< المَزامِير 120 >

تَرْنِيمَةُ الْمَصَاعِدِ صَرَخْتُ إِلَى الرَّبِّ فِي ضِيقِي فَاسْتَجَابَ لِي. ١ 1
आराधना के लिए यात्रियों का गीत. मैंने अपनी पीड़ा में याहवेह को पुकारा, और उन्होंने मेरी सुन ली.
نَجِّ نَفْسِي يَا رَبُّ مِنَ الشِّفَاهِ الْكَاذِبَةِ وَاللِّسَانِ الْمُنَافِقِ. ٢ 2
याहवेह, मेरी रक्षा कीजिए, झूठ बोलनेवाले होंठों से, और छली जीभ से!
أَيُّ نَفْعٍ يَأْتِينِي مِنَ اللِّسَانِ الغَشَّاشِ؟ ٣ 3
तुम्हारे साथ परमेश्वर क्या करेंगे, और उसके भी अतिरिक्त और क्या करेंगे, ओ छली जीभ?
إِنَّهُ كَسِهَامِ الْجَبَّارِ الحَادَّةِ وَكَالْجَمْرِ الأَحْمَرِ الْمُلْتَهِبِ. ٤ 4
वह तुझे योद्धा के तीक्ष्ण बाणों से दंड देंगे, वह तुझे वृक्ष की लकड़ी के प्रज्वलित कोयलों से दंड देंगे.
وَيْلِي لأَنِّي تَغَرَّبْتُ فِي مَاشِكَ، وَسَكَنْتُ فِي خِيَامِ قِيدَارَ. ٥ 5
धिक्कार है मुझ पर, जो मैं मेशेख देश में जा निवास करूं, जो मैं केदार देश के मण्डपों में जा रहूं!
طَالَ سَكَنِي مَعَ أُنَاسٍ يُبْغِضُونَ السَّلامَ. ٦ 6
बहुत समय मैंने उनके साथ व्यतीत की है, जिन्हें शांति से घृणा हैं.
أَنَا رَجُلُ سَلامٍ، وَكُلَّمَا دَعَوْتُ إِلَيْهِ هَبُّوا هُمْ لِلْحَرْبِ. ٧ 7
मैं खड़ा शांति प्रिय पुरुष; किंतु जब मैं कुछ कहता हूं, वे युद्ध पर उतारू हो जाते हैं.

< المَزامِير 120 >