< مَلاخِي 1 >
هَذِهِ كَلِمَةُ الرَّبِّ الَّتِي أَوْحَى بِها بِشَأْنِ إِسْرَائِيلَ عَلَى لِسَانِ مَلاخِي: | ١ 1 |
ख़ुदावन्द की तरफ़ से मलाकी के ज़रिए' इस्राईल के लिए बार — ए — नबुव्वत:
يَقُولُ الرَّبُّ: «إِنَّنِي أَحْبَبْتُكُمْ»، وَلَكِنَّكُمْ تَسْأَلُونَ: «كَيْفَ أَحْبَبْتَنَا؟» وَيُجِيبُ الرَّبُّ: «أَلَيْسَ عِيسُو أَخاً لِيَعْقُوبَ؟ وَمَعَ ذَلِكَ أَحْبَبْتُ يَعْقُوبَ، | ٢ 2 |
ख़ुदावन्द फ़रमाता है, “मैंने तुम से मुहब्बत रख्खी, तोभी तुम कहते हो, 'तूने किस बात में हम से मुहब्बत ज़ाहिर की?” ख़ुदावन्द फ़रमाता है, “क्या 'एसौ या'क़ूब का भाई न था? लेकिन मैंने या'क़ूब से मुहब्बत रख्खी,
وَأَبْغَضْتُ عِيسُو، وَحَوَّلْتُ جِبَالَهُ إِلَى أَرَاضٍ مُوْحِشَةٍ، وَجَعَلْتُ مِيرَاثَهُ لِبَنَاتِ آوَى الْبَرِّيَّةِ.» | ٣ 3 |
और 'एसौ से 'अदावत रखी, और उसके पहाड़ों को वीरान किया और उसकी मीरास वीराने के गीदड़ों को दी।”
وَإِنْ قَالَ الأَدُومِيُّونَ: «مَعَ إِنَّنَا تَحَطَّمْنَا فَإِنَّنَا نَبْنِي الْخِرَبَ»، فَإِنَّ الرَّبَّ الْقَدِيرَ يَقُولُ: «هُمْ يُعَمِّرُونَ وَأَنَا أَهْدِمُ، وَيَدْعُو النَّاسُ بِلادَهُمْ،’أَرْضَ النِّفَاقِ‘، وَأَهْلَهَا بِالأُمَّةِ الَّتِي سَخَطَ الرَّبُّ عَلَيْهَا إِلَى الأَبَدِ. | ٤ 4 |
अगर अदोम कहे, “हम बर्बाद तो हुए, लेकिन वीरान जगहों को फिर आकर ता'मीर करेंगे, तो रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है, अगरचे वह ता'मीर करें, लेकिन मैं ढाऊँगा, और लोग उनका ये नाम रख्खेंगे, 'शरारत का मुल्क', 'वह लोग जिन पर हमेशा ख़ुदावन्द का क़हर है।”
وَتَشْهَدُ عُيُونُكُمْ هَذَا، وَتَقُولُونَ مَا أَعْظَمَ الرَّبَّ الَّذِي يَمْتَدُّ سُلْطَانُهُ إِلَى مَا وَرَاءِ تُخُومِ إِسْرَائِيلَ.» | ٥ 5 |
और तुम्हारी आँखें देखेंगी और तुम कहोगे कि “ख़ुदावन्द की तम्जीद, इस्राईल की हदों से आगे तक हो।”
«إِنَّ الابْنَ يُكْرِمُ أَبَاهُ وَالْعَبْدَ سَيِّدَهُ. فَإِنْ كُنْتُ أَنَا حَقّاً أَباً فَأَيْنَ كَرَامَتِي؟ وَإِنْ كُنْتُ حَقّاً سَيِّداً فَأَيْنَ مَهَابَتِي؟» إِنَّ الرَّبَّ الْقَدِيرَ يَقُولُ لَكُمْ: «أَيُّهَا الْكَهَنَةُ الْمُزْدَرُونَ بِاسْمِي»؛ فَتَسْأَلُونَ: «كَيْفَ ازْدَرَيْنَا بِاسْمِكَ؟» | ٦ 6 |
रब्बुल — उल — अफ़वाज तुम को फ़रमाता है: “ऐ मेरे नाम की तहक़ीर करने वाले काहिनों, बेटा अपने बाप की, और नौकर अपने आक़ा की ता'ज़ीम करता है। इसलिए अगर मैं बाप हूँ, तो मेरी 'इज़्ज़त कहाँ है? और अगर आक़ा हूँ, तो मेरा ख़ौफ़ कहाँ है? लेकिन तुम कहते हो, 'हमने किस बात में तेरे नाम की तहक़ीर की?'
فَيُجِيبُ: «لأَنَّكُمْ تُقَرِّبُونَ عَلَى مَذْبَحِي خُبْزاً نَجِساً». ثُمَّ تَتَسَاءَلُونَ: «بِمَ نَجَّسْنَاكَ؟» فَيَرُدُّ: «بِظَنِّكُمْ أَنَّ مَائِدَةَ الرَّبِّ مُزْدَرَاةٌ. | ٧ 7 |
तुम मेरे मज़बह पर नापाक रोटी पेश करते हो और कहते हो कि 'हमने किस बात में तेरी तौहीन की?' इसी में जो कहते हो, ख़ुदावन्द की मेज़ हक़ीर है।
عِنْدَمَا تُقَرِّبُونَ الْحَيَوَانَ الأَعْمَى ذَبِيحَةً، أَلَيْسَ ذَلِكَ شَرّاً؟ أَوْ حِينَ تُقَدِّمُونَ الْحَيَوَانَ الأَعْرَجَ وَالْمَرِيضَ، أَلَيْسَ هَذَا شَرّاً؟ قَدِّمُوا مِثْلَ هَذَا الْقُرْبَانِ هَدِيَّةً لِحَاكِمِكُمْ، أَفَيَرْضَى عَنْكُمْ وَيُكْرِمُكُمْ؟» يَقُولُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ. | ٨ 8 |
जब तुम अंधे की क़ुर्बानी करते हो, तो कुछ बुराई नहीं? और जब लंगड़े और बीमार को पेश करते हो, तो कुछ नुक़सान नहीं? अब यही अपने हाकिम की नज़्र कर, क्या वह तुझ से ख़ुश होगा और तू उसका मंज़ूर — ए — नज़र होगा? रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।
«الآنَ الْتَمِسُوا رِضَى اللهِ لِيَرْأَفَ بِنَا، وَلَكِنْ هَلْ بِمِثْلِ هَذِهِ الْقَرَابِينِ الْمُعْتَلَّةِ يَرْضَى عَنْكُمْ؟» يَقُولُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ. | ٩ 9 |
अब ज़रा ख़ुदा को मनाओ, ताकि वह हम पर रहम फ़रमाए। तुम्हारे ही हाथों ने ये पेश किया है; क्या तुम उसके मंज़ूर — ए — नज़र होगे? रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।
«آهِ، يَا لَيْتَ بَيْنَكُمْ مَنْ يُغْلِقُ أَبْوَابَ الْهَيْكَلِ لِئَلّا تُوْقِدُوا نَاراً بَاطِلَةً عَلَى مَذْبَحِي»، يَقُولُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ: «إِذْ لَا مَسَرَّةَ لِي بِكُمْ وَلا أَرْضَى بِتَقْدِمَةٍ مِنْ أَيْدِيكُمْ. | ١٠ 10 |
काश कि तुम में कोई ऐसा होता जो दरवाज़े बंद करता, और तुम मेरे मज़बह पर 'अबस आग न जलाते, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है, मैं तुम से ख़ुश नहीं हूँ और तुम्हारे हाथ का हदिया हरगिज़ क़ुबूल न करूँगा।
لأَنَّهُ مِنْ مَشْرِقِ الشَّمْسِ إِلَى مَغْرِبِهَا اسْمِي عَظِيمٌ بَيْنَ الأُمَمِ، وَفِي كُلِّ مَكَانٍ يُحْرَقُ لاِسْمِي بَخُورٌ وَذَبَائِحُ طَاهِرَةٌ، لأَنَّ اسْمِي عَظِيمٌ بَيْنَ الأُمَمِ، يَقُولُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ. | ١١ 11 |
क्यूँकि आफ़ताब के तुलू' से ग़ुरुब तक क़ौमों में मेरे नाम की तम्जीद होगी, और हर जगह मेरे नाम पर ख़ुशबू जलाएँगे और पाक हदिये पेश करेंगे; क्यूँकि क़ौमों में मेरे नाम की तम्जीद होगी, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।
أَمَّا أَنْتُمْ فَقَدْ دَنَّسْتُمُوهُ، إِذْ قُلْتُمْ إِنَّ مَائِدَةَ الرَّبِّ نَجِسَةٌ، وَإِنَّ طَعَامَهَا فَاسِدٌ وَمُزْدَرىً. | ١٢ 12 |
लेकिन तुम इस बात में उसकी तौहीन करते हो, कि तुम कहते हो, 'ख़ुदावन्द की मेज़ पर क्या है, उस पर के हदिये बेहक़ीक़त हैं।
ثُمَّ قُلْتُمْ:’مَا هَذِهِ الْمَشَقَّةُ الَّتِي نَتَكَبَّدُهَا؟‘وَتَأَفَّفْتُمْ عَلَيَّ»، يَقُولُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ. «وَتُقَرِّبُونَ إِلَيَّ مَا اسْتَوْلَيْتُمْ عَلَيْهِ ظُلْماً وَمَا هُوَ أَعْرَجُ أَوْ مَرِيضٌ، فَيَكُونُ هَذَا تَقْدِمَةَ قُرْبَانِكُمْ، فَهَلْ أَقْبَلُ هَذَا مِنْ أَيْدِيكُمْ؟» يَقُولُ الرَّبُّ. | ١٣ 13 |
और तुम ने कहा, 'ये कैसी ज़हमत है,' और उस पर नाक चढ़ाई रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है। फिर तुम लूट का माल और लंगड़े और बीमार ज़बीहे लाए, और इसी तरह के हदिये पेश करे! क्या मैं इनको तुम्हारे हाथ से क़ुबूल करूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
«مَلْعُونٌ الْمُنَافِقُ الَّذِي يَنْذُرُ لِلرَّبِّ ذَكَراً سَلِيماً مِنْ قَطِيعِهِ، ثُمَّ يُقَرِّبُ لِلرَّبِّ مَا هُوَ مُصَابٌ بِعَيْبٍ، لأَنِّي مَلِكٌ عَظِيمٌ وَاسْمِي مَهُوبٌ بَيْنَ الأُمَمِ»، يَقُولُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ. | ١٤ 14 |
ला'नत उस दग़ाबाज़ पर जिसके गल्ले में नर है, लेकिन ख़ुदावन्द के लिए 'ऐबदार जानवर की नज़्र मानकर पेश करता है; क्यूँकि मैं शाह — ए — 'अज़ीम हूँ और क़ौमों में मेरा नाम मुहीब है, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।