< المَزامِير 17 >

صَلاةٌ رَفَعَهَا دَاوُدُ اسْمَعْ يَا رَبُّ دَعْوَى الْحَقِّ. أَنْصِتْ إِلَى صُرَاخِي، وَأَصْغِ إِلَى صَلاتِي الصَّاعِدَةِ مِنْ شَفَتَيْنِ صَادِقَتَيْنِ. ١ 1
दावीद की एक प्रार्थना याहवेह, मेरा न्याय संगत, अनुरोध सुनिए; मेरी पुकार पर ध्यान दीजिए. मेरी प्रार्थना को सुन लीजिए, जो कपटी होंठों से निकले शब्द नहीं हैं.
لِيَخْرُجْ مِنْ أَمَامِكَ قَضَائِي، وَلْتُلاحِظْ عَيْنَاكَ اسْتِقَامَتِي. ٢ 2
आपके द्वारा मेरा न्याय किया जाए; आपकी दृष्टि में वही आए जो धर्ममय है.
اخْتَبَرْتَ قَلْبِي إِذِ افْتَقَدْتَنِي لَيْلاً، وَامْتَحَنْتَنِي فَلَمْ تَجِدْ فِيَّ سُوءاً. لَمْ تُخَالِفْ أَقْوَالِي أَفْكَارِي. ٣ 3
आप मेरे हृदय को परख चुके हैं, रात्रि में आपने मेरा ध्यान रखा है, आपने मुझे परखकर निर्दोष पाया है; मैंने यह निश्चय किया है कि मेरे मुख से कोई अपराध न होगा.
مَا شَأْنِي بِأَعْمَالِ النَّاسِ الشِّرِّيرَةِ؟ فَبِفَضْلِ كَلامِ شَفَتَيْكَ تَفَادَيْتُ مَسَالِكَ الْعَنِيفِ. ٤ 4
मनुष्यों के आचरण के संदर्भ में, ठीक आपके ही आदेश के अनुरूप मैं हिंसक मनुष्यों के मार्गों से दूर ही दूर रहा हूं.
ثَبَّتُّ خُطْوَاتِي فِي طُرُقِكَ فَلَمْ تَزِلَّ قَدَمَايَ. ٥ 5
मेरे पांव आपके मार्गों पर दृढ़ रहें; और मेरे पांव लड़खड़ाए नहीं.
إِلَيْكَ دَعَوْتُ اللهُمَّ، لأَنَّكَ تَسْتَجِيبُ، فَأَرهِفْ إِلَيَّ أُذُنَكَ وَأَصْغِ لِكَلامِي. ٦ 6
मैंने आपको ही पुकारा है, क्योंकि परमेश्वर, आप मुझे उत्तर देंगे; मेरी ओर कान लगाकर मेरी बिनती को सुनिए.
أَظْهِرْ رَوْعَةَ مَرَاحِمِكَ يَا مَنْ تُخَلِّصُ بِيَمِينِكَ مَنْ يَلْتَجِئُونَ إِلَيْكَ مِنْ مُطَارِدِيهِمْ. ٧ 7
अपने शत्रुओं के पास से आपके दायें पक्ष में आए हुए शरणागतों के रक्षक, उन पर अपने करुणा-प्रेम का आश्चर्य प्रदर्शन कीजिए.
احْفَظْنِي كَحَدَقَةِ عَيْنِكَ، وَاسْتُرْنِي بِظِلِّ جَنَاحَيْكَ. ٨ 8
अपने आंखों की पुतली के समान मेरी सुरक्षा कीजिए; अपने पंखों की आड़ में मुझे छिपा लीजिए
احْفَظْنِي مِنَ الأَشْرَارِ الَّذِينَ يُخْرِبُونَنِي، مِنْ أَعْدَائِي الْقَتَلَةِ الْمُحْدِقِينَ بِي. ٩ 9
उन दुष्टों से, जो मुझ पर प्रहार करते रहते हैं, उन प्राणघातक शत्रुओं से, जिन्होंने मुझे घेर लिया है.
عَوَاطِفُهُمْ مُتَحَجِّرَةٌ لَا تُشْفِقُ. أَفْوَاهُهُمْ تَنْطِقُ بِالْكِبْرِيَاءِ. ١٠ 10
उनके हृदय कठोर हो चुके हैं, उनके शब्द घमंडी हैं.
حَاصَرُونَا مِنْ كُلِّ جِهَةٍ، وَوَطَّدُوا العَزْمَ عَلَى طَرْحِنَا أَرْضاً. ١١ 11
वे मेरा पीछा करते रहे हैं और अब उन्होंने मुझे घेर लिया है. उनकी आंखें मुझे खोज रही हैं, कि वे मुझे धरती पर पटक दें.
الشِّرِّيرُ كَأَسَدٍ مُتَلَهِّفٍ لِلاِفْتِرَاسِ، وَكَالشِّبْلِ الْكَامِنِ فِي مَخْبَئِهِ. ١٢ 12
वह उस सिंह के समान है जो फाड़ खाने को तत्पर है, उस जवान सिंह के समान जो घात लगाए छिपा बैठा है.
قُمْ يَا رَبُّ تَصَدَّ لَهُ. اصْرَعْهُ. وَبِسَيْفِكَ نَجِّ نَفْسِي مِنَ الشِّرِّيرِ. ١٣ 13
उठिए, याहवेह, उसका सामना कीजिए, उसे नाश कीजिए; अपनी तलवार के द्वारा दुर्जन से मेरे प्राण बचा लीजिए,
أَنْقِذْنِي بِيَدِكَ يَا رَبُّ مِنَ النَّاسِ. مِنْ أَهْلِ الدُّنْيَا الَّذِينَ نَصِيبُهُمْ هُوَ فِي هَذِهِ الْحَيَاةِ. أَنْتَ تَمْلَأُ بُطُونَهُمْ مِنْ خَيْرَاتِكَ الْمَخْزُونَةِ، فَيَشْبَعُ أَبْنَاؤُهُمْ، وَيُوَرِّثُونَ أَوْلادَهُمْ مَا يَفْضُلُ عَنْهُمْ. ١٤ 14
याहवेह, अपने हाथों द्वारा, उन मनुष्यों से, उन सांसारिक मनुष्यों से जिनका भाग मात्र इसी जीवन में मगन है. उनका पेट आप अपनी निधि से परिपूर्ण कर देते हैं; संतान पाकर वे प्रसन्‍न हैं, और वे अपनी समृद्धि अपनी संतान के लिए छोड़ जाते हैं.
أَمَّا أَنَا فَبِالْبِرِّ أُشَاهِدُ وَجْهَكَ. أَشْبَعُ، إِذَا اسْتَيْقَظْتُ، مِنْ بَهَاءِ طَلْعَتِكَ. ١٥ 15
अपनी धार्मिकता के कारण मैं आपके मुख का दर्शन करूंगा; जब मैं प्रातः आंखें खोलूं, तो आपके स्वरूप का दर्शन मुझे आनंद से तृप्‍त कर देगा.

< المَزامِير 17 >