< الأمثال 17 >

لُقْمَةُ خُبْزٍ جَافَّةٌ مَصْحُوبَةٌ بِالسَّلامِ خَيْرٌ مِنْ بَيْتٍ مَلِيءٍ بِذَبَائِحَ وَيَسُودُهُ الْخِصَامُ. ١ 1
चैन के साथ सूखा टुकड़ा, उस घर की अपेक्षा उत्तम है, जो मेलबलि-पशुओं से भरा हो, परन्तु उसमें झगड़े-रगड़े हों।
الْعَبْدُ الْعَاقِلُ يَسُودُ عَلَى الابْنِ الْفَاجِرِ، وَيُشَارِكُ الإِخْوَةَ فِي الْمِيرَاثِ. ٢ 2
बुद्धि से चलनेवाला दास अपने स्वामी के उस पुत्र पर जो लज्जा का कारण होता है प्रभुता करेगा, और उस पुत्र के भाइयों के बीच भागी होगा।
كَمَا تُنَقِّي الْبُوْتَقَةُ الفِضَّةَ، وَالْكُورُ الذَّهَبَ، فَإِنَّ الرَّبَّ يَمْتَحِنُ الْقُلُوبَ أَيْضاً. ٣ 3
चाँदी के लिये कुठाली, और सोने के लिये भट्ठी होती है, परन्तु मनों को यहोवा जाँचता है।
فَاعِلُ الإِثْمِ يُصْغِي لِكَلامِ الشَّرِّ، وَالْكَاذِبُ يَتَجَاوَبُ مَعَ أَقْوَالِ السُّوءِ. ٤ 4
कुकर्मी अनर्थ बात को ध्यान देकर सुनता है, और झूठा मनुष्य दुष्टता की बात की ओर कान लगाता है।
الْمُسْتَهْزِئُ بِالْفَقِيرِ يَحْتَقِرُ صَانِعَهُ، وَالشَّامِتُ بِالْبَلِيَّةِ لَا يُفْلِتُ مِنَ الْعِقَابِ. ٥ 5
जो निर्धन को उपहास में उड़ाता है, वह उसके कर्त्ता की निन्दा करता है; और जो किसी की विपत्ति पर हँसता है, वह निर्दोष नहीं ठहरेगा।
تَاجُ الشُّيُوخِ الأَحْفَادُ، وَفَخْرُ الأَبْنَاءِ آبَاؤُهُمْ. ٦ 6
बूढ़ों की शोभा उनके नाती पोते हैं; और बाल-बच्चों की शोभा उनके माता-पिता हैं।
لَا يَصِحُّ لِلْجَاهِلِ أَنْ يَنْطِقَ بِمَأْثُورِ الْقَوْلِ، وَأَشَرُّ مِنْهُ الْكَذِبُ عَلَى الرَّجُلِ النَّبِيلِ. ٧ 7
मूर्ख के मुख से उत्तम बात फबती नहीं, और इससे अधिक प्रधान के मुख से झूठी बात नहीं फबती।
الرِّشْوَةُ تَعْوِيذَةٌ فِي عَيْنَيْ مُهْدِيهَا، وَحَيْثُمَا تَوَجَّهَ يُفْلِحُ. ٨ 8
घूस देनेवाला व्यक्ति घूस को मोह लेनेवाला मणि समझता है; ऐसा पुरुष जिधर फिरता, उधर उसका काम सफल होता है।
مَنْ يَصْفَحْ عَنِ الذَّنْبِ يَلْتَمِسْ الْمَحَبَّةَ، وَالوَاشِي يُفَرِّقُ بَيْنَ الأَصْدِقَاءِ الْحَمِيمِينَ. ٩ 9
जो दूसरे के अपराध को ढाँप देता है, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, परन्तु जो बात की चर्चा बार बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है।
يُؤَثِّرُ التَّأْنِيبُ فِي الْحَكِيمِ أَكْثَرَ مِنْ تَأْثِيرِ مِئَةِ جَلْدَةٍ فِي الْجَاهِلِ. ١٠ 10
१०एक घुड़की समझनेवाले के मन में जितनी गड़ जाती है, उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता।
الشِّرِّيرُ يَسْعَى فَقَطْ لِلتَّمَرُّدِ، فَيَنْقَضُّ عَلَيْهِ رَسُولٌ قَاسٍ. ١١ 11
११बुरा मनुष्य दंगे ही का यत्न करता है, इसलिए उसके पास क्रूर दूत भेजा जाएगा।
مُصَادَفَةُ دُبَّةٍ ثَكُولٍ خَيْرٌ مِنْ مُصَادَفَةِ جَاهِلٍ مُتَوَرِّطٍ فِي حَمَاقَتِهِ. ١٢ 12
१२बच्चा–छीनी–हुई–रीछनी से मिलना, मूर्खता में डूबे हुए मूर्ख से मिलने से बेहतर है।
مَنْ يُجَازِي خَيْراً بِشَرٍّ، لَنْ يَبْرَحَ الشَّرُّ مِنْ بَيْتِهِ. ١٣ 13
१३जो कोई भलाई के बदले में बुराई करे, उसके घर से बुराई दूर न होगी।
بِدَايَةُ الْخِصَامِ كَتَفَجُّرِ الْمِيَاهِ، فَاتْرُكِ الْخِصَامَ قَبْلَ انْفِجَارِهِ. ١٤ 14
१४झगड़े का आरम्भ बाँध के छेद के समान है, झगड़ा बढ़ने से पहले उसको छोड़ देना उचित है।
مُبْرِئُ الْمُذْنِبِ وَمُذَنِّبُ الْبَرِيءِ كِلاهُمَا رِجْسٌ عِنْدَ الرَّبِّ. ١٥ 15
१५जो दोषी को निर्दोष, और जो निर्दोष को दोषी ठहराता है, उन दोनों से यहोवा घृणा करता है।
مَا جَدْوَى أَنْ يَكُونَ لَدَى الْجَاهِلِ مَالٌ لاقْتِنَاءِ الْحِكْمَةِ، وَهُوَ لَا يَمْلِكُ الْفَهْمَ لِتَعَلُّمِهَا. ١٦ 16
१६बुद्धि मोल लेने के लिये मूर्ख अपने हाथ में दाम क्यों लिए है? वह उसे चाहता ही नहीं।
الصِّدِّيقُ يُحِبُّ فِي كُلِّ حِينٍ، وَالأَخُ يُولَدُ لِيَكُونَ عَوْناً فِي الضِّيقِ. ١٧ 17
१७मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।
الأَحْمَقُ مَنْ يَكْفَلُ سِوَاهُ بِصَفْقِ الْكَفِّ، وَيَضْمَنُ جَارَهُ ضَمَاناً كَامِلاً ١٨ 18
१८निर्बुद्धि मनुष्य बाध्यकारी वायदे करता है, और अपने पड़ोसी के कर्ज का उत्तरदायी होता है।
مَنْ يُحِبَّ الإِثْمَ يُحِبَّ الْمُشَاجَرَةَ، وَمَنْ يُكْثِرْ مِنَ الْمُبَاهَاةِ يَجْلِبْ عَلَى نَفْسِهِ الدَّمَارَ. ١٩ 19
१९जो झगड़े-रगड़े में प्रीति रखता, वह अपराध करने से भी प्रीति रखता है, और जो अपने फाटक को बड़ा करता, वह अपने विनाश के लिये यत्न करता है।
ذُو الْقَلْبِ الْمُعَوَّجِ لَا يُفْلِحُ، وَصَاحِبُ اللِّسَانِ الْمُنَافِقِ يَقَعُ فِي الْبَلِيَّةِ. ٢٠ 20
२०जो मन का टेढ़ा है, उसका कल्याण नहीं होता, और उलट-फेर की बात करनेवाला विपत्ति में पड़ता है।
مَنْ أَنْجَبَ جَاهِلاً صَارَ غَمّاً لَهُ، وَأَبُو الأَحْمَقِ لَا يَعْرِفُ الْفَرَحَ. ٢١ 21
२१जो मूर्ख को जन्म देता है वह उससे दुःख ही पाता है; और मूर्ख के पिता को आनन्द नहीं होता।
الْقَلْبُ الْمَسْرُورُ دَوَاءٌ شَافٍ، وَالرُّوحُ الْمُنْسَحِقَةُ تُبْلِي الْعِظَامَ. ٢٢ 22
२२मन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हड्डियाँ सूख जाती हैं।
الشِّرِّيرُ يَأْخُذُ الرِّشْوَةَ مِنَ الْحِضْنِ لِيُحَرِّفَ سَيْرَ الْقَضَاءِ. ٢٣ 23
२३दुष्ट जन न्याय बिगाड़ने के लिये, अपनी गाँठ से घूस निकालता है।
الْحِكْمَةُ هِيَ غَايَةُ العَاقِلِ أَمَّا عَيْنَا الْجَاهِلِ فَزَائِغَتَانِ إِلَى أَقَاصِي الأَرْضِ. ٢٤ 24
२४बुद्धि समझनेवाले के सामने ही रहती है, परन्तु मूर्ख की आँखें पृथ्वी के दूर-दूर देशों में लगी रहती हैं।
الابْنُ الْجَاهِلُ مَبْعَثُ تَعَاسَةٍ لأَبِيهِ، وَمَرَارَةُ قَلْبٍ لأُمِّهِ. ٢٥ 25
२५मूर्ख पुत्र से पिता उदास होता है, और उसकी जननी को शोक होता है।
أَيْضاً لَا يَلِيقُ تَغْرِيمُ الْبَرِيءِ، وَلا جَلْدُ الشُّرَفَاءِ تَقْوِيماً لَهُمْ. ٢٦ 26
२६धर्मी को दण्ड देना, और प्रधानों को खराई के कारण पिटवाना, दोनों काम अच्छे नहीं हैं।
ذُو الْمَعْرِفَةِ يَتَرَوَّى فِي كَلِمَاتِهِ، وَالْعَاقِلُ ذُو رَبَاطَةِ جَأْشٍ. ٢٧ 27
२७जो सम्भलकर बोलता है, वह ज्ञानी ठहरता है; और जिसकी आत्मा शान्त रहती है, वही समझवाला पुरुष ठहरता है।
حَتَّى الْجَاهِلُ، إِنْ صَمَتَ، يُحْسَبُ حَكِيماً، وَإِنْ أَطْبَقَ شَفَتَيْهِ يُحْسَبُ عَاقِلاً. ٢٨ 28
२८मूर्ख भी जब चुप रहता है, तब बुद्धिमान गिना जाता है; और जो अपना मुँह बन्द रखता वह समझवाला गिना जाता है।

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