< Acts 21 >

1 And it came to pass that, after we had separated from them, we put to sea, and came by a straight course to Cos, and on the following day, to Rhodes, and thence to Patara.
जब हमने उनसे अलग होकर समुद्री यात्रा प्रारम्भ किया, तो सीधे मार्ग से कोस में आए, और दूसरे दिन रुदुस में, और वहाँ से पतरा में;
2 And finding a ship that was going to Phenicia, we embarked, and put to sea.
और एक जहाज फीनीके को जाता हुआ मिला, और हमने उस पर चढ़कर, उसे खोल दिया।
3 And we came in view of Cyprus; and, leaving it to the left, we sailed to Syria, and landed at Tyre: for there the ship was to put off her lading.
जब साइप्रस दिखाई दिया, तो हमने उसे बाएँ हाथ छोड़ा, और सीरिया को चलकर सोर में उतरे; क्योंकि वहाँ जहाज का बोझ उतारना था।
4 And we remained there seven days, after finding the disciples. These urged Paul, by the Spirit, not to go up to Jerusalem.
और चेलों को पाकर हम वहाँ सात दिन तक रहे। उन्होंने आत्मा के सिखाए पौलुस से कहा कि यरूशलेम में पाँव न रखना।
5 And when these days were completed, we went forth, and continued our journey, they all, with their wives and children, conducting us out of the city: and we kneeled down on the shore, and prayed.
जब वे दिन पूरे हो गए, तो हम वहाँ से चल दिए; और सब स्त्रियों और बालकों समेत हमें नगर के बाहर तक पहुँचाया और हमने किनारे पर घुटने टेककर प्रार्थना की।
6 And when we had bid each other farewell, we embarked, and they returned home.
तब एक दूसरे से विदा होकर, हम तो जहाज पर चढ़े, और वे अपने-अपने घर लौट गए।
7 And completing the voyage from Tyre, we arrived at Ptolemais: and having saluted the brethren, we remained with them one day.
जब हम सोर से जलयात्रा पूरी करके पतुलिमयिस में पहुँचे, और भाइयों को नमस्कार करके उनके साथ एक दिन रहे।
8 On the following day we departed, and came to Cæsarea, and went into the house of Philip the evangelist, who was one of the seven; and we remained with him.
दूसरे दिन हम वहाँ से चलकर कैसरिया में आए, और फिलिप्पुस सुसमाचार प्रचारक के घर में जो सातों में से एक था, जाकर उसके यहाँ रहे।
9 This man had four virgin daughters, who had the gift of prophesy.
उसकी चार कुँवारी पुत्रियाँ थीं; जो भविष्यद्वाणी करती थीं।
10 And as we remained there many days, there came down, from Judea, a certain prophet, named Agabus;
१०जब हम वहाँ बहुत दिन रह चुके, तो अगबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता यहूदिया से आया।
11 and he came to us, and taking Paul’s girdle, he bound his own hands and feet, and said: Thus says the Holy Spirit; the Jews that are in Jerusalem will so bind the man to whom this girdle belongs; and they will deliver him into the hands of the Gentiles.
११उसने हमारे पास आकर पौलुस का कमरबन्द लिया, और अपने हाथ पाँव बाँधकर कहा, “पवित्र आत्मा यह कहता है, कि जिस मनुष्य का यह कमरबन्द है, उसको यरूशलेम में यहूदी इसी रीति से बाँधेंगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे।”
12 And when we heard these things, we, and those of that place also, besought him not to go up to Jerusalem.
१२जब हमने ये बातें सुनी, तो हम और वहाँ के लोगों ने उससे विनती की, कि यरूशलेम को न जाए।
13 But Paul answered: What do you effect by weeping, and breaking my heart? For I am ready, not only to be bound, but also to suffer death in Jerusalem, for the name of the Lord Jesus.
१३परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “तुम क्या करते हो, कि रो-रोकर मेरा मन तोड़ते हो? मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिये यरूशलेम में न केवल बाँधे जाने ही के लिये वरन् मरने के लिये भी तैयार हूँ।”
14 And as he would not be persuaded, we kept silence, and said: The will of the Lord be done.
१४जब उसने न माना तो हम यह कहकर चुप हो गए, “प्रभु की इच्छा पूरी हो।”
15 And after these days we prepared for our journey, and went up to Jerusalem.
१५उन दिनों के बाद हमने तैयारी की और यरूशलेम को चल दिए।
16 There went with us also some of the disciples from Cæsarea, who took with them, Mnason of Cyprus, an old disciple, with whom we should lodge.
१६कैसरिया के भी कुछ चेले हमारे साथ हो लिए, और मनासोन नामक साइप्रस के एक पुराने चेले को साथ ले आए, कि हम उसके यहाँ टिकें।
17 And when we came to Jerusalem, the brethren received us gladly.
१७जब हम यरूशलेम में पहुँचे, तब भाइयों ने बड़े आनन्द के साथ हमारा स्वागत किया।
18 And, on the following day, Paul went in with us to James, and all the elders were present.
१८दूसरे दिन पौलुस हमें लेकर याकूब के पास गया, जहाँ सब प्राचीन इकट्ठे थे।
19 And when he had saluted them, he related, in every particular, the things which. God had done among the Gentiles by his ministry.
१९तब उसने उन्हें नमस्कार करके, जो-जो काम परमेश्वर ने उसकी सेवकाई के द्वारा अन्यजातियों में किए थे, एक-एक करके सब बताया।
20 And when they heard it, they glorified the Lord, and said to him: You see, brother, how many myriads of the Jews there are that believe, and they are all zealous for the law.
२०उन्होंने यह सुनकर परमेश्वर की महिमा की, फिर उससे कहा, “हे भाई, तू देखता है, कि यहूदियों में से कई हजार ने विश्वास किया है; और सब व्यवस्था के लिये धुन लगाए हैं।
21 And they have heard it reported of you, that you teach all the Jews that are among the Gentiles to apostatize from Moses; commanding them not to circumcise their children, nor to walk according to the customs.
२१और उनको तेरे विषय में सिखाया गया है, कि तू अन्यजातियों में रहनेवाले यहूदियों को मूसा से फिर जाने को सिखाता है, और कहता है, कि न अपने बच्चों का खतना कराओ ओर न रीतियों पर चलो।
22 What, then, is to be done? A multitude must certainly come together; for they will hear that you have come.
२२तो फिर क्या किया जाए? लोग अवश्य सुनेंगे कि तू यहाँ आया है।
23 Do, therefore, this which we advise you. We have four men who have a vow on them.
२३इसलिए जो हम तुझ से कहते हैं, वह कर। हमारे यहाँ चार मनुष्य हैं, जिन्होंने मन्नत मानी है।
24 Take them, and join with them in their vow of abstinence, and pay their expenses, in order that they may shave their heads; and all will know that the things which they have heard reported of you are nothing; but that you yourself also walk orderly, and keep the law.
२४उन्हें लेकर उसके साथ अपने आपको शुद्ध कर; और उनके लिये खर्चा दे, कि वे सिर मुँड़ाएँ। तब सब जान लेंगे, कि जो बातें उन्हें तेरे विषय में सिखाई गईं, उनकी कुछ जड़ नहीं है परन्तु तू आप भी व्यवस्था को मानकर उसके अनुसार चलता है।
25 But with respect to the Gentiles that believe, we have written; having decided that they should observe no such thing; but that they keep themselves from things sacrificed to idols, and from blood, and from what is strangled, and from lewdness.
२५परन्तु उन अन्यजातियों के विषय में जिन्होंने विश्वास किया है, हमने यह निर्णय करके लिख भेजा है कि वे मूर्तियों के सामने बलि किए हुए माँस से, और लहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से, बचे रहें।”
26 Then Paul took the men, and, on the following day, joining in their vow of abstinence, he entered the temple, and gave notice when the days of abstinence would be completed, at which time an offering should be made for each of them.
२६तब पौलुस उन मनुष्यों को लेकर, और दूसरे दिन उनके साथ शुद्ध होकर मन्दिर में गया, और वहाँ बता दिया, कि शुद्ध होने के दिन, अर्थात् उनमें से हर एक के लिये चढ़ावा चढ़ाए जाने तक के दिन कब पूरे होंगे।
27 And when the seven days were about to be completed, the Jews from Asia, seeing him in the temple, threw all the multitude into confusion, and laid their hands on him,
२७जब वे सात दिन पूरे होने पर थे, तो आसिया के यहूदियों ने पौलुस को मन्दिर में देखकर सब लोगों को भड़काया, और यह चिल्ला चिल्लाकर उसको पकड़ लिया,
28 crying out: Men of Israel, help! this is the man who teaches all men every where against this people, and the law, and this place: and besides, he has even brought Greeks into the temple, and defiled this holy place.
२८“हे इस्राएलियों, सहायता करो; यह वही मनुष्य है, जो लोगों के, और व्यवस्था के, और इस स्थान के विरोध में हर जगह सब लोगों को सिखाता है, यहाँ तक कि यूनानियों को भी मन्दिर में लाकर उसने इस पवित्रस्थान को अपवित्र किया है।”
29 For, before this time, they had seen Trophimus, the Ephesian, with him in the city, whom they supposed Paul had brought into the temple.
२९उन्होंने तो इससे पहले इफिसुस वासी त्रुफिमुस को उसके साथ नगर में देखा था, और समझते थे कि पौलुस उसे मन्दिर में ले आया है।
30 And the whole city was moved; and the people ran together, and, seizing Paul, they dragged him out of the temple, and the gates were immediately closed.
३०तब सारे नगर में कोलाहल मच गया, और लोग दौड़कर इकट्ठे हुए, और पौलुस को पकड़कर मन्दिर के बाहर घसीट लाए, और तुरन्त द्वार बन्द किए गए।
31 And while they were seeking to kill him, report was brought to the officer of the band, that the whole of Jerusalem was in an uproar.
३१जब वे उसे मार डालना चाहते थे, तो सैन्य-दल के सरदार को सन्देश पहुँचा कि सारे यरूशलेम में कोलाहल मच रहा है।
32 And he immediately took soldiers and centurions, and ran down to them. When they saw the officer and the soldiers, they ceased beating Paul.
३२तब वह तुरन्त सिपाहियों और सूबेदारों को लेकर उनके पास नीचे दौड़ आया; और उन्होंने सैन्य-दल के सरदार को और सिपाहियों को देखकर पौलुस को मारना-पीटना रोक दिया।
33 Then the officer came near and took him, and commanded him to be bound with two chains, and demanded who he was, and what he had done.
३३तब सैन्य-दल के सरदार ने पास आकर उसे पकड़ लिया; और दो जंजीरों से बाँधने की आज्ञा देकर पूछने लगा, “यह कौन है, और इसने क्या किया है?”
34 And some in the multitude cried out one thing, and some another. But not being able to obtain any certain knowledge on account of the tumult, he commanded him to be led into the fortress.
३४परन्तु भीड़ में से कोई कुछ और कोई कुछ चिल्लाते रहे और जब हुल्लड़ के मारे ठीक सच्चाई न जान सका, तो उसे गढ़ में ले जाने की आज्ञा दी।
35 And when he was on the steps, it happened that he was carried by the soldiers, on account of the violence of the multitude.
३५जब वह सीढ़ी पर पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि भीड़ के दबाव के मारे सिपाहियों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा।
36 For the greater part of the people followed, crying out: Away with him!
३६क्योंकि लोगों की भीड़ यह चिल्लाती हुई उसके पीछे पड़ी, “उसका अन्त कर दो।”
37 But as Paul was about to be led into the fortress, he said to the officer: May I speak to you? He replied: Do you understand Greek?
३७जब वे पौलुस को गढ़ में ले जाने पर थे, तो उसने सैन्य-दल के सरदार से कहा, “क्या मुझे आज्ञा है कि मैं तुझ से कुछ कहूँ?” उसने कहा, “क्या तू यूनानी जानता है?
38 Are you not that Egyptian, who, before these days, made an insurrection, and led out into the wilderness four thousand men of the Assassins?
३८क्या तू वह मिस्री नहीं, जो इन दिनों से पहले बलवाई बनाकर चार हजार हथियार-बन्द लोगों को जंगल में ले गया?”
39 But Paul replied: I am a Jew of Tarsus of Cilicia, a citizen of no unknown city; and I beseech you, permit me to speak to the people.
३९पौलुस ने कहा, “मैं तो तरसुस का यहूदी मनुष्य हूँ! किलिकिया के प्रसिद्ध नगर का निवासी हूँ। और मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि मुझे लोगों से बातें करने दे।”
40 And when he had given him permission, Paul, standing upon the steps, waved his hand to the people. And when there was great silence, he addressed them in the Hebrew language, saying:
४०जब उसने आज्ञा दी, तो पौलुस ने सीढ़ी पर खड़े होकर लोगों को हाथ से संकेत किया। जब वे चुप हो गए, तो वह इब्रानी भाषा में बोलने लगा:

< Acts 21 >