< المَزامِير 129 >
تَرْنِيمَةُ الْمَصَاعِدِ مَا أَكْثَرَ مَا ضَايَقُونِي فِي حَدَاثَتِي يَقُولُ إِسْرَائِيلُ. | ١ 1 |
आराधना के लिए यात्रियों का गीत. “मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं,” इस्राएल राष्ट्र यही कहे;
مَا أَكْثَرَ مَا ضَايَقُونِي فِي حَدَاثَتِي، لَكِنَّهُمْ لَمْ يَتَغَلَّبُوا عَلَيَّ. | ٢ 2 |
“मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं, किंतु वे मुझ पर प्रबल न हो सके हैं.
جَرَحُوا ظَهْرِي جُرُوحاً عَمِيقَةً، فَصَارَ كَالأَتْلامِ (خُطُوطِ الْمِحْرَاثِ) الطَّوِيلَةِ فِي حَقْلٍ مَحْرُوثٍ. | ٣ 3 |
हल चलानेवालों ने मेरे पीठ पर हल चलाया है, और लम्बी-लम्बी हल रेखाएं खींच दी हैं.
الرَّبُّ عَادِلٌ، كَسَرَ أَغْلالَ عُبُودِيَّةِ الأَشْرَارِ. | ٤ 4 |
किंतु याहवेह युक्त है; उन्हीं ने मुझे दुष्टों के बंधनों से मुक्त किया है.”
فَلْيَخْزَ وَلْيُدْبِرْ جَمِيعُ مُبْغِضِي صِهْيَوْنَ. | ٥ 5 |
वे सभी, जिन्हें ज़ियोन से बैर है, लज्जित हो लौट जाएं.
لِيَكُونُوا كَالْعُشْبِ النَّابِتِ عَلَى السُّطُوحِ، الَّذِي يَجِفُّ قَبْلَ أَنْ يَنْمُوَ، | ٦ 6 |
उनकी नियति भी वही हो, जो घर की छत पर उग आई घास की होती है, वह विकसित होने के पूर्व ही मुरझा जाती है;
فَلَا يَمْلأُ الْحَاصِدُ مِنْهُ يَدَهُ، وَلَا الْحَازِمُ حِضْنَهُ. | ٧ 7 |
किसी के हाथों में कुछ भी नहीं आता, और न उसकी पुलियां बांधी जा सकती हैं.
وَلَا يَقُولُ عَابِرُو السَّبِيلِ لَهُمْ: «لِتَكُنْ عَلَيْكُمْ بَرَكَةُ الرَّبِّ: نُبَارِكُكُمْ بِاسْمِ الرَّبِّ». | ٨ 8 |
आते जाते पुरुष यह कभी न कह पाएं, “तुम पर याहवेह की कृपादृष्टि हो; हम याहवेह के नाम में तुम्हारे लिए मंगल कामना करते हैं.”