< المَزامِير 49 >
لِقَائِدِ الْمُنْشِدِينَ. مَزْمُورٌ لِبَنِي قُورَحَ اسْمَعُوا هَذَا يَا جَمِيعَ الشُّعُوبِ، أَصْغُوا يَا جَمِيعَ سُكَّانِ الْعَالَمِ. | ١ 1 |
ऐ सब उम्मतो, यह सुनो। ऐ जहान के सब बाशिन्दो, कान लगाओ!
(اسْمَعُوا) إِلَيَّ أَيُّهَا الْعُظَمَاءُ، الأَغْنِيَاءُ وَالْفُقَرَاءُ عَلَى السَّوَاءِ. | ٢ 2 |
क्या अदना क्या आ'ला, क्या अमीर क्या फ़कीर।
يَنْطِقُ فَمِي بِالْحِكْمَةِ، وَخَوَاطِرُ قَلْبِي بِالْفَهْمِ. | ٣ 3 |
मेरे मुँह से हिकमत की बातें निकलेंगी, और मेरे दिल का ख़याल पुर ख़िरद होगा।
أُعِيرُ أُذُنِي لأَسْمَعَ مَثَلاً، وَعَلَى عَزْفِ الْعُودِ أَشْرَحُ لُغْزِي. | ٤ 4 |
मैं तम्सील की तरफ़ कान लगाऊँगा, मैं अपना राज़ सितार पर बयान करूँगा।
لِمَاذَا أَخَافُ فِي أَيَّامِ الْخَطَرِ عِنْدَمَا يُحِيطُ بِي شَرُّ مُطَارِدِيَّ؟ | ٥ 5 |
मैं मुसीबत के दिनों में क्यूँ डरूं, जब मेरा पीछा करने वाली बदी मुझे घेरे हो?
أُولَئِكَ الْمُتَّكِلُونَ عَلَى ثَرْوَتِهِمْ، وَبِوَفْرَةِ غِنَاهُمْ يَفْتَخِرُونَ. | ٦ 6 |
जो अपनी दौलत पर भरोसा रखते, और अपने माल की कसरत पर फ़ख़्र करते हैं;
لَا يَقْدِرُ أَحَدٌ أَبَداً أَنْ يَفْتَدِيَ أَخَاهُ أَوْ يُقَدِّمَ لِلهِ كَفَّارَةً عَنْهُ. | ٧ 7 |
उनमें से कोई किसी तरह अपने भाई का फ़िदिया नहीं दे सकता, न ख़ुदा को उसका मु'आवज़ा दे सकता है।
لأَنَّ فِدْيَةَ النُّفُوسِ بَاهِظَةٌ يَتَعَذَّرُ دَفْعُهَا مَدَى الْحَيَاةِ | ٨ 8 |
क्यूँकि उनकी जान का फ़िदिया बेश क़ीमत है; वह हमेशा तक अदा न होगा।
طَلَباً لِلْخُلُودِ عَلَى الأَرْضِ وَتَفَادِياً لِرُؤْيَةِ الْقَبْرِ. | ٩ 9 |
ताकि वह हमेशा तक ज़िन्दा रहे और क़ब्र को न देखे।
لَكِنَّ الْحُكَمَاءَ يَمُوتُونَ كَمَا يَمُوتُ الْجَاهِلُ وَالْغَبِيُّ، تَارِكِينَ ثَرْوَتَهُمْ لِغَيْرِهِمْ. | ١٠ 10 |
क्यूँकि वह देखता है, कि दानिशमंद मर जाते हैं, बेवकू़फ़ व हैवान ख़सलत एक साथ हलाक होते हैं, और अपनी दौलत औरों के लिए छोड़ जाते हैं।
يَتَوَهَّمُونَ أَنَّ بُيُوتَهُمْ خَالِدَةٌ، وَأَنَّ مَسَاكِنَهُمْ بَاقِيَةٌ مِنْ جِيلٍ إِلَى جِيلٍ، فَأَطْلَقُوا أَسْمَاءَهُمْ عَلَى أَرَاضِيهِمْ (تَخْلِيداً لِذِكْرِهِمْ). | ١١ 11 |
उनका दिली ख़याल यह है कि उनके घर हमेशा तक, और उनके घर नसल दर नसल बने रहेंगे; वह अपनी ज़मीन अपने ही नाम नामज़द करते हैं।
وَلَكِنَّ الإِنْسَانَ لَا يَخْلُدُ فِي أُبَّهَتِهِ. إِنَّهُ يُمَاثِلُ الْبَهَائِمَ الَّتِي تُبَادُ. | ١٢ 12 |
पर इंसान इज़्ज़त की हालत में क़ाईम नहीं रहता वह जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो, जाते हैं।
هَذَا هُوَ مَصِيرُ الْجُهَّالِ الْوَاثِقِينَ بِأَنْفُسِهِمْ، وَمَصِيرُ أَعْقَابِهِمِ الَّذِينَ يَسْتَحْسِنُونَ أَقْوَالَهُمْ. | ١٣ 13 |
उनकी यह चाल उनकी बेवक़ूफ़ी है, तोभी उनके बाद लोग उनकी बातों को पसंद करते हैं। (सिलाह)
يُسَاقُونَ لِلْمَوْتِ كَالأَغْنَامِ، وَيَكُونُ الْمَوْتُ رَاعِيَهُمْ وَيَسُودُ الْمُسْتَقِيمُونَ عَلَيْهِمْ. تَبْلَى صُورَتُهُمْ، وَتَصِيرُ الْهَاوِيَةُ مَسْكَنَهُمْ. (Sheol ) | ١٤ 14 |
वह जैसे पाताल का रेवड़ ठहराए गए हैं; मौत उनकी पासबान होगी; दियानतदार सुबह को उन पर मुसल्लत होगा, और उनका हुस्न पाताल का लुक़्मा होकर बेठिकाना होगा। (Sheol )
إِنَّمَا اللهُ يَفْتَدِي نَفْسِي مِنْ قَبْضَةِ الْهَاوِيَةِ إذْ يَأْخُذُنِي إِلَيْهِ. (Sheol ) | ١٥ 15 |
लेकिन ख़ुदा मेरी जान को पाताल के इख़्तियार से छुड़ा लेगा, क्यूँकि वही मुझे कु़बूल करेगा। (सिलाह) (Sheol )
لَا تَخْشَ إِذَا اغْتَنَى إِنْسَانٌ، وَزَادَ مَجْدُ بَيْتِهِ. | ١٦ 16 |
जब कोई मालदार हो जाए जब उसके घर की हश्मत बढ़े, तो तू ख़ौफ़ न कर।
فَإِنَّهُ عِنْدَ مَوْتِهِ لَا يَأْخُذُ مَعَهُ شَيْئاً، وَلَا يَلْحَقُ بِهِ مَجْدُهُ إِلَى قَبْرِهِ. | ١٧ 17 |
क्यूँकि वह मरकर कुछ साथ न ले जाएगा; उसकी हश्मत उसके साथ न जाएगी।
وَمَعَ أَنَّهُ يُنَعِّمُ نَفْسَهُ بِالْبَرَكَاتِ فِي أَثْنَاءِ حَيَاتِهِ وَيُطْرِيهِ النَّاسُ إذْ أَحْسَنَ إِلَى نَفْسِهِ، | ١٨ 18 |
चाहे जीते जी वह अपनी जान को मुबारक कहता रहा हो और जब तू अपना भला करता है तो लोग तेरी तारीफ़ करते हैं
إلّا أَنَّ نَفْسَهُ سَتَلْحَقُ بِآبَائِهِ، الَّذِينَ لَا يَرَوْنَ النُّورَ إِلَى الأَبَدِ. | ١٩ 19 |
तोभी वह अपने बाप दादा की गिरोह से जा मिलेगा, वह रोशनी को हरगिज़ न देखेंगे।
فَالإِنْسَانُ الْمُتَمَتِّعُ بِالْكَرَامَةِ مِنْ غَيْرِ فَهْمٍ، يُمَاثِلُ الْبَهَائِمَ البَائِدَةَ. | ٢٠ 20 |
आदमी जो 'इज़्ज़त की हालत में रहता है, लेकिन 'अक़्ल नहीं रखता जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो जाते हैं।