे चले आओ, क्योंकि याहवेह ने उन्हें इस्राएल के अधीन कर दिया है.”
13 And Jonathan went up on his hands and feet, and his armour-bearer with him; and they looked on the face of Jonathan, and he smote them, and his armour-bearer did smite [them] after him.
तब योनातन अपने हाथों और पैरों का उपयोग करते हुए ऊपर चढ़ने लगे और उनका शस्त्रवाहक उनके पीछे-पीछे चढ़ता चला गया. योनातन फिलिस्तीनियों को मारते चले गए और पीछे-पीछे उनके शस्त्रवाहक ने भी फिलिस्तीनियों को मार गिराया.
14 And the first slaughter which Jonathan and his armour-bearer effected was twenty men, with darts and slings, and pebbles of the field.
उस पहली मार में योनातन और उनके शस्त्रवाहक ने लगभग बीस सैनिकों को मार गिराया था और वह क्षेत्र लगभग आधा एकड़ था.
15 And there was dismay in the camp, and in the field; and all the people in Messab, and the spoilers were amazed; and they would not act, and the land was terror-struck, and there was dismay from the lord.
उससे फिलिस्तीनी शिविर में, मैदान में तथा सभी लोगों में आतंक छा गया. सैनिक चौकी में तथा छापामार दलों में भी आतंक छा गया. भूमि कांपने लगी जिससे सब में आतंक और भी अधिक गहरा हो गया.
16 And the watchmen of Saul beheld in Gabaa of Benjamin, and, behold, the army was thrown into confusion on every side.
बिन्यामिन प्रदेश की सीमा में स्थित गिबिया में शाऊल का पहरेदार देख रहा था कि फिलिस्तीनी सैनिक बड़ी संख्या में इधर-उधर हर दिशा में भाग रहे थे.
17 And Saul said to the people with him, Number yourselves now, and see who has gone out from you: and they numbered themselves, and behold, Jonathan and his armour-bearer were not found.
तब शाऊल ने अपने साथ के सैनिकों को आदेश दिया, “सबको इकट्ठा करो और मालूम करो कि कौन-कौन यहां नहीं है.” जब सैनिक इकट्ठा हो गए तो यह मालूम हुआ कि योनातन और उनका शस्त्र उठानेवाला वहां नहीं थे.
18 And Saul said to Achia, Bring the ephod; for he wore the ephod in that day before Israel.
तब शाऊल ने अहीयाह से कहा, “एफ़ोद यहां लाया जाए.” (उस समय अहीयाह एफ़ोद धारण करता था.)
19 And it came to pass while Saul was speaking to the priest, that the sound in the camp of the Philistines continued to increase greatly; and Saul said to the priest, Withdraw thy hands.
यहां जब शाऊल पुरोहित से बातें कर ही रहे थे, फिलिस्तीनी शिविर में आतंक गहराता ही जा रहा था. तब शाऊल ने पुरोहित को आदेश दिया, “अपना हाथ बाहर निकाल लीजिए.”
20 And Saul went up and all the people that were with him, and they come to the battle: and, behold, [every] man's sword was against his neighbour, a very great confusion.
शाऊल और उनके साथ जितने व्यक्ति थे युद्ध के लिए चल पड़े. फिलिस्तीनी शिविर में उन्होंने देखा कि घोर आतंक में फिलिस्तीनी सैनिक एक दूसरे को ही तलवार से घात किए जा रहे थे.
21 And the servants who had been before with the Philistines, who had gone up to the army, turned themselves also to be with the Israelites who were with Saul and Jonathan.
वहां कुछ इब्री सैनिक ऐसे भी थे, जो शाऊल की सेना छोड़ फिलिस्तीनियों से जा मिले थे. अब वे भी विद्रोही होकर शाऊल और योनातन के साथ मिल गए.
22 And all the Israelites who were hidden in mount Ephraim heard also that the Philistines fled; and they also gather themselves after them to battle: and the Lord saved Israel in that day; and the war passed through Bamoth; and all the people with Saul were about ten thousand men.
इसी प्रकार, वे इस्राएली, जो एफ्राईम प्रदेश के पर्वतों में जा छिपे थे, यह सुनकर कि फिलिस्तीनी भाग रहे हैं, वे भी युद्ध में उनका पीछा करने में जुट गए.
23 And the battle extended itself to every city in the mount Ephraim.
इस प्रकार याहवेह ने उस दिन इस्राएल को छुड़ौती दी. युद्ध बेथ-आवेन के परे फैल चुका था.
24 And Saul committed a great trespass of ignorance in that day, and he lays a curse on the people, saying, Cursed [is] the man who shall eat bread before the evening; so I will avenge myself on my enemy: and none of the people tasted bread, though all the land was dining.
उस दिन इस्राएल सैनिक बहुत ही थक चुके थे क्योंकि शाऊल ने शपथ ले रखी थी, “शापित होगा वह व्यक्ति, जो शाम होने के पहले भोजन करेगा, इसके पहले कि मैं अपने शत्रुओं से बदला ले लूं.” तब किसी भी सैनिक ने भोजन नहीं किया.
25 And Jaal was a wood abounding in swarms of bees on the face of the ground.
सेना वन में प्रवेश कर चुकी थी और वहां भूमि पर शहद का छत्ता पड़ा हुआ था.
26 And the people went into the place of the bees, and, behold, they continued speaking; and, behold, there was none that put his hand to his mouth, for the people feared the oath of the Lord.
जब सैनिक वन में आगे बढ़ रहे थे वहां शहद बहा चला जा रहा था, मगर किसी ने शहद नहीं खाया क्योंकि उन पर शपथ का भय छाया हुआ था.
27 And Jonathan had not heard when his father adjured the people; and he reached forth the end of the staff that was in his hand, an dipped it into the honeycomb, and returned his hand to his mouth, and his eyes recovered their sight.
मगर योनातन ने अपने पिता द्वारा सेना को दी गई शपथ को नहीं सुना था. उसने अपनी लाठी का छोर शहद के छत्ते में डाल दिया. और जब उसने उस शहद को खाया, उसकी आंखों में चमक आ गई.
28 And one of the people answered and said, Thy father solemnly adjured the people, saying, Cursed [is] the man who shall eat bread to-day. And the people were very faint,
तब सैनिकों में से एक ने उन्हें बताया, “तुम्हारे पिता ने सेना को इन शब्दों में यह शपथ दी थी, ‘शापित होगा वह व्यक्ति जो आज भोजन करेगा!’ इसलिये सब सैनिक बहुत ही थके मांदे हैं.”
29 and Jonathan knew it, and said, My father has destroyed the land: see how my eyes have received sight [now] that I have tasted a little of this honey.
योनातन ने कहा, “राष्ट्र के लिए मेरे पिता ने ही संकट उत्पन्न किया है. देख लो, मेरे शहद के चखने पर ही मेरी आंखें कैसी चमकने लगीं हैं.
30 Surely if the people had this day eaten freely of the spoils of their enemies which they found, the slaughter among the Philistines would have been greater.
कितना अच्छा होता यदि आज सभी सैनिकों ने शत्रुओं से लूटी सामग्री में से भोजन कर लिया होता! तब शत्रुओं पर हमारी जय और भी अधिक उल्लेखनीय होती.”
31 And on that day he smote some of the Philistines in Machmas; and the people were very weary.
उस दिन सेना ने फिलिस्तीनियों को मिकमाश से लेकर अय्जालोन तक हरा दिया. तब वे बहुत ही थक चुके थे.
32 And the people turned to the spoil; and the people took flocks, and herds, and calves, and slew them on the ground, and the people ate with the blood.
तब सैनिक शत्रुओं की सामग्री पर लालच कर टूट पड़े. उन्होंने भेड़ें गाय-बैल तथा बछड़े लूट लिए. उन्होंने वहीं भूमि पर उनका वध किया और सैनिक उन्हें लहू समेत खाने लगे.
33 And it was reported to Saul, saying, The people have sinned against the Lord, eating with the blood: and Saul said, Out of Getthaim roll a great stone to me hither.
इसकी सूचना शाऊल को दी गई, “देखिए, सेना याहवेह के विरुद्ध पाप कर रही है—वे लहू के साथ उन्हें खा रहे हैं.” शाऊल ने उत्तर दिया, “तुम सभी ने विश्वासघात किया है. एक बड़ा पत्थर लुढ़का कर यहां मेरे सामने लाओ.”
34 And Saul said, Disperse yourselves among the people, and tell them to bring hither every one his calf, and every one his sheep: and let them slay it on this [stone] and sin not against the Lord in eating with the blood: and the people brought each one that which was in his hand, and they slew [them] there.
उन्होंने आगे आदेश दिया, “तुम सब सैनिकों के बीच में जाकर उनसे यह कहो, ‘तुममें से हर एक अपना अपना बैल या अपनी-अपनी भेड़ यहां मेरे सामने उस स्थान पर लाकर उसका वध करे और तब उसे खाए, मगर मांस को लहू सहित खाकर याहवेह के विरुद्ध पाप न करो.’” तब उस रात हर एक ने अपना अपना बैल वहीं लाकर उसका वध किया.
35 And Saul built an altar there to the Lord: this was the first altar that Saul built to the Lord.
फिर शाऊल ने याहवेह के लिए एक वेदी बनाई. यह उनके द्वारा याहवेह के लिए बनाई पहली वेदी थी.
36 And Saul said, Let us go down after the Philistines this night, and let us plunder among them till the day break, and let us not leave a man among them. And they said, Do all that is good in thy sight: and the priest said, let us draw nigh hither to God.
शाऊल ने अपनी सेना से कहा, “रात में हम फिलिस्तीनियों पर हमला करें. सुबह होते-होते हम उन्हें लूट लेंगे. उनमें से एक भी सैनिक जीवित न छोड़ा जाए.” उन्होंने सहमति में उत्तर दिया, “वही कीजिए, जो आपको सही लग रहा है.” मगर पुरोहित ने सुझाव दिया, “सही यह होगा कि इस विषय में हम परमेश्वर की सलाह ले लें.”
37 And Saul enquired of God, If I go down after the Philistines, wilt thou deliver them into the hands of Israel? And he answered him not in that day.
तब शाऊल ने परमेश्वर से पूछा, “क्या मैं फिलिस्तीनियों पर हमला करूं? क्या आप उन्हें इस्राएल के अधीन कर देंगे?” मगर परमेश्वर ने उस समय उन्हें कोई उत्तर न दिया.
38 And Saul said, Bring hither all the chiefs of Israel, and know and see by whom this sin has been committed this day.
तब शाऊल ने सभी सैन्य अधिकारियों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम सभी प्रधानों, यहां आओ कि हम यह पता करें कि आज यह पाप किस प्रकार किया गया है.
39 For as the Lord lives who has saved Israel, if answer should be against my son Jonathan, he shall surely die. And there was no one that answered out of all the people.
इस्राएल के रखवाले जीवित याहवेह की शपथ, यदि यह पाप स्वयं मेरे पुत्र योनातन द्वारा भी किया गया हो, उसके लिए मृत्यु दंड तय है.” सारी सेना में से एक भी सैनिक ने कुछ भी न कहा.
40 And he said to all the men of Israel, Ye shall be under subjection, and I an Jonathan my son will be under subjection: and the people said to Saul, Do that which is good in thy sight.
तब शाऊल ने संपूर्ण इस्राएली सेना से कहा, “ठीक है. एक ओर मैं और योनातन खड़े होंगे और दूसरी ओर तुम सभी.” सेना ने उत्तर दिया, “आपको जो कुछ सही लगे, कीजिए.”
41 And Saul said, O Lord God of Israel, why hast thou not answered thy servant this day? [is] the iniquity in me, or in Jonathan my son? Lord God of Israel, give clear [manifestations]; and if [the lot] should declare this, give, I pray thee, to thy people of Israel, give, I pray, holiness. And Jonathan and Saul are taken, and the people escaped.
तब शाऊल ने यह प्रार्थना की, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर, यदि यह पाप मेरे द्वारा या मेरे पुत्र योनातन द्वारा ही किया गया है, तब याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर, तब उरीम के द्वारा इसकी पुष्टि कीजिए. यदि यह पाप आपकी प्रजा इस्राएल के द्वारा किया गया है, तब इसकी पुष्टि थुम्मीम द्वारा कीजिए.” इस प्रक्रिया से चिट्ठियों द्वारा योनातन तथा शाऊल सूचित किए गए और सेना निर्दोष घोषित कर दी गई.
42 And Saul said, Cast [lots] between me and my son Jonathan: whomsoever the Lord shall cause to be taken by lot, let him die: and the people said to Saul, This thing is not [to be done]: and Saul prevailed against the people, and they cast [lots] between him and Jonathan his son, and Jonathan is taken by lot.
तब शाऊल ने आदेश दिया, “चिट्ठियां मेरे तथा योनातन के बीच डाली जाएं.” इसमें चिट्ठी द्वारा योनातन चुना गया.
43 And Saul said to Jonathan, Tell me what thou hast done: and Jonathan told him, and said, I did indeed taste a little honey, with the end of my staff that was in my hand, and, lo! I [am to] die.
तब शाऊल ने योनातन को आदेश दिया, “अब बताओ, क्या किया है तुमने?” योनातन ने उन्हें बताया, “सच यह है कि मैंने अपनी लाठी का सिरा शहद के छत्ते से लगा, उसमें लगे थोड़े से शहद को सिर्फ चखा ही था. क्या यह मृत्यु दंड योग्य अपराध है!”
44 And Saul said to him, God do so to me, and more also, thou shalt surely die to-day.
“योनातन, यदि मैं तुम्हें मृत्यु दंड न दूं तो परमेश्वर मुझे कठोर दंड देंगे,” शाऊल ने उत्तर दिया.
45 And the people said to Saul, Shall he that has wrought this great salvation in Israel be put to death this day? [As] the Lord lives, there shall not fall to the ground one of the hairs of his head; for the people of God have wrought successfully this day. And the people prayed for Jonathan in that day, and he died not.
मगर सारी सेना इनकार कर कहने लगी, “क्या योनातन वास्तव में मृत्यु दंड के योग्य है, जिसके द्वारा आज हमें ऐसी महान विजय प्राप्त हुई है? कभी नहीं, कभी नहीं! जीवित याहवेह की शपथ, उसके सिर के एक केश तक की हानि न होगी, क्योंकि जो कुछ उसने आज किया है, वह उसने परमेश्वर की सहायता ही से किया है.” इस प्रकार सेना ने योनातन को निश्चित मृत्यु दंड से बचा लिया.
46 And Saul went up from following the Philistines; and the Philistines departed to their place.
इसके बाद शाऊल ने फिलिस्तीनियों का पीछा करने का विचार ही त्याग दिया, और फिलिस्ती अपनी-अपनी जगह पर लौट गए.
47 And Saul received the kingdom, by lot he inherits the office [of ruling] over Israel: and he fought against all his enemies round about, against Moab, and against the children of Ammon, and against the children of Edom, and against Baethaeor, and against the king of Suba, and against the Philistines: whithersoever he turned, he was victorious.
जब शाऊल इस्राएल के राजा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए, उन्होंने उनके निकटवर्ती सभी शत्रुओं से युद्ध करना शुरू कर दिया: मोआबियों, अम्मोनियों, एदोमियों, ज़ोबाह के राजाओं तथा फिलिस्तीनियों से.
48 And he wrought valiantly, and smote Amalec, and rescued Israel out of the hand of them that trampled on him.
उन्होंने अमालेकियों को मार गिराया और इस्राएल को उसके शत्रुओं से छुड़ौती प्रदान की.
49 And the sons of Saul were Jonathan, and Jessiu, and Melchisa: and [these were] the names of his two daughters, the name of the first-born Merob, and the name of the second Melchol.
शाऊल के पुत्र थे, योनातन, इशवी तथा मालखी-शुआ. उनकी दो पुत्रियां भी थी: बड़ी का नाम था मेराब तथा छोटी का मीखल.
50 And the name of his wife was Achinoom, the daughter of Achimaa: and the name of his captain of the host was Abenner, the son of Ner, son of a kinsman of Saul.
शाऊल की पत्नी का नाम अहीनोअम था, जो अहीमाज़ की बेटी थी. उनकी सेना के प्रधान थे नेर के पुत्र अबनेर. नेर शाऊल के पिता कीश के भाई थे.
51 And Kis [was] the father of Saul, and Ner, the father of Abenezer, [was] son of Jamin, son of Abiel.
शाऊल के पिता कीश तथा अबनेर के पिता नेर, दोनों ही अबीएल के पुत्र थे.
52 And the war was vehement against the Philistines all the days of Saul; and when Saul saw any mighty man, and any valiant man, then he took them to himself.
शाऊल के पूरे जीवनकाल में इस्राएलियों और फिलिस्तीनियों के बीच लगातार युद्ध चलता रहा. जब कभी शाऊल की दृष्टि किसी साहसी और बलवान युवक पर पड़ती थी, वह उसे अपनी सेना में शामिल कर लेते थे.