< 詩篇 129 >
1 從我少年,世人就與我為難,惟願以色列子民再說一遍:
इस्राईल अब यूँ कहे, “उन्होंने मेरी जवानी से अब तक मुझे बार बार सताया,
2 從我少年,世人就與我為難,然而他們卻未能將我推翻。
हाँ, उन्होंने मेरी जवानी से अब तक मुझे बार बार सताया, तोभी वह मुझ पर ग़ालिब न आए।
हलवाहों ने मेरी पीठ पर हल चलाया, और लम्बी लम्बी रेघारियाँ बनाई।”
ख़ुदावन्द सादिक़ है; उसने शरीरों की रसियाँ काट डालीं।
5 願一切仇恨熙雍的人民,個個蒙受羞辱,轉身逃遁!
सिय्यून से नफ़रत रखने वाले, सब शर्मिन्दा और पस्पा हों।
6 願他們像屋頂上的禾草,尚未吐出秀穗,就已枯槁!
वह छत पर की घास की तरह हों, जो बढ़ने से पहले ही सूख जाती है;
7 收割的人,手拿一把不滿,捆禾的人,懷抱一束不顯。
जिससे फ़सल काटने वाला अपनी मुट्ठी को, और पूले बाँधने वाला अपने दामन को नहीं भरता,
8 過路的人們不會再說:願上主的祝福臨於您們,我們奉上主名祝福您們。
न आने जाने वाले यह कहते हैं, “तुम पर ख़ुदावन्द की बरकत हो! हम ख़ुदावन्द के नाम से तुम को दुआ देते हैं!”