< ܡܪܩܘܣ 15 >
ܘܡܚܕܐ ܒܨܦܪܐ ܥܒܕܘ ܡܠܟܐ ܪܒܝ ܟܗܢܐ ܥܡ ܩܫܝܫܐ ܘܥܡ ܤܦܪܐ ܘܥܡ ܟܠܗ ܟܢܘܫܬܐ ܘܐܤܪܘ ܠܝܫܘܥ ܘܐܘܒܠܘܗܝ ܘܐܫܠܡܘܗܝ ܠܦܝܠܛܘܤ | 1 |
अथ प्रभाते सति प्रधानयाजकाः प्राञ्च उपाध्यायाः सर्व्वे मन्त्रिणश्च सभां कृत्वा यीशुृं बन्धयित्व पीलाताख्यस्य देशाधिपतेः सविधं नीत्वा समर्पयामासुः।
ܘܫܐܠܗ ܦܝܠܛܘܤ ܐܢܬ ܗܘ ܡܠܟܐ ܕܝܗܘܕܝܐ ܗܘ ܕܝܢ ܥܢܐ ܘܐܡܪ ܠܗ ܐܢܬ ܐܡܪܬ | 2 |
तदा पीलातस्तं पृष्टवान् त्वं किं यिहूदीयलोकानां राजा? ततः स प्रत्युक्तवान् सत्यं वदसि।
ܘܐܟܠܝܢ ܗܘܘ ܩܪܨܘܗܝ ܪܒܝ ܟܗܢܐ ܒܤܓܝܐܬܐ | 3 |
अपरं प्रधानयाजकास्तस्य बहुषु वाक्येषु दोषमारोपयाञ्चक्रुः किन्तु स किमपि न प्रत्युवाच।
ܗܘ ܕܝܢ ܦܝܠܛܘܤ ܬܘܒ ܫܐܠܗ ܘܐܡܪ ܠܗ ܠܐ ܡܦܢܐ ܐܢܬ ܦܬܓܡܐ ܚܙܝ ܟܡܐ ܡܤܗܕܝܢ ܥܠܝܟ | 4 |
तदानीं पीलातस्तं पुनः पप्रच्छ त्वं किं नोत्तरयसि? पश्यैते त्वद्विरुद्धं कतिषु साध्येषु साक्षं ददति।
ܗܘ ܕܝܢ ܝܫܘܥ ܡܕܡ ܦܬܓܡܐ ܠܐ ܝܗܒ ܐܝܟܢܐ ܕܢܬܕܡܪ ܦܝܠܛܘܤ | 5 |
कन्तु यीशुस्तदापि नोत्तरं ददौ ततः पीलात आश्चर्य्यं जगाम।
ܡܥܕ ܗܘܐ ܕܝܢ ܒܟܠ ܥܐܕܐ ܠܡܫܪܐ ܠܗܘܢ ܐܤܝܪܐ ܚܕ ܐܝܢܐ ܕܫܐܠܝܢ | 6 |
अपरञ्च काराबद्धे कस्तिंश्चित् जने तन्महोत्सवकाले लोकै र्याचिते देशाधिपतिस्तं मोचयति।
ܘܐܝܬ ܗܘܐ ܚܕ ܕܡܬܩܪܐ ܒܪ ܐܒܐ ܕܐܤܝܪ ܗܘܐ ܥܡ ܥܒܕܝ ܐܤܛܤܝܢ ܗܢܘܢ ܕܩܛܠܐ ܒܐܤܛܤܝܢ ܥܒܕܘ | 7 |
ये च पूर्व्वमुपप्लवमकार्षुरुपप्लवे वधमपि कृतवन्तस्तेषां मध्ये तदानों बरब्बानामक एको बद्ध आसीत्।
ܘܩܥܘ ܥܡܐ ܘܫܪܝܘ ܠܡܫܐܠ ܐܝܟ ܕܡܥܕ ܗܘܐ ܥܒܕ ܠܗܘܢ | 8 |
अतो हेतोः पूर्व्वापरीयां रीतिकथां कथयित्वा लोका उच्चैरुवन्तः पीलातस्य समक्षं निवेदयामासुः।
ܗܘ ܕܝܢ ܦܝܠܛܘܤ ܥܢܐ ܘܐܡܪ ܨܒܝܢ ܐܢܬܘܢ ܐܫܪܐ ܠܟܘܢ ܡܠܟܐ ܕܝܗܘܕܝܐ | 9 |
तदा पीलातस्तानाचख्यौ तर्हि किं यिहूदीयानां राजानं मोचयिष्यामि? युष्माभिः किमिष्यते?
ܝܕܥ ܗܘܐ ܓܝܪ ܦܝܠܛܘܤ ܕܡܢ ܚܤܡܐ ܐܫܠܡܘܗܝ ܪܒܝ ܟܗܢܐ | 10 |
यतः प्रधानयाजका ईर्ष्यात एव यीशुं समार्पयन्निति स विवेद।
ܪܒܝ ܟܗܢܐ ܕܝܢ ܝܬܝܪܐܝܬ ܚܦܛܘ ܠܟܢܫܐ ܕܠܒܪ ܐܒܐ ܢܫܪܐ ܠܗܘܢ | 11 |
किन्तु यथा बरब्बां मोचयति तथा प्रार्थयितुं प्रधानयाजका लोकान् प्रवर्त्तयामासुः।
ܗܘ ܕܝܢ ܦܝܠܛܘܤ ܐܡܪ ܠܗܘܢ ܡܢܐ ܗܟܝܠ ܨܒܝܢ ܐܢܬܘܢ ܐܥܒܕ ܠܗܢܐ ܕܩܪܝܢ ܐܢܬܘܢ ܡܠܟܐ ܕܝܗܘܕܝܐ | 12 |
अथ पीलातः पुनः पृष्टवान् तर्हि यं यिहूदीयानां राजेति वदथ तस्य किं करिष्यामि युष्माभिः किमिष्यते?
ܗܢܘܢ ܕܝܢ ܬܘܒ ܩܥܘ ܙܩܘܦܝܗܝ | 13 |
तदा ते पुनरपि प्रोच्चैः प्रोचुस्तं क्रुशे वेधय।
ܗܘ ܕܝܢ ܦܝܠܛܘܤ ܐܡܪ ܠܗܘܢ ܡܢܐ ܓܝܪ ܕܒܝܫ ܥܒܕ ܘܗܢܘܢ ܝܬܝܪܐܝܬ ܩܥܝܢ ܗܘܘ ܙܩܘܦܝܗܝ | 14 |
तस्मात् पीलातः कथितवान् कुतः? स किं कुकर्म्म कृतवान्? किन्तु ते पुनश्च रुवन्तो व्याजह्रुस्तं क्रुशे वेधय।
ܦܝܠܛܘܤ ܕܝܢ ܨܒܐ ܕܢܥܒܕ ܨܒܝܢܐ ܠܟܢܫܐ ܘܫܪܐ ܠܗܘܢ ܠܒܪ ܐܒܐ ܘܐܫܠܡ ܠܗܘܢ ܠܝܫܘܥ ܟܕ ܡܢܓܕ ܕܢܙܕܩܦ | 15 |
तदा पीलातः सर्व्वाल्लोकान् तोषयितुमिच्छन् बरब्बां मोचयित्वा यीशुं कशाभिः प्रहृत्य क्रुशे वेद्धुं तं समर्पयाम्बभूव।
ܐܤܛܪܛܝܘܛܐ ܕܝܢ ܐܘܒܠܘܗܝ ܠܓܘ ܕܪܬܐ ܕܐܝܬܝܗ ܦܪܛܘܪܝܢ ܘܩܪܘ ܠܟܠܗ ܐܤܦܝܪ | 16 |
अनन्तरं सैन्यगणोऽट्टालिकाम् अर्थाद् अधिपते र्गृहं यीशुं नीत्वा सेनानिवहं समाहुयत्।
ܘܐܠܒܫܘܗܝ ܐܪܓܘܢܐ ܘܓܕܠܘ ܤܡܘ ܠܗ ܟܠܝܠܐ ܕܟܘܒܐ | 17 |
पश्चात् ते तं धूमलवर्णवस्त्रं परिधाप्य कण्टकमुकुटं रचयित्वा शिरसि समारोप्य
ܘܫܪܝܘ ܠܡܫܐܠ ܒܫܠܡܗ ܫܠܡ ܡܠܟܐ ܕܝܗܘܕܝܐ | 18 |
हे यिहूदीयानां राजन् नमस्कार इत्युक्त्वा तं नमस्कर्त्तामारेभिरे।
ܘܡܚܝܢ ܗܘܘ ܠܗ ܥܠ ܪܫܗ ܒܩܢܝܐ ܘܪܩܝܢ ܗܘܘ ܒܐܦܘܗܝ ܘܒܪܟܝܢ ܗܘܘ ܥܠ ܒܘܪܟܝܗܘܢ ܘܤܓܕܝܢ ܠܗ | 19 |
तस्योत्तमाङ्गे वेत्राघातं चक्रुस्तद्गात्रे निष्ठीवञ्च निचिक्षिपुः, तथा तस्य सम्मुखे जानुपातं प्रणोमुः
ܘܟܕ ܒܙܚܘ ܒܗ ܐܫܠܚܘܗܝ ܐܪܓܘܢܐ ܘܐܠܒܫܘܗܝ ܡܐܢܘܗܝ ܘܐܦܩܘܗܝ ܕܢܙܩܦܘܢܝܗܝ | 20 |
इत्थमुपहस्य धूम्रवर्णवस्त्रम् उत्तार्य्य तस्य वस्त्रं तं पर्य्यधापयन् क्रुशे वेद्धुं बहिर्निन्युश्च।
ܘܫܚܪܘ ܚܕ ܕܥܒܪ ܗܘܐ ܫܡܥܘܢ ܩܘܪܝܢܝܐ ܕܐܬܐ ܗܘܐ ܡܢ ܩܪܝܬܐ ܐܒܘܗܝ ܕܐܠܟܤܢܕܪܘܤ ܘܕܪܘܦܘܤ ܕܢܫܩܘܠ ܙܩܝܦܗ | 21 |
ततः परं सेकन्दरस्य रुफस्य च पिता शिमोन्नामा कुरीणीयलोक एकः कुतश्चिद् ग्रामादेत्य पथि याति तं ते यीशोः क्रुशं वोढुं बलाद् दध्नुः।
ܘܐܝܬܝܘܗܝ ܠܓܓܘܠܬܐ ܕܘܟܬܐ ܕܡܬܦܫܩܐ ܩܪܩܦܬܐ | 22 |
अथ गुल्गल्ता अर्थात् शिरःकपालनामकं स्थानं यीशुमानीय
ܘܝܗܒܘ ܠܗ ܠܡܫܬܐ ܚܡܪܐ ܕܚܠܝܛ ܒܗ ܡܘܪܐ ܗܘ ܕܝܢ ܠܐ ܢܤܒ | 23 |
ते गन्धरसमिश्रितं द्राक्षारसं पातुं तस्मै ददुः किन्तु स न जग्राह।
ܘܟܕ ܙܩܦܘܗܝ ܦܠܓܘ ܡܐܢܘܗܝ ܘܐܪܡܝܘ ܥܠܝܗܘܢ ܦܤܐ ܡܢܘ ܡܢܐ ܢܤܒ | 24 |
तस्मिन् क्रुशे विद्धे सति तेषामेकैकशः किं प्राप्स्यतीति निर्णयाय
ܐܝܬ ܗܘܐ ܕܝܢ ܫܥܐ ܬܠܬ ܟܕ ܙܩܦܘܗܝ | 25 |
तस्य परिधेयानां विभागार्थं गुटिकापातं चक्रुः।
ܘܟܬܝܒܐ ܗܘܬ ܥܠܬܐ ܕܡܘܬܗ ܒܟܬܒܐ ܗܢܐ ܗܘ ܡܠܟܐ ܕܝܗܘܕܝܐ | 26 |
अपरम् एष यिहूदीयानां राजेति लिखितं दोषपत्रं तस्य शिरऊर्द्व्वम् आरोपयाञ्चक्रुः।
ܘܙܩܦܘ ܥܡܗ ܬܪܝܢ ܠܤܛܝܐ ܚܕ ܡܢ ܝܡܝܢܗ ܘܚܕ ܡܢ ܤܡܠܗ | 27 |
तस्य वामदक्षिणयो र्द्वौ चौरौ क्रुशयो र्विविधाते।
ܘܫܠܡ ܟܬܒܐ ܕܐܡܪ ܕܥܡ ܥܘܠܐ ܐܬܚܫܒ | 28 |
तेनैव "अपराधिजनैः सार्द्धं स गणितो भविष्यति," इति शास्त्रोक्तं वचनं सिद्धमभूत।
ܘܐܦ ܐܝܠܝܢ ܕܝܢ ܕܥܒܪܝܢ ܗܘܘ ܡܓܕܦܝܢ ܗܘܘ ܥܠܘܗܝ ܘܡܢܝܕܝܢ ܪܫܝܗܘܢ ܘܐܡܪܝܢ ܐܘܢ ܫܪܐ ܗܝܟܠܐ ܘܒܢܐ ܠܗ ܠܬܠܬܐ ܝܘܡܝܢ | 29 |
अनन्तरं मार्गे ये ये लोका गमनागमने चक्रुस्ते सर्व्व एव शिरांस्यान्दोल्य निन्दन्तो जगदुः, रे मन्दिरनाशक रे दिनत्रयमध्ये तन्निर्म्मायक,
ܦܨܐ ܢܦܫܟ ܘܚܘܬ ܡܢ ܙܩܝܦܐ | 30 |
अधुनात्मानम् अवित्वा क्रुशादवरोह।
ܘܗܟܢܐ ܐܦ ܪܒܝ ܟܗܢܐ ܓܚܟܝܢ ܗܘܘ ܚܕ ܥܡ ܚܕ ܘܤܦܪܐ ܘܐܡܪܝܢ ܐܚܪܢܐ ܐܚܝ ܢܦܫܗ ܠܐ ܡܫܟܚ ܠܡܚܝܘ | 31 |
किञ्च प्रधानयाजका अध्यापकाश्च तद्वत् तिरस्कृत्य परस्परं चचक्षिरे एष परानावत् किन्तु स्वमवितुं न शक्नोति।
ܡܫܝܚܐ ܡܠܟܗ ܕܐܝܤܪܝܠ ܢܚܘܬ ܗܫܐ ܡܢ ܙܩܝܦܐ ܕܢܚܙܐ ܘܢܗܝܡܢ ܒܗ ܘܐܦ ܗܢܘܢ ܕܝܢ ܕܙܩܝܦܝܢ ܗܘܘ ܥܡܗ ܡܚܤܕܝܢ ܗܘܘ ܠܗ | 32 |
यदीस्रायेलो राजाभिषिक्तस्त्राता भवति तर्ह्यधुनैन क्रुशादवरोहतु वयं तद् दृष्ट्वा विश्वसिष्यामः; किञ्च यौ लोकौ तेन सार्द्धं क्रुशे ऽविध्येतां तावपि तं निर्भर्त्सयामासतुः।
ܘܟܕ ܗܘܝ ܫܬ ܫܥܝܢ ܗܘܐ ܚܫܘܟܐ ܥܠ ܟܠܗ ܐܪܥܐ ܥܕܡܐ ܠܫܥܐ ܬܫܥ | 33 |
अथ द्वितीययामात् तृतीययामं यावत् सर्व्वो देशः सान्धकारोभूत्।
ܘܒܬܫܥ ܫܥܝܢ ܩܥܐ ܝܫܘܥ ܒܩܠܐ ܪܡܐ ܘܐܡܪ ܐܝܠ ܐܝܠ ܠܡܢܐ ܫܒܩܬܢܝ ܕܐܝܬܝܗ ܐܠܗܝ ܐܠܗܝ ܠܡܢܐ ܫܒܩܬܢܝ | 34 |
ततस्तृतीयप्रहरे यीशुरुच्चैरवदत् एली एली लामा शिवक्तनी अर्थाद् "हे मदीश मदीश त्वं पर्य्यत्याक्षीः कुतो हि मां?"
ܘܐܢܫܝܢ ܕܫܡܥܘ ܡܢ ܗܢܘܢ ܕܩܝܡܝܢ ܐܡܪܝܢ ܗܘܘ ܠܐܠܝܐ ܩܪܐ | 35 |
तदा समीपस्थलोकानां केचित् तद्वाक्यं निशम्याचख्युः पश्यैष एलियम् आहूयति।
ܪܗܛ ܕܝܢ ܚܕ ܘܡܠܐ ܐܤܦܘܓܐ ܚܠܐ ܘܐܤܪ ܒܩܢܝܐ ܕܢܫܩܝܘܗܝ ܘܐܡܪܘ ܫܒܘܩܘ ܢܚܙܐ ܐܢ ܐܬܐ ܐܠܝܐ ܡܚܬ ܠܗ | 36 |
तत एको जनो धावित्वागत्य स्पञ्जे ऽम्लरसं पूरयित्वा तं नडाग्रे निधाय पातुं तस्मै दत्त्वावदत् तिष्ठ एलिय एनमवरोहयितुम् एति न वेति पश्यामि।
ܗܘ ܕܝܢ ܝܫܘܥ ܩܥܐ ܒܩܠܐ ܪܡܐ ܘܫܠܡ | 37 |
अथ यीशुरुच्चैः समाहूय प्राणान् जहौ।
ܘܐܦܝ ܬܪܥܐ ܕܗܝܟܠܐ ܐܨܛܪܝ ܠܬܪܝܢ ܡܢ ܠܥܠ ܥܕܡܐ ܠܬܚܬ | 38 |
तदा मन्दिरस्य जवनिकोर्द्व्वादधःर्य्यन्ता विदीर्णा द्विखण्डाभूत्।
ܟܕ ܚܙܐ ܕܝܢ ܩܢܛܪܘܢܐ ܗܘ ܕܩܐܡ ܗܘܐ ܠܘܬܗ ܕܗܟܢܐ ܩܥܐ ܘܫܠܡ ܐܡܪ ܫܪܝܪܐܝܬ ܗܢܐ ܓܒܪܐ ܒܪܗ ܗܘܐ ܕܐܠܗܐ | 39 |
किञ्च इत्थमुच्चैराहूय प्राणान् त्यजन्तं तं दृष्द्वा तद्रक्षणाय नियुक्तो यः सेनापतिरासीत् सोवदत् नरोयम् ईश्वरपुत्र इति सत्यम्।
ܐܝܬ ܗܘܝ ܕܝܢ ܐܦ ܢܫܐ ܡܢ ܪܘܚܩܐ ܕܚܙܝܢ ܗܘܝ ܡܪܝܡ ܡܓܕܠܝܬܐ ܘܡܪܝܡ ܐܡܗ ܕܝܥܩܘܒ ܙܥܘܪܐ ܘܕܝܘܤܐ ܘܫܠܘܡ | 40 |
तदानीं मग्दलीनी मरिसम् कनिष्ठयाकूबो योसेश्च मातान्यमरियम् शालोमी च याः स्त्रियो
ܗܢܝܢ ܕܟܕ ܗܘ ܒܓܠܝܠܐ ܢܩܝܦܢ ܗܘܝ ܠܗ ܘܡܫܡܫܢ ܠܗ ܘܐܚܪܢܝܬܐ ܤܓܝܐܬܐ ܕܤܠܩ ܗܘܝ ܥܡܗ ܠܐܘܪܫܠܡ | 41 |
गालील्प्रदेशे यीशुं सेवित्वा तदनुगामिन्यो जाता इमास्तदन्याश्च या अनेका नार्यो यीशुना सार्द्धं यिरूशालममायातास्ताश्च दूरात् तानि ददृशुः।
ܘܟܕ ܗܘܐ ܪܡܫܐ ܕܥܪܘܒܬܐ ܕܐܝܬܝܗ ܩܕܡ ܫܒܬܐ | 42 |
अथासादनदिनस्यार्थाद् विश्रामवारात् पूर्व्वदिनस्य सायंकाल आगत
ܐܬܐ ܝܘܤܦ ܗܘ ܕܡܢ ܪܡܬܐ ܡܝܩܪܐ ܒܘܠܘܛܐ ܐܝܢܐ ܕܐܦ ܗܘ ܡܤܟܐ ܗܘܐ ܠܡܠܟܘܬܐ ܕܐܠܗܐ ܘܐܡܪܚ ܘܥܠ ܠܘܬ ܦܝܠܛܘܤ ܘܫܐܠ ܦܓܪܗ ܕܝܫܘܥ | 43 |
ईश्वरराज्यापेक्ष्यरिमथीययूषफनामा मान्यमन्त्री समेत्य पीलातसविधं निर्भयो गत्वा यीशोर्देहं ययाचे।
ܦܝܠܛܘܤ ܕܝܢ ܬܡܗ ܕܐܢ ܡܢ ܟܕܘ ܡܝܬ ܘܩܪܐ ܠܩܢܛܪܘܢܐ ܘܫܐܠܗ ܕܐܢ ܡܢ ܩܕܡ ܥܕܢܐ ܡܝܬ | 44 |
किन्तु स इदानीं मृतः पीलात इत्यसम्भवं मत्वा शतसेनापतिमाहूय स कदा मृत इति पप्रच्छ।
ܘܟܕ ܝܠܦ ܝܗܒ ܦܓܪܗ ܠܝܘܤܦ | 45 |
शतसेमनापतिमुखात् तज्ज्ञात्वा यूषफे यीशोर्देहं ददौ।
ܘܙܒܢ ܝܘܤܦ ܟܬܢܐ ܘܐܚܬܗ ܘܟܪܟܗ ܒܗ ܘܤܡܗ ܒܩܒܪܐ ܕܢܩܝܪ ܗܘܐ ܒܫܘܥܐ ܘܥܓܠ ܟܐܦܐ ܥܠ ܬܪܥܗ ܕܩܒܪܐ | 46 |
पश्चात् स सूक्ष्मं वासः क्रीत्वा यीशोः कायमवरोह्य तेन वाससा वेष्टायित्वा गिरौ खातश्मशाने स्थापितवान् पाषाणं लोठयित्वा द्वारि निदधे।
ܡܪܝܡ ܕܝܢ ܡܓܕܠܝܬܐ ܘܡܪܝܡ ܗܝ ܕܝܘܤܐ ܚܙܝ ܐܝܟܐ ܕܐܬܬܤܝܡ | 47 |
किन्तु यत्र सोस्थाप्यत तत मग्दलीनी मरियम् योसिमातृमरियम् च ददृशतृः।