< المَزامِير 17 >
صَلاةٌ رَفَعَهَا دَاوُدُ اسْمَعْ يَا رَبُّ دَعْوَى الْحَقِّ. أَنْصِتْ إِلَى صُرَاخِي، وَأَصْغِ إِلَى صَلاتِي الصَّاعِدَةِ مِنْ شَفَتَيْنِ صَادِقَتَيْنِ. | ١ 1 |
ऐ ख़ुदावन्द, हक़ को सुन, मेरी फ़रियाद पर तवज्जुह कर। मेरी दुआ पर, जो दिखावे के होंटों से निकलती है कान लगा।
لِيَخْرُجْ مِنْ أَمَامِكَ قَضَائِي، وَلْتُلاحِظْ عَيْنَاكَ اسْتِقَامَتِي. | ٢ 2 |
मेरा फ़ैसला तेरे सामने से ज़ाहिर हो! तेरी आँखें रास्ती को देखें!
اخْتَبَرْتَ قَلْبِي إِذِ افْتَقَدْتَنِي لَيْلاً، وَامْتَحَنْتَنِي فَلَمْ تَجِدْ فِيَّ سُوءاً. لَمْ تُخَالِفْ أَقْوَالِي أَفْكَارِي. | ٣ 3 |
तूने मेरे दिल को आज़मा लिया है, तूने रात को मेरी निगरानी की; तूने मुझे परखा और कुछ खोट न पाया, मैंने ठान लिया है कि मेरा मुँह ख़ता न करे।
مَا شَأْنِي بِأَعْمَالِ النَّاسِ الشِّرِّيرَةِ؟ فَبِفَضْلِ كَلامِ شَفَتَيْكَ تَفَادَيْتُ مَسَالِكَ الْعَنِيفِ. | ٤ 4 |
इंसानी कामों में तेरे लबों के कलाम की मदद से मैं ज़ालिमों की राहों से बाज़ रहा हूँ।
ثَبَّتُّ خُطْوَاتِي فِي طُرُقِكَ فَلَمْ تَزِلَّ قَدَمَايَ. | ٥ 5 |
मेरे कदम तेरे रास्तों पर क़ाईम रहे हैं, मेरे पाँव फिसले नहीं।
إِلَيْكَ دَعَوْتُ اللهُمَّ، لأَنَّكَ تَسْتَجِيبُ، فَأَرهِفْ إِلَيَّ أُذُنَكَ وَأَصْغِ لِكَلامِي. | ٦ 6 |
ऐ ख़ुदा, मैंने तुझ से दुआ की है क्यूँकि तू मुझे जवाब देगा। मेरी तरफ़ कान झुका और मेरी 'अर्ज़ सुन ले।
أَظْهِرْ رَوْعَةَ مَرَاحِمِكَ يَا مَنْ تُخَلِّصُ بِيَمِينِكَ مَنْ يَلْتَجِئُونَ إِلَيْكَ مِنْ مُطَارِدِيهِمْ. | ٧ 7 |
तू जो अपने दहने हाथ से अपने भरोसा करने वालों को उनके मुखालिफ़ों से बचाता है, अपनी'अजीब शफ़क़त दिखा।
احْفَظْنِي كَحَدَقَةِ عَيْنِكَ، وَاسْتُرْنِي بِظِلِّ جَنَاحَيْكَ. | ٨ 8 |
मुझे आँख की पुतली की तरह महफूज़ रख; मुझे अपने परों के साये में छिपा ले,
احْفَظْنِي مِنَ الأَشْرَارِ الَّذِينَ يُخْرِبُونَنِي، مِنْ أَعْدَائِي الْقَتَلَةِ الْمُحْدِقِينَ بِي. | ٩ 9 |
उन शरीरों से जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं, मेरे जानी दुश्मनों से जो मुझे घेरे हुए हैं।
عَوَاطِفُهُمْ مُتَحَجِّرَةٌ لَا تُشْفِقُ. أَفْوَاهُهُمْ تَنْطِقُ بِالْكِبْرِيَاءِ. | ١٠ 10 |
उन्होंने अपने दिलों को सख़्त किया है; वह अपने मुँह से बड़ा बोल बोलते हैं।
حَاصَرُونَا مِنْ كُلِّ جِهَةٍ، وَوَطَّدُوا العَزْمَ عَلَى طَرْحِنَا أَرْضاً. | ١١ 11 |
उन्होंने कदम कदम पर हम को घेरा है; वह ताक लगाए हैं कि हम को ज़मीन पर पटक दें।
الشِّرِّيرُ كَأَسَدٍ مُتَلَهِّفٍ لِلاِفْتِرَاسِ، وَكَالشِّبْلِ الْكَامِنِ فِي مَخْبَئِهِ. | ١٢ 12 |
वह उस बबर की तरह है जो फाड़ने पर लालची हो, वह जैसे जवान बबर है जो पोशीदा जगहों में दुबका हुआ है।
قُمْ يَا رَبُّ تَصَدَّ لَهُ. اصْرَعْهُ. وَبِسَيْفِكَ نَجِّ نَفْسِي مِنَ الشِّرِّيرِ. | ١٣ 13 |
उठ, ऐ ख़ुदावन्द! उसका सामना कर, उसे पटक दे! अपनी तलवार से मेरी जान को शरीर से बचा ले।
أَنْقِذْنِي بِيَدِكَ يَا رَبُّ مِنَ النَّاسِ. مِنْ أَهْلِ الدُّنْيَا الَّذِينَ نَصِيبُهُمْ هُوَ فِي هَذِهِ الْحَيَاةِ. أَنْتَ تَمْلَأُ بُطُونَهُمْ مِنْ خَيْرَاتِكَ الْمَخْزُونَةِ، فَيَشْبَعُ أَبْنَاؤُهُمْ، وَيُوَرِّثُونَ أَوْلادَهُمْ مَا يَفْضُلُ عَنْهُمْ. | ١٤ 14 |
अपने हाथ से ऐ ख़ुदावन्द! मुझे लोगों से बचा। या'नी दुनिया के लोगों से, जिनका बख़रा इसी ज़िन्दगी में है, और जिनका पेट तू अपने ज़ख़ीरे से भरता है। उनकी औलाद भी हस्ब — ए — मुराद है; वह अपना बाक़ी माल अपने बच्चों के लिए छोड़ जाते हैं
أَمَّا أَنَا فَبِالْبِرِّ أُشَاهِدُ وَجْهَكَ. أَشْبَعُ، إِذَا اسْتَيْقَظْتُ، مِنْ بَهَاءِ طَلْعَتِكَ. | ١٥ 15 |
लेकिन मैं तो सदाक़त में तेरा दीदार हासिल करूँगा; मैं जब जागूँगा तो तेरी शबाहत से सेर हूँगा।