< المَزامِير 2 >

لِمَاذَا ضَجَّتِ الأُمَمُ؟ وَلِمَاذَا تَتَآمَرُ الشُّعُوبُ بَاطِلاً ١ 1
क्यों मचा रहे हैं राष्ट्र यह खलबली? क्यों देश-देश जुटे हैं विफल षड़्‍यंत्र की रचना में?
اجْتَمَعَ مُلُوكُ الأَرْضِ وَرُؤَسَاؤُهَا، وَتَحَالَفُوا لِيُقَاوِمُوا الرَّبَّ وَمَسِيحَهُ، قَائِلِينَ: ٢ 2
याहवेह तथा उनके अभिषिक्त के विरोध में संसार के राजाओं ने एका किया है एकजुट होकर शासक सम्मति कर रहे हैं:
«لِنُحَطِّمْ عَنَّا قُيُودَهُمَا، وَنَتَحَرَّرْ مِنْ نِيرِ عُبُودِيَّتِهِمَا». ٣ 3
“चलो, तोड़ फेंकें उनके द्वारा डाली गई ये बेड़ियां, उतार डालें उनके द्वारा बांधी गई ये रस्सियां.”
لَكِنَّ الْجَالِسَ عَلَى عَرْشِهِ فِي السَّمَاوَاتِ يَضْحَكُ. الرَّبُّ يَسْتَهْزِئُ بِهِمْ. ٤ 4
वह, जो स्वर्गिक सिंहासन पर विराजमान हैं, उन पर हंसते हैं, प्रभु उनका उपहास करते हैं.
عِنْدَئِذٍ يُنْذِرُهُمْ فِي حُمُوِّ غَضَبِهِ، وَيُرَوِّعُهُمْ بِشِدَّةِ سَخَطِهِ، ٥ 5
तब वह उन्हें अपने प्रकोप से डराकर अपने रोष में उन्हें संबोधित करते हैं,
قَائِلاً: «أَمَّا أَنَا فَقَدْ مَسَحْتُ مَلِكِي، وَأَجْلَسْتُهُ عَلَى صِهْيَوْنَ، جَبَلِي الْمُقَدَّسِ». ٦ 6
“अपने पवित्र पर्वत ज़ियोन पर स्वयं मैंने अपने राजा को बसा दिया है.”
وَهَا أَنَا أُعْلِنُ مَا قَضَى بِهِ الرَّبُّ: قَالَ لِيَ الرَّبُّ: «أَنْتَ ابْنِي، أَنَا اليَوْمَ وَلَدْتُكَ. ٧ 7
मैं याहवेह की राजाज्ञा की घोषणा करूंगा: उन्होंने मुझसे कहा है, “तुम मेरे पुत्र हो; आज मैं तुम्हारा जनक हो गया हूं.
اطْلُبْ مِنِّي فَأُعْطِيَكَ الأُمَمَ مِيرَاثاً، وَأَقَاصِيَ الأَرْضِ مُلْكاً لَكَ. ٨ 8
मुझसे मांगो, तो मैं तुम्हें राष्ट्र दे दूंगा तथा संपूर्ण पृथ्वी को तुम्हारी निज संपत्ति बना दूंगा.
فَتُكَسِّرَهُمْ بِقَضِيبٍ مِنْ حَدِيدٍ، وَتُحَطِّمَهُمْ كَآنِيَةِ الْفَخَّارِ». ٩ 9
तुम उन्हें लोहे के छड़ से टुकड़े-टुकड़े कर डालोगे; मिट्टी के पात्रों समान चूर-चूर कर दोगे.”
وَالآنَ تَعَقَّلُوا أَيُّهَا الْمُلُوكُ، وَاحْذَرُوا يَا حُكَّامَ الأَرْضِ. ١٠ 10
तब राजाओ, बुद्धिमान बनो; पृथ्वी के न्यायियों, सचेत हो जाओ.
اعْبُدُوا الرَّبَّ بِخَوْفٍ، وَابْتَهِجُوا بِرِعْدَةٍ. ١١ 11
श्रद्धा भाव में याहवेह की आराधना करो; थरथराते हुए आनंद मनाओ.
قَبِّلُوا الابْنَ لِئَلّا يَغْضَبَ، فَتَهْلِكُوا فِي الطَّرِيقِ، لِئَلّا يَتَوَهَّجَ غَضَبُهُ سَرِيعاً. طُوبَى لِجَمِيعِ الْمُتَّكِلِينَ عَلَيْهِ. ١٢ 12
पूर्ण सच्चाई में पुत्र को सम्मान दो, ऐसा न हो कि वह क्रोधित हो जाए और तुम मार्ग में ही नष्ट हो जाओ, क्योंकि उसका क्रोध शीघ्र भड़कता है. धन्य होते हैं वे सभी, जो उनका आश्रय लेते हैं.

< المَزامِير 2 >