< المَزامِير 119 >
طُوبَى لِلسَّالِكِينَ فِي طَرِيقِ الكَمَالِ، طَرِيقِ شَرِيعَةِ الرَّبِّ. | ١ 1 |
१आलेफ क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं, और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं!
طُوبَى لِمَنْ يَحْفَظُونَ وَصَايَا الرَّبِّ، الَّذِينَ يَطْلُبُونَهُ بِكُلِّ الْقَلْبِ، | ٢ 2 |
२क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियों को मानते हैं, और पूर्ण मन से उसके पास आते हैं!
وَلَا يَرْتَكِبُونَ إِثْماً، إِنَّمَا فِي طُرُقِهِ يَسِيرُونَ. | ٣ 3 |
३फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते, वे उसके मार्गों में चलते हैं।
أَنْتَ أَوْصَيْتَ بِحِفْظِ وَصَايَاكَ وَالعَمَلِ بِها كُلِّهَا. | ٤ 4 |
४तूने अपने उपदेश इसलिए दिए हैं, कि हम उसे यत्न से माने।
لَيْتَكَ تُوَجِّهُ طُرُقِي لِمُمَارَسَةِ فَرَائِضِكَ. | ٥ 5 |
५भला होता कि तेरी विधियों को मानने के लिये मेरी चाल चलन दृढ़ हो जाए!
عِنْدَئِذٍ لَا أَخْزَى إِذَا تَأَمَّلْتُ فِي جَمِيعِ وَصَايَاكَ. | ٦ 6 |
६तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूँगा, और मैं लज्जित न होऊँगा।
أَحْمَدُكَ بِقَلْبٍ مُسْتَقِيمٍ لأَنِّي أَدْرَكْتُ أَحْكَامَكَ الْعَادِلَةَ. | ٧ 7 |
७जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूँगा, तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूँगा।
سَأَحْفَظُ وَصَايَاكَ، فَلَا تَتْرُكْنِي أَبَداً. | ٨ 8 |
८मैं तेरी विधियों को मानूँगा: मुझे पूरी रीति से न तज! बेथ
بِمَاذَا يُزَكِّي الشَّابُّ مَسْلَكَهُ؟ بِطَاعَتِهِ لِكَلِمَتِكَ. | ٩ 9 |
९जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन का पालन करने से।
لِذَلِكَ طَلَبْتُكَ بِكُلِّ قَلْبِي، فَلَا تَدَعْنِي أَضِلُّ عَنْ وَصَايَاكَ. | ١٠ 10 |
१०मैं पूरे मन से तेरी खोज में लगा हूँ; मुझे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटकने न दे!
خَبَأْتُ كَلامَكَ فِي قَلْبِي، لِئَلّا أُخْطِئَ إِلَيْكَ. | ١١ 11 |
११मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूँ।
مُبَارَكٌ أَنْتَ يَا رَبُّ. عَلِّمْنِي فَرَائِضَكَ. | ١٢ 12 |
१२हे यहोवा, तू धन्य है; मुझे अपनी विधियाँ सिखा!
بِشَفَتَيَّ أَعْلَنْتُ جَمِيعَ الأَحْكَامِ الَّتِي نَطَقْتَ بِها. | ١٣ 13 |
१३तेरे सब कहे हुए नियमों का वर्णन, मैंने अपने मुँह से किया है।
بِطَرِيقِ شَهَادَاتِكَ قَدْ سُرِرْتُ أَكْثَرَ مِنْ سُرُورِ الْحَائِزِ عَلَى كُلِّ غِنىً. | ١٤ 14 |
१४मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से, मानो सब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूँ।
أَتَأَمَّلُ وَصَايَاكَ، وَأَحْفَظُ سُبُلَكَ. | ١٥ 15 |
१५मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा, और तेरे मार्गों की ओर दृष्टि रखूँगा।
بِفَرائِضِكَ أَتَلَذَّذُ، وَلَا أَنْسَى كَلِمَتَكَ. | ١٦ 16 |
१६मैं तेरी विधियों से सुख पाऊँगा; और तेरे वचन को न भूलूँगा। गिमेल
أَحْسِنْ إِلَيَّ أَنَا عَبْدِكَ، فَأَحْيَا وَأَعْمَلَ بِكَلِمَتِكَ. | ١٧ 17 |
१७अपने दास का उपकार कर कि मैं जीवित रहूँ, और तेरे वचन पर चलता रहूँ।
افْتَحْ عَيْنَيَّ فَأَرَى عَجَائِبَ مِنْ شَرِيعَتِكَ. | ١٨ 18 |
१८मेरी आँखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूँ।
غَرِيبٌ أَنَا فِي الأَرْضِ فَلَا تَحْجُبْ عَنِّي وَصَايَاكَ. | ١٩ 19 |
१९मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूँ; अपनी आज्ञाओं को मुझसे छिपाए न रख!
تَتَلَهَّفُ نَفْسِي شَوْقاً إِلَى أَحْكَامِكَ دَائِماً. | ٢٠ 20 |
२०मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है।
أَنْتَ تَزْجُرُ الْمُتَكَبِّرِينَ الْمَلْعُونِينَ الَّذِينَ يَضِلُّونَ عَنْ وَصَايَاكَ. | ٢١ 21 |
२१तूने अभिमानियों को, जो श्रापित हैं, घुड़का है, वे तेरी आज्ञाओं से भटके हुए हैं।
انْتَزِعْ عَارِي وَهَوَانِي، لأَنَّنِي أُرَاعِي وَصَايَاكَ. | ٢٢ 22 |
२२मेरी नामधराई और अपमान दूर कर, क्योंकि मैं तेरी चितौनियों को पकड़े हूँ।
جَلَسَ الرُّؤَسَاءُ وَتَآمَرُوا عَلَيَّ. أَمَّا أَنَا، عَبدَكَ، فَبَقِيتُ أَتَأَمَّلُ فِي فَرَائِضِكَ. | ٢٣ 23 |
२३हाकिम भी बैठे हुए आपस में मेरे विरुद्ध बातें करते थे, परन्तु तेरा दास तेरी विधियों पर ध्यान करता रहा।
وَصَايَاكَ الشَّاهِدَةُ أَيْضاً هِيَ مَسَرَّتِي، وَأَنَا أَسْتَشِيرُهَا دَائِماً. | ٢٤ 24 |
२४तेरी चितौनियाँ मेरा सुखमूल और मेरे मंत्री हैं। दाल्थ
(أَنَا يَائِسٌ) أَرْقُدُ مُلْتَصِقاً بالتُّرَابِ، فَأَحْيِنِي حَسَبَ وَعْدِكَ. | ٢٥ 25 |
२५मैं धूल में पड़ा हूँ; तू अपने वचन के अनुसार मुझ को जिला!
اعْتَرَفْتُ بِمَا جَنَيْتُ فَاسْتَجَبْتَ لِي. عَلِّمْنِي فَرَائِضَكَ. | ٢٦ 26 |
२६मैंने अपनी चाल चलन का तुझ से वर्णन किया है और तूने मेरी बात मान ली है; तू मुझ को अपनी विधियाँ सिखा!
فَهِّمْنِي طَرِيقَ أَوَامِرِكَ، فَأَتَأَمَّلَ فِي أَعْمَالِكَ الْعَجِيبَةِ. | ٢٧ 27 |
२७अपने उपदेशों का मार्ग मुझे समझा, तब मैं तेरे आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करूँगा।
نَفْسِي ذَائِبَةٌ مِنَ الْحُزْنِ. قَوِّنِي بِحَسَبِ وَعْدِكَ. | ٢٨ 28 |
२८मेरा जीव उदासी के मारे गल चला है; तू अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल!
أَبْعِدْ عَنِّي طَرِيقَ الْغَوَايَةِ وَبِرَحْمَتِكَ لَقِّنِّي شَرِيعَتَكَ. | ٢٩ 29 |
२९मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर; और कृपा करके अपनी व्यवस्था मुझे दे।
قَدِ اخْتَرْتُ طَرِيقَ الْحَقِّ، إذْ وَضَعْتُ أَحْكَامَكَ أَمَامِي. | ٣٠ 30 |
३०मैंने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है, तेरे नियमों की ओर मैं चित्त लगाए रहता हूँ।
الْتَزَمْتُ بِوَصَايَاكَ الشَّاهِدَةِ لَكَ يَا رَبُّ فَلَا تُخْزِنِي. | ٣١ 31 |
३१मैं तेरी चितौनियों में लौलीन हूँ, हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे!
أَجِدُّ مُسْرِعاً فِي طَرِيقِ وَصَايَاكَ، لأَنَّكَ تَشْرَحُ قَلْبِي. | ٣٢ 32 |
३२जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा, तब मैं तेरी आज्ञाओं के मार्ग में दौड़ूँगा। हे
يَا رَبُّ، عَلِّمْنِي طَرِيقَ فَرَائِضِكَ فَأُرَاعِيَهَا إِلَى النِّهَايَةِ. | ٣٣ 33 |
३३हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग सिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूँगा।
أَعْطِنِي فَهْماً لأَحْفَظَ شَرِيعَتَكَ وَأَعْمَلَ بِها بِكُلِّ قَلْبِي. | ٣٤ 34 |
३४मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूँगा और पूर्ण मन से उस पर चलूँगा।
اهْدِنِي فِي سَبِيلِ وَصَايَاكَ، فَفِيهَا بَهْجَتِي. | ٣٥ 35 |
३५अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, क्योंकि मैं उसी से प्रसन्न हूँ।
اجْتَذِبْ قَلْبِي نَحْوَ شَهَادَاتِكَ بَعِيداً عَنْ مَطَامِعِ الْمَالِ. | ٣٦ 36 |
३६मेरे मन को लोभ की ओर नहीं, अपनी चितौनियों ही की ओर फेर दे।
حَوِّلْ عَيْنَيَّ عَنْ رُؤْيَةِ الْبَاطِلِ، وَفِي طَرِيقِكَ أَحْيِنِي. | ٣٧ 37 |
३७मेरी आँखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपने मार्ग में मुझे जिला।
حَقِّقْ لِعَبْدِكَ قَوْلَكَ، الَّذِي وَعَدْتَ بِهِ مُتَّقِيكَ. | ٣٨ 38 |
३८तेरा वादा जो तेरे भय माननेवालों के लिये है, उसको अपने दास के निमित्त भी पूरा कर।
أَزِلْ عَنِّي الْعَارَ الَّذِي أَخْشَاهُ، لأَنَّ أَحْكَامَكَ صَالِحَةٌ. | ٣٩ 39 |
३९जिस नामधराई से मैं डरता हूँ, उसे दूर कर; क्योंकि तेरे नियम उत्तम हैं।
هَا قَدْ رَغِبْتُ فِي وَصَايَاكَ. بِعَدْلِكَ أَحْيِنِي. | ٤٠ 40 |
४०देख, मैं तेरे उपदेशों का अभिलाषी हूँ; अपने धर्म के कारण मुझ को जिला। वाव
أَنْعِمْ عَلَيَّ يَا رَبُّ بِرَحْمَتِكَ وَخَلاصِكَ حَسَبَ كَلامِكَ. | ٤١ 41 |
४१हे यहोवा, तेरी करुणा और तेरा किया हुआ उद्धार, तेरे वादे के अनुसार, मुझ को भी मिले;
فَأَرُدَّ عَلَى مُعَيِّرِيَّ، لأَنِّي أَثِقُ بِوَعْدِكَ. | ٤٢ 42 |
४२तब मैं अपनी नामधराई करनेवालों को कुछ उत्तर दे सकूँगा, क्योंकि मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है।
لَا تَنْزِعْ كَلِمَةَ الْحَقِّ مِنْ فَمِي لأَنَّ رَجَائِي فِي أَحْكَامِكَ، | ٤٣ 43 |
४३मुझे अपने सत्य वचन कहने से न रोक क्योंकि मेरी आशा तेरे नियमों पर है।
فَأَحْفَظَ شَرِيعَتَكَ دَائِماً، إِلَى الدَّهْرِ وَالأَبَدِ، | ٤٤ 44 |
४४तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार, सदा सर्वदा चलता रहूँगा;
وَأَسْلُكَ فِي رَحَابَةِ الْحُرِّيَّةِ، لأَنِّي الْتَمَسْتُ أَوَامِرَكَ. | ٤٥ 45 |
४५और मैं चौड़े स्थान में चला फिरा करूँगा, क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों की सुधि रखी है।
سَأَتَحَدَّثُ بِشَهَادَاتِكَ أَمَامَ الْمُلُوكِ وَلَا يَعْتَرِينِي الْخِزْيُ، | ٤٦ 46 |
४६और मैं तेरी चितौनियों की चर्चा राजाओं के सामने भी करूँगा, और लज्जित न होऊँगा;
وَأَتَلَذَّذُ بِوَصَايَاكَ الَّتِي أَحْبَبْتُهَا، | ٤٧ 47 |
४७क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूँ, और मैं उनसे प्रीति रखता हूँ।
وَأَرْفَعُ كَفَّيَّ إِلَى وَصَايَاكَ الَّتِي أَحْبَبْتُهَا وَأَتَأَمَّلُ فِي فَرَائِضِكَ. | ٤٨ 48 |
४८मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिनमें मैं प्रीति रखता हूँ, हाथ फैलाऊँगा और तेरी विधियों पर ध्यान करूँगा। ज़ैन
حَقِّقْ لِعَبْدِكَ وَعْدَكَ الَّذِي جَعَلْتَنِي أَنْتَظِرُهُ. | ٤٩ 49 |
४९जो वादा तूने अपने दास को दिया है, उसे स्मरण कर, क्योंकि तूने मुझे आशा दी है।
وَعْدُكَ يُنْعِشُنِي إِذْ هُوَ تَعْزِيَتِي فِي ضِيقِي. | ٥٠ 50 |
५०मेरे दुःख में मुझे शान्ति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैंने जीवन पाया है।
جَاوَزَ الْمُتَكَبِّرُونَ الْحَدَّ فِي السُّخْرِيَةِ بِي، لَكِنْ عَنْ شَرِيعَتِكَ لَمْ أَمِلْ. | ٥١ 51 |
५१अहंकारियों ने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है, तो भी मैं तेरी व्यवस्था से नहीं हटा।
تَذَكَّرْتُ أَحْكَامَكَ مُنْذُ الدَّهْرِ يَا رَبُّ، فَتَعَزَّيْتُ. | ٥٢ 52 |
५२हे यहोवा, मैंने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण करके शान्ति पाई है।
تَوَلّانِي الْغَيْظُ مِنَ الأَشْرَارِ الَّذِينَ نَبَذُوا شَرِيعَتَكَ. | ٥٣ 53 |
५३जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं, उनके कारण मैं क्रोध से जलता हूँ।
صَارَتْ فَرَائِضُكَ تَرْنِيمَاتٍ لِي فِي أَرْضِ غُرْبَتِي. | ٥٤ 54 |
५४जहाँ मैं परदेशी होकर रहता हूँ, वहाँ तेरी विधियाँ, मेरे गीत गाने का विषय बनी हैं।
ذَكَرْتُ فِي اللَّيْلِ اسْمَكَ يَا رَبُّ، وَحَفِظْتُ شَرِيعَتَكَ. | ٥٥ 55 |
५५हे यहोवा, मैंने रात को तेरा नाम स्मरण किया, और तेरी व्यवस्था पर चला हूँ।
هَذَا مَا حَظِيتُ بِهِ لأَنِّي رَاعَيْتُ وَصَايَاكَ. | ٥٦ 56 |
५६यह मुझसे इस कारण हुआ, कि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए था। हेथ
أَنْتَ يَا رَبُّ نَصِيبِي، فَأَعِدُكَ بِطَاعَةِ شَرِيعَتِكَ. | ٥٧ 57 |
५७यहोवा मेरा भाग है; मैंने तेरे वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया है।
طَلَبْتُ وَجْهَكَ مِنْ كُلِّ قَلْبِي: ارْحَمْنِي حَسَبَ وَعْدِكَ. | ٥٨ 58 |
५८मैंने पूरे मन से तुझे मनाया है; इसलिए अपने वादे के अनुसार मुझ पर दया कर।
تَأَمَّلْتُ فِي انْحِرَافِي فَعُدْتُ وَتَحَوَّلْتُ نَحْوَ شَهَادَاتِكَ. | ٥٩ 59 |
५९मैंने अपनी चाल चलन को सोचा, और तेरी चितौनियों का मार्ग लिया।
أَسْرَعْتُ مِنْ غَيْرِ تَوَانٍ إِلَى الْعَمَلِ بِوَصَايَاكَ. | ٦٠ 60 |
६०मैंने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है।
قَامَ الأَشْرَارُ بِالإِيقَاعِ بِي، وَلَكِنِّي لَمْ أَنْسَ شَرِيعَتَكَ. | ٦١ 61 |
६१मैं दुष्टों की रस्सियों से बन्ध गया हूँ, तो भी मैं तेरी व्यवस्था को नहीं भूला।
أَسْتَيْقِظُ فِي مُنْتَصَفِ اللَّيْلِ لأَحْمَدَكَ مِنْ أَجْلِ أَحْكَامِكَ الْعَادِلَةِ. | ٦٢ 62 |
६२तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं आधी रात को तेरा धन्यवाद करने को उठूँगा।
رَفِيقٌ أَنَا لِكُلِّ الَّذِينَ يَتَّقُونَكَ، وَلِحَافِظِي وَصَايَاكَ. | ٦٣ 63 |
६३जितने तेरा भय मानते और तेरे उपदेशों पर चलते हैं, उनका मैं संगी हूँ।
رَحْمَتُكَ يَا رَبُّ قَدْ عَمَّتِ الأَرْضَ فَعَلِّمْنِي فَرَائِضَكَ. | ٦٤ 64 |
६४हे यहोवा, तेरी करुणा पृथ्वी में भरी हुई है; तू मुझे अपनी विधियाँ सिखा! टेथ
صَنَعْتَ خَيْراً يَا رَبُّ مَعِي أَنَا عَبْدَكَ كَمَا وَعَدْتَ. | ٦٥ 65 |
६५हे यहोवा, तूने अपने वचन के अनुसार अपने दास के संग भलाई की है।
هَبْنِي رُوحَ تَمْيِيزٍ وَمَعْرِفَةً، لأَنِّي آمَنْتُ بِوَصَايَاكَ. | ٦٦ 66 |
६६मुझे भली विवेक-शक्ति और समझ दे, क्योंकि मैंने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है।
ضَلَلْتُ قَبْلَ أَنْ أَدَّبْتَنِي، أَمَّا الآنَ فَحَفِظْتُ كَلامَكَ. | ٦٧ 67 |
६७उससे पहले कि मैं दुःखित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूँ।
أَنْتَ صَالِحٌ وَمُحْسِنٌ فَعَلِّمْنِي فَرَائِضَكَ. | ٦٨ 68 |
६८तू भला है, और भला करता भी है; मुझे अपनी विधियाँ सिखा।
لَفَّقَ الْمُتَكَبِّرُونَ عَلَيَّ أَقْوَالاً كَاذِبَةً، أَمَّا أَنَا فَبِكُلِّ قَلْبِي أَحْفَظُ وَصَايَاكَ. | ٦٩ 69 |
६९अभिमानियों ने तो मेरे विरुद्ध झूठ बात गढ़ी है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों को पूरे मन से पकड़े रहूँगा।
غَلُظَ قَلْبُهُمْ وَتَقَسَّى، أَمَّا أَنَا فَأَتَمَتَّعُ بِشَرِيعَتِكَ. | ٧٠ 70 |
७०उनका मन मोटा हो गया है, परन्तु मैं तेरी व्यवस्था के कारण सुखी हूँ।
كَانَ مَا ذُقْتُ مِنْ هَوَانٍ لِخَيْرِي فَتَعَلَّمْتُ فَرَائِضَكَ. | ٧١ 71 |
७१मुझे जो दुःख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है, जिससे मैं तेरी विधियों को सीख सकूँ।
شَرِيعَةُ فَمِكَ خَيْرٌ لِي مِنْ كُلِّ ذَهَبِ الْعَالَمِ وَفِضَّتِهِ. | ٧٢ 72 |
७२तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये हजारों रुपयों और मुहरों से भी उत्तम है। योध
يَدَاكَ صَنَعَتَانِي وَكَوَّنَتَانِي، فَهَبْنِي فَهْماً لأَتَعَلَّمَ وَصَايَاكَ. | ٧٣ 73 |
७३तेरे हाथों से मैं बनाया और रचा गया हूँ; मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूँ।
فَيَرَانِي مُتَّقُوكَ وَيَفْرَحُونَ، لأَنِّي انْتَظَرْتُ كَلامَكَ. | ٧٤ 74 |
७४तेरे डरवैये मुझे देखकर आनन्दित होंगे, क्योंकि मैंने तेरे वचन पर आशा लगाई है।
قَدْ عَلِمْتُ يَا رَبُّ أَنَّ أَحْكَامَكَ عَادِلَةٌ، وَأَنَّكَ بِالْحَقِّ أَدَّبْتَنِي. | ٧٥ 75 |
७५हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तूने अपने सच्चाई के अनुसार मुझे दुःख दिया है।
فَلْتَكُنْ رَحْمَتُكَ تَعْزِيَةً لِي، بِمُقْتَضَى وَعْدِكَ لِعَبْدِكَ. | ٧٦ 76 |
७६मुझे अपनी करुणा से शान्ति दे, क्योंकि तूने अपने दास को ऐसा ही वादा दिया है।
لِتَأْتِنِي مَرَاحِمُكَ فَأَحْيَا، لأَنَّ شَرِيعَتَكَ هِيَ مُتْعَتِي. | ٧٧ 77 |
७७तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूँगा; क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूँ।
لِيَخْزَ الْمُتَكَبِّرُونَ لأَنَّهُمُ افْتَرَوْا عَلَيَّ زُوراً، أَمَّا أَنَا فَأَتَأَمَّلُ فِي وَصَايَاكَ. | ٧٨ 78 |
७८अहंकारी लज्जित किए जाए, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है; परन्तु मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा।
لِيَنْضَمَّ إِلَيَّ مُتَّقُوكَ وَعَارِفُو شَهَادَاتِكَ. | ٧٩ 79 |
७९जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें, तब वे तेरी चितौनियों को समझ लेंगे।
لِيَكُنْ قَلْبِي مُتَعَلِّقاً بِكَامِلِ فَرَائِضِكَ، فَلَا أَخْزَى. | ٨٠ 80 |
८०मेरा मन तेरी विधियों के मानने में सिद्ध हो, ऐसा न हो कि मुझे लज्जित होना पड़े। क़ाफ
تَتَلَهَّفُ نَفْسِي إِلَى خَلاصِكَ. رَجَائِي هُوَ كَلِمَتُكَ. | ٨١ 81 |
८१मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिये बैचेन है; परन्तु मुझे तेरे वचन पर आशा रहती है।
كَلَّتْ عَيْنَايَ فِي انْتِظَارِ كَلامِكَ، وَأَنَا أَقُولُ: مَتَى تُعَزِّينِي؟ | ٨٢ 82 |
८२मेरी आँखें तेरे वादे के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुंधली पड़ गईं है; और मैं कहता हूँ कि तू मुझे कब शान्ति देगा?
أَصْبَحْتُ كَقِرْبَةِ خَمْرٍ أَتْلَفَتْهَا الْحَرَارَةُ وَالدُّخَانُ، وَلَكِنِّي لَمْ أَنْسَ فَرَائِضَكَ. | ٨٣ 83 |
८३क्योंकि मैं धुएँ में की कुप्पी के समान हो गया हूँ, तो भी तेरी विधियों को नहीं भूला।
كَمْ هِي أَيَّامُ عُمْرِ عَبْدِكَ؟ مَتَى تُنْزِلُ الْقَضَاءَ بِالَّذِينَ يَضْطَهِدُونَنِي؟ | ٨٤ 84 |
८४तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं? तू मेरे पीछे पड़े हुओं को दण्ड कब देगा?
الْمُتَكَبِّرُونَ الَّذِينَ يَعْصَوْنَ شَرِيعَتَكَ حَفَرُوا لِي حُفَراً. | ٨٥ 85 |
८५अहंकारी जो तेरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते, उन्होंने मेरे लिये गड्ढे खोदे हैं।
وَصَايَاكَ كُلُّهَا صَادِقَةٌ. زُوراً يَضْطَهِدُونَنِي فَأَغِثْنِي. | ٨٦ 86 |
८६तेरी सब आज्ञाएँ विश्वासयोग्य हैं; वे लोग झूठ बोलते हुए मेरे पीछे पड़े हैं; तू मेरी सहायता कर!
لَوْلَا قَلِيلٌ لأَفْنَوْنِي مِنَ الأَرْضِ، لَكِنِّي لَمْ أَتْرُكْ شَرِيعَتَكْ. | ٨٧ 87 |
८७वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे, परन्तु मैंने तेरे उपदेशों को नहीं छोड़ा।
أَحْيِنِي بِمُقْتَضَى رَحْمَتِكَ، فَأُطِيعَ شَرَائِعَكَ. | ٨٨ 88 |
८८अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला, तब मैं तेरी दी हुई चितौनी को मानूँगा। लामेध
يَا رَبُّ كَلِمَتُكَ تَدُومُ ثَابِتَةً فِي السَّمَاوَاتِ إِلَى الأَبَدِ. | ٨٩ 89 |
८९हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है।
مِنْ جِيلٍ إِلَى جِيلٍ أَمَانَتُكَ. أَنْتَ أَسَّسْتَ الأَرْضَ فَلَنْ تَتَزَعْزَعَ. | ٩٠ 90 |
९०तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है; तूने पृथ्वी को स्थिर किया, इसलिए वह बनी है।
بِمُوْجِبِ أَحْكَامِكَ تَثْبُتُ الْيَوْمَ، لأَنَّ الْكُلَّ خُدَّامٌ لَكَ. | ٩١ 91 |
९१वे आज के दिन तक तेरे नियमों के अनुसार ठहरे हैं; क्योंकि सारी सृष्टि तेरे अधीन है।
لَوْ لَمْ تَكُنْ شَرِيعَتُكَ مُتْعَتِي، لَهَلَكْتُ فِي مَذَلَّتِي، | ٩٢ 92 |
९२यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता, तो मैं दुःख के समय नाश हो जाता।
لَنْ أَنْسَى وَصَايَاكَ أَبَداً، لأَنَّكَ بِها وَهَبْتَنِي الْحَيَاةَ. | ٩٣ 93 |
९३मैं तेरे उपदेशों को कभी न भूलूँगा; क्योंकि उन्हीं के द्वारा तूने मुझे जिलाया है।
أَنَا لَكَ، فَخَلِّصْنِي، لأَنِّي الْتَمَسْتُ وَصَايَاكَ. | ٩٤ 94 |
९४मैं तेरा ही हूँ, तू मेरा उद्धार कर; क्योंकि मैं तेरे उपदेशों की सुधि रखता हूँ।
تَرَبَّصَ بِيَ الأَشْرَارُ لِيُهْلِكُونِي، لَكِنِّي أَتَأَمَّلُ فِي شَهَادَاتِكَ. | ٩٥ 95 |
९५दुष्ट मेरा नाश करने के लिये मेरी घात में लगे हैं; परन्तु मैं तेरी चितौनियों पर ध्यान करता हूँ।
رَأَيْتُ لِكُلِّ كَمَالٍ حَدّاً، أَمَّا وَصِيَّتُكَ فَلَا حَدَّ لَهَا. | ٩٦ 96 |
९६मैंने देखा है कि प्रत्येक पूर्णता की सीमा होती है, परन्तु तेरी आज्ञा का विस्तार बड़ा और सीमा से परे है। मीम
كَمْ أَحْبَبْتُ شَرِيعَتَكَ، إِنَّهَا مَوْضُوعُ تَأَمُّلِي طُولَ النَّهَارِ. | ٩٧ 97 |
९७आहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।
وَصِيَّتُكَ جَعَلَتْنِي أَحْكَمَ مِنْ أَعْدَائِي، لأَنَّهَا نَصِيبِي إِلَى الأَبَدِ. | ٩٨ 98 |
९८तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं।
صِرْتُ أَكْثَرَ فَهْماً مِنْ مُعَلِّمِيَّ، لأَنَّ شَهَادَاتِكَ هِيَ مَوْضُوعُ تَأَمُّلِي. | ٩٩ 99 |
९९मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूँ, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है।
صِرْتُ أَكْثَرَ فِطْنَةً مِنَ الشُّيُوخِ، لأَنِّي رَاعَيْتُ وَصَايَاكَ. | ١٠٠ 100 |
१००मैं पुरनियों से भी समझदार हूँ, क्योंकि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए हूँ।
مَنَعْتُ قَدَمَيَّ عَنْ سُلُوكِ كُلِّ طَرِيقِ شَرٍّ، لِكَيْ أَحْفَظَ كَلامَكَ. | ١٠١ 101 |
१०१मैंने अपने पाँवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिससे मैं तेरे वचन के अनुसार चलूँ।
لَمْ أَبْتَعِدْ عَنْ أَحْكَامِكَ لأَنَّكَ هَكَذَا عَلَّمْتَنِي. | ١٠٢ 102 |
१०२मैं तेरे नियमों से नहीं हटा, क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है।
مَا أَحْلَى أَقْوَالَكَ لِمَذَاقِي. إِنَّهَا أَحْلَى مِنَ الْعَسَلِ فِي فَمِي. | ١٠٣ 103 |
१०३तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुँह में मधु से भी मीठे हैं!
مِنْ وَصَايَاكَ اكْتَسَبْتُ فِطْنَةً لِذَلِكَ أَبْغَضْتُ كُلَّ طَرِيقٍ بَاطِلٍ. | ١٠٤ 104 |
१०४तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूँ, इसलिए मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ। नून
سِرَاجٌ لِرِجْلِي كَلامُكَ وَنُورٌ لِسَبِيلِي. | ١٠٥ 105 |
१०५तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।
أَقْسَمْتُ يَمِيناً مُوَثَّقَةً أَنْ أَحْفَظَ أَحْكَامَكَ الْعَادِلَةَ. | ١٠٦ 106 |
१०६मैंने शपथ खाई, और ठान लिया है कि मैं तेरे धर्ममय नियमों के अनुसार चलूँगा।
قَاسَيْتُ جِدّاً فَأَنْعِشْنِي يَا رَبُّ بِمُقْتَضَى وَعْدِكَ. | ١٠٧ 107 |
१०७मैं अत्यन्त दुःख में पड़ा हूँ; हे यहोवा, अपने वादे के अनुसार मुझे जिला।
تَقَبَّلْ يَا رَبُّ صَلَوَاتِ شُكْرِي، وَعَلِّمْنِي أَحْكَامَكَ. | ١٠٨ 108 |
१०८हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर, और अपने नियमों को मुझे सिखा।
نَفْسِي دَائِماً فِي كَفِّي، لَكِنِّي لَا أَنْسَى شَرِيعَتَكَ. | ١٠٩ 109 |
१०९मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है, तो भी मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया।
نَصَبَ الأَشْرَارُ لِي فَخّاً فَتَفَادَيْتُهُ لأَنِّي لَمْ أَضِلَّ عَنْ وَصَايَاكَ. | ١١٠ 110 |
११०दुष्टों ने मेरे लिये फंदा लगाया है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों के मार्ग से नहीं भटका।
اتَّخَذْتُ شَهَادَاتِكَ مِيرَاثاً إِلَى الأَبَدِ، لأَنَّهَا بَهْجَةُ قَلْبِي. | ١١١ 111 |
१११मैंने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भागकर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण है।
لَقَدْ عَزَمْتُ أَنْ أُتَمِّمَ فَرَائِضَكَ إِلَى أَنْ أَمُوتَ. | ١١٢ 112 |
११२मैंने अपने मन को इस बात पर लगाया है, कि अन्त तक तेरी विधियों पर सदा चलता रहूँ। सामेख
أَبْغَضْتُ ذَوِي الرَّأْيِ الْمُتَقَلِّبِ، أَمَّا شَرِيعَتُكَ فَأَحْبَبْتُ. | ١١٣ 113 |
११३मैं दुचित्तों से तो बैर रखता हूँ, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूँ।
أَنْتَ مَلْجَإِي وَتُرْسِي، وَأَمَلِي فِي كَلِمَتِكَ. | ١١٤ 114 |
११४तू मेरी आड़ और ढाल है; मेरी आशा तेरे वचन पर है।
ابْتَعِدُوا عَنِّي يَا فَاعِلِي الشَّرِّ، فَأَحْفَظَ وَصَايَا إِلَهِي. | ١١٥ 115 |
११५हे कुकर्मियों, मुझसे दूर हो जाओ, कि मैं अपने परमेश्वर की आज्ञाओं को पकड़े रहूँ!
كُنْ سَنَدِي كَمَا وَعَدْتَ، فَأَحْيَا وَلَا يَخِيبَ رَجَائِي. | ١١٦ 116 |
११६हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूँ, और मेरी आशा को न तोड़!
اعْضُدْنِي فَأَخْلُصَ، وَأُرَاعِيَ فَرَائِضَكَ دَائِماً. | ١١٧ 117 |
११७मुझे थामे रख, तब मैं बचा रहूँगा, और निरन्तर तेरी विधियों की ओर चित्त लगाए रहूँगा!
احْتَقَرْتَ الضَّالِّينَ عَنْ فَرَائِضِكَ، وَمَكْرُهُمْ لَا يُجْدِيهِمْ نَفْعاً. | ١١٨ 118 |
११८जितने तेरी विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं, उन सब को तू तुच्छ जानता है, क्योंकि उनकी चतुराई झूठ है।
رَذَلْتَ جَمِيعَ أَشْرَارِ الأَرْضِ كَأَنَّهُمْ نُفَايَةٌ، لِذَلِكَ أَحْبَبْتُ شَهَادَاتِكَ. | ١١٩ 119 |
११९तूने पृथ्वी के सब दुष्टों को धातु के मैल के समान दूर किया है; इस कारण मैं तेरी चितौनियों से प्रीति रखता हूँ।
اقْشَعَرَّ بَدَنِي رُعْباً مِنْكَ وَجَزِعْتُ مِنْ أَحْكَامِكَ. | ١٢٠ 120 |
१२०तेरे भय से मेरा शरीर काँप उठता है, और मैं तेरे नियमों से डरता हूँ। ऐन
أَجْرَيْتُ قَضَاءً وَعَدْلاً، فَلَا تُسْلِمْنِي إِلَى ظَالِمِيَّ. | ١٢١ 121 |
१२१मैंने तो न्याय और धर्म का काम किया है; तू मुझे अत्याचार करनेवालों के हाथ में न छोड़।
كُنْ ضَامِناً لِخَيْرِ عَبْدِكَ، فَلَا يَجُورَ عَلَيَّ الْمُتَكَبِّرُونَ. | ١٢٢ 122 |
१२२अपने दास की भलाई के लिये जामिन हो, ताकि अहंकारी मुझ पर अत्याचार न करने पाएँ।
كَلَّتْ عَيْنَايَ اشْتِيَاقاً إِلَى خَلاصِكَ وَإِلَى تَحْقِيقِ وَعْدِكَ الأَمِينِ. | ١٢٣ 123 |
१२३मेरी आँखें तुझ से उद्धार पाने, और तेरे धर्ममय वचन के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुँधली पड़ गई हैं।
عَامِلْ عَبْدَكَ بِمُقْتَضَى رَحْمَتِكَ، وَعَلِّمْنِي فَرَائِضَكَ. | ١٢٤ 124 |
१२४अपने दास के संग अपनी करुणा के अनुसार बर्ताव कर, और अपनी विधियाँ मुझे सिखा।
عَبْدُكَ أَنَا، فَهَبْنِي فَهْماً لأَعْرِفَ شَهَادَاتِكَ. | ١٢٥ 125 |
१२५मैं तेरा दास हूँ, तू मुझे समझ दे कि मैं तेरी चितौनियों को समझूँ।
يَا رَبُّ آنَ لَكَ أَنْ تَعْمَلَ، فَقَدْ نَقَضُوا شَرِيعَتَكَ. | ١٢٦ 126 |
१२६वह समय आया है, कि यहोवा काम करे, क्योंकि लोगों ने तेरी व्यवस्था को तोड़ दिया है।
لِذَلِكَ أُحِبُّ وَصَايَاكَ أَكْثَرَ مِنَ الذَّهَبِ الْخَالِصِ، | ١٢٧ 127 |
१२७इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन् कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूँ।
وَلأَنِّي أَحْسِبُ كُلَّ فَرَائِضِكَ مُسْتَقِيمَةً فِي كُلِّ شَيْءٍ، أُبْغِضُ كُلَّ طَرِيقٍ بَاطِلٍ. | ١٢٨ 128 |
१२८इसी कारण मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूँ; और सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ। पे
مَا أَعْجَبَ شَهَادَاتِكَ. لِذَلِكَ تُرَاعِيهَا نَفْسِي. | ١٢٩ 129 |
१२९तेरी चितौनियाँ अद्भुत हैं, इस कारण मैं उन्हें अपने जी से पकड़े हुए हूँ।
فَتْحُ كَلامِكَ يُنِيرُ الذِّهْنَ، وَيَهِبُ الْبُسَطَاءَ فَهْماً. | ١٣٠ 130 |
१३०तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है; उससे निर्बुद्धि लोग समझ प्राप्त करते हैं।
فَغَرْتُ فَمِي لاهِثاً اشْتِيَاقاً إِلَى وَصَايَاكَ. | ١٣١ 131 |
१३१मैं मुँह खोलकर हाँफने लगा, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था।
الْتَفِتْ إِلَيَّ وَتَحَنَّنْ عَلَيَّ، كَمَا تَفْعَلُ دَائِماً مَعَ مُحِبِّيكَ. | ١٣٢ 132 |
१३२जैसी तेरी रीति अपने नाम के प्रीति रखनेवालों से है, वैसे ही मेरी ओर भी फिरकर मुझ पर दया कर।
ثَبِّتْ خُطْوَاتِي فِي كَلِمَتِكَ، وَلَا تَدَعْ أَيَّ إِثْمٍ يَتَسَلَّطُ عَلَيَّ. | ١٣٣ 133 |
१३३मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे।
حَرِّرْنِي مِنْ ظُلْمِ الإِنْسَانِ، فَأَحْفَظَ وَصَايَاكَ. | ١٣٤ 134 |
१३४मुझे मनुष्यों के अत्याचार से छुड़ा ले, तब मैं तेरे उपदेशों को मानूँगा।
أَضِئْ بِوَجْهِكَ عَلَى عَبْدِكَ، وَعَلِّمْنِي فَرَائِضَكَ. | ١٣٥ 135 |
१३५अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे, और अपनी विधियाँ मुझे सिखा।
فَاضَتْ مِنْ عَيْنَيَّ يَنَابِيعُ دَمْعٍ، لأَنَّهُمْ لَمْ يُرَاعُوا شَرِيعَتَكَ. | ١٣٦ 136 |
१३६मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहती रहती है, क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था को नहीं मानते। सांदे
عَادِلٌ أَنْتَ يَا رَبُّ، وَأَحْكَامُكَ مُسْتَقِيمَةٌ. | ١٣٧ 137 |
१३७हे यहोवा तू धर्मी है, और तेरे नियम सीधे हैं।
أَصْدَرْتَ أَوَامِرَكَ بِعَدْلٍ وَبِأَقْصَى الأَمَانَةِ. | ١٣٨ 138 |
१३८तूने अपनी चितौनियों को धर्म और पूरी सत्यता से कहा है।
أَتَمَيَّزُ غَيْرَةً فِي دَاخِلِي، لأَنَّ أَعْدَائِي تَغَاضَوْا عَنْ كَلامِكَ. | ١٣٩ 139 |
१३९मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूँ, क्योंकि मेरे सतानेवाले तेरे वचनों को भूल गए हैं।
أَقْوَالُكَ مُمَحَّصَةٌ نَقِيَّةٌ، وَعَبْدُكَ أَحَبَّهَا. | ١٤٠ 140 |
१४०तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है, इसलिए तेरा दास उसमें प्रीति रखता है।
صَغِيرُ الشَّأْنِ أَنَا وَحَقِيرٌ وَمَعَ ذَلِكَ لَمْ أَنْسَ وَصَايَاكَ. | ١٤١ 141 |
१४१मैं छोटा और तुच्छ हूँ, तो भी मैं तेरे उपदेशों को नहीं भूलता।
عَدْلُكَ عَدْلٌ أَبَدِيٌّ وَشَرِيعَتُكَ حَقٌّ. | ١٤٢ 142 |
१४२तेरा धर्म सदा का धर्म है, और तेरी व्यवस्था सत्य है।
اسْتَوْلَى عَلَيَّ الضِّيقُ وَالشِّدَّةُ، وَلَا لَذَّةَ لِي إِلّا بِوَصَايَاكَ. | ١٤٣ 143 |
१४३मैं संकट और सकेती में फँसा हूँ, परन्तु मैं तेरी आज्ञाओं से सुखी हूँ।
شَهَادَاتُكَ عَدْلٌ إِلَى الأَبَدِ. فَهِّمْنِي إِيَّاهَا فَأَحْيَا. | ١٤٤ 144 |
१४४तेरी चितौनियाँ सदा धर्ममय हैं; तू मुझ को समझ दे कि मैं जीवित रहूँ। क़ाफ़
صَرَخْتُ إِلَيْكَ مِنْ كُلِّ قَلْبِي، فَاسْتَجِبْ لِي يَا رَبُّ، وَسَأُرَاعِي شَرَائِعَكَ. | ١٤٥ 145 |
१४५मैंने सारे मन से प्रार्थना की है, हे यहोवा मेरी सुन! मैं तेरी विधियों को पकड़े रहूँगा।
إِيَّاكَ دَعَوْتُ فَخَلِّصْنِي لأُطِيعَ شَهَادَاتِكَ. | ١٤٦ 146 |
१४६मैंने तुझ से प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर, और मैं तेरी चितौनियों को माना करूँगा।
اسْتَيْقَظْتُ قَبْلَ الْفَجْرِ وَاسْتَغَثْتُ؛ رَجَائِي فِي كَلامِكَ. | ١٤٧ 147 |
१४७मैंने पौ फटने से पहले दुहाई दी; मेरी आशा तेरे वचनों पर थी।
اللَّيْلَ كُلَّهُ أَظَلُّ مُسْتَيْقِظاً، أَتَأَمَّلُ فِي أَقْوَالِكَ | ١٤٨ 148 |
१४८मेरी आँखें रात के एक-एक पहर से पहले खुल गईं, कि मैं तेरे वचन पर ध्यान करूँ।
اسْتَمِعْ لِي يَا رَبُّ بِمُقْتَضَى رَحْمَتِكَ، وَأَحْيِنِي بِمُوْجِبِ أَحْكَامِكَ. | ١٤٩ 149 |
१४९अपनी करुणा के अनुसार मेरी सुन ले; हे यहोवा, अपनी नियमों के रीति अनुसार मुझे जीवित कर।
اقْتَرَبَ مِنِّي السَّاعُونَ وَرَاءَ الرَّذِيلَةِ، الْبَعِيدُونَ عَنْ شَرِيعَتِكَ. | ١٥٠ 150 |
१५०जो दुष्टता की धुन में हैं, वे निकट आ गए हैं; वे तेरी व्यवस्था से दूर हैं।
إِنَّمَا أَنْتَ يَا رَبُّ أَقْرَبُ إِلَيَّ، وَوَصَايَاكَ كُلُّهَا حَقٌّ. | ١٥١ 151 |
१५१हे यहोवा, तू निकट है, और तेरी सब आज्ञाएँ सत्य हैं।
مُنْذُ الْقَدِيمِ عَرَفْتُ مِنْ شَهَادَاتِكَ أَنَّكَ وَضَعْتَهَا لِتَثْبُتَ إِلَى الأَبَدِ. | ١٥٢ 152 |
१५२बहुत काल से मैं तेरी चितौनियों को जानता हूँ, कि तूने उनकी नींव सदा के लिये डाली है। रेश
انْظُرْ إِلَى مَذَلَّتِي وَأَنْقِذْنِي، لأَنِّي لَمْ أَنْسَ شَرِيعَتَكَ. | ١٥٣ 153 |
१५३मेरे दुःख को देखकर मुझे छुड़ा ले, क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया।
تَوَلَّ قَضِيَّتِي وَافْدِنِي، أَحْيِنِي حَسَبَ كَلِمَتِكَ. | ١٥٤ 154 |
१५४मेरा मुकद्दमा लड़, और मुझे छुड़ा ले; अपने वादे के अनुसार मुझ को जिला।
الْخَلاصُ بَعِيدٌ عَنِ الأَشْرَارِ، لأَنَّهُمْ لَا يَطْلُبُونَ فَرَائِضَكَ. | ١٥٥ 155 |
१५५दुष्टों को उद्धार मिलना कठिन है, क्योंकि वे तेरी विधियों की सुधि नहीं रखते।
مَا أَكْثَرَ مَرَاحِمَكَ يَا رَبُّ. أَحْيِنِي بِمُقْتَضَى أَحْكَامِكَ. | ١٥٦ 156 |
१५६हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है; इसलिए अपने नियमों के अनुसार मुझे जिला।
كَثِيرُونَ هُمْ أَعْدَائِي وَمُضْطَهِدِيَّ، وَلَكِنِّي لَمْ أَحِدْ عَنْ شَهَادَاتِكَ. | ١٥٧ 157 |
१५७मेरा पीछा करनेवाले और मेरे सतानेवाले बहुत हैं, परन्तु मैं तेरी चितौनियों से नहीं हटता।
نَظَرْتُ إِلَى الْغَادِرِينَ شَزْراً، لأَنَّهُمْ لَمْ يُطِيعُوا كَلِمَتَكَ. | ١٥٨ 158 |
१५८मैं विश्वासघातियों को देखकर घृणा करता हूँ; क्योंकि वे तेरे वचन को नहीं मानते।
انْظُرْ كَيْفَ أَحْبَبْتُ وَصَايَاكَ فَأَحْيِنِي يَا رَبُّ بِمُقْتَضَى رَحْمَتِكَ. | ١٥٩ 159 |
१५९देख, मैं तेरे उपदेशों से कैसी प्रीति रखता हूँ! हे यहोवा, अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला।
كَلامُكَ بِأَسْرِهِ حَقٌّ، وَكُلُّ أَحْكَامِكَ إِلَى الأَبَدِ عَادِلَةٌ. | ١٦٠ 160 |
१६०तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक-एक धर्ममय नियम सदाकाल तक अटल है। शीन
اضْطَهَدَنِي رُؤَسَاءُ مِنْ غَيْرِ عِلَّةٍ، لَكِنَّ قَلْبِي لَا يَهَابُ سِوَى كَلامِكَ. | ١٦١ 161 |
१६१हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पड़े हैं, परन्तु मेरा हृदय तेरे वचनों का भय मानता है।
أَبْتَهِجُ بِكَلامِكَ كَبَهْجَةِ مَنْ عَثَرَ عَلَى غَنِيمَةٍ جَزِيلَةٍ. | ١٦٢ 162 |
१६२जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूँ।
أَبْغَضْتُ الْكَذِبَ وَمَقَتُّهُ، أَمَّا شَرِيعَتُكَ فَأَحْبَبْتُهَا. | ١٦٣ 163 |
१६३झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूँ, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूँ।
سَبْعَ مَرَّاتٍ سَبَّحْتُكَ فِي النَّهَارِ عَلَى أَحْكَامِكَ الْعَادِلَةِ. | ١٦٤ 164 |
१६४तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन सात बार तेरी स्तुति करता हूँ।
سَلامٌ جَزِيلٌ لِمُحِبِّي شَرِيعَتِكَ، وَلَنْ يُعْثِرَهُمْ بِفَضْلِهَا شَيْءٌ | ١٦٥ 165 |
१६५तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती।
رَجَوْتُ خَلاصَكَ يَا رَبُّ وَوَصَايَاكَ عَمِلْتُ. | ١٦٦ 166 |
१६६हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की आशा रखता हूँ; और तेरी आज्ञाओं पर चलता आया हूँ।
حَفِظَتْ نَفْسِي شَهَادَاتِكَ وَأَنَا أُحِبُّهَا جِدّاً. | ١٦٧ 167 |
१६७मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूँ, और उनसे बहुत प्रीति रखता आया हूँ।
رَاعَيْتُ وَصَايَاكَ وَشَهَادَاتِكَ، وَجَمِيعُ أَعْمَالِي مَاثِلَةٌ أَمَامَكَ. | ١٦٨ 168 |
१६८मैं तेरे उपदेशों और चितौनियों को मानता आया हूँ, क्योंकि मेरी सारी चाल चलन तेरे सम्मुख प्रगट है। ताव
لِيَصِلْ صُرَاخِي إِلَيْكَ يَا رَبُّ. هَبْنِي فَهْماً حَسَبَ كَلامِكَ. | ١٦٩ 169 |
१६९हे यहोवा, मेरी दुहाई तुझ तक पहुँचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे समझ दे!
لِتَمْثُلْ طِلْبَتِي أَمَامَكَ. أَنْقِذْنِي بِمُوجِبِ وَعْدِكَ. | ١٧٠ 170 |
१७०मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुँचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे छुड़ा ले।
تَفِيضُ شَفَتَايَ تَسْبِيحاً إذْ تُعَلِّمُنِي فَرَائِضَكَ. | ١٧١ 171 |
१७१मेरे मुँह से स्तुति निकला करे, क्योंकि तू मुझे अपनी विधियाँ सिखाता है।
يَشْدُو لِسَانِي بِأَقْوَالِكَ، لأَنَّ جَمِيعَ وَصَايَاكَ عَدْلٌ. | ١٧٢ 172 |
१७२मैं तेरे वचन का गीत गाऊँगा, क्योंकि तेरी सब आज्ञाएँ धर्ममय हैं।
لِتُغِثْنِي يَدُكَ لأَنِّي اخْتَرْتُ وَصَايَاكَ. | ١٧٣ 173 |
१७३तेरा हाथ मेरी सहायता करने को तैयार रहता है, क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों को अपनाया है।
اشْتَقْتُ إِلَى خَلاصِكَ يَا رَبُّ؛ شَرِيعَتُكَ هِيَ مَسَرَّتِي. | ١٧٤ 174 |
१७४हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूँ, मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूँ।
لِتَحْيَ نَفْسِي فَتُسَبِّحَكَ وَلْتَكُنْ أَحْكَامُكَ لِي عَوْناً. | ١٧٥ 175 |
१७५मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूँगा, तेरे नियमों से मेरी सहायता हो।
تِهْتُ كَخَرُوفٍ ضَالٍّ. فَابْحَثْ عَنْ عَبْدِكَ، فَإِنِّي لَمْ أَنْسَ وَصَايَاكَ. | ١٧٦ 176 |
१७६मैं खोई हुई भेड़ के समान भटका हूँ; तू अपने दास को ढूँढ़ ले, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को भूल नहीं गया।