< المَزامِير 107 >

ارْفَعُوا الشُّكْرَ لِلرَّبِّ لأَنَّهُ صَالِحٌ، وَرَحْمَتَهُ إِلَى الأَبَدِ تَدُومُ. ١ 1
यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करुणा सदा की है!
لِيَقُلْ هَذَا مَفْدِيُّو الرَّبِّ، الَّذِينَ افْتَدَاهُمْ مِنْ يَدِ ظَالِمِهِمْ. ٢ 2
यहोवा के छुड़ाए हुए ऐसा ही कहें, जिन्हें उसने शत्रु के हाथ से दाम देकर छुड़ा लिया है,
لَمَّ شَتَاتَهُمْ مِنَ الْبُلْدَانِ: مِنَ الشَّرْقِ وَالْغَرْبِ، مِنَ الشِّمَالِ وَالْجَنُوبِ. ٣ 3
और उन्हें देश-देश से, पूरब-पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से इकट्ठा किया है।
تَاهُوا فِي الْبَرِّيَّةِ، فِي صَحْرَاءَ بِلَا طَرِيقٍ، وَلَمْ يَجِدُوا مَدِينَةً يَسْكُنُونَ فِيهَا. ٤ 4
वे जंगल में मरूभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, और कोई बसा हुआ नगर न पाया;
جَاعُوا وَعَطِشُوا حَتَّى خَارَتْ نُفُوسُهُمْ فِي دَاخِلِهِمْ. ٥ 5
भूख और प्यास के मारे, वे विकल हो गए।
فَاسْتَغَاثُوا بِالرَّبِّ فِي ضِيقِهِمْ، فَأَنْقَذَهُمْ مِنْ مَصَائِبِهِمْ. ٦ 6
तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, और उसने उनको सकेती से छुड़ाया;
وَهَدَاهُمْ طَرِيقاً مُسْتَقِيماً لِيَتَوَجَّهُوا إِلَى مَدِينَةٍ لِلسَّكَنِ. ٧ 7
और उनको ठीक मार्ग पर चलाया, ताकि वे बसने के लिये किसी नगर को जा पहुँचे।
فَلْيَرْفَعُوا الشُّكْرَ لِلرَّبِّ عَلَى رَحْمَتِهِ وَعَلَى عَجَائِبِهِ لِبَنِي آدَمَ. ٨ 8
लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण, जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!
لأَنَّهُ أَشْبَعَ النَّفْسَ الْمُتَلَهِّفَةَ وَمَلأَ النَّفْسَ الْجَائِعَةَ خَيْراً. ٩ 9
क्योंकि वह अभिलाषी जीव को सन्तुष्ट करता है, और भूखे को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है।
كَانُوا جَالِسِينَ كَالأَسْرَى فِي الظَّلامِ وَظِلالِ الْمَوْتِ، مُوْثَقِينَ بِالذُّلِّ وَالْحَدِيدِ، ١٠ 10
१०जो अंधियारे और मृत्यु की छाया में बैठे, और दुःख में पड़े और बेड़ियों से जकड़े हुए थे,
لأَنَّهُمْ تَمَرَّدُوا عَلَى كَلامِ اللهِ، وَاسْتَهَانُوا بِمَشُورَةِ الْعَلِيِّ. ١١ 11
११इसलिए कि वे परमेश्वर के वचनों के विरुद्ध चले, और परमप्रधान की सम्मति को तुच्छ जाना।
فَأَذَلَّ قُلُوبَهُمْ بِالْجَهْدِ الْمُضْنِي. تَعَثَّرُوا وَلَمْ يَكُنْ مِنْ مُعِينٍ. ١٢ 12
१२तब उसने उनको कष्ट के द्वारा दबाया; वे ठोकर खाकर गिर पड़े, और उनको कोई सहायक न मिला।
ثُمَّ اسْتَغَاثُوا بِالرَّبِّ فِي ضِيقِهِمْ فَأَنْقَذَهُمْ مِنْ مَصَائِبِهِمْ. ١٣ 13
१३तब उन्होंने संकट में यहोवा की दुहाई दी, और उसने सकेती से उनका उद्धार किया;
أَخْرَجَهُمْ مِنَ الظَّلامِ وَظِلالِ الْمَوْتِ وَحَطَّمَ قُيُودَهُمْ. ١٤ 14
१४उसने उनको अंधियारे और मृत्यु की छाया में से निकाल लिया; और उनके बन्धनों को तोड़ डाला।
فَلْيَرْفَعُوا الشُّكْرَ لِلرَّبِّ عَلَى رَحْمَتِهِ، وَعَلَى عَجَائِبِهِ لِبَنِي آدَمَ. ١٥ 15
१५लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!
لأَنَّهُ كَسَّرَ أَبْوَابَ النُّحَاسِ، وَقَطَّعَ عَوَارِضَ الْحَدِيدِ. ١٦ 16
१६क्योंकि उसने पीतल के फाटकों को तोड़ा, और लोहे के बेंड़ों को टुकड़े-टुकड़े किया।
سَفِهُوا فِي جَهْلِهِمْ وَسَقِمُوا مِنْ جَرَّاءِ آثَامِهِمْ. ١٧ 17
१७मूर्ख अपनी कुचाल, और अधर्म के कामों के कारण अति दुःखित होते हैं।
عَافَتْ أَنْفُسُهُمْ كُلَّ طَعَامٍ، فَصَارُوا عَلَى شَفَا الْمَوْتِ. ١٨ 18
१८उनका जी सब भाँति के भोजन से मिचलाता है, और वे मृत्यु के फाटक तक पहुँचते हैं।
ثُمَّ اسْتَغَاثُوا بِالرَّبِّ فِي ضِيقِهِمْ، فَأَنْقَذَهُمْ مِنْ مَصَائِبِهِمْ. ١٩ 19
१९तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, और वह सकेती से उनका उद्धार करता है;
أَصْدَرَ أَمْرَهُ فَشَفَاهُمْ، وَخَلَّصَهُمْ مِنْ مَهَالِكِهِمْ. ٢٠ 20
२०वह अपने वचन के द्वारा उनको चंगा करता और जिस गड्ढे में वे पड़े हैं, उससे निकालता है।
فَلْيَرْفَعُوا الشُّكْرَ لِلرَّبِّ عَلَى رَحْمَتِهِ، وَعَلَى عَجَائِبِهِ لِبَنِي آدَمَ. ٢١ 21
२१लोग यहोवा की करुणा के कारण और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!
وَلْيُقَرِّبُوا لَهُ ذَبَائِحَ الشُّكْرِ، وَيُحَدِّثُوا بِأَعْمَالِهِ بِتَرَانِيمِ الْفَرَحِ. ٢٢ 22
२२और वे धन्यवाद-बलि चढ़ाएँ, और जयजयकार करते हुए, उसके कामों का वर्णन करें।
رَكِبَ بَعْضُهُمُ الْبِحَارَ فِي السُّفُنِ التِّجَارِيَّةِ، لِيَكْسَبُوا رِزْقَهُمْ، ٢٣ 23
२३जो लोग जहाजों में समुद्र पर चलते हैं, और महासागर पर होकर व्यापार करते हैं;
وَرَأَوْا أَعْمَالَ الرَّبِّ وَعَجَائِبَهُ فِي عُمْقِ الْمِيَاهِ. ٢٤ 24
२४वे यहोवा के कामों को, और उन आश्चर्यकर्मों को जो वह गहरे समुद्र में करता है, देखते हैं।
فَإِنَّهُ بِأَمْرِهِ أَثَارَ رِيحاً عَاصِفَةً فَأَهَاجَتْ أَمْوَاجَ الْبَحْرِ ٢٥ 25
२५क्योंकि वह आज्ञा देता है, तब प्रचण्ड वायु उठकर तरंगों को उठाती है।
فَارْتَفَعَتِ السُّفُنُ إِلَى الأَعَالِي، ثُمَّ هَبَطَتْ إِلَى الأَعْمَاقِ، حَتَّى ذَابَتْ نُفُوسُهُمْ مِنَ الْفَزَعِ. ٢٦ 26
२६वे आकाश तक चढ़ जाते, फिर गहराई में उतर आते हैं; और क्लेश के मारे उनके जी में जी नहीं रहता;
تَمَايَلُوا وَتَرَنَّحُوا مِثْلَ السَّكْرَانِ، وَأَعْيَتْهُمُ الْحِيلَةُ. ٢٧ 27
२७वे चक्कर खाते, और मतवालों की भाँति लड़खड़ाते हैं, और उनकी सारी बुद्धि मारी जाती है।
ثُمَّ اسْتَغَاثُوا بِالرَّبِّ فِي ضِيقِهِمْ، فَأَنْقَذَهُمْ مِنْ مَصَائِبِهِمْ. ٢٨ 28
२८तब वे संकट में यहोवा की दुहाई देते हैं, और वह उनको सकेती से निकालता है।
هَدَّأَ الْعَاصِفَةَ الشَّدِيدَةَ، وَسَكَّنَ الأَمْوَاجَ. ٢٩ 29
२९वह आँधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं।
فَفَرِحُوا بِهُدُوئِهَا، ثُمَّ اقْتَادَهُمْ إِلَى الْمَرْفَأ الْمَنْشُودِ. ٣٠ 30
३०तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, और वह उनको मन चाहे बन्दरगाह में पहुँचा देता है।
فَلْيَرْفَعُوا الشُّكْرَ عَلَى رَحْمَتِهِ، وَعَلَى عَجَائِبِهِ لِبَنِي آدَمَ. ٣١ 31
३१लोग यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें।
وَلْيُعَظِّمُوهُ فِي مَحْفَلِ الشَّعْبِ، وَلْيُسَبِّحُوهُ فِي اجْتِمَاعِ الشُّيُوخِ. ٣٢ 32
३२और सभा में उसको सराहें, और पुरनियों के बैठक में उसकी स्तुति करें।
إِنَّهُ يُحَوِّلُ الأَنْهَارَ إِلَى قِفَارٍ، وَيَنَابِيعَ الْمَاءِ إِلَى أَرْضٍ عَطْشَى. ٣٣ 33
३३वह नदियों को जंगल बना डालता है, और जल के सोतों को सूखी भूमि कर देता है।
يَجْعَلُ الْحُقُولَ الْخَصِيبَةَ أَرْضاً مَلِحَةً جَرْدَاءَ مِنْ جَرَّاءِ شَرِّ سُكَّانِهَا. ٣٤ 34
३४वह फलवन्त भूमि को बंजर बनाता है, यह वहाँ के रहनेवालों की दुष्टता के कारण होता है।
يُحَوِّلُ الْبَرِّيَّةَ إِلَى وَاحَةٍ، وَالأَرْضَ الْقَاحِلَةَ يَنَابِيعَ مِيَاهٍ. ٣٥ 35
३५वह जंगल को जल का ताल, और निर्जल देश को जल के सोते कर देता है।
يُسْكِنُ هُنَاكَ الْجِيَاعَ فَيُنْشِئُونَ مَدِينَةً آهِلَةً. ٣٦ 36
३६और वहाँ वह भूखों को बसाता है, कि वे बसने के लिये नगर तैयार करें;
وَيَزْرَعُونَ حُقُولاً وَيَغْرِسُونَ كُرُوماً تُنْتِجُ لَهُمْ غِلَالاً وَفِيرَةً. ٣٧ 37
३७और खेती करें, और दाख की बारियाँ लगाएँ, और भाँति-भाँति के फल उपजा लें।
وَيُبَارِكُهُمْ أَيْضاً فَيَتَكَاثَرُونَ جِدّاً، وَلَا يَدَعُ مَوَاشِيَهُمْ تَتَنَاقَصُ. ٣٨ 38
३८और वह उनको ऐसी आशीष देता है कि वे बहुत बढ़ जाते हैं, और उनके पशुओं को भी वह घटने नहीं देता।
عِنْدَمَا يَقِلُّ الشَّعْبُ وَيَذِلُّ بِفِعْلِ الضِّيقِ وَالْبَلايَا وَالأَحْزَانِ، ٣٩ 39
३९फिर विपत्ति और शोक के कारण, वे घटते और दब जाते हैं।
يَصُبُّ اللهُ الْهَوَانَ عَلَى الرُّؤَسَاءِ، وَيُضِلُّهُمْ فِي أَرْضِ تِيهٍ لَيْسَ فِيهَا طَرِيقٌ. ٤٠ 40
४०और वह हाकिमों को अपमान से लादकर मार्ग रहित जंगल में भटकाता है;
لَكِنَّهُ يُنْقِذُ الْمُحْتَاجِينَ مِنَ الْبُؤْسِ، وَيُكَثِّرُ عَشَائِرَهُمْ مِثْلَ قُطْعَانِ الْغَنَمِ. ٤١ 41
४१वह दरिद्रों को दुःख से छुड़ाकर ऊँचे पर रखता है, और उनको भेड़ों के झुण्ड के समान परिवार देता है।
يَرَى الْمُسْتَقِيمُونَ هَذَا وَيَفْرَحُونَ، أَمَّا الأَثَمَةُ فَيَخْرَسُونَ. ٤٢ 42
४२सीधे लोग देखकर आनन्दित होते हैं; और सब कुटिल लोग अपने मुँह बन्द करते हैं।
فَلْيَتَأَمَّلْ كُلُّ حَكِيمٍ فِي هَذِهِ الأُمُورِ، وَيُمْعِنِ النَّظَرَ فِي مَرَاحِمِ الرَّبِّ. ٤٣ 43
४३जो कोई बुद्धिमान हो, वह इन बातों पर ध्यान करेगा; और यहोवा की करुणा के कामों पर ध्यान करेगा।

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