< المَزامِير 11 >
لِقَائِدِ الْمُنْشِدِينَ. مَزْمُورٌ لِدَاوُدَ إِلَى الرَّبِّ الْتَجَأْتُ، فَكَيْفَ تَقُولُونَ لِنَفْسِي: «اهْرُبُوا إِلَى جِبَالِكُمْ كَعُصْفُورٍ؟» | ١ 1 |
संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना मैंने याहवेह में आश्रय लिया है, फिर तुम मुझसे यह क्यों कह रहे हो: “पंछी के समान अपने पर्वत को उड़ जा.
هُوَذَا الأَشْرَارُ يَشُدُّونَ أَقْوَاسَهُمْ، فَوَّقُوا سِهَاماً فِي أَوْتَارِهَا، لِيُطْلِقُوهَا فِي الظَّلامِ عَلَى ذَوِي الْقُلُوبِ الْمُسْتَقِيمَةِ. | ٢ 2 |
सावधान! दुष्ट ने अपना धनुष साध लिया है; और उसने धनुष पर बाण भी चढ़ा लिया है, कि अंधकार में सीधे लोगों की हत्या कर दे.
إِذَا تَقَوَّضَتِ الأَسَاسَاتُ، فَمَاذَا يَعْمَلُ الصِّدِّيقُ؟ | ٣ 3 |
यदि आधार ही नष्ट हो जाए, तो धर्मी के पास कौन सा विकल्प शेष रह जाता है?”
مَازَالَ الرَّبُّ فِي هَيْكَلِهِ الْمُقَدَّسِ. الرَّبُّ فِي السَّمَاءِ عَرْشُهُ. تُبْصِرُ عَيْنَاهُ بَنِي آدَمَ، وَتَتَقَصَّاهُمْ أَجْفَانُهُ. | ٤ 4 |
याहवेह अपने पवित्र मंदिर में हैं; उनका सिंहासन स्वर्ग में बसा है. उनकी दृष्टि सर्वत्र मनुष्यों को देखती है; उनकी सूक्ष्मदृष्टि हर एक को परखती रहती है.
يَمْتَحِنُ الرَّبُّ الصِّدِّيقَ، وَلَكِنَّ نَفْسَهُ تَمْقُتُ الشِّرِّيرَ وَمُحِبَّ الظُّلْمِ. | ٥ 5 |
याहवेह की दृष्टि धर्मी एवं दुष्ट दोनों को परखती है, याहवेह के आत्मा हिंसा प्रिय पुरुषों से घृणा करते हैं.
يُمْطِرُ عَلَى الأَشْرَارِ جَمْراً وَكِبْرِيتاً وَتَكُونُ الرِّيحُ الْمُحْرِقَةُ نَصِيبَهُمْ. | ٦ 6 |
दुष्टों पर वह फन्दों की वृष्टि करेंगे, उनके प्याले में उनका अंश होगा अग्नि; गंधक तथा प्रचंड हवा.
لأَنَّ الرَّبَّ عَادِلٌ، وَيُحِبُّ الإِنْصَافَ، وَيُبْصِرُ الْمُسْتَقِيمُونَ وَجْهَهُ. | ٧ 7 |
याहवेह युक्त हैं, धर्मी ही उन्हें प्रिय हैं; धर्मी जन उनका मुंह देखने पाएंगे.