< المَزامِير 89 >

قَصِيدَةٌ تَعْلِيمِيَّةٌ لإِيثَانَ الأَزْرَاحِيِّ أَتَرَنَّمُ بِمَرَاحِمِ الرَّبِّ إِلَى الأَبَدِ، وَأُعْلِنُ بِفَمِي أَمَانَتَكَ مِنْ جِيلٍ إِلَى جِيلٍ، ١ 1
मैं हमेशा ख़ुदावन्द की शफ़क़त के हम्द गाऊँगा। मैं नसल दर नसल अपने मुँह से तेरी वफ़ादारी का 'ऐलान करूँगा।
لأَنِّي قُلْتُ إِنَّ مَرَاحِمَكَ ثَابِتَةٌ إِلَى الأَبَدِ، وَقَدْ ثَبَّتَّ فِي السَّمَاوَاتِ أَمَانَتَكَ. ٢ 2
क्यूँकि मैंने कहा कि शफ़क़त हमेशा तक बनी रहेगी, तू अपनी वफ़ादारी को आसमान में क़ाईम रखेगा।
قَدْ قُلْتَ: إِنِّي أَقَمْتُ عَهْداً مَعَ الْمَلِكِ الَّذِي اخْتَرْتُهُ، أَقْسَمْتُ لِدَاوُدَ عَبْدِي. ٣ 3
“मैंने अपने बरगुज़ीदा के साथ 'अहद बाँधा है मैंने अपने बन्दे दाऊद से क़सम खाई है;
أُثَبِّتُ نَسْلَكَ إِلَى الأَبَدِ، وَأُبْقِي عَرْشَكَ قَائِماً مِنْ جِيلٍ إِلَى جِيلٍ. ٤ 4
मैं तेरी नसल को हमेशा के लिए क़ाईम करूँगा, और तेरे तख़्त को नसल दर नसल बनाए रखूँगा।” (सिलाह)
السَّمَاوَاتُ نَفْسُهَا تُشِيدُ بِعَجَائِبِكَ أَيُّهَا الرَّبُّ، وَالْمَلائِكَةُ الْقِدِّيسُونَ بِأَمَانَتِكَ. ٥ 5
ऐ ख़ुदावन्द, आसमान तेरे 'अजायब की ता'रीफ़ करेगा; पाक लोगों के मजमे' में तेरी वफ़ादारी की ता'रीफ़ होगी।
فَمَنْ فِي السَّمَاءِ يُعَادِلُ الرَّبَّ؟ لَيْسَ بَيْنَ الْكَائِنَاتِ السَّمَاوِيَّةِ مَنْ يُمَاثِلُهُ. ٦ 6
क्यूँकि आसमान पर ख़ुदावन्द का नज़ीर कौन है? फ़रिश्तों की जमा'त में कौन ख़ुदावन्द की तरह है?
إِنَّهُ إِلَهٌ مَهُوبٌ جِدّاً فِي مَحْفَلِ المَلائِكَةِ الْقِدِّيسِينَ، وَمَخُوفٌ كَثِيراً عِنْدَ جَمِيعِ الْمُحِيطِينَ بِهِ. ٧ 7
ऐसा मा'बूद जो पाक लोगो की महफ़िल में बहुत ता'ज़ीम के लायक़ ख़ुदा है, और अपने सब चारों तरफ़ वालों से ज़्यादा बड़ा है।
مَنْ مِثْلُكَ أَيُّهَا الرَّبُّ إِلَهَ الْجُنُودِ، الرَّبُّ الْقَدِيرُ، وَأَمَانَتُكَ مُحِيطَةٌ بِكَ؟ ٨ 8
ऐ ख़ुदावन्द लश्करों के ख़ुदा, ऐ याह! तुझ सा ज़बरदस्त कौन है? तेरी वफ़ादारी तेरे चारों तरफ़ है।
أَنْتَ مُتَسَلِّطٌ عَلَى هِيَاجِ الْبَحْرِ، فَتُهَدِّئُ أَمْوَاجَهُ عِنْدَ ارْتِفَاعِهَا. ٩ 9
समन्दर के जोश — ओ — ख़रोश पर तू हुक्मरानी करता है; तू उसकी उठती लहरों को थमा देता है।
أَنْتَ سَحَقْتَ قُوَّةَ مِصْرَ فَصَارَتْ كَقَتِيلٍ. وَبَدَّدْتَ أَعْدَاءَكَ بِقُدْرَتِكَ الْعَظِيمَةِ. ١٠ 10
तूने रहब को मक़्तूल की तरह टुकड़े टुकड़े किया; तूने अपने क़वी बाज़ू से अपने दुश्मनों को तितर बितर कर दिया।
أَنْتَ مَلِكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ أَيْضاً. أَنْتَ مُؤَسِّسُ الْمَسْكُونَةِ وَكُلِّ مَا فِيهَا. ١١ 11
आसमान तेरा है, ज़मीन भी तेरी है; जहान और उसकी मा'मूरी को तू ही ने क़ाईम किया है।
أَنْتَ خَالِقُ الشِّمَالِ وَالْجَنُوبِ، وَبِاسْمِكَ يَتَرَنَّمُ جَبَلَا تَابُورَ وَحَرْمُونَ. ١٢ 12
उत्तर और दाख्खिन का पैदा करने वाला तू ही है; तबूर और हरमून तेरे नाम से ख़ुशी मनाते हैं।
أَنْتَ ذُو الْقُدْرَةِ الْعَظِيمَةِ. يَدُكَ قَوِيَّةٌ وَيُمْنَاكَ رَفِيْعَةٌ. ١٣ 13
तेरा बाज़ू कु़दरत वाला है; तेरा हाथ क़वी और तेरा दहना हाथ बुलंद है।
الْبِرُّ وَالْقَضَاءُ قَاعِدَتَا عَرْشِكَ، الرَّحْمَةُ وَالْحَقُّ يَتَقَدَّمَانِ حَضْرَتَكَ. ١٤ 14
सदाक़त और 'अद्ल तेरे तख़्त की बुनियाद हैं; शफ़क़त और वफ़ादारी तेरे आगे आगे चलती हैं।
طُوبَى لِلشَّعْبِ الَّذِي يَسْتَجِيبُ لِهُتَافِ الْبُوقِ فَيَسْلُكُ فِي نُورِ مُحَيَّاكَ أَيُّهَا الرَّبُّ. ١٥ 15
मुबारक है वह क़ौम, जो खु़शी की ललकार को पहचानती है, वह ऐ ख़ुदावन्द, जो तेरे चेहरे के नूर में चलते हैं;
بِاسْمِكَ يَبْتَهِجُونَ طُولَ النَّهَارِ، وَبِبِرِّكَ يَسْمُونَ. ١٦ 16
वह दिनभर तेरे नाम से ख़ुशी मनाते हैं, और तेरी सदाक़त से सरफराज़ होते हैं।
فَإِنَّكَ أَنْتَ قُوَّتُهُمُ الَّتِي بِها يَفْخَرُونَ، وَبِرِضَاكَ يَعْلُو شَأْنُنَا. ١٧ 17
क्यूँकि उनकी ताक़त की शान तू ही है और तेरे करम से हमारा सींग बुलन्द होगा।
لأَنَّ الرَّبَّ هُوَ حِمَايَتُنَا، وَمَلِكُنَا هُوَ قُدُّوسُ إِسْرَائِيلَ. ١٨ 18
क्यूँकि हमारी ढाल ख़ुदावन्द की तरफ़ से है, और हमारा बादशाह इस्राईल के क़ुद्दूस की तरफ़ से।
فَبِالرُّؤْيَا كَلَّمْتَ أَنْبِيَاءَكَ قَدِيماً وَقُلْتَ لِعَبِيدِكَ الأُمَنَاءِ: هَيَّأْتُ عَوْناً لِلْجَبَّارِ وَرَفَّعْتُ شَابّاً مِنَ الشَّعْبِ. ١٩ 19
उस वक़्त तूने ख़्वाब में अपने पाक लोगों से कलाम किया, और फ़रमाया, मैंने एक ज़बरदस्त को मददगार बनाया है, और क़ौम में से एक को चुन कर सरफ़राज़ किया है।
وَجَدْتُ دَاوُدَ عَبْدِي فَمَسَحْتُهُ بِزَيْتِي الْمُقَدَّسِ. ٢٠ 20
मेरा बन्दा दाऊद मुझे मिल गया, अपने पाक तेल से मैंने उसे मसह किया है।
أُثَبِّتُهُ بِيَدِي، وَأُشَدِّدُهُ بِقُوَّتِي. ٢١ 21
मेरा हाथ उसके साथ रहेगा, मेरा बाजू़ उसे तक़वियत देगा।
لَا يَبْتَزُّهُ عَدُوٌّ، وَلَا يُضَايِقُهُ الإِنْسَانُ الأَثِيمُ. ٢٢ 22
दुश्मन उस पर जब्र न करने पाएगा, और शरारत का फ़र्ज़न्द उसे न सताएगा।
إِنَّمَا أَسْحَقُ أَعْدَاءَهُ أَمَامَهُ، وَأَصْرَعُ مُبْغِضِيهِ. ٢٣ 23
मैं उसके मुख़ालिफ़ों को उसके सामने मग़लूब करूँगा और उससे 'अदावत रखने वालों को मारूँगा।
أَمَانَتِي وَرَحْمَتِي تُرَافِقَانِهِ، وَبِاسْمِي يَعْلُو شَأْنُهُ. ٢٤ 24
लेकिन मेरी वफ़ादारी और शफ़क़त उसके साथ रहेंगी, और मेरे नाम से उसका सींग बुलन्द होगा।
أُطْلِقُ يَدَهُ عَلَى الْبِحَارِ وَيَمِينَهُ عَلَى الأَنْهَارِ. ٢٥ 25
मैं उसका हाथ समन्दर तक बढ़ाऊँगा, और उसके दहने हाथ को दरियाओं तक।
هُوَ يَدْعُونِي قَائِلاً: أَنْتَ أَبِي وَإِلَهِي وَصَخْرَةُ خَلاصِي. ٢٦ 26
वह मुझे पुकार कर कहेगा, 'तू मेराबाप, मेरा ख़ुदा, और मेरी नजात की चट्टान है।
أُقِيمُهُ بِكْراً يَسْمُو عَلَى مُلُوكِ الأَرْضِ. ٢٧ 27
और मैं उसको अपना पहलौठा बनाऊँगा और दुनिया का शहंशाह।
أَحْفَظُ رَحْمَتِي لَهُ إِلَى الأَبَدِ، وَيَثْبُتُ لَهُ عَهْدِي. ٢٨ 28
मैं अपनी शफ़क़त को उसके लिए हमेशा तक क़ाईम रखूँगा और मेरा 'अहद उसके साथ लातब्दील रहेगा।
أُدِيمُ إِلَى الأَبَدِ نَسْلَهُ وَعَرْشَهُ دَوَامَ السَّمَاوَاتِ. ٢٩ 29
मैं उसकी नसल को हमेशा तक क़ाईम रख्खूंगा, और उसके तख़्त को जब तक आसमानहै।
إِنِ انْحَرَفَ بَنُوهُ عَنْ طَاعَةِ شَرِيعَتِي وَلَمْ يَسْلُكُوا وَفْقَ أَحْكَامِي، ٣٠ 30
अगर उसके फ़र्ज़न्द मेरी शरी'अत को छोड़ दें, और मेरे अहकाम पर न चलें,
إِنْ نَقَضُوا فَرَائِضِي وَلَمْ يُرَاعُوا وَصَايَايَ، ٣١ 31
अगर वह मेरे क़ानून को तोड़ें, और मेरे फ़रमान को न मानें,
فَإِنِّي أَفْتَقِدُ مَعْصِيَتَهُمْ بِالْعَصَا وَإِثْمَهُمْ بِالْبَلايَا. ٣٢ 32
तो मैं उनको छड़ी से ख़ता की, और कोड़ों से बदकारी की सज़ा दूँगा।
وَلَكِنِّي لَا أَنْزِعُ رَحْمَتِي عَنْهُ، وَلَا أَنْكُثُ وَعْدِي. ٣٣ 33
लेकिन मैं अपनी शफ़क़त उस पर से हटा न लूँगा, और अपनी वफ़ादारी को बेकार न होने न दूँगा।
عَهْدِي لَا أَنْقُضُهُ، وَلَا أُبْدِلُ مَا نَطَقَ بِهِ فَمِي. ٣٤ 34
मैं अपने 'अहद को न तोडूँगा, और अपने मुँह की बात को न बदलूँगा।
فَقَدْ أَقْسَمْتُ بِقَدَاسَتِي مَرَّةً، وَلَا أَكْذِبُ عَلَى دَاوُدَ: ٣٥ 35
मैं एक बार अपनी पाकी की क़सम खा चुका हूँ मैं दाऊद से झूट न बोलूँगा।
نَسْلُهُ يَدُومُ إِلَى الدَّهْرِ، وَعَرْشُهُ يَبْقَى أَمَامِي بَقَاءَ الشَّمْسِ. ٣٦ 36
उसकी नसल हमेशा क़ाईम रहेगी, और उसका तख़्त आफ़ताब की तरह मेरे सामने क़ाईम रहेगा।
يَظَلُّ ثَابِتاً إِلَى الأَبَدِ ثَبَاتَ الْقَمَرِ الشَّاهِدِ الأَمِينِ فِي السَّمَاءِ. ٣٧ 37
वह हमेशा चाँद की तरह, और आसमान के सच्चे गवाह की तरह क़ाईम रहेगा। मिलाह
لَكِنَّكَ رَفَضْتَ وَرَذَلْتَ وَغَضِبْتَ عَلَى الْمَلِكِ الَّذِي مَسَحْتَهُ، ٣٨ 38
लेकिन तूने तो तर्क कर दिया और छोड़ दिया, तू अपने मम्सूह से नाराज़ हुआ है।
وَتَنَكَّرْتَ لِعَهْدِكَ مَعَ عَبْدِكَ، لَطَّخْتَ تَاجَهُ بِالتُّرَابِ. ٣٩ 39
तूने अपने ख़ादिम के 'अहद को रद्द कर दिया, तूने उसके ताज को ख़ाक में मिला दिया।
هَدَمْتَ كُلَّ أَسْوَارِهِ وَحَوَّلْتَ حُصُونَهُ خَرَاباً. ٤٠ 40
तूने उसकी सब बाड़ों को तोड़ डाला, तूने उसके क़िलों' को खण्डर बना दिया।
نَهَبَهُ كُلُّ عَابِرِي السَّبِيلِ، وَصَارَ هُزْأَةً عِنْدَ جِيرَانِهِ. ٤١ 41
सब आने जाने वाले उसे लूटते हैं, वह अपने पड़ोसियों की मलामत का निशाना बन गया।
رَفَعْتَ يَمِينَ ظَالِمِيهِ وَأَبْهَجْتَ جَمِيعَ أَعْدَائِهِ. ٤٢ 42
तूने उसके मुख़ालिफ़ों के दहने हाथ को बुलन्द किया; तूने उसके सब दुश्मनों को ख़ुश किया।
رَدَدْتَ حَدَّ سَيْفِهِ، وَلَمْ تَنْصُرْهُ فِي الْقِتَالِ. ٤٣ 43
बल्कि तू उसकी तलवार की धार को मोड़ देता है, और लड़ाई में उसके पाँव को जमने नहीं दिया।
أَبْطَلْتَ بَهَاءَهُ وَطَرَحْتَ عَرْشَهُ أَرْضاً. ٤٤ 44
तूने उसकी रौनक़ उड़ा दी, और उसका तख़्त ख़ाक में मिला दिया।
قَصَّرْتَ أَيَّامَ شَبَابِهِ وَغَطَّيْتَهُ بِالْخِزْيِ. ٤٥ 45
तूने उसकी जवानी के दिन घटा दिए, तूने उसे शर्मिन्दा कर दिया है। (सिलाह)
حَتَّى مَتَى يَا رَبُّ؟ هَلْ إِلَى الأَبَدِ تَظَلُّ مُحْتَجِباً عَنِّي، يَتَّقِدُ غَضَبُكَ كَالنَّارِ؟ ٤٦ 46
ऐ ख़ुदावन्द, कब तक? क्या तू हमेशा तक पोशीदा रहेगा? तेरे क़हर की आग कब तक भड़कती रहेगी?
اذْكُرْ قِصَرَ عُمْرِي وَأَنَّكَ خَلَقْتَ كُلَّ بَنِي آدَمَ لِلزَّوَالِ. ٤٧ 47
याद रख मेरा क़याम ही क्या है, तूने कैसी बतालत के लिए कुल बनी आदम को पैदा किया।
أَيُّ إِنْسَانٍ يَحْيَا وَلَا يَرَى الْمَوْتَ؟ وَمَنْ يُنَجِّي نَفْسَهُ مِنْ قَبْضَةِ الْهَاوِيَةِ؟ (Sheol h7585) ٤٨ 48
वह कौन सा आदमी है जो ज़िन्दा ही रहेगा और मौत को न देखेगा, और अपनी जान को पाताल के हाथ से बचा लेगा? (सिलाह) (Sheol h7585)
أَيْنَ مَرَاحِمُكَ السَّالِفَةُ يَا رَبُّ، الَّتِي أَقْسَمْتَ فِي أَمَانَتِكَ أَنْ تُظْهِرَهَا لِدَاوُدَ عَبْدِكَ؟ ٤٩ 49
या रब्ब, तेरी वह पहली शफ़क़त क्या हुई, जिसके बारे में तूने दाऊद से अपनी वफ़ादारी की क़सम खाई थी?
اذْكُرْ يَا رَبُّ عَارَ عَبِيدِكَ الَّذِي تَحَمَّلْتُهُ فِي صَدْرِي مِنْ جَمِيعِ الشُّعُوبِ، ٥٠ 50
या रब्ब, अपने बन्दों की रुस्वाई को याद कर; मैं तो सब ज़बरदस्त क़ौमों की ता'नाज़नी, अपने सीने में लिए फिरता हूँ।
الْعَارَ الَّذِي عَيَّرَنَا بِهِ أَعْدَاؤُكَ يَا رَبُّ، إذْ عَيَّرُوا خَطْوَاتِ الْمَلِكِ الَّذِي مَسَحْتَهُ. ٥١ 51
ऐ ख़ुदावन्द, तेरे दुश्मनों ने कैसे ता'ने मारे, तेरे मम्सूह के क़दम क़दम पर कैसी ता'नाज़नी की है।
تَبَارَكَ الرَّبُّ إِلَى الأَبَدِ. آمِينَ ثُمَّ آمِين. ٥٢ 52
ख़ुदावन्द हमेशा से हमेशा तक मुबारक हो! आमीन सुम्मा आमीन।

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