< المَزامِير 92 >
مَزْمُورٌ تَسْبِيحَةٌ لِيَوْمِ السَّبْتِ مَا أَحْسَنَ تَقْدِيمَ الشُّكْرِ لَكَ يَا رَبُّ وَالتَّرْنِيمَ لاسْمِكَ أَيُّهَا العَلِيُّ! | ١ 1 |
एक स्तोत्र. एक गीत. शब्बाथ दिन के लिए निर्धारित. भला है याहवेह के प्रति धन्यवाद, सर्वोच्च परमेश्वर, आपकी महिमा का गुणगान करना उपयुक्त है.
مَا أَحْسَنَ أَنْ يُلْهَجَ بِرَحْمَتِكَ فِي الصَّبَاحِ، وَبِأَمَانَتِكَ فِي اللَّيَالِي، | ٢ 2 |
दस तारों के आसोर, नेबेल तथा किन्नोर की संगत पर प्रातःकाल ही आपके करुणा-प्रेम की उद्घोषणा करना तथा रात्रि में आपकी सच्चाई का वर्णन करना अच्छा है.
عَلَى أَنْغَامِ الآلاتِ الْمُوسِيقِيَّةِ الْوَتَرِيَّةِ، وَعَلَى الرَّبَابِ وَأَلْحَانِ الْعُودِ الْعَذْبَةِ! | ٣ 3 |
سَأُشِيدُ بِكُلِّ مَا عَمِلَتْهُ يَدَاكَ لأَنَّكَ يَا رَبُّ فَرَّحْتَنِي بِصَنِيعِكَ. | ٤ 4 |
याहवेह, आपने मुझे अपने कार्यों के उल्लास से तृप्त कर दिया है; आपके कार्यों के लिए मैं हर्षोल्लास के गीत गाता हूं.
يَا رَبُّ مَا أَعْظَمَ أَعْمَالَكَ! أَفْكَارُكَ عَمِيقَةٌ جِدّاً، | ٥ 5 |
याहवेह, कैसे अद्भुत हैं, आपके द्वारा निष्पन्न कार्य! गहन हैं आपके विचार!
لَا يَعْرِفُهَا الْغَبِيُّ وَلَا يَفْهَمُهَا الْجَاهِلُ. | ٦ 6 |
अज्ञानी के लिए असंभव है इनका अनुभव करना, निर्बुद्धि के लिए ये बातें निरर्थक हैं.
إِذَا زَهَا الأَشْرَارُ كَالْعُشْبِ، وَأَزْهَرَ جَمِيعُ فَاعِلِي الإِثْمِ فَإِنَّهُمْ كَالْعُشْبِ يُبَادُونَ إِلَى الأَبَدِ. | ٧ 7 |
यद्यपि दुष्ट घास के समान अंकुरित तो होते हैं और समस्त दुष्ट उन्नति भी करते हैं, किंतु उनकी नियति अनंत विनाश ही है.
أَمَّا أَنْتَ يَا رَبُّ فَمُتَعَالٍ إِلَى الأَبَدِ. | ٨ 8 |
किंतु, याहवेह, आप सदा-सर्वदा सर्वोच्च ही हैं.
فَيَا رَبُّ، هَا هُمْ أَعْدَاؤُكَ يَهْلِكُونَ إِلَى الدَّهْرِ، إذْ يَتَبَدَّدُ جَمِيعُ فَاعِلِي الإِثْمِ. | ٩ 9 |
निश्चयतः आपके शत्रु, याहवेह, आपके शत्रु नाश हो जाएंगे; समस्त दुष्ट बिखरा दिए जाएंगे.
أَمَّا أَنَا فَتَرْفَعُ شَأْنِي كَمَا يَرْتَفِعُ قَرْنُ الثَّوْرِ الْوَحْشِيِّ، وَأَنْتَعِشُ كَمَنْ تَدَهَّنَ بِزَيْتٍ جَدِيدٍ | ١٠ 10 |
किंतु मेरी शक्ति को आपने वन्य सांड़ समान ऊंचा कर दिया है; आपने मुझ पर नया नया तेल उंडेल दिया है.
وَتَنْظُرُ عَيْنَايَ عِقَابَ أَعْدَائِي الْمُتَرَبِّصِينَ لِي، وَتَسْمَعُ أُذُنَايَ بِمَصِيرِ فَاعِلِي الشَّرِّ الثَّائِرِينَ عَلَيَّ. | ١١ 11 |
स्वयं मैंने अपनी ही आंखों से अपने शत्रुओं का पतन देखा है; स्वयं मैंने अपने कानों से अपने दुष्ट शत्रुओं के कोलाहल को सुना है.
الصِّدِّيقُ يَزْهُو كَالنَّخْلَةِ وَيَنْمُو كَالأَرْزِ فِي لُبْنَانَ. | ١٢ 12 |
धर्मी खजूर वृक्ष समान फलते जाएंगे, उनका विकास लबानोन के देवदार के समान होगा;
لأَنَّ الْمَغْرُوسِينَ فِي بَيْتِ الرَّبِّ يَزْدَهِرُونَ فِي دِيَارِ بَيْتِ إِلَهِنَا | ١٣ 13 |
याहवेह के आवास में लगाए वे परमेश्वर के आंगन में समृद्ध होते जाएंगे!
يُثْمِرُونَ أَيْضاً فِي الشَّيْخُوخَةِ، وَيَظَلُّونَ مَوْفُورِي الْعَافِيَةِ وَالنُّضْرَةِ | ١٤ 14 |
वृद्धावस्था में भी वे फलदार बने रहेंगे, उनकी नवीनता और उनकी कान्ति वैसी ही बनी रहेगी,
لِيَشْهَدُوا أَنَّ الرَّبَّ مُسْتَقِيمٌ. إِنَّهُ صَخْرَتِي وَلَيْسَ فِيهِ سُوءٌ. | ١٥ 15 |
कि वे यह घोषणा कर सकें कि, “याहवेह सीधे हैं; वह मेरे लिए चट्टान हैं, उनमें कहीं भी, किसी भी दुष्टता की छाया तक नहीं है.”