< الأمثال 8 >

أَلا تُنَادِي الْحِكْمَةُ؟ أَلا يَرْتَفِعُ صَوْتُ الْفِطْنَةِ هَاتِفاً؟ ١ 1
क्या बुद्धि नहीं पुकारती है? क्या समझ ऊँचे शब्द से नहीं बोलती है?
إِنَّهَا تَقِفُ عَلَى الْمُرْتَفَعَاتِ، فِي مُحَاذَاةِ الطَّرِيقِ، وَعِنْدَ مُلْتَقَى الشَّوَارِعِ. ٢ 2
बुद्धि तो मार्ग के ऊँचे स्थानों पर, और चौराहों में खड़ी होती है;
إِلَى جُوَارِ أَبْوَابِ الْمَدِينَةِ وَفِي مَدْخَلِ الثَّغْرِ، تَنْتَصِبُ مُجَاهِرَةً قَائِلَةً: ٣ 3
फाटकों के पास नगर के पैठाव में, और द्वारों ही में वह ऊँचे स्वर से कहती है,
إِيَّاكُمْ أَدْعُو أَيُّهَا النَّاسُ وَأَرْفَعُ صَوْتِي بِالنِّدَاءِ إِلَى كُلِّ بَنِي الْبَشَرِ. ٤ 4
“हे लोगों, मैं तुम को पुकारती हूँ, और मेरी बातें सब मनुष्यों के लिये हैं।
أَيُّهَا الْحَمْقَى، تَعَلَّمُوا الْفِطْنَةَ، وَأَيُّهَا الأَغْبِيَاءُ اكْتَسِبُوا فَهْماً. ٥ 5
हे भोलों, चतुराई सीखो; और हे मूर्खों, अपने मन में समझ लो
أَنْصِتُوا لأَنَّنِي سَأَنْطِقُ بِأَقْوَالٍ أَثِيرَةٍ، وَأَفْتَحُ شَفَتَيَّ بِكَلامٍ قَوِيمٍ. ٦ 6
सुनो, क्योंकि मैं उत्तम बातें कहूँगी, और जब मुँह खोलूँगी, तब उससे सीधी बातें निकलेंगी;
لأَنَّ فَمِي يَتَكَلَّمُ بِالصِّدْقِ، وَشَفَتَيَّ تَمْقُتَانِ الإِثْمَ. ٧ 7
क्योंकि मुझसे सच्चाई की बातों का वर्णन होगा; दुष्टता की बातों से मुझ को घृणा आती है।
كُلُّ أَقْوَالِ فَمِي عَادِلَةٌ خَالِيَةٌ مِنْ كُلِّ الْتِوَاءٍ وَاعْوِجَاجٍ. ٨ 8
मेरे मुँह की सब बातें धर्म की होती हैं, उनमें से कोई टेढ़ी या उलट-फेर की बात नहीं निकलती है।
قَوِيمَةٌ لَدَى الْفَهِيمِ، وَمُسْتَقِيمَةٌ لِلَّذِينَ أَدْرَكُوا الْمَعْرِفَةَ. ٩ 9
समझवाले के लिये वे सब सहज, और ज्ञान प्राप्त करनेवालों के लिये अति सीधी हैं।
اخْتَرْ إِرْشَادِي عِوَضَ الْفِضَّةِ، وَالْمَعْرِفَةَ بَدَلَ الذَّهَبِ الْخَالِصِ. ١٠ 10
१०चाँदी नहीं, मेरी शिक्षा ही को चुन लो, और उत्तम कुन्दन से बढ़कर ज्ञान को ग्रहण करो।
لأَنَّ الْحِكْمَةَ أَفْضَلُ مِنَ اللَّآلِئِ، وَكُلُّ مُشْتَهَيَاتِكَ لَا تُعَادِلُهَا. ١١ 11
११क्योंकि बुद्धि, बहुमूल्य रत्नों से भी अच्छी है, और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है।
أَنَا الْحِكْمَةُ أَسْكُنُ التَّعَقُّلَ، وَأَمْلِكُ الْمَعْرِفَةَ وَالتَّدْبِيرَ. ١٢ 12
१२मैं जो बुद्धि हूँ, और मैं चतुराई में वास करती हूँ, और ज्ञान और विवेक को प्राप्त करती हूँ।
مَخَافَةُ الرَّبِّ كَرَاهَةُ الشَّرِّ. أَنَا قَدْ أَبْغَضْتُ الْكِبْرِيَاءَ وَالْغَطْرَسَةَ وَطَرِيقَ السُّوءِ وَفَمَ الْمَكْرِ. ١٣ 13
१३यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है। घमण्ड और अहंकार, बुरी चाल से, और उलट-फेर की बात से मैं बैर रखती हूँ।
لِي الْمَشُورَةُ وَالرَّأْيُ الصَّائِبُ، لِي الْفِطْنَةُ وَالْقُوَّةُ. ١٤ 14
१४उत्तम युक्ति, और खरी बुद्धि मेरी ही है, मुझ में समझ है, और पराक्रम भी मेरा है।
بِمَعُونَتِي يَحْكُمُ الْمُلُوكُ، وَيَشْتَرِعُ الْحُكَّامُ مَا هُوَ عَدْلٌ. ١٥ 15
१५मेरे ही द्वारा राजा राज्य करते हैं, और अधिकारी धर्म से शासन करते हैं;
بِمَعُونَتِي يَسُودُ الرُّؤَسَاءُ وَالْعُظَمَاءُ وَكُلُّ قُضَاةِ الأَرْضِ. ١٦ 16
१६मेरे ही द्वारा राजा, हाकिम और पृथ्वी के सब न्यायी शासन करते हैं।
أُحِبُّ مَنْ يُحِبُّونَنِي، وَمَنْ يَجِدُّ فِي الْبَحْثِ عَنِّي يَعْثُرُ علَيَّ. ١٧ 17
१७जो मुझसे प्रेम रखते हैं, उनसे मैं भी प्रेम रखती हूँ, और जो मुझ को यत्न से तड़के उठकर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं।
لَدَيَّ الثَّرَاءُ وَالْمَجْدُ وَالْغِنَى الدَّائِمُ وَالصَّلاحُ. ١٨ 18
१८धन और प्रतिष्ठा, शाश्‍वत धन और धार्मिकता मेरे पास हैं।
ثَمَرِي أَفْضَلُ مِنَ الذَّهَبِ الْخَالِصِ، وَغَلَّتِي خَيْرٌ مِنَ الْفِضَّةِ الْمُنْتَقَاةِ. ١٩ 19
१९मेरा फल शुद्ध सोने से, वरन् कुन्दन से भी उत्तम है, और मेरी उपज उत्तम चाँदी से अच्छी है।
أَمْشِي فِي طَرِيقِ الْبِرِّ، وَفِي سُبُلِ الْعَدْلِ أَسِيرُ. ٢٠ 20
२०मैं धर्म के मार्ग में, और न्याय की डगरों के बीच में चलती हूँ,
لِكَيْ أَوَرِّثَ مُحِبِّيَّ غِنىً، وَأَمْلأَ خَزَائِنَهُمْ كُنُوزاً. ٢١ 21
२१जिससे मैं अपने प्रेमियों को धन-सम्पत्ति का भागी करूँ, और उनके भण्डारों को भर दूँ।
اقْتَنَانِي الرَّبُّ مُنْذُ بَدْءِ خَلْقِهِ، مِنْ قَبْلِ الشُّرُوعِ فِي أَعْمَالِهِ الْقَدِيمَةِ. ٢٢ 22
२२“यहोवा ने मुझे काम करने के आरम्भ में, वरन् अपने प्राचीनकाल के कामों से भी पहले उत्पन्न किया।
مُنْذُ الأَزَلِ أَنَا هُوَ، مُنْذُ الْبَدْءِ قَبْلَ أَنْ تُوجَدَ الأَرْضُ. ٢٣ 23
२३मैं सदा से वरन् आदि ही से पृथ्वी की सृष्टि से पहले ही से ठहराई गई हूँ।
وُلِدْتُ مِنْ قَبْلِ أَنْ تَتَكَوَّنَ اللُّجَجُ وَالْيَنَابِيعُ الْغَزِيرَةُ الْمِيَاهِ. ٢٤ 24
२४जब न तो गहरा सागर था, और न जल के सोते थे, तब ही से मैं उत्पन्न हुई।
وُلِدْتُ مِنْ قَبْلِ الْجِبَالِ وَالتِّلالِ. ٢٥ 25
२५जब पहाड़ और पहाड़ियाँ स्थिर न की गई थीं, तब ही से मैं उत्पन्न हुई।
إِذْ لَمْ يَكُنْ قَدْ خَلَقَ الأَرْضَ بَعْدُ، وَلا الْبَرَارِيَ وَلا بِدَايَةَ أَتْرِبَةِ الْمَسْكُونَةِ. ٢٦ 26
२६जब यहोवा ने न तो पृथ्वी और न मैदान, न जगत की धूलि के परमाणु बनाए थे, इनसे पहले मैं उत्पन्न हुई।
وَعِنْدَمَا ثَبَّتَ الرَّبُّ السَّمَاءَ، وَحِينَ رَسَمَ دَائِرَةَ الأُفُقِ حَوْلَ وَجْهِ الْغَمْرِ، كُنْتُ هُنَاكَ. ٢٧ 27
२७जब उसने आकाश को स्थिर किया, तब मैं वहाँ थी, जब उसने गहरे सागर के ऊपर आकाशमण्डल ठहराया,
عِنْدَمَا ثَبَّتَ السُّحُبَ فِي الْعَلاءِ، وَرَسَّخَ يَنَابِيعَ اللُّجَجِ. ٢٨ 28
२८जब उसने आकाशमण्डल को ऊपर से स्थिर किया, और गहरे सागर के सोते फूटने लगे,
عِنْدَمَا قَرَّرَ لِلْبَحْرِ تُخُوماً لَا تَتَجَاوَزُهَا مِيَاهُهُ مُتَعَدِّيَةً عَلَى أَمْرِ الرَّبِّ، وَحِينَ رَسَمَ أُسُسَ الأَرْضِ، ٢٩ 29
२९जब उसने समुद्र की सीमा ठहराई, कि जल उसकी आज्ञा का उल्लंघन न कर सके, और जब वह पृथ्वी की नींव की डोरी लगाता था,
كُنْتُ عِنْدَهُ صَانِعاً مُبْدِعاً، وَكُنْتُ كُلَّ يَوْمٍ لَذَّتَهُ، أَفِيضُ بَهْجَةً دَائِماً أَمَامَهُ. ٣٠ 30
३०तब मैं प्रधान कारीगर के समान उसके पास थी; और प्रतिदिन मैं उसकी प्रसन्नता थी, और हर समय उसके सामने आनन्दित रहती थी।
مُغْتَبِطَةً بِعَالَمِهِ الْمَسْكُونِ، وَمَسَرَّاتِي مَعَ بَنِي آدَمَ. ٣١ 31
३१मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्न थी और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था।
وَالآنَ أَصْغُوا إِلَيَّ أَيُّهَا الأَبْنَاءُ، إِذْ طُوبَى لِمَنْ يُمَارِسُونَ طُرُقِي. ٣٢ 32
३२“इसलिए अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो; क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं।
اسْتَمِعُوا إِلَى إِرْشَادِي، وَكُونُوا حُكَمَاءَ وَلا تَتَجَاهَلُوهُ. ٣٣ 33
३३शिक्षा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ, उसको अनसुना न करो।
طُوبَى لِلإِنْسَانِ الَّذِي يَسْتَمِعُ إلَيَّ، الْحَرِيصِ عَلَى السَّهَرِ عِنْدَ أَبْوَابِي، حَارِساً قَوَائِمَ مَصَارِيعِي، ٣٤ 34
३४क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता, वरन् मेरी डेवढ़ी पर प्रतिदिन खड़ा रहता, और मेरे द्वारों के खम्भों के पास दृष्टि लगाए रहता है।
لأَنَّ مَنْ يَجِدُنِي يَجِدُ حَيَاةً، وَيَحُوزُ عَلَى مَرْضَاةِ الرَّبِّ. ٣٥ 35
३५क्योंकि जो मुझे पाता है, वह जीवन को पाता है, और यहोवा उससे प्रसन्न होता है।
وَمَنْ يَضِلُّ عَنِّي يُؤْذِي نَفْسَهُ، وَمَنْ يُبْغِضُنِي يُحِبُّ الْمَوْتَ. ٣٦ 36
३६परन्तु जो मुझे ढूँढ़ने में विफल होता है, वह अपने ही पर उपद्रव करता है; जितने मुझसे बैर रखते, वे मृत्यु से प्रीति रखते हैं।”

< الأمثال 8 >