< مَتَّى 6 >
احْذَرُوا مِنْ أَنْ تَعْمَلُوا الْخَيْرَ أَمَامَ النَّاسِ بِقَصْدِ أَنْ يَنْظُرُوا إِلَيْكُمْ. وَإلَّا، فَلَيْسَ لَكُمْ مُكَافَأَةٌ عِنْدَ أَبِيكُمُ الَّذِي فِي السَّمَاوَاتِ. | ١ 1 |
१“सावधान रहो! तुम मनुष्यों को दिखाने के लिये अपने धार्मिकता के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्गीय पिता से कुछ भी फल न पाओगे।
فَإِذَا تَصَدَّقْتَ عَلَى أَحَدٍ، فَلا تَنْفُخْ أَمَامَكَ فِي الْبُوقِ، كَمَا يَفْعَلُ الْمُنَافِقُونَ فِي الْمَجَامِعِ وَالشَّوَارِعِ، لِيَمْدَحَهُمُ النَّاسُ. الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُمْ قَدْ نَالُوا مُكَافَأَتَهُمْ. | ٢ 2 |
२“इसलिए जब तू दान करे, तो अपना ढिंढोरा न पिटवा, जैसेकपटी, आराधनालयों और गलियों में करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करें, मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके।
أَمَّا أَنْتَ، فَعِنْدَمَا تَتَصَدَّقُ عَلَى أَحَدٍ، فَلا تَدَعْ يَدَكَ الْيُسْرَى تَعْرِفُ مَا تَفْعَلُهُ الْيُمْنَى. | ٣ 3 |
३परन्तु जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायाँ हाथ न जानने पाए।
لِتَكُونَ صَدَقَتُكَ فِي الْخَفَاءِ، وَأَبُوكَ السَّمَاوِيُّ الَّذِي يَرَى فِي الْخَفَاءِ، هُوَ يُكَافِئُكَ. | ٤ 4 |
४ताकि तेरा दान गुप्त रहे; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
وَعِنْدَمَا تُصَلُّونَ، لَا تَكُونُوا مِثْلَ الْمُنَافِقِينَ الَّذِينَ يُحِبُّونَ أَنْ يُصَلُّوا وَاقِفِينَ فِي الْمَجَامِعِ وَفِي زَوَايَا الشَّوَارِعِ لِيَرَاهُمُ النَّاسُ. الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُمْ قَدْ نَالُوا مُكَافَأَتَهُمْ. | ٥ 5 |
५“और जब तू प्रार्थना करे, तो कपटियों के समान न हो क्योंकि लोगों को दिखाने के लिये आराधनालयों में और सड़कों के चौराहों पर खड़े होकर प्रार्थना करना उनको अच्छा लगता है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके।
أَمَّا أَنْتَ، فَعِنْدَمَا تُصَلِّي، فَادْخُلْ غُرْفَتَكَ، وَأَغْلِقِ الْبَابَ عَلَيْكَ، وَصَلِّ إِلَى أَبِيكَ الَّذِي فِي الْخَفَاءِ. وَأَبُوكَ الَّذِي يَرَى فِي الْخَفَاءِ، هُوَ يُكَافِئُكَ. | ٦ 6 |
६परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा; और द्वार बन्द करके अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
وَعِنْدَمَا تُصَلُّونَ، لَا تُكَرِّرُوا كَلاماً فَارِغاً كَمَا يَفْعَلُ الْوَثَنِيُّونَ، ظَنّاً مِنْهُمْ أَنَّهُ بِالإِكْثَارِ مِنَ الْكَلامِ، يُسْتَجَابُ لَهُمْ. | ٧ 7 |
७प्रार्थना करते समय अन्यजातियों के समान बक-बक न करो; क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बार बार बोलने से उनकी सुनी जाएगी।
فَلا تَكُونُوا مِثْلَهُمْ، لأَنَّ أَبَاكُمْ يَعْلَمُ مَا تَحْتَاجُونَ إِلَيْهِ قَبْلَ أَنْ تَسْأَلُوهُ. | ٨ 8 |
८इसलिए तुम उनके समान न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या-क्या आवश्यकताएँ है।
فَصَلُّوا أَنْتُمْ مِثْلَ هَذِهِ الصَّلاةِ: أَبَانَا الَّذِي فِي السَّمَاوَاتِ، لِيَتَقَدَّسِ اسْمُكَ! | ٩ 9 |
९“अतः तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो: ‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नामपवित्र माना जाए।
لِيَأْتِ مَلَكُوتُكَ! لِتَكُنْ مَشِيئَتُكَ عَلَى الأَرْضِ كَمَا هِيَ فِي السَّمَاءِ! | ١٠ 10 |
१०‘तेरा राज्य आए।तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।
خُبْزَنَا كَفَافَنَا أَعْطِنَا الْيَوْمَ! | ١١ 11 |
११‘हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे।
وَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا، كَمَا نَغْفِرُ نَحْنُ لِلْمُذْنِبِينَ إِلَيْنَا! | ١٢ 12 |
१२‘और जिस प्रकार हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर।
وَلا تُدْخِلْنَا فِي تَجْرِبَةٍ، لَكِنْ نَجِّنَا مِنَ الشِّرِّيرِ، لأَنَّ لَكَ الْمُلْكَ وَالْقُوَّةَ وَالْمَجْدَ إِلَى الأَبَدِ. آمِين. | ١٣ 13 |
१३‘और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा; [क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही हैं।’ आमीन।]
فَإِنْ غَفَرْتُمْ لِلنَّاسِ زَلّاتِهِمْ، يَغْفِرْ لَكُمْ أَبُوكُمُ السَّمَاوِيُّ زَلّاتِكُمْ. | ١٤ 14 |
१४“इसलिए यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा।
وَإِنْ لَمْ تَغْفِرُوا لِلنَّاسِ، لَا يَغْفِرْ لَكُمْ أَبُوكُمُ السَّمَاوِيُّ زَلّاتِكُمْ. | ١٥ 15 |
१५और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा।
وَعِنْدَمَا تَصُومُونَ، لَا تَكُونُوا عَابِسِي الْوُجُوهِ، الْمُنَافِقُونَ الَّذِينَ يُغَيِّرُونَ وُجُوهَهُمْ لِكَيْ يَظْهَرُوا لِلنَّاسِ صَائِمِينَ. الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ إِنَّهُمْ قَدْ نَالُوا مُكَافَأَتَهُمْ. | ١٦ 16 |
१६“जब तुम उपवास करो, तो कपटियों के समान तुम्हारे मुँह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मुँह बनाए रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके।
أَمَّا أَنْتَ، فَعِنْدَمَا تَصُمْ، فَاغْسِلْ وَجْهَكَ، وَعَطِّرْ رَأْسَكَ، | ١٧ 17 |
१७परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुँह धो।
لِكَيْ لَا تَظْهَرَ لِلنَّاسِ صَائِماً، بَلْ لأَبِيكَ الَّذِي فِي الْخَفَاءِ. وَأَبُوكَ الَّذِي يَرَى فِي الْخَفَاءِ، هُوَ يُكَافِئُكَ. | ١٨ 18 |
१८ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने। इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
لَا تَكْنِزُوا لَكُمْ كُنُوزاً عَلَى الأَرْضِ، حَيْثُ يُفْسِدُهَا السُّوسُ وَالصَّدَأُ، وَيَنْقُبُ عَنْهَا اللُّصُوصُ وَيَسْرِقُونَ. | ١٩ 19 |
१९“अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; जहाँ कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर सेंध लगाते और चुराते हैं।
بَلِ اكْنِزُوا لَكُمْ كُنُوزاً فِي السَّمَاءِ، حَيْثُ لَا يُفْسِدُهَا سُوسٌ وَلا يَنْقُبُ عَنْهَا لُصُوصٌ وَلا يَسْرِقُونَ. | ٢٠ 20 |
२०परन्तु अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, जहाँ न तो कीड़ा, और न काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं।
فَحَيْثُ يَكُونُ كَنْزُكَ، هُنَاكَ أَيْضاً يَكُونُ قَلْبُكَ! | ٢١ 21 |
२१क्योंकि जहाँ तेरा धन है वहाँ तेरा मन भी लगा रहेगा।
الْعَيْنُ مِصْبَاحُ الْجَسَدِ. فَإِنْ كَانَتْ عَيْنُكَ سَلِيمَةً، يَكُونُ جَسَدُكَ كُلُّهُ مُنَوَّراً. | ٢٢ 22 |
२२“शरीर का दीया आँख है: इसलिए यदि तेरी आँख अच्छी हो, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला होगा।
وَإِنْ كَانَتْ عَيْنُكَ سَيِّئَةً، يَكُونُ جَسَدُكَ كُلُّهُ مُظْلِماً. فَإِذَا كَانَ النُّورُ الَّذِي فِيكَ ظَلاماً، فَمَا أَشَدَّ الظَّلامَ! | ٢٣ 23 |
२३परन्तु यदि तेरी आँख बुरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अंधियारा होगा; इस कारण वह उजियाला जो तुझ में है यदि अंधकार हो तो वह अंधकार कैसा बड़ा होगा!
لَا يُمْكِنُ لأَحَدٍ أَنْ يَكُونَ عَبْداً لِسَيِّدَيْنِ: لأَنَّهُ إِمَّا أَنْ يُبْغِضَ أَحَدَهُمَا وَيُحِبَّ الآخَرَ، وَإِمَّا أَنْ يُلازِمَ أَحَدَهُمَا وَيَهْجُرَ الآخَرَ. لَا يُمْكِنُكُمْ أَنْ تَكُونُوا عَبِيداً لِلهِ وَالْمَالِ مَعاً. | ٢٤ 24 |
२४“कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, या एक से निष्ठावान रहेगा और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।
لِذلِكَ أَقُولُ لَكُمْ: لَا تَهْتَمُّوا لِمَعِيشَتِكُمْ بِشَأْنِ مَا تَأْكُلُونَ وَمَا تَشْرَبُونَ، وَلا لأَجْسَادِكُمْ بِشَأْنِ مَا تَلْبَسُونَ. أَلَيْسَتِ الْحَيَاةُ أَكْثَرَ مِنْ مُجَرَّدِ طَعَامٍ، وَالْجَسَدُ أَكْثَرَ مِنْ مُجَرَّدِ كِسَاءٍ؟ | ٢٥ 25 |
२५इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएँगे, और क्या पीएँगे, और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहनेंगे, क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं?
تَأَمَّلُوا طُيُورَ السَّمَاءِ: إِنَّهَا لَا تَزْرَعُ وَلا تَحْصُدُ وَلا تَجْمَعُ فِي مَخَازِنَ، وَأَبُوكُمُ السَّمَاوِيُّ يَعُولُهَا. أَفَلَسْتُمْ أَنْتُمْ أَفْضَلَ مِنْهَا كَثِيراً؟ | ٢٦ 26 |
२६आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; तो भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते?
فَمَنْ مِنْكُمْ إِذَا حَمَلَ الْهُمُومَ يَقْدِرُ أَنْ يُطِيلَ عُمْرَهُ وَلَوْ سَاعَةً وَاحِدَةً؟ | ٢٧ 27 |
२७तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपने जीवनकाल में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?
وَلِمَاذَا تَحْمِلُونَ هَمَّ الْكِسَاءِ؟ تَأَمَّلُوا زَنَابِقَ الْحَقْلِ كَيْفَ تَنْمُو: إِنَّهَا لَا تَتْعَبُ وَلا تَغْزِلُ؛ | ٢٨ 28 |
२८“और वस्त्र के लिये क्यों चिन्ता करते हो? सोसनों के फूलों पर ध्यान करो, कि वे कैसे बढ़ते हैं, वे न तो परिश्रम करते हैं, न काटते हैं।
وَلَكِنِّي أَقُولُ لَكُمْ: حَتَّى سُلَيْمَانُ فِي قِمَّةِ مَجْدِهِ لَمْ يَلْبَسْ مَا يُعَادِلُ وَاحِدَةً مِنْهَا جَمَالاً! | ٢٩ 29 |
२९तो भी मैं तुम से कहता हूँ, कि सुलैमान भी, अपने सारे वैभव में उनमें से किसी के समान वस्त्र पहने हुए न था।
فَإِنْ كَانَ اللهُ هَكَذَا يُلْبِسُ الأَعْشَابَ الْبَرِّيَّةَ، مَعَ أَنَّهَا تُوْجَدُ الْيَوْمَ وَتُطْرَحُ غَداً فِي النَّارِ، أَفَلَسْتُمْ أَنْتُمْ، يَا قَلِيلِي الإِيمَانِ، أَوْلَى جِدّاً بِأَنْ يَكْسُوَكُمْ؟ | ٣٠ 30 |
३०इसलिए जब परमेश्वर मैदान की घास को, जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहनाता है, तो हे अल्पविश्वासियों, तुम को वह क्यों न पहनाएगा?
فَلا تَحْمِلُوا الْهَمَّ قَائِلِينَ: مَاذَا نَأْكُلُ؟ أَوْ: مَاذَا نَشْرَبُ؟ أَوْ: مَاذَا نَلْبَسُ؟ | ٣١ 31 |
३१“इसलिए तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहनेंगे?
فَهَذِهِ كُلُّهَا يَسْعَى إِلَيْهَا أَهْلُ الدُّنْيَا. فَإِنَّ أَبَاكُمُ السَّمَاوِيَّ يَعْلَمُ حَاجَتَكُمْ إِلَى هَذِهِ كُلِّهَا. | ٣٢ 32 |
३२क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएँ चाहिए।
أَمَّا أَنْتُمْ، فَاطْلُبُوا أَوَّلاً مَلَكُوتَ اللهِ وَبِرَّهُ، وَهَذِهِ كُلُّهَا تُزَادُ لَكُمْ. | ٣٣ 33 |
३३इसलिए पहले तुम परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ तुम्हें मिल जाएँगी।
لَا تَهْتَمُّوا بِأَمْرِ الْغَدِ، فَإِنَّ الْغَدَ يَهْتَمُّ بِأَمْرِ نَفْسِهِ. يَكْفِي كُلَّ يَوْمٍ مَا فِيهِ مِنْ سُوءٍ! | ٣٤ 34 |
३४अतः कल के लिये चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुःख बहुत है।