< مَتَّى 26 >
وَلَمَّا أَنْهَى يَسُوعُ هَذِهِ الأَقْوَالَ كُلَّهَا، قَالَ لِتَلامِيذِهِ: | ١ 1 |
जब ईसा ये सब बातें ख़त्म कर चुका, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने शागिर्दों से कहा।
«أَنْتُمْ تَعْرِفُونَ أَنَّهُ بَعْدَ يَوْمَيْنِ يَأْتِي الْفِصْحُ، وَسَوْفَ يُسَلَّمُ ابْنُ الإِنْسَانِ لِيُصْلَبَ». | ٢ 2 |
“तुम जानते हो कि दो दिन के बाद ईद — ए — फ़सहहोगी। और इब्न — ए — आदम मस्लूब होने को पकड़वाया जाएगा।”
وَعِنْدَئِذٍ اجْتَمَعَ رُؤَسَاءُ الْكَهَنَةِ وَشُيُوخُ الشَّعْبِ فِي دَارِ رَئِيسِ الْكَهَنَةِ الْمَدْعُوِّ قَيَافَا، | ٣ 3 |
उस वक़्त सरदार काहिन और क़ौम के बुज़ुर्ग काइफ़ा नाम सरदार काहिन के दिवान खाने में जमा हुए।
وَتَآمَرُوا لِيَقْبِضُوا عَلَى يَسُوعَ بِمَكْرٍ وَيَقْتُلُوهُ. | ٤ 4 |
और मशवरा किया कि ईसा को धोखे से पकड़ कर क़त्ल करें।
وَلَكِنَّهُمْ قَالُوا: «لا نَفْعَلُ ذَلِكَ فِي الْعِيدِ، لِئَلّا يَحْدُثَ اضْطِرَابٌ بَيْنَ الشَّعْبِ!» | ٥ 5 |
मगर कहते थे, “ईद में नहीं, ऐसा न हो कि लोगों में बलवा हो जाए।”
وَإِذْ كَانَ يَسُوعُ فِي بَيْتِ عَنْيَا عِنْدَ سِمْعَانَ الأَبْرَصِ، | ٦ 6 |
और जब ईसा बैत अन्नियाह में शमौन जो पहले कौढ़ी था के घर में था।
جَاءَتْ إِلَيْهِ امْرَأَةٌ تَحْمِلُ قَارُورَةَ عِطْرٍ غَالِي الثَّمَنِ، وَسَكَبَتْهُ عَلَى رَأْسِهِ وَهُوَ مُتَّكِىءٌ. | ٧ 7 |
तो एक 'औरत संग — मरमर के इत्रदान में क़ीमती इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वो खाना खाने बैठा तो उस के सिर पर डाला।
فَاسْتَاءَ التَّلامِيذُ لَمَّا رَأَوْا ذَلِكَ، وَقَالُوا: «لِمَاذَا هَذَا التَّبْذِيرُ؟ | ٨ 8 |
शागिर्द ये देख कर ख़फ़ा हुए और कहने लगे, “ये किस लिए बरबाद किया गया?
فَقَدْ كَانَ يُمْكِنُ أَنْ يُبَاعَ هَذَا الْعِطْرُ بِمَالٍ كَثِيرٍ، وَيُوْهَبَ الثَّمَنُ لِلْفُقَرَاءِ؟» | ٩ 9 |
ये तो बड़ी क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था।”
وَإِذْ عَلِمَ يَسُوعُ بِذلِكَ، قَالَ لَهُمْ: «لِمَاذَا تُضَايِقُونَ هَذِهِ الْمَرْأَةَ؟ إِنَّهَا عَمِلَتْ بِي عَمَلاً حَسَناً. | ١٠ 10 |
ईसा' ने ये जान कर उन से कहा, “इस 'औरत को क्यूँ दुखी करते हो? इस ने तो मेरे साथ भलाई की है।
فَإِنَّ الْفُقَرَاءَ عِنْدَكُمْ فِي كُلِّ حِينٍ؛ أَمَّا أَنَا فَلَنْ أَكُونَ عِنْدَكُمْ فِي كُلِّ حِينٍ. | ١١ 11 |
क्यूँकि ग़रीब ग़ुरबे तो हमेशा तुम्हारे पास हैं लेकिन मैं तुम्हारे पास हमेशा न रहूँगा।
فَإِنَّهَا إِذْ سَكَبَتِ الْعِطْرَ عَلَى جِسْمِي، فَقَدْ فَعَلَتْ ذَلِكَ إِعْدَاداً لِدَفْنِي. | ١٢ 12 |
और इस ने तो मेरे दफ़्न की तैयारी के लिए इत्र मेरे बदन पर डाला।
وَالْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ حَيْثُ يُنَادَى بِهَذَا الإِنْجِيلِ فِي الْعَالَمِ أَجْمَعَ، يُحَدَّثُ أَيْضاً بِمَا عَمِلَتْهُ هَذِهِ الْمَرْأَةُ، إِحْيَاءً لِذِكْرِهَا». | ١٣ 13 |
मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तमाम दुनिया में जहाँ कहीं इस ख़ुशख़बरी का एलान किया जाएगा, ये भी जो इस ने किया; इस की यादगारी में कहा जाएगा।”
عِنْدَئِذٍ ذَهَبَ وَاحِدٌ مِنَ الاِثْنَيْ عَشَرَ، وَهُوَ الْمَدْعُوُّ يَهُوذَا الإِسْخَرْيُوطِيُّ، إِلَى رُؤَسَاءِ الْكَهَنَةِ، | ١٤ 14 |
उस वक़्त उन बारह में से एक ने जिसका नाम यहूदाह इस्करियोती था; सरदार काहिनों के पास जा कर कहा,
وَقَالَ: «كَمْ تُعْطُونَنِي لأُسَلِّمَهُ إِلَيْكُمْ؟» فَوَزَنُوا لَهُ ثَلاثِينَ قِطْعَةً مِنَ الْفِضَّةِ. | ١٥ 15 |
“अगर मैं उसे तुम्हारे हवाले कर दूँ तो मुझे क्या दोगे? उन्होंने उसे तीस रुपऐ तौल कर दे दिया।”
وَمِنْ ذَلِكَ الْوَقْتِ، أَخَذَ يَهُوذَا يَتَرَقَّبُ الْفُرْصَةَ لِتَسْلِيمِهِ. | ١٦ 16 |
और वो उस वक़्त से उसके पकड़वाने का मौक़ा ढूँडने लगा।
وَفِي الْيَوْمِ الأَوَّلِ مِنْ أَيَّامِ الْفَطِيرِ، تَقَدَّمَ التَّلامِيذُ إِلَى يَسُوعَ يَسْأَلُونَ: «أَيْنَ تُرِيدُ أَنْ نُجَهِّزَ لَكَ الْفِصْحَ لِتَأْكُلَ؟» | ١٧ 17 |
ईद — 'ए — फ़ितर के पहले दिन शागिर्दों ने ईसा के पास आकर कहा, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिए फ़सह के खाने की तैयारी करें।”
أَجَابَهُمْ: «اُدْخُلُوا الْمَدِينَةَ، وَاذْهَبُوا إِلَى فُلانٍ وَقُولُوا لَهُ: الْمُعَلِّمُ يَقُولُ إِنَّ سَاعَتِي قَدِ اقْتَرَبَتْ، وَعِنْدَكَ سَأَعْمَلُ الْفِصْحَ مَعَ تَلامِيذِي». | ١٨ 18 |
उस ने कहा, “शहर में फ़लाँ शख़्स के पास जा कर उससे कहना ‘उस्ताद फ़रमाता है’ कि मेरा वक़्त नज़दीक है मैं अपने शागिर्दों के साथ तेरे यहाँ ईद'ए फ़सह करूँगा।”
فَفَعَلَ التَّلامِيذُ مَا أَمَرَهُمْ بِهِ يَسُوعُ، وَجَهَّزُوا الْفِصْحَ هُنَاكَ. | ١٩ 19 |
और जैसा ईसा ने शागिर्दों को हुक्म दिया था, उन्होंने वैसा ही किया और फ़सह तैयार किया।
وَعِنْدَ الْمَسَاءِ اتَّكَأَ مَعَ الاِثْنَيْ عَشَرَ. | ٢٠ 20 |
जब शाम हुई तो वो बारह शागिर्दों के साथ खाना खाने बैठा था।
وَبَيْنَمَا كَانُوا يَأْكُلُونَ، قَالَ: «الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ وَاحِداً مِنْكُمْ سَيُسَلِّمُنِي». | ٢١ 21 |
जब वो खा रहा था, तो उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।”
فَاسْتَوْلَى عَلَيْهِمِ الْحُزْنُ الشَّدِيدُ، وَأَخَذَ كُلٌّ مِنْهُمْ يَسْأَلُهُ: «هَلْ أَنَا يَا رَبُّ؟» | ٢٢ 22 |
वो बहुत ही ग़मगीन हुए और हर एक उससे कहने लगे “ख़ुदावन्द, क्या मैं हूँ?”
فَأَجَابَ: «الَّذِي يَغْمِسُ يَدَهُ مَعِي فِي الصَّحْفَةِ هُوَ الَّذِي يُسَلِّمُنِي. | ٢٣ 23 |
उस ने जवाब में कहा, “जिस ने मेरे साथ रक़ाबी में हाथ डाला है वही मुझे पकड़वाएगा।
إِنَّ ابْنَ الإِنْسَانِ لابُدَّ أَنْ يَمْضِيَ كَمَا قَدْ كُتِبَ عَنْهُ، وَلَكِنِ الْوَيْلُ لِذَلِكَ الرَّجُلِ الَّذِي يُسَلِّمُ ابْنَ الإِنْسَانِ. كَانَ خَيْراً لِذَلِكَ الرَّجُلِ لَوْ لَمْ يُوْلَدْ!» | ٢٤ 24 |
इबने आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इबने आदम पकड़वाया जाता है अगर वो आदमी पैदा न होता तो उसके लिए अच्छा होता।”
فَسَأَلَهُ يَهُوذَا مُسَلِّمُهُ: «هَلْ أَنَا هُوَ يَا مُعَلِّمُ؟» أَجَابَهُ: «أَنْتَ قُلْتَ!» | ٢٥ 25 |
उसके पकड़वाने वाले यहूदाह ने जवाब में कहा “ऐ रब्बी क्या मैं हूँ?” उसने उससे कहा “तूने ख़ुद कह दिया।”
وَبَيْنَمَا كَانُوا يَأْكُلُونَ، أَخَذَ يَسُوعُ رَغِيفاً، وَبَارَكَ، وَكَسَّرَ وَأَعْطَى التَّلامِيذَ وَقَالَ: «خُذُوا، كُلُوا: هَذَا هُوَ جَسَدِي!» | ٢٦ 26 |
जब वो खा रहे थे तो ईसा' ने रोटी ली और — और बर्क़त देकर तोड़ी और शागिर्दों को देकर कहा, “लो, खाओ, ये मेरा बदन है।”
ثُمَّ أَخَذَ الْكَأْسَ، وَشَكَرَ، وَأَعْطَاهُمْ قَائِلاً: «اشْرَبُوا مِنْهَا كُلُّكُمْ. | ٢٧ 27 |
फिर प्याला लेकर शुक्र किया और उनको देकर कहा “तुम सब इस में से पियो।
فَإِنَّ هَذَا هُوَ دَمِي الَّذِي لِلْعَهْدِ الْجَدِيدِ وَالَّذِي يُسْفَكُ مِنْ أَجْلِ كَثِيرِينَ لِمَغْفِرَةِ الْخَطَايَا. | ٢٨ 28 |
क्यूँकि ये मेरा वो अहद का ख़ून है जो बहुतों के गुनाहों की मु'आफ़ी के लिए बहाया जाता है।
عَلَى أَنِّي أَقُولُ لَكُمْ: إِنِّي لَا أَشْرَبُ بَعْدَ الْيَوْمِ مِنْ نِتَاجِ الْكَرْمَةِ هَذَا حَتَّى يَأْتِيَ الْيَوْمُ الَّذِي فِيهِ أَشْرَبُهُ مَعَكُمْ جَدِيداً فِي مَلَكُوتِ أَبِي». | ٢٩ 29 |
मैं तुम से कहता हूँ, कि अंगूर का ये शीरा फिर कभी न पियूँगा, उस दिन तक कि तुम्हारे साथ अपने बाप की बादशाही में नया न पियूँ।”
ثُمَّ رَتَّلُوا، وَانْطَلَقُوا خَارِجاً إِلَى جَبَلِ الزَّيْتُونِ. | ٣٠ 30 |
फिर वो हम्द करके बाहर ज़ैतून के पहाड़ पर गए।
عِنْدَئِذٍ قَالَ لَهُمْ يَسُوعُ: «فِي هَذِهِ اللَّيْلَةِ سَتَشُكُّونَ فِيَّ كُلُّكُمْ. لأَنَّهُ قَدْ كُتِبَ: سَأَضْرِبُ الرَّاعِيَ، فَتَتَشَتَّتُ خِرَافُ الْقَطِيعِ. | ٣١ 31 |
उस वक़्त ईसा' ने उनसे कहा “तुम सब इसी रात मेरी वजह से ठोकर खाओगे क्यूँकि लिखा है; मैं चरवाहे को मारूँगा और गल्ले की भेंड़े बिखर जाएँगी।
وَلَكِنْ بَعْدَ قِيَامَتِي أَسْبِقُكُمْ إِلَى الْجَلِيلِ». | ٣٢ 32 |
लेकिन मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।”
فَرَدَّ عَلَيْهِ بُطْرُسُ قَائِلاً: «وَلَوْ شَكَّ فِيكَ الْجَمِيعُ، فَأَنَا لَنْ أَشُكَّ!» | ٣٣ 33 |
पतरस ने जवाब में उससे कहा, “चाहे सब तेरी वजह से ठोकर खाएँ, लेकिन में कभी ठोकर न खाऊँगा।”
أَجَابَهُ يَسُوعُ: «الْحَقَّ أَقُولُ لَكَ: إِنَّكَ فِي هَذِهِ اللَّيْلَةِ، قَبْلَ أَنْ يَصِيحَ الدِّيكُ، تَكُونُ قَدْ أَنْكَرْتَنِي ثَلاثَ مَرَّاتٍ!» | ٣٤ 34 |
ईसा' ने उससे कहा, “मैं तुझसे सच कहता हूँ, इसी रात मुर्ग़ के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।”
فَقَالَ بُطْرُسُ: «وَلَوْ كَانَ عَلَيَّ أَنْ أَمُوتَ مَعَكَ، لَا أُنْكِرُك أَبَداً!» وَقَالَ التَّلامِيذُ كُلُّهُمْ مِثْلَ هَذَا الْقَوْلِ. | ٣٥ 35 |
पतरस ने उससे कहा, “अगर तेरे साथ मुझे मरना भी पड़े। तोभी तेरा इन्कार हरगिज़ न करूँगा।” और सब शागिर्दो ने भी इसी तरह कहा।
ثُمَّ ذَهَبَ يَسُوعُ وَتَلامِيذُهُ إِلَى بُسْتَانٍ يُدْعَى جَثْسَيْمَانِي، وَقَالَ لَهُمْ: «اجْلِسُوا هُنَا حَتَّى أَذْهَبَ إِلَى هُنَاكَ وَأُصَلِّيَ». | ٣٦ 36 |
उस वक़्त ईसा' उनके साथ गतसिमनी नाम एक जगह में आया और अपने शागिर्दों से कहा। “यहीं बैठे रहना जब तक कि मैं वहाँ जाकर दुआ करूँ।”
وَقَدْ أَخَذَ مَعَهُ بُطْرُسَ وَابْنَيْ زَبَدِي وَبَدَأَ يَشْعُرُ بِالْحُزْنِ وَالْكَآبَةِ. | ٣٧ 37 |
और पतरस और ज़ब्दी के दोनों बेटों को साथ लेकर ग़मगीन और बेक़रार होने लगा।
فَقَالَ لَهُمْ: «نَفْسِي حَزِينَةٌ جِدّاً حَتَّى الْمَوْتِ! ابْقَوْا هُنَا وَاسْهَرُوا مَعِي!» | ٣٨ 38 |
उस वक़्त उसने उनसे कहा, “मेरी जान निहायत ग़मगीन है यहाँ तक कि मरने की नौबत पहुँच गई है, तुम यहाँ ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।”
وَابْتَعَدَ عَنْهُمْ قَلِيلاً وَارْتَمَى عَلَى وَجْهِهِ يُصَلِّي، قَائِلاً: «يَا أَبِي، إِنْ كَانَ مُمْكِناً، فَلْتَعْبُرْ عَنِّي هَذِهِ الْكَأْسُ: وَلَكِنْ، لَا كَمَا أُرِيدُ أَنَا، بَلْ كَمَا تُرِيدُ أَنْتَ!» | ٣٩ 39 |
फिर ज़रा आगे बढ़ा और मुँह के बल गिर कर यूँ दुआ की, “ऐ मेरे बाप, अगर हो सके तो ये दुःख का प्याला मुझ से टल जाए, तोभी न जैसा मैं चाहता हूँ; बल्कि जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।”
وَرَجَعَ إِلَى التَّلامِيذِ فَوَجَدَهُمْ نَائِمِينَ، فَقَالَ لِبُطْرُسَ: «أَهَكَذَا لَمْ تَقْدِرُوا أَنْ تَسْهَرُوا مَعِي سَاعَةً وَاحِدَةً؟ | ٤٠ 40 |
फिर शागिर्दों के पास आकर उनको सोते पाया और पतरस से कहा, “क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके?
اسْهَرُوا وَصَلُّوا لِكَيْ لَا تَدْخُلُوا فِي تَجْرِبَةٍ. إِنَّ الرُّوحَ نَشِيطٌ؛ أَمَّا الْجَسَدُ فَضَعِيفٌ». | ٤١ 41 |
जागते और दुआ करते रहो ताकि आज़्माइश में न पड़ो, रूह तो मुस्त'इद है मगर जिस्म कमज़ोर है।”
وَذَهَبَ ثَانِيَةً يُصَلِّي، فَقَالَ: «يَا أَبِي، إِنْ كَانَ لَا يُمْكِنُ أَنْ تَعْبُرَ عَنِّي هَذِهِ الْكَأْسُ إِلّا بِأَنْ أَشْرَبَهَا، فَلْتَكُنْ مَشِيئَتُك!» | ٤٢ 42 |
फिर दोबारा उसने जाकर यूँ दुआ की “ऐ मेरे बाप अगर ये मेरे पिए बग़ैर नहीं टल सकता तो तेरी मर्ज़ी पूरी हो।”
وَرَجَعَ إِلَى التَّلامِيذِ، فَوَجَدَهُمْ نَائِمِينَ أَيْضاً لأَنَّ النُّعَاسَ أَثْقَلَ أَعْيُنَهُمْ. | ٤٣ 43 |
और आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्यूँकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं।
فَتَرَكَهُمْ، وَعَادَ يُصَلِّي مَرَّةً ثَالِثَةً، وَرَدَّدَ الْكَلامَ نَفْسَهُ. | ٤٤ 44 |
और उनको छोड़ कर फिर चला गया, और फिर वही बात कह कर तीसरी बार दुआ की।
ثُمَّ رَجَعَ إِلَى تَلامِيذِهِ وَقَالَ: «نَامُوا الآنَ وَاسْتَرِيحُوا! حَانَتِ السَّاعَةُ، وَسَوْفَ يُسَلَّمُ ابْنُ الإِنْسَانِ إِلَى أَيْدِي الْخَاطِئِينَ. | ٤٥ 45 |
तब शागिर्दों के पास आकर उसने कहा “अब सोते रहो, और आराम करो, देखो वक़्त आ पहुँचा है, और इबने आदम गुनाहगारों के हवाले किया जाता है।
قُومُوا لِنَذْهَبَ! هَا قَدِ اقْتَرَبَ الَّذِي يُسَلِّمُنِي». | ٤٦ 46 |
उठो चलें, देखो, मेरा पकड़वाने वाला नज़दीक आ पहुँचा है।”
وَفِيمَا هُوَ يَتَكَلَّمُ، إِذَا يَهُوذَا، أَحَدُ الاِثْنَيْ عَشَرَ، قَدْ وَصَلَ وَمَعَهُ جَمْعٌ عَظِيمٌ يَحْمِلُونَ السُّيُوفَ وَالْعِصِيَّ، وَقَدْ أَرْسَلَهُمْ رُؤَسَاءُ الْكَهَنَةِ وَشُيُوخُ الشَّعْبِ. | ٤٧ 47 |
वो ये कह ही रहा था, कि यहूदाह जो उन बारह में से एक था, आया, और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों की तरफ़ से आ पहुँची।
وَكَانَ مُسَلِّمُهُ قَدْ أَعْطَاهُمْ عَلامَةً قَائِلاً: «الَّذِي أُقَبِّلُهُ هُوَ هُوَ؛ فَاقْبِضُوا عَلَيْهِ!» | ٤٨ 48 |
और उसके पकड़वाने वाले ने उनको ये निशान दिया था, जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ लेना।
فَتَقَدَّمَ فِي الْحَالِ إِلَى يَسُوعَ وَقَالَ: «سَلامٌ يَا سَيِّدِي!» وَقَبَّلَهُ. | ٤٩ 49 |
और फ़ौरन उसने ईसा के पास आ कर कहा, “ऐ रब्बी सलाम!” और उसके बोसे लिए।
فَقَالَ لَهُ يَسُوعُ: «يَا صَاحِبِي، لِمَاذَا أَنْتَ هُنَا؟» فَتَقَدَّمَ الْجَمْعُ وَأَلْقَوْا الْقَبْضَ عَلَى يَسُوعَ. | ٥٠ 50 |
ईसा' ने उससे कहा, “मियाँ! जिस काम को आया है वो कर ले”। इस पर उन्होंने पास आकर ईसा' पर हाथ डाला और उसे पकड़ लिया।
وَإذَا وَاحِدٌ مِنَ الَّذِينَ كَانُوا مَعَ يَسُوعَ قَدْ مَدَّ يَدَهُ وَاسْتَلَّ سَيْفَهُ، وَضَرَبَ عَبْدَ رَئِيسِ الْكَهَنَةِ، فَقَطَعَ أُذُنَهُ. | ٥١ 51 |
और देखो, ईसा के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ा कर अपनी तलवार खींची और सरदार काहिन के नौकर पर चला कर उसका कान उड़ा दिया।
فَقَالَ يَسُوعُ لَهُ: «رُدَّ سَيْفَكَ إِلَى غِمْدِهِ! فَإِنَّ الَّذِينَ يَلْجَأُونَ إِلَى السَّيْفِ، بِالسَّيْفِ يَهْلِكُونَ! | ٥٢ 52 |
ईसा' ने उससे कहा, “अपनी तलवार को मियान में कर क्यूँकि जो तलवार खींचते हैं वो सब तलवार से हलाक किए जाएँगे।
أَمْ تَظُنُّ أَنِّي لَا أَقْدِرُ الآنَ أَنْ أَطْلُبَ إِلَى أَبِي فَيُرْسِلَ لِي أَكْثَرَ مِنِ اثْنَيْ عَشَرَ جَيْشاً مِنَ الْمَلائِكَةِ؟ | ٥٣ 53 |
क्या तू नहीं समझता कि मैं अपने बाप से मिन्नत कर सकता हूँ, और वो फ़रिश्तों के बारह पलटन से ज़्यादा मेरे पास अभी मौजूद कर देगा?
وَلَكِنْ كَيْفَ يَتِمُّ الْكِتَابُ حَيْثُ يَقُولُ إِنَّ مَا يَحْدُثُ الآنَ لابُدَّ أَنْ يَحْدُثَ؟» | ٥٤ 54 |
मगर वो लिखे हुए का यूँ ही होना ज़रूर है क्यूँ कर पूरे होंगे?”
ثُمَّ وَجَّهَ يَسُوعُ كَلامَهُ إِلَى الْجُمُوعِ قَائِلاً: «خَرَجْتُمْ بِالسُّيُوفِ وَالْعِصِيِّ لِتَقْبِضُوا عَلَيَّ كَمَا عَلَى لِصٍّ. كُنْتُ كُلَّ يَوْمٍ بَيْنَكُمْ أُعَلِّمُ فِي الْهَيْكَلِ، وَلَمْ تَقْبِضُوا عَلَيَّ! | ٥٥ 55 |
उसी वक़्त ईसा' ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू की तरह पकड़ने निकले हो? मैं हर रोज़ हैकल में बैठकर ता'लीम देता था, और तुमने मुझे नहीं पकड़ा।
وَلَكِنْ، قَدْ حَدَثَ هَذَا كُلُّهُ لِتَتِمَّ كِتَابَاتُ الأَنْبِيَاءِ!» عِنْدَئِذٍ تَرَكَهُ التَّلامِيذُ كُلُّهُمْ وَهَرَبُوا! | ٥٦ 56 |
मगर ये सब कुछ इसलिए हुआ कि नबियों की नबुव्वत पूरी हों।” इस पर सब शागिर्द उसे छोड़ कर भाग गए।
وَأَمَّا الَّذِينَ قَبَضُوا عَلَى يَسُوعَ، فَسَاقُوهُ إِلَى قَيَافَا رَئِيسِ الْكَهَنَةِ، وَقَدِ اجْتَمَعَ عِنْدَهُ الْكَتَبَةُ وَالشُّيُوخُ. | ٥٧ 57 |
और ईसा के पकड़ने वाले उसको काइफ़ा नाम सरदार काहिन के पास ले गए, जहाँ आलिम और बुज़ुर्ग जमा हुए थे।
وَتَبِعَهُ بُطْرُسُ مِنْ بَعِيدٍ إِلَى دَارِ رَئِيسِ الْكَهَنَةِ، ثُمَّ تَقَدَّمَ إِلَى الدَّاخِلِ، وَجَلَسَ بَيْنَ الْحُرَّاسِ لِيَرَى النِّهَايَةَ. | ٥٨ 58 |
और पतरस दूर — दूर उसके पीछे — पीछे सरदार काहिन के दिवानख़ाने तक गया, और अन्दर जाकर प्यादों के साथ नतीजा देखने को बैठ गया।
وَانْعَقَدَ الْمَجْلِسُ مِنْ رُؤَسَاءِ الْكَهَنَةِ وَالشُّيُوخِ كُلِّهِمْ، وَبَحَثُوا عَنْ شَهَادَةِ زُورٍ عَلَى يَسُوعَ، لِيَحْكُمُوا عَلَيْهِ بِالْمَوْتِ، | ٥٩ 59 |
सरदार काहिन और सब सद्रे — ए 'अदालत वाले ईसा को मार डालने के लिए उसके ख़िलाफ़ झूठी गवाही ढूँडने लगे।
وَلَكِنَّهُمْ لَمْ يَجِدُوا، مَعَ أَنَّهُ حَضَرَ شُهُودُ زُورٍ كَثِيرُونَ. أَخِيراً تَقَدَّمَ اثْنَانِ | ٦٠ 60 |
मगर न पाई, गरचे बहुत से झूठे गवाह आए, लेकिन आख़िरकार दो गवाहों ने आकर कहा,
وَقَالا: «هَذَا قَالَ: إِنِّي أَقْدِرُ أَنْ أَهْدِمَ هَيْكَلَ اللهِ وَأَبْنِيَهُ فِي ثَلاثَةِ أَيَّامٍ». | ٦١ 61 |
“इस ने कहा है, कि मैं ख़ुदा के मक़दिस को ढा सकता और तीन दिन में उसे बना सकता हूँ।”
فَوَقَفَ رَئِيسُ الْكَهَنَةِ وَسَأَلَهُ: «أَمَا تُجِيبُ بِشَيْءٍ عَلَى مَا يَشْهَدُ بِهِ هَذَانِ عَلَيْكَ؟» | ٦٢ 62 |
और सरदार काहिन ने खड़े होकर उससे कहा, “तू जवाब नहीं देता? ये तेरे ख़िलाफ़ क्या गवाही देते हैं?”
وَلَكِنَّ يَسُوعَ ظَلَّ صَامِتاً. فَعَادَ رَئِيسُ الْكَهَنَةِ يَسْأَلُهُ: قَالَ: «أَسْتَحْلِفُكَ بِاللهِ الْحَيِّ أَنْ تَقُولَ لَنَا: هَلْ أَنْتَ الْمَسِيحُ ابْنُ اللهِ؟» | ٦٣ 63 |
मगर ईसा ख़ामोश ही रहा, सरदार काहिन ने उससे कहा, “मैं तुझे ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम देता हूँ, कि अगर तू ख़ुदा का बेटा मसीह है तो हम से कह दे?”
فَأَجَابَهُ يَسُوعُ: «أَنْتَ قُلْتَ! وَأَقُولُ لَكُمْ أَيْضاً إِنَّكُمْ مُنْذُ الآنَ سَوْفَ تَرَوْنَ ابْنَ الإِنْسَانِ جَالِساً عَنْ يَمِينِ الْقُدْرَةِ ثُمَّ آتِياً عَلَى سُحُبِ السَّمَاءِ!» | ٦٤ 64 |
ईसा' ने उससे कहा, “तू ने ख़ुद कह दिया बल्कि मैं तुम से कहता हूँ, कि इसके बाद इबने आदम को क़ादिर — ए मुतल्लिक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आसमान के बादलों पर आते देखोगे।”
فَشَقَّ رَئِيسُ الْكَهَنَةِ ثِيَابَهُ وَصَرَخَ: «قَدْ جَدَّفَ! لَا حَاجَةَ بِنَا بَعْدُ إِلَى شُهُودٍ. وَهَا أَنْتُمْ قَدْ سَمِعْتُمْ تَجْدِيفَهُ. | ٦٥ 65 |
इस पर सरदार काहिन ने ये कह कर अपने कपड़े फाड़े “उसने कुफ़्र बका है अब हम को गवाहों की क्या ज़रूरत रही? देखो, तुम ने अभी ये कुफ़्र सुना है।
فَمَا رَأْيُكُمْ؟» أَجَابُوا: «يَسْتَحِقُّ عُقُوبَةَ الْمَوْتِ!» | ٦٦ 66 |
तुम्हारी क्या राय है? उन्होंने जवाब में कहा, वो क़त्ल के लायक़ है।”
فَبَصَقُوا فِي وَجْهِهِ، وَضَرَبُوهُ، وَلَطَمَهُ بَعْضُهُمْ | ٦٧ 67 |
इस पर उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसके मुक्के मारे और कुछ ने तमाचे मार कर कहा।
قَائِلِينَ: «تَنَبَّأْ لَنَا، أَيُّهَا الْمَسِيحُ، مَنْ ضَرَبَك!» | ٦٨ 68 |
“ऐ मसीह, हमें नुबुव्वत से बता कि तुझे किस ने मारा।”
فِي تِلْكَ الأَثْنَاءِ كَانَ بُطْرُسُ جَالِساً فِي الدَّارِ الْخَارِجِيَّةِ، فَتَقَدَّمَتْ إِلَيْهِ خَادِمَةٌ وَقَالَتْ: «وَأَنْتَ كُنْتَ مَعَ يَسُوعَ الْجَلِيلِيِّ». | ٦٩ 69 |
पतरस बाहर सहन में बैठा था, कि एक लौंडी ने उसके पास आकर कहा, “तू भी ईसा गलीली के साथ था।”
فَأَنْكَرَ بُطْرُسُ أَمَامَ الْجَمِيعِ وَقَالَ: «لا أَدْرِي مَا تَقُولِينَ!» | ٧٠ 70 |
उसने सबके सामने ये कह कर इन्कार किया “मैं नहीं जानता तू क्या कहती है।”
ثُمَّ خَرَجَ إِلَى مَدْخَلِ الدَّارِ، فَعَرَفَتْهُ خَادِمَةٌ أُخْرَى، فَقَالَتْ لِلْحَاضِرِينَ هُنَاكَ: «وَهَذَا كَانَ مَعَ يَسُوعَ النَّاصِرِيِّ!» | ٧١ 71 |
और जब वो डेवढ़ी में चला गया तो दूसरी ने उसे देखा, और जो वहाँ थे, उनसे कहा, “ये भी ईसा नासरी के साथ था।”
فَأَنْكَرَ بُطْرُسُ مَرَّةً ثَانِيَةً وَأَقْسَمَ: «إِنِّي لَا أَعْرِفُ ذلِكَ الرَّجُلَ!» | ٧٢ 72 |
उसने क़सम खा कर फिर इन्कार किया “मैं इस आदमी को नहीं जानता।”
وَبَعْدَ قَلِيلٍ تَقَدَّمَ الْوَاقِفُونَ هُنَاكَ إِلَى بُطْرُسَ وَقَالُوا لَهُ: «بِالْحَقِّ إِنَّكَ وَاحِدٌ مِنْهُمْ، فَإِنَّ لَهْجَتَكَ تَدُلُّ عَلَيْكَ!» | ٧٣ 73 |
थोड़ी देर के बाद जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर कहा, “बेशक तू भी उन में से है, क्यूँकि तेरी बोली से भी ज़ाहिर होता है।”
فَابْتَدَأَ بُطْرُسُ يَلْعَنُ وَيَحْلِفُ، قَائِلاً: «إِنِّي لَا أَعْرِفُ ذَلِكَ الرَّجُلَ!» وَفِي الْحَالِ صَاحَ الدِّيكُ، | ٧٤ 74 |
इस पर वो ला'नत करने और क़सम खाने लगा “मैं इस आदमी को नहीं जानता!” और फ़ौरन मुर्ग़ ने बाँग दी।
فَتَذَكَّرَ بُطْرُسُ كَلِمَةَ يَسُوعَ إِذْ قَالَ لَهُ: «قَبْلَ أَنْ يَصِيحَ الدِّيكُ تَكُونُ قَدْ أَنْكَرْتَنِي ثَلاثَ مَرَّاتٍ». فَخَرَجَ إِلَى الْخَارِجِ، وَبَكَى بُكَاءً مُرّاً. | ٧٥ 75 |
पतरस को ईसा' की वो बात याद आई जो उसने कही थी: “मुर्ग़ के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” और वो बाहर जाकर ज़ार ज़ार रोया।