< المَزامِير 85 >
لِقَائِدِ الْمُنْشِدِينَ. مَزْمُورٌ لِبَنِي قُورَحَ يَا رَبُّ، قَدْ رَضِيتَ عَنْ أَرْضِكَ، وَأَرْجَعْتَ سَبْيَ يَعْقُوبَ. | ١ 1 |
ऐ ख़ुदावन्द तू अपने मुल्क पर मेहरबान रहा है। तू या'क़ूब को ग़ुलामी से वापस लाया है।
إِذْ غَفَرْتَ لِشَعْبِكَ إِثْمَهُمْ، وَسَتَرْتَ خَطَايَاهُمْ كُلَّهَا. | ٢ 2 |
तूने अपने लोगों की बदकारी मु'आफ़ कर दी है; तूने उनके सब गुनाह ढाँक दिए हैं।
سَكَّنْتَ كُلَّ سَخَطِكَ. رَجَعْتَ عَنْ غَضَبِكَ الرَّهِيبِ. | ٣ 3 |
तूने अपना ग़ज़ब बिल्कुल उठा लिया; तू अपने क़हर — ए — शदीद से बाज़ आया है।
رُدَّنَا إِلَيْكَ يَا اللهُ مُخَلِّصَنَا، وَاصْرِفْ غَيْظَكَ عَنَّا. | ٤ 4 |
ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा! हम को बहाल कर, अपना ग़ज़ब हम से दूर कर!
أَتَسْخَطُ عَلَيْنَا إِلَى الأَبَدِ؟ أَتُطِيلُ غَضَبَكَ مِنْ جِيلٍ إِلَى جِيلٍ؟ | ٥ 5 |
क्या तू हमेशा हम से नाराज़ रहेगा? क्या तू अपने क़हर को नसल दर नसल जारी रख्खेगा?
أَمَا تُحْيِينَا مِنْ جَدِيدٍ فَيَفْرَحَ بِكَ شَعْبُكَ؟ | ٦ 6 |
क्या तू हम को फिर ज़िन्दा न करेगा, ताकि तेरे लोग तुझ में ख़ुश हों?
أَظْهِرْ لَنَا رَحْمَتَكَ يَا رَبُّ، وَامْنَحْنَا خَلاصَكَ. | ٧ 7 |
ऐ ख़ुदावन्द! तू अपनी शफ़क़त हमको दिखा, और अपनी नजात हम को बख़्श।
إِنِّي أَسْمَعُ مَا يَتَكَلَّمُ بِهِ اللهُ الرَّبُّ، فَإِنَّهُ يَتَكَلَّمُ بِالسَّلامِ لِشَعْبِهِ وَلأَتْقِيَائِهِ، فَلَا يَرْجِعُونَ إِلَى الْجَهَالَةِ. | ٨ 8 |
मैं सुनूँगा कि ख़ुदावन्द ख़ुदा क्या फ़रमाता है। क्यूँकि वह अपने लोगों और अपने पाक लोगों से सलामती की बातें करेगा; लेकिन वह फिर हिमाक़त की तरफ़ रुजू न करें।
حَقّاً إِنَّ خَلاصَهُ قَرِيبٌ مِنَ الَّذِينَ يَخَافُونَهُ، لِكَيْ يُقِيمَ الْمَجْدُ فِي أَرْضِنَا. | ٩ 9 |
यक़ीनन उसकी नजात उससे डरने वालों के क़रीब है, ताकि जलाल हमारे मुल्क में बसे।
الرَّحْمَةُ وَالْحَقُّ تَلاقَيَا، الْبِرُّ وَالسَّلامُ تَعَانَقَا. | ١٠ 10 |
शफ़क़त और रास्ती एक साथ मिल गई हैं, सदाक़त और सलामती ने एक दूसरे का बोसा लिया है।
يَنْبُتُ الْحَقُّ مِنَ الأَرْضِ، وَيُشْرِفُ الْبِرُّ مِنَ السَّمَاءِ. | ١١ 11 |
रास्ती ज़मीन से निकलती है, और सदाक़त आसमान पर से झाँकती हैं।
أَيْضاً يُعْطِي الرَّبُّ الْخَيْرَ، فَتُنْتِجُ الأَرْضُ غَلَّاتِهَا الْوَافِرَةَ. | ١٢ 12 |
जो कुछ अच्छा है वही ख़ुदावन्द अता फ़रमाएगा और हमारी ज़मीन अपनी पैदावार देगी।
يَتَقَدَّمُهُ الْبِرُّ، وَيُمَهِّدُ الطَّرِيقَ لِخَطَوَاتِهِ. | ١٣ 13 |
सदाक़त उसके आगे — आगे चलेगी, उसके नक़्श — ए — क़दम को हमारी राह बनाएगी।