< Aabenbaringen 4 >
1 Derefter saa jeg, og se, der var en Dør aabnet i Himmelen, og den første Røst, hvilken jeg havde hørt som af en Basun, der talte med mig, sagde: Stig herop, og jeg vil vise dig, hvad der skal ske herefter.
ततः परं मया दृष्टिपातं कृत्वा स्वर्गे मुक्तं द्वारम् एकं दृष्टं मया सहभाषमाणस्य च यस्य तूरीवाद्यतुल्यो रवः पूर्व्वं श्रुतः स माम् अवोचत् स्थानमेतद् आरोहय, इतः परं येन येन भवितव्यं तदहं त्वां दर्शयिष्ये।
2 Straks henryktes jeg i Aanden; og se, en Trone stod i Himmelen, og en sad paa Tronen,
तेनाहं तत्क्षणाद् आत्माविष्टो भूत्वा ऽपश्यं स्वर्गे सिंहासनमेकं स्थापितं तत्र सिंहासने एको जन उपविष्टो ऽस्ति।
3 og den siddende var at se til ligesom Jaspissten og Sarder, og der var en Regnbue omkring Tronen, at se til ligesom Smaragd.
सिंहासने उपविष्टस्य तस्य जनस्य रूपं सूर्य्यकान्तमणेः प्रवालस्य च तुल्यं तत् सिंहासनञ्च मरकतमणिवद्रूपविशिष्टेन मेघधनुषा वेष्टितं।
4 Og omkring Tronen var der fire og tyve Troner, og paa Tronerne sad der fire og tyve Ældste, iførte hvide Klæder og med Guldkranse paa deres Hoveder.
तस्य सिंहासने चतुर्दिक्षु चतुर्विंशतिसिंहासनानि तिष्ठन्ति तेषु सिंहासनेषु चतुर्विंशति प्राचीनलोका उपविष्टास्ते शुभ्रवासःपरिहितास्तेषां शिरांसि च सुवर्णकिरीटै र्भूषितानि।
5 Og fra Tronen udgaar der Lyn og Røster pg Tordener, og syv Ildfakler brænde foran Tronen, hvilke ere de syv Guds Aander.
तस्य सिंहासनस्य मध्यात् तडितो रवाः स्तनितानि च निर्गच्छन्ति सिंहासनस्यान्तिके च सप्त दीपा ज्वलन्ति त ईश्वरस्य सप्तात्मानः।
6 Og foran Tronen er der som et Glarhav, ligesom Krystal, og midt for Tronen og rundt om Tronen fire levende Væsener, fulde af Øjne fortil og bagtil.
अपरं सिंहासनस्यान्तिके स्फटिकतुल्यः काचमयो जलाशयो विद्यते, अपरम् अग्रतः पश्चाच्च बहुचक्षुष्मन्तश्चत्वारः प्राणिनः सिंहसनस्य मध्ये चतुर्दिक्षु च विद्यन्ते।
7 Og det første Væsen ligner en Løve; og det andet Væsen ligner en Okse; og det tredje Væsen har Ansigt som et Menneske; og det fjerde Væsen ligner en flyvende Ørn.
तेषां प्रथमः प्राणी सिंहाकारो द्वितीयः प्राणी गोवात्साकारस्तृतीयः प्राणी मनुष्यवद्वदनविशिष्टश्चतुर्थश्च प्राणी उड्डीयमानकुररोपमः।
8 Og de fire Væsener have hvert især seks Vinger, rundt om og indadtil ere de fulde af Øjne; og uden Ophør sige de Dag og Nat: Hellig, hellig, hellig er Herren, Gud, den almægtige, han, som var, og som er, og som kommer!
तेषां चतुर्णाम् एकैकस्य प्राणिनः षट् पक्षाः सन्ति ते च सर्व्वाङ्गेष्वभ्यन्तरे च बहुचक्षुर्विशिष्टाः, ते दिवानिशं न विश्राम्य गदन्ति पवित्रः पवित्रः पवित्रः सर्व्वशक्तिमान् वर्त्तमानो भूतो भविष्यंश्च प्रभुः परमेश्वरः।
9 Og naar Væsenerne give Ære og Pris og Tak til ham, som sidder paa Tronen, ham, som lever i Evighedernes Evigheder, (aiōn )
इत्थं तैः प्राणिभिस्तस्यानन्तजीविनः सिंहासनोपविष्टस्य जनस्य प्रभावे गौरवे धन्यवादे च प्रकीर्त्तिते (aiōn )
10 da falde de fire og tyve Ældste ned for ham, som sidder paa Tronen, og tilbede ham, som lever i Evighedernes Evigheder, og lægge deres Kranse ned for Tronen og sige: (aiōn )
ते चतुर्विंशतिप्राचीना अपि तस्य सिंहासनोपविष्टस्यान्तिके प्रणिनत्य तम् अनन्तजीविनं प्रणमन्ति स्वीयकिरीटांश्च सिंहासनस्यान्तिके निक्षिप्य वदन्ति, (aiōn )
11 Værdig er du, vor Herre og Gud, til at faa Prisen og Æren og Magten; thi du har skabt alle Ting, og paa Grund af din Villie vare de, og bleve de skabte.
हे प्रभो ईश्वरास्माकं प्रभावं गौरवं बलं। त्वमेवार्हसि सम्प्राप्तुं यत् सर्व्वं ससृजे त्वया। तवाभिलाषतश्चैव सर्व्वं सम्भूय निर्म्ममे॥