< Jakob 2 >
1 Mine Brødre! Eders Tro paa vor Herre Jesus Kristus, den herliggjorte, være ikke forbunden med Persons Anseelse!
हे मम भ्रातरः, यूयम् अस्माकं तेजस्विनः प्रभो र्यीशुख्रीष्टस्य धर्म्मं मुखापेक्षया न धारयत।
2 Naar der nemlig kommer en Mand ind i eders Forsamling med Guldring paa Fingeren, i prægtig Klædning, men der ogsaa kommer en fattig ind i smudsig Klædning,
यतो युष्माकं सभायां स्वर्णाङ्गुरीयकयुक्ते भ्राजिष्णुपरिच्छदे पुरुषे प्रविष्टे मलिनवस्त्रे कस्मिंश्चिद् दरिद्रेऽपि प्रविष्टे
3 og I fæste Øjet paa den, som bærer den prægtige Klædning, og sige: Sæt du dig her paa den gode Plads, og I sige til den fattige: Staa du der eller sæt dig nede ved min Fodskammel:
यूयं यदि तं भ्राजिष्णुपरिच्छदवसानं जनं निरीक्ष्य वदेत भवान् अत्रोत्तमस्थान उपविशत्विति किञ्च तं दरिद्रं यदि वदेत त्वम् अमुस्मिन् स्थाने तिष्ठ यद्वात्र मम पादपीठ उपविशेति,
4 Ere I saa ikke komne i Strid med eder selv og blevne Dommere med slette Tanker?
तर्हि मनःसु विशेष्य यूयं किं कुतर्कैः कुविचारका न भवथ?
5 Hører, mine elskede Brødre! Har Gud ikke udvalgt de for Verden fattige til at være rige i Tro og Arvinger til det Rige, som han har forjættet dem, der elske ham?
हे मम प्रियभ्रातरः, शृणुत, संसारे ये दरिद्रास्तान् ईश्वरो विश्वासेन धनिनः स्वप्रेमकारिभ्यश्च प्रतिश्रुतस्य राज्यस्याधिकारिणः कर्त्तुं किं न वरीतवान्? किन्तु दरिद्रो युष्माभिरवज्ञायते।
6 Men I have vanæret den fattige! Er det ikke de rige, som underkue eder, og er det ikke dem, som slæbe eder for Domstolene?
धनवन्त एव किं युष्मान् नोपद्रवन्ति बलाच्च विचारासनानां समीपं न नयन्ति?
7 Er det ikke dem, som bespotte det skønne Navn, som er nævnet over eder?
युष्मदुपरि परिकीर्त्तितं परमं नाम किं तैरेव न निन्द्यते?
8 Ganske vist, dersom I opfylde den kongelige Lov efter Skriften: „Du skal elske din Næste som dig selv, ‟ gøre I ret;
किञ्च त्वं स्वसमीपवासिनि स्वात्मवत् प्रीयस्व, एतच्छास्त्रीयवचनानुसारतो यदि यूयं राजकीयव्यवस्थां पालयथ तर्हि भद्रं कुरुथ।
9 men dersom I anse Personer, gøre I Synd og revses af Loven som Overtrædere.
यदि च मुखापेक्षां कुरुथ तर्हि पापम् आचरथ व्यवस्थया चाज्ञालङ्घिन इव दूष्यध्वे।
10 Thi den, som holder hele Loven, men støder an i eet Stykke, er bleven skyldig i alle.
यतो यः कश्चित् कृत्स्नां व्यवस्थां पालयति स यद्येकस्मिन् विधौ स्खलति तर्हि सर्व्वेषाम् अपराधी भवति।
11 Thi han, som sagde: „Du maa ikke bedrive Hor, ‟ sagde ogsaa: „Du maa ikke slaa ihjel.‟ Dersom du da ikke bedriver Hor, men slaar ihjel, da er du bleven en Lovens Overtræder.
यतो हेतोस्त्वं परदारान् मा गच्छेति यः कथितवान् स एव नरहत्यां मा कुर्य्या इत्यपि कथितवान् तस्मात् त्वं परदारान् न गत्वा यदि नरहत्यां करोषि तर्हि व्यवस्थालङ्घी भवसि।
12 Taler saaledes og gører saaledes, som de, der skulle dømmes efter Frihedens Lov.
मुक्ते र्व्यवस्थातो येषां विचारेण भवितव्यं तादृशा लोका इव यूयं कथां कथयत कर्म्म कुरुत च।
13 Thi Dommen er ubarmhjertig imod den, som ikke har øvet Barmhjertighed; Barmhjertighed træder frimodigt op imod Dommen.
यो दयां नाचरति तस्य विचारो निर्द्दयेन कारिष्यते, किन्तु दया विचारम् अभिभविष्यति।
14 Hvad gavner det, mine Brødre! om nogen siger, han har Tro, men ikke har Gerninger? mon Troen kan frelse ham?
हे मम भ्रातरः, मम प्रत्ययोऽस्तीति यः कथयति तस्य कर्म्माणि यदि न विद्यन्त तर्हि तेन किं फलं? तेन प्रत्ययेन किं तस्य परित्राणं भवितुं शक्नोति?
15 Dersom en Broder eller Søster er nøgen og fattes den daglige Føde,
केषुचिद् भ्रातृषु भगिनीषु वा वसनहीनेषु प्रात्यहिकाहारहीनेषु च सत्सु युष्माकं कोऽपि तेभ्यः शरीरार्थं प्रयोजनीयानि द्रव्याणि न दत्वा यदि तान् वदेत्,
16 og en af eder siger til dem: Gaar bort i Fred, varmer eder og mætter eder, men I ikke give dem det, som hører til Legemets Nødtørft, hvad gavner det?
यूयं सकुशलं गत्वोष्णगात्रा भवत तृप्यत चेति तर्ह्येतेन किं फलं?
17 Ligesaa er ogsaa Troen, dersom den ikke har Gerninger, død i sig selv.
तद्वत् प्रत्ययो यदि कर्म्मभि र्युक्तो न भवेत् तर्ह्येकाकित्वात् मृत एवास्ते।
18 Men man vil sige: Du har Tro, Og jeg har Gerninger. Vis mig din Tro uden Gerningerne, og jeg vil af mine Gerninger vise dig Troen.
किञ्च कश्चिद् इदं वदिष्यति तव प्रत्ययो विद्यते मम च कर्म्माणि विद्यन्ते, त्वं कर्म्महीनं स्वप्रत्ययं मां दर्शय तर्ह्यहमपि मत्कर्म्मभ्यः स्वप्रत्ययं त्वां दर्शयिष्यामि।
19 Du tror, at Gud er een; deri gør du ret; ogsaa de onde Aander tro det og skælve.
एक ईश्वरो ऽस्तीति त्वं प्रत्येषि। भद्रं करोषि। भूता अपि तत् प्रतियन्ति कम्पन्ते च।
20 Men vil du vide, du tomme Menneske! at Troen uden Gerninger er unyttig?
किन्तु हे निर्ब्बोधमानव, कर्म्महीनः प्रत्ययो मृत एवास्त्येतद् अवगन्तुं किम् इच्छसि?
21 Blev ikke vor Fader Abraham retfærdiggjort af Gerninger, da han ofrede sin Søn Isak paa Alteret?
अस्माकं पूर्व्वपुरुषो य इब्राहीम् स्वपुत्रम् इस्हाकं यज्ञवेद्याम् उत्सृष्टवान् स किं कर्म्मभ्यो न सपुण्यीकृतः?
22 Du ser, at Troen virkede sammen med hans Gerninger, og ved Gerningerne blev Troen fuldkommet,
प्रत्यये तस्य कर्म्मणां सहकारिणि जाते कर्म्मभिः प्रत्ययः सिद्धो ऽभवत् तत् किं पश्यसि?
23 og Skriften blev opfyldt, som siger: „Abraham troede Gud, og det blev regnet ham til Retfærdighed, ‟ og han blev kaldet Guds Ven.
इत्थञ्चेदं शास्त्रीयवचनं सफलम् अभवत्, इब्राहीम् परमेश्वरे विश्वसितवान् तच्च तस्य पुण्यायागण्यत स चेश्वरस्य मित्र इति नाम लब्धवान्।
24 I se, at et Menneske retfærdiggøres af Gerninger, og ikke af Tro alene.
पश्यत मानवः कर्म्मभ्यः सपुण्यीक्रियते न चैकाकिना प्रत्ययेन।
25 Ligesaa Skøgen Rahab, blev ikke ogsaa hun retfærdiggjort af Gerninger, da hun tog imod Sendebudene og lod dem slippe bort ad en anden Vej?
तद्वद् या राहब्नामिका वाराङ्गना चारान् अनुगृह्यापरेण मार्गेण विससर्ज सापि किं कर्म्मभ्यो न सपुण्यीकृता?
26 Thi ligesom Legemet er dødt uden Aand, saaledes er ogsaa Troen død uden Gerninger.
अतएवात्महीनो देहो यथा मृतोऽस्ति तथैव कर्म्महीनः प्रत्ययोऽपि मृतोऽस्ति।