< ᏉᎳ ᎪᎶᏏ ᎠᏁᎯ ᏧᏬᏪᎳᏁᎸᎯ 2 >

1 ᎠᏆᏚᎵᏰᏃ ᎢᏥᎦᏙᎥᎯᏍᏗᏱ ᏂᎦᎥ ᏥᎩᎵᏲᎬ ᎦᏟᏂᎬᏁᎲ ᏂᎯ ᎨᏒ ᎢᏳᏍᏗ, ᎠᎴ ᎾᏍᎩ Ꮎ ᎴᎣᏗᏏᏯ ᎠᏁᎯ, ᎠᎴ ᎾᏂᎥᏉ ᎤᏂᎪᎲᎯ ᏂᎨᏒᎾ ᎠᏆᎧᏛ ᎠᏂ ᎤᏇᏓᎵ ᎨᏒᎢ;
मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो, कि तुम्हारे और उनके जो लौदीकिया में हैं, और उन सब के लिये जिन्होंने मेरा शारीरिक मुँह नहीं देखा मैं कैसा परिश्रम करता हूँ।
2 ᎾᏍᎩ ᏧᏂᎾᏫ ᎤᎦᎵᏍᏗ ᏗᎬᏩᏓᏅᏓᏗᏍᏗ ᎢᏳᎵᏍᏙᏗᏱ ᏚᎾᏚᏓᏕᏫᏍᏛ ᎠᏓᎨᏳᏗ ᎨᏒᎢ, ᎠᎴ ᏭᏂᏱᎶᎯᏍᏗᏱ ᏂᎦᎥ ᎦᎸᏉᏗᏳ ᎨᏒ ᏄᏜᏓᏏᏛᏒᎾ ᎪᎯᏳᏗ ᎨᏒ ᎾᏍᎩ ᎪᎵᏍᏗ ᎨᏒ ᏨᏗᏓᎴᎲᏍᎦ, ᎤᏂᎦᏙᎥᎯᏍᏗᏱ ᎤᏕᎵᏛ ᎨᏒ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎤᏤᎵᎦ, ᎾᏍᎩ ᎠᎦᏴᎵᎨ ᎤᏤᎵᎦ, ᎠᎴ ᎦᎶᏁᏛ ᎤᏤᎵᎦ;
ताकि उनके मनों को प्रोत्साहन मिले और वे प्रेम से आपस में गठे रहें, और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्थात् मसीह को पहचान लें।
3 ᎾᏍᎩ ᏥᏚᏍᏆᏂᎪᏗ ᏥᏚᏩᏍᎦᎳ ᏂᎦᎥ ᎤᏣᏘ ᏧᎬᏩᎶᏗ ᎠᎵᏏᎾᎯᏍᏙᏗ ᎨᏒ ᎠᎴ ᎠᎦᏙᎥᎯᏍᏗ ᎨᏒᎢ.
जिसमें बुद्धि और ज्ञान के सारे भण्डार छिपे हुए हैं।
4 ᎠᎴ ᎯᎠ ᎾᏍᎩ ᏂᏥᏪᎭ ᎾᏍᎩ ᎩᎶ ᎢᏥᎶᏄᎮᏗᏱ ᏂᎨᏒᎾ ᎾᏍᎩ ᎤᏬᏚᎯ ᎦᏬᏂᎯᏍᏗ ᎨᏒ ᎬᏗ.
यह मैं इसलिए कहता हूँ, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभानेवाली बातों से धोखा न दे।
5 ᎠᎩᎪᏁᎸᏍᎩᏂᏃᏅ ᎠᎩᏇᏓᎸ ᎨᏒᎢ, ᎠᏎᏃ ᎠᏆᏓᏅᏙ ᎨᏒ ᎢᏨᏰᎳᏗᏙᎭ, ᎦᎵᎡᎵᎦ ᎠᎴ ᏕᎦᎦᏂᎭ ᎣᏏᏳ ᏂᏣᏛᏁᎲ, ᎠᎴ ᎤᎵᏂᎩᏗᏳ ᎨᏒ ᎡᏦᎢᏳᏒ ᎦᎶᏁᏛ.
यद्यपि मैं यदि शरीर के भाव से तुम से दूर हूँ, तो भी आत्मिक भाव से तुम्हारे निकट हूँ, और तुम्हारे विधि-अनुसार चरित्र और तुम्हारे विश्वास की जो मसीह में है दृढ़ता देखकर प्रसन्न होता हूँ।
6 ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏍᏗ ᎾᏍᎩᏯ ᏤᏣᏓᏂᎸᏨᎯ ᎨᏒ ᎦᎶᏁᏛ ᏥᏌ ᎤᎬᏫᏳᎯ, ᎾᏍᎩᏯ ᏄᏍᏕᏍᏗ ᎡᏥᏍᏓᏩᏗᏒᎢ;
इसलिए, जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो।
7 ᎾᎿᎭᏗᏥᎿᎭᏍᏕᏜᏓᏛᎯ ᎠᎴ ᎾᎿᎭᎡᏣᏁᏍᎨᎲᎯ, ᎠᎴ ᎤᎵᏂᎩᏛ ᎢᏰᏨᏁᎸᎯ ᎢᏦᎯᏳᏒᎢ, ᎾᏍᎩᏯ ᎡᏤᏲᏅᎢ, ᎾᏍᎩ ᎤᏣᏘ ᎨᏎᏍᏗ [ ᎢᏦᎯᏳᏒᎢ ] ᎤᎵᏠᏯᏍᏕᏍᏗ ᎠᎵᎮᎵᏤᏗ ᎨᏒ ᎤᏁᎳᏅᎯ.
और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त धन्यवाद करते रहो।
8 ᎢᏤᏯᏔᎮᏍᏗ ᏞᏍᏗ ᎩᎶ ᏥᏥᎾᏌᏂ, ᎠᏏᎾᏍᏛ ᎦᏬᏂᎯᏍᏗ ᎨᏒ ᎬᏗ ᎠᎴ ᎠᏠᏄᎮᏗ ᎬᏗ, ᎾᏍᎩᏯ ᏴᏫ ᏓᎾᏕᏲᎲᏍᎬᎢ, ᎾᏍᎩᏯ ᎡᎶᎯ ᏗᎴᏅᏙᏗ ᏓᏕᏲᎲᏍᎬᎢ, ᎥᏝᏃ ᎾᏍᎩᏯ ᎦᎶᏁᏛ ᏓᏕᏲᎲᏍᎬᎢ;
चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न कर ले, जो मनुष्यों की परम्पराओं और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं।
9 ᎾᏍᎩᏰᏃ [ ᎦᎶᏁᏛ ] ᎠᏰᎸᎢ ᎠᏯᎠ ᏂᎦᏛ ᎠᎧᎵᎢ ᎤᏁᎳᏅᎯ.
क्योंकि उसमें ईश्वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है।
10 ᎠᎴ ᎡᏥᎧᎵᎸᎯ ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏩᏂᏌᏅᎯ ᎾᏍᎩ ᏄᎬᏫᏳᏌᏕᎩ ᏥᎩ ᎾᏂᎥ ᏄᏂᎬᏫᏳᏌᏕᎩ, ᎠᎴ ᏗᎨᎦᏁᎶᏗ ᎨᏒᎢ;
१०और तुम मसीह में भरपूर हो गए हो जो सारी प्रधानता और अधिकार का शिरोमणि है।
11 ᎾᏍᎩ ᎾᏍᏉ ᎢᏳᏩᏂᏌᏅᎯ ᏤᏥᎤᏍᏕᏎᎸᎯ ᏥᎩ, ᎠᎱᏍᏕᏍᏗ ᎬᏔᏅᎯ ᎾᏍᎩ ᎩᎶ ᏧᏬᏰᏂ ᏧᏩᏔᏅᎯ ᏂᎨᏒᎾ, ᎾᏍᎩ ᎢᏴᏛ ᏂᏨᏁᎲ ᎠᏰᎵ ᎾᏍᎩ ᎤᏇᏓᎵ ᎨᏒ ᎤᏍᎦᏅᎢᏍᏔᏅᎢ ᎢᏨᏗᏍᎬ ᎦᎶᏁᏛ ᎤᏤᎵ ᎠᎱᏍᏕᏍᏗ ᎨᏒᎢ;
११उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता, परन्तु मसीह का खतना हुआ, जिससे पापमय शारीरिक देह उतार दी जाती है।
12 ᎡᏥᏂᏌᏅ ᎾᏍᎩ ᎠᏥᏂᏌᏅ ᏗᏓᏬᏍᏗ ᎨᏒ ᎬᏔᏅᎯ, ᎾᏍᎩ ᎾᏍᏉ ᎬᏔᏅᎯ ᏕᏣᎴᏔᏅ ᎾᏍᎩ ᏓᎦᎴᏔᏅᎢ ᏅᏧᎵᏍᏙᏔᏅ ᎢᏦᎯᏳᏒ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᏚᎸᏫᏍᏓᏁᎸᎢ, ᎾᏍᎩ ᏧᎴᏔᏅᎯ ᏥᎩ ᎤᏲᎱᏒᎢ.
१२और उसी के साथ बपतिस्मा में गाड़े गए, और उसी में परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास करके, जिसने उसको मरे हुओं में से जिलाया, उसके साथ जी भी उठे।
13 ᏂᎯᏃ ᏗᏥᏲᎱᏒᎯ ᏂᎨᏒ ᎤᏣᏘᏂ ᏂᏣᏛᏁᎸ ᎢᏣᏚᏓᎸᎢ ᎠᎴ ᏂᏕᏥᎤᏍᏕᏎᎸᎾ ᎨᏒ ᎢᏥᏇᏓᎸᎢ, ᏗᏨᏃᏛ ᏂᏨᏁᎸ ᎾᏍᎩ ᎬᏃᏛ ᎾᎬᏁᎸᎢ, ᎦᏰᏥᏁᎸ ᏂᎦᏗᏳ ᎤᏣᏘᏂ ᏂᏣᏛᏁᎸᎢ,
१३और उसने तुम्हें भी, जो अपने अपराधों, और अपने शरीर की खतनारहित दशा में मुर्दा थे, उसके साथ जिलाया, और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया।
14 ᎠᏲᏍᏗᏍᎬ ᎪᏪᎸ ᏗᎧᎿᎭᏩᏛᏍᏗ ᎢᎦᏡᏗᏍᎩ, ᎾᏍᎩ ᎢᎩᏲᏍᏙᏓᏁᎯ ᏥᎨᏒᎩ, ᎠᎴ ᎤᎲᏒᎩ, ᎤᏤᎵ ᏓᏓᎿᎭᏩᏍᏛ ᎤᏪᏯᎸᏅᎩ ᏴᏫ ᏚᏪᎭᏔᏅᎩ;
१४और विधियों का वह लेख और सहायक नियम जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में था मिटा डाला; और उसे क्रूस पर कीलों से जड़कर सामने से हटा दिया है।
15 ᏚᎾᏌᏅᏃ ᏄᏂᎬᏫᏳᏌᏕᎩ ᎠᎴ ᏗᎨᎦᏁᎶᏗ ᎨᏒᎢ, ᎬᏂᎨᏒ ᏚᎾᏄᎪᏫᏎᎢ, ᏓᏓᎵᏁᎯᏕᎨᎢ ᎾᏍᎩ [ ᏓᏓᎿᎭᏩᏍᏛ ] ᎬᏗᏍᎬᎢ.
१५और उसने प्रधानताओं और अधिकारों को अपने ऊपर से उतार कर उनका खुल्लमखुल्ला तमाशा बनाया और क्रूस के कारण उन पर जय जयकार की ध्वनि सुनाई।
16 ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏍᏗ ᏞᏍᏗ ᎩᎶ ᏱᏗᏧᎪᏓᏁᎮᏍᏗ ᎠᎵᏍᏓᏴᏗ ᎤᎬᏩᎵ, ᎠᎴ ᎠᏗᏔᏍᏗ, ᎠᎴ ᎦᎸᏉᏗ ᎢᎦ, ᎠᎴ ᎢᏤ ᏅᏙ ᎠᏢᏁᎬᎢ, ᎠᎴ ᏚᎾᏙᏓᏆᏍᎬ ᎢᎦ;
१६इसलिए खाने-पीने या पर्व या नये चाँद, या सब्त के विषय में तुम्हारा कोई फैसला न करे।
17 ᎾᏍᎩ ᎤᏓᏩᏗᏍᏙᏛᏉ ᎨᏒᎩ ᎾᏍᎩ Ꮎ ᏧᏓᎴᏅᏛ ᎤᎵᏱᎶᎯᏍᏗ ᎨᏒᎢ; ᎠᏓᏩᏗᏍᏙᏗᏍᎩᏍᎩᏂ ᎦᎶᏁᏛ ᎨᏒᎩ.
१७क्योंकि ये सब आनेवाली बातों की छाया हैं, पर मूल वस्तुएँ मसीह की हैं।
18 ᏞᏍᏗ ᎩᎶ ᏥᏥᎷᏄᎮᎵ ᏥᏥᏲᏍᏙᏓᏁᎵ ᎠᏌᏍᏛ ᎡᏥᏁᏗᏱ ᎤᏚᎵᏍᎬ ᎤᏓᏙᎵᏍᏗ ᎢᏳᎵᏍᏙᏗᏱ, ᎠᎴ ᏗᏂᎧᎿᎭᏩᏗᏙᎯ ᏧᎾᏓᏙᎵᏍᏓᏁᏗᏱ, ᎾᏍᎩ ᎤᎵᏌᎳᏁᎲ ᎤᎪᎲᎯ ᏂᎨᏒᎾ ᎨᏒᎢ, ᎠᏎᏉᏉ ᎠᏕᏋᎯᏍᏗᏍᎬ ᎬᏗᏍᎬ ᎤᏇᏓᎵ ᎤᏓᏅᏖᏗ ᎨᏒᎢ;
१८कोई मनुष्य दीनता और स्वर्गदूतों की पूजा करके तुम्हें दौड़ के प्रतिफल से वंचित न करे। ऐसा मनुष्य देखी हुई बातों में लगा रहता है और अपनी शारीरिक समझ पर व्यर्थ फूलता है।
19 ᎠᎴ ᏂᏚᏂᏴᏒᎾ ᎨᏒ ᎠᏍᎪᎵ, ᎾᎿᎭᏨᏗᏓᎴᎲᏍᎦ ᏂᎬ ᎠᏰᎸᎢ ᏚᎯᏞᏫᏒᎢ ᎠᎴ ᏧᏩᏚᎾ ᏚᏪᏙᎸᎢ ᎤᎵᏍᏕᎸᏙᏙᎢ, ᎠᎴ ᏚᏚᏓᏕᏫᏐᎢ ᎠᏛᏍᎪᎢ ᎾᏍᎩᏯ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎤᏁᏉᏍᎬᎢ.
१९और उस शिरोमणि को पकड़े नहीं रहता जिससे सारी देह जोड़ों और पट्ठों के द्वारा पालन-पोषण पाकर और एक साथ गठकर, परमेश्वर की ओर से बढ़ती जाती है।
20 ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏍᏗ, ᎢᏳᏃ ᎦᎶᏁᏛ ᎤᏲᎱᏒ ᏗᏥᏲᎱᏒᎯ ᎨᏎᏍᏗ ᎡᎶᎯ ᎡᎯ ᎠᎴᏅᏙᏗ ᏗᏕᎶᏆᏍᏗ ᎤᎬᏩᎵ, ᎦᏙᏃ ᎡᎶᎯ ᏥᏤᎰ ᎾᏍᎩᏯ ᏙᏣᏁᎶᏗ ᏗᎧᎿᎭᏩᏛᏍᏗ,
२०जबकि तुम मसीह के साथ संसार की आदि शिक्षा की ओर से मर गए हो, तो फिर क्यों उनके समान जो संसार में जीवन बिताते हैं और ऐसी विधियों के वश में क्यों रहते हो?
21 ᏴᏫ ᎤᏂᏁᏨᎯ ᎠᎴ ᏧᎾᏕᏲᏅᎯ? ᎾᏍᎩ ᏞᏍᏗ ᏣᏒᏂᎸᎩ; ᏞᏍᏗ ᎤᏍᏗᎤᏅ ᏣᎬᎩ; ᏞᏍᏗ ᏣᏱᏙᎸᎩ;
२१कि ‘यह न छूना,’ ‘उसे न चखना,’ और ‘उसे हाथ न लगाना’?,
22 ( ᏂᎦᏛᏰᏃ ᎾᏍᎩ ᎤᎾᎵᏛᏙᏗ ᎪᎱᏍᏗ ᏕᎲᏗᏍᎬ ᎢᏳᎢ; )
२२क्योंकि ये सब वस्तु काम में लाते-लाते नाश हो जाएँगी क्योंकि ये मनुष्यों की आज्ञाओं और शिक्षाओं के अनुसार है।
23 ᎾᏍᎩ ᏧᏓᎴᏅᏛ ᎤᏙᎯᏳᎯ ᎠᎵᏏᎾᎯᏍᏙᏗ ᎨᏒ ᏓᏤᎸ, ᎾᏍᎩ ᎾᎿᎭᎣᏩᏒ ᎣᏓᏅᏖᏛ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎠᏓᏙᎵᏍᏓᏁᏗ ᎨᏒᎢ, ᎠᎴ ᎣᏓᏙᎵᏍᏗ ᎨᏒᎢ, ᎠᎴ ᏃᎦᏌᏯᏍᏛᎾ ᎨᏒ ᎥᏰᎸᎢ, ᎥᏝᏃ ᎾᏍᎩ ᎠᎦᎸᏉᏗᏍᎬᎢ, ᎤᏇᏓᎵ ᎤᏂᎬᏎᎲ ᎥᏩᏛᎡᎲᎢ.
२३इन विधियों में अपनी इच्छा के अनुसार गढ़ी हुई भक्ति की रीति, और दीनता, और शारीरिक अभ्यास के भाव से ज्ञान का नाम तो है, परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इनसे कुछ भी लाभ नहीं होता।

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