< لُوقا 12 >

وَفِي تِلْكَ الأَثْنَاءِ، إِذِ احْتَشَدَ عَشَرَاتُ الأُلُوفِ مِنَ الشَّعْبِ حَتَّى دَاسَ بَعْضُهُمْ بَعْضاً، أَخَذَ يَقُولُ لِتَلامِيذِهِ أَوَّلاً: «احْذَرُوا لأَنْفُسِكُمْ مِنْ خَمِيرِ الْفَرِّيسِيِّينَ الَّذِي هُوَ النِّفَاقُ! ١ 1
इसी समय वहां हज़ारों लोगों का इतना विशाल समूह इकट्ठा हो गया कि वे एक दूसरे पर गिर रहे थे. प्रभु येशु ने सबसे पहले अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए कहा, “फ़रीसियों के खमीर अर्थात् ढोंग से सावधान रहो.
فَمَا مِنْ مَسْتُورٍ لَنْ يُكْشَفَ، وَلا مِنْ سِرٍّ لَنْ يُعْرَفَ. ٢ 2
ऐसा कुछ भी ढका नहीं, जिसे खोला न जाएगा या ऐसा कोई रहस्य नहीं, जिसे प्रकट न किया जाएगा.
لِذَلِكَ كُلُّ مَا قُلْتُمُوهُ فِي الظَّلامِ سَوْفَ يُسْمَعُ فِي النُّورِ، وَمَا تَحَدَّثْتُمْ بِهِ هَمْساً فِي الْغُرَفِ الدَّاخِلِيَّةِ سَوْفَ يُذَاعُ عَلَى سُطُوحِ الْبُيُوتِ. ٣ 3
वे शब्द, जो तुमने अंधकार में कहे हैं, प्रकाश में सुने जाएंगे, जो कुछ तुमने भीतरी कमरे में कानों में कहा है, वह छत से प्रचार किया जाएगा.
عَلَى أَنِّي أَقُولُ لَكُمْ يَا أَحِبَّائِي: لَا تَخَافُوا مِنَ الَّذِينَ يَقْتُلُونَ الْجَسَدَ ثُمَّ لَا يَسْتَطِيعُونَ أَنْ يَفْعَلُوا أَكْثَرَ مِنْ ذلِكَ. ٤ 4
“मेरे मित्रों, मेरी सुनो: उनसे भयभीत न हो, जो शरीर का तो नाश कर सकते हैं किंतु इसके बाद इससे अधिक और कुछ नहीं
وَلكِنِّي أُرِيكُمْ مِمَّنْ تَخَافُونَ: خَافُوا مِنَ الْقَادِرِ أَنْ يُلْقِيَ فِي جَهَنَّمَ بَعْدَ الْقَتْلِ. نَعَمْ، أَقُولُ لَكُمْ، مِنْ هَذَا خَافُوا! (Geenna g1067) ٥ 5
पर मैं तुम्हें समझाता हूं कि तुम्हारा किससे डरना सही है: उन्हीं से, जिन्हें शरीर का नाश करने के बाद नर्क में झोंकने का अधिकार है. सच मानो, तुम्हारा उन्हीं से डरना उचित है. (Geenna g1067)
أَمَا تُبَاعُ خَمْسَةُ عَصَافِيرَ بِفَلْسَيْنِ؟ وَمَعَ ذلِكَ لَا يَنْسَى اللهُ وَاحِداً مِنْهَا. ٦ 6
क्या दो अस्सारिओन में पांच गौरैयां नहीं बेची जातीं? फिर भी परमेश्वर उनमें से एक को भी नहीं भूलते.
بَلْ إِنَّ شَعْرَ رُؤُوسِكُمْ كُلَّهُ مَعْدُودٌ. فَلا تَخَافُوا إِذَنْ، أَنْتُمْ أَفْضَلُ مِنْ عَصَافِيرَ كَثِيرَةٍ! ٧ 7
तुम्हारे सिर का तो एक-एक बाल गिना हुआ है. इसलिये भयभीत न हो. तुम्हारा दाम अनेक गौरैया से कहीं अधिक है.
وَلكِنْ أَقُولُ لَكُمْ: كُلُّ مَنْ يَعْتَرِفُ بِي أَمَامَ النَّاسِ، يَعْتَرِفُ بِهِ ابْنُ الإِنْسَانِ أَيْضاً أَمَامَ مَلائِكَةِ اللهِ. ٨ 8
“मैं तुमसे कहता हूं कि जो कोई मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करता है, मनुष्य का पुत्र उसे परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने स्वीकार करेगा,
وَمَنْ أَنْكَرَنِي أَمَامَ النَّاسِ، يُنْكَرْ أَمَامَ مَلائِكَةِ اللهِ. ٩ 9
किंतु जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करता है, उसका परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने इनकार किया जाएगा.
وَمَنْ قَالَ كَلِمَةً بِحَقِّ ابْنِ الإِنْسَانِ، يُغْفَرُ لَهُ. وَأَمَّا مَنْ ازْدَرَى بِالرُّوحِ الْقُدُسِ، فَلَنْ يُغْفَرَ لَهُ! ١٠ 10
यदि कोई मनुष्य के पुत्र के विरुद्ध एक भी शब्द कहता है, उसे तो क्षमा कर दिया जाएगा किंतु पवित्र आत्मा की निंदा बिलकुल क्षमा न की जाएगी.
وَعِنْدَمَا يُؤْتَى بِكُمْ لِلْمُثُولِ أَمَامَ الْمَجَامِعِ وَالْحُكَّامِ وَالسُّلْطَاتِ، فَلا تَهْتَمُّوا كَيْفَ أَوْ بِمَاذَا تَرُدُّونَ، وَلا بِمَا تَقُولُونَ! ١١ 11
“जब तुम उनके द्वारा सभागृहों, शासकों और अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किए जाओ तो इस विषय में कोई चिंता न करना कि अपने बचाव में तुम्हें क्या उत्तर देना है या क्या कहना है
فَإِنَّ الرُّوحَ الْقُدُسَ سَيُلَقِّنُكُمْ فِي تِلْكَ السَّاعَةِ عَيْنِهَا مَا يَجِبُ أَنْ تَقُولُوا». ١٢ 12
क्योंकि पवित्र आत्मा ही तुम पर प्रकट करेंगे कि उस समय तुम्हारा क्या कहना सही होगा.”
وَقَالَ لَهُ وَاحِدٌ مِنْ بَيْنِ الْجَمْعِ: «يَا مُعَلِّمُ، قُلْ لأَخِي أَنْ يُقَاسِمَنِي الإِرْثَ!» ١٣ 13
उपस्थित भीड़ में से किसी ने प्रभु येशु से कहा, “गुरुवर, मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे साथ पिता की संपत्ति का बंटवारा कर ले.”
وَلكِنَّهُ قَالَ لَهُ: «يَا إِنْسَانُ، مَنْ أَقَامَنِي عَلَيْكُمَا قَاضِياً أَوْ مُقَسِّماً؟» ١٤ 14
प्रभु येशु ने इसके उत्तर में कहा, “हे मानव! किसने मुझे तुम्हारे लिए न्यायकर्ता या मध्यस्थ ठहराया है?”
وَقَالَ لِلْجَمْعِ: «احْذَرُوا وَتَحَفَّظُوا مِنَ الطَّمَعِ. فَمَتَى كَانَ الإِنْسَانُ فِي سِعَةٍ، لَا تَكُنْ حَيَاتُهُ فِي أَمْوَالِهِ». ١٥ 15
तब प्रभु येशु ने भीड़ को देखते हुए उन्हें चेतावनी दी, “स्वयं को हर एक प्रकार के लालच से बचाए रखो. मनुष्य का जीवन उसकी संपत्ति की बहुतायत होने पर भला नहीं है.”
وَضَرَبَ لَهُمْ مَثَلاً، قَالَ «إِنْسَانٌ غَنِيٌّ أَنْتَجَتْ لَهُ أَرْضُهُ مَحَاصِيلَ وَافِرَةً. ١٦ 16
तब प्रभु येशु ने उनके सामने यह दृष्टांत प्रस्तुत किया: “किसी व्यक्ति की भूमि से अच्छी फसल उत्पन्‍न हुई.
فَفَكَّرَ فِي نَفْسِهِ قَائِلاً: مَاذَا أَعْمَلُ وَلَيْسَ عِنْدِي مَكَانٌ أَخْزِنُ فِيهِ مَحَاصِيلِي؟ ١٧ 17
उसने मन में विचार किया, ‘अब मैं क्या करूं? फसल रखने के लिए तो मेरे पास स्थान ही नहीं है.’
وَقَالَ: أَعْمَلُ هَذَا: أَهْدِمُ مَخَازِنِي وَأَبْنِي أَعْظَمَ مِنْهَا، وَهُنَاكَ أَخْزِنُ جَمِيعَ غِلَالِي وَخَيْرَاتِي. ١٨ 18
“फिर उसने विचार किया, ‘मैं ऐसा करता हूं: मैं इन बखारों को तोड़कर बड़े भंडार निर्मित करूंगा. तब मेरी सारी उपज तथा वस्तुओं का रख रखाव हो सकेगा.
وَأَقُولُ لِنَفْسِي: يَا نَفْسُ، عِنْدَكِ خَيْرَاتٌ كَثِيرَةٌ مَخْزُونَةٌ لِسِنِينَ عَدِيدَةٍ، فَاسْتَرِيحِي وَكُلِي وَاشْرَبِي وَافْرَحِي! ١٩ 19
तब मैं स्वयं से कहूंगा, “अनेक वर्षों के लिए अब तेरे लिए उत्तम वस्तुएं इकट्ठा हैं. विश्राम कर! खा, पी और आनंद कर!”’
وَلكِنَّ اللهَ قَالَ لَهُ: يَا غَبِيُّ، هذِهِ اللَّيْلَةَ تُطْلَبُ نَفْسُكَ مِنْكَ، فَلِمَنْ يَبْقَى مَا أَعْدَدْتَهُ؟ ٢٠ 20
“किंतु परमेश्वर ने उससे कहा, ‘अरे मूर्ख! आज ही रात तेरे प्राण तुझसे ले लिए जाएंगे; तब ये सब, जो तूने अपने लिए इकट्ठा कर रखा है, किसका होगा?’
هَذِهِ هِيَ حَالَةُ مَنْ يَخْزِنُ الْكُنُوزَ لِنَفْسِهِ وَلا يَكُونُ غَنِيًّا عِنْدَ اللهِ!» ٢١ 21
“यही है उस व्यक्ति की स्थिति, जो मात्र अपने लिए इस प्रकार इकट्ठा करता है किंतु जो परमेश्वर की दृष्टि में धनवान नहीं है.”
ثُمَّ قَالَ لِتَلامِيذِهِ: «لِهَذَا السَّبَبِ أَقُولُ لَكُمْ: لَا تَهْتَمُّوا لِحَيَاتِكُمْ بِمَا تَأْكُلُونَ، وَلا لأَجْسَادِكُمْ بِمَا تَكْتَسُونَ. ٢٢ 22
इसके बाद अपने शिष्यों से उन्मुख हो प्रभु येशु ने कहा, “यही कारण है कि मैंने तुमसे कहा है, अपने जीवन के विषय में यह चिंता न करो कि हम क्या खाएंगे या अपने शरीर के विषय में कि हम क्या पहनेंगे.
إِنَّ الْحَيَاةَ أَكْثَرُ مِنْ مُجَرَّدِ طَعَامٍ، وَالْجَسَدَ أَكْثَرُ مِنْ مُجَرَّدِ كِسَاءٍ. ٢٣ 23
जीवन भोजन से तथा शरीर वस्त्रों से बढ़कर है.
تَأَمَّلُوا الْغِرْبَانَ! فَهِيَ لَا تَزْرَعُ وَلا تَحْصُدُ، وَلَيْسَ عِنْدَهَا مَخْزَنٌ وَلا مُسْتَوْدَعٌ، بَلْ يَعُولُهَا اللهُ. فَكَمْ أَنْتُمْ أَفْضَلُ كَثِيراً مِنَ الطُّيُورِ. ٢٤ 24
कौवों पर विचार करो: वे न तो बोते हैं और न काटते हैं. उनके न तो खलिहान होते हैं और न भंडार; फिर भी परमेश्वर उन्हें भोजन प्रदान करते हैं. तुम्हारा दाम पक्षियों से कहीं अधिक बढ़कर है!
وَلكِنْ، أَيٌّ مِنْكُمْ، إِذَا اهْتَمَّ يَقْدِرُ أَنْ يُطِيلَ عُمْرَهُ وَلَوْ سَاعَةً وَاحِدَةً؟ ٢٥ 25
तुममें से कौन है, जो चिंता के द्वारा अपनी आयु में एक पल भी बढ़ा पाया है?
فَمَادُمْتُمْ غَيْرَ قَادِرِينَ وَلَوْ عَلَى أَصْغَرِ الأُمُورِ، فَلِمَاذَا تَهْتَمُّونَ بِالأُمُورِ الأُخْرَى؟ ٢٦ 26
जब तुम यह छोटा सा काम ही नहीं कर सकते तो भला अन्य विषयों के लिए चिंतित क्यों रहते हो?
تَأَمَّلُوا الزَّنَابِقَ كَيْفَ تَنْمُو! فَهِيَ لَا تَتْعَبُ وَلا تَغْزِلُ، وَلكِنِّي أَقُولُ لَكُمْ: حَتَّى سُلَيْمَانُ فِي قِمَّةِ مَجْدِهِ لَمْ يَكْتَسِ مَا يُعَادِلُ وَاحِدَةً مِنْهَا بَهَاءً؟ ٢٧ 27
“जंगली फूलों को देखो! वे न तो कताई करते हैं और न बुनाई; परंतु मैं कहता हूं कि राजा शलोमोन तक अपने सारे ऐश्वर्य में इनमें से एक के तुल्य भी सजे न थे.
فَإِنْ كَانَ اللهُ يَكْسُو الْعُشْبَ ثَوْباً كَهَذَا، مَعَ أَنَّهُ يَكُونُ الْيَوْمَ فِي الْحَقْلِ وَغَداً يُطْرَحُ فِي التَّنُّورِ، فَكَمْ أَنْتُمْ أَوْلَى مِنَ الْعُشْبِ (بِأَنْ يَكْسُوَكُمُ اللهُ) يَا قَلِيلِي الإِيمَانِ؟ ٢٨ 28
यदि परमेश्वर घास का श्रृंगार इस सीमा तक करते हैं, जिसका जीवन थोड़े समय का है और जो कल आग में झोंक दिया जाएगा, क्या वह तुम्हें और कितना अधिक सुशोभित न करेंगे? कैसा कमजोर है तुम्हारा विश्वास!
فَعَلَيْكُمْ أَنْتُمْ أَلّا تَسْعَوْا إِلَى مَا تَأْكُلُونَ وَتَشْرَبُونَ، وَلا تَكُونُوا قَلِقِينَ. ٢٩ 29
इस उधेड़-बुन में लगे न रहो कि तुम क्या खाओगे या क्या पियोगे और न ही इसकी कोई चिंता करो.
فَهذِهِ الْحَاجَاتُ كُلُّهَا تَسْعَى إِلَيْهَا أُمَمُ الْعَالَمِ، وَأَبُوكُمْ يَعْلَمُ أَنَّكُمْ تَحْتَاجُونَ إِلَيْهَا. ٣٠ 30
विश्व के सभी राष्ट्र इसी कार्य में लगे हैं. तुम्हारे पिता को पहले ही यह मालूम है कि तुम्हें इन वस्तुओं की ज़रूरत है.
إِنَّمَا اسْعَوْا إِلَى مَلَكُوتِهِ، فَتُزَادُ لَكُمْ هذِهِ كُلُّهَا. ٣١ 31
इनकी जगह परमेश्वर के राज्य की खोज करो और ये सभी वस्तुएं तुम्हारी हो जाएंगी.
لَا تَخَفْ، أَيُّهَا الْقَطِيعُ الصَّغِيرُ، لأَنَّ أَبَاكُمْ قَدْ سُرَّ أَنْ يُعْطِيَكُمُ الْمَلَكُوتَ. ٣٢ 32
“तुम, जो संख्या में कम हो, भयभीत न होना क्योंकि तुम्हारे पिता तुम्हें राज्य देकर संतुष्ट हुए हैं.
بِيعُوا مَا تَمْلِكُونَ وَأَعْطُوا صَدَقَةً، وَاجْعَلُوا لَكُمْ أَكْيَاساً لَا تَبْلَى، كَنْزاً فِي السَّمَاوَاتِ لَا يَنْفَدُ، حَيْثُ لَا يَقْتَرِبُ لِصٌّ وَلا يُفْسِدُ سُوسٌ. ٣٣ 33
अपनी संपत्ति बेचकर प्राप्‍त धनराशि निर्धनों में बांट दो. अपने लिए ऐसा धन इकट्ठा करो, जो नष्ट नहीं किया जा सकता है—स्वर्ग में इकट्ठा किया धन; जहां न तो किसी चोर की पहुंच है और न ही विनाश करनेवाले कीड़ों की.
لأَنَّهُ حَيْثُ يَكُونُ كَنْزُكُمْ، يَكُونُ قَلْبُكُمْ أَيْضاً. ٣٤ 34
क्योंकि जहां तुम्हारा धन है, वहीं तुम्हारा मन भी होगा.”
لِتَكُنْ أَوْسَاطُكُمْ مَشْدُودَةً بِالأَحْزِمَةِ وَمَصَابِيحُكُمْ مُضَاءَةً، ٣٥ 35
“हमेशा तैयार रहो तथा अपने दीप जलाए रखो,
وَكُونُوا مِثْلَ أُنَاسٍ يَنْتَظِرُونَ رُجُوعَ سَيِّدِهِمْ مِنْ وَلِيمَةِ الْعُرْسِ، حَتَّى إِذَا وَصَلَ وَقَرَعَ الْبَابَ يَفْتَحُونَ لَهُ حَالاً. ٣٦ 36
उन सेवकों के समान, जो अपने स्वामी की प्रतीक्षा में हैं कि वह जब विवाहोत्सव से लौटकर आए और द्वार खटखटाए तो वे तुरंत उसके लिए द्वार खोल दें.
طُوبَى لأُولئِكَ الْعَبِيدِ الَّذِينَ يَجِدُهُمْ سَيِّدُهُمْ لَدَى عَوْدَتِهِ سَاهِرِينَ. الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ يَشُدُّ وَسَطَهُ بِالْحِزَامِ وَيَجْعَلُهُمْ يَتَّكِئُونَ وَيَقُومُ يَخْدِمُهُمْ. ٣٧ 37
धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी लौटने पर जागते पाएगा. सच तो यह है कि स्वामी ही सेवक के वस्त्र धारण कर उन्हें भोजन के लिए बैठाएगा तथा स्वयं उन्हें भोजन परोसेगा.
فَطُوبَى لَهُمْ إِذَا رَجَعَ فِي الرُّبْعِ الثَّانِي أَوِ الثَّالِثِ مِنَ اللَّيْلِ وَوَجَدَهُمْ عَلَى تِلْكَ الْحَالِ. ٣٨ 38
धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे प्रहर में भी आकर जागते पाए.
وَلَكِنِ اعْلَمُوا هَذَا: أَنَّهُ لَوْ كَانَ رَبُّ الْبَيْتِ يَعْرِفُ فِي أَيَّةِ سَاعَةٍ يَدْهَمُهُ اللِّصُّ، لَكَانَ سَهِرَ وَمَا تَرَكَ بَيْتَهُ يُنْقَبُ. ٣٩ 39
किंतु तुम यह जान लो: यदि घर के स्वामी को यह मालूम हो कि चोर किस समय आएगा तो वह उसे अपने घर में घुसने ही न दे.
فَكُونُوا أَنْتُمْ مُسْتَعِدِّينَ، لأَنَّ ابْنَ الإِنْسَانِ سَيَعُودُ فِي سَاعَةٍ لَا تَتَوَقَّعُونَهَا». ٤٠ 40
तुम्हारा भी इसी प्रकार सावधान रहना ज़रूरी है क्योंकि मनुष्य के पुत्र का आगमन ऐसे समय पर होगा जिसकी तुम कल्पना तक नहीं कर सकते.”
وَسَأَلَهُ بُطْرُسُ: «يَا رَبُّ، أَلَنَا تَضْرِبُ هَذَا الْمَثَلَ أَمْ لِلْجَمِيعِ عَلَى السَّوَاءِ؟» ٤١ 41
पेतरॉस ने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, आपका यह दृष्टांत मात्र हमारे लिए ही है या भीड़ के लिए भी?”
فَقَالَ الرَّبُّ: «مَنْ هُوَ إِذَنِ الْوَكِيلُ الأَمِينُ الْعَاقِلُ الَّذِي يُقِيمُهُ سَيِّدُهُ عَلَى أَهْلِ بَيْتِهِ لِيُقَدِّمَ لَهُمْ حِصَّتَهُمْ مِنَ الطَّعَامِ فِي حِينِهَا؟ ٤٢ 42
प्रभु ने उत्तर दिया, “वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान भंडारी कौन होगा जिसे स्वामी सभी सेवकों का प्रधान ठहराए कि वह अन्य सेवकों को निर्धारित समय पर भोज्य सामग्री दे दे.
طُوبَى لِذَلِكَ الْعَبْدِ الَّذِي يَجِدُهُ سَيِّدُهُ، لَدَى رُجُوعِهِ، يَقُومُ بِهَذَا الْعَمَلِ. ٤٣ 43
धन्य है वह सेवक, जिसे घर का स्वामी लौटने पर यही करते हुए पाए.
الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ يُقِيمُهُ عَلَى جَمِيعِ مُمْتَلَكَاتِهِ. ٤٤ 44
सच्चाई तो यह है कि घर का स्वामी उस सेवक के हाथों में अपनी सारी संपत्ति की ज़िम्मेदारी सौंप देगा.
وَلكِنْ إِذَا قَالَ ذَلِكَ الْعَبْدُ فِي نَفْسِهِ: سَيِّدِي سَيَتَأخَّرُ فِي رُجُوعِهِ؛ وَأَخَذَ يَضْرِبُ الْخَادِمِينَ وَالْخَادِمَاتِ وَيَأْكُلُ وَيَشْرَبُ وَيَسْكَرُ، ٤٥ 45
किंतु यदि वह दास अपने मन में कहने लगे, ‘अभी तो मेरे स्वामी के लौटने में बहुत समय है’ और वह अन्य दास-दासियों की पिटाई करने लगे और खा-पीकर नशे में चूर हो जाए.
فَإِنَّ سَيِّدَ ذَلِكَ الْعَبْدِ يَرْجِعُ فِي يَوْمٍ لَا يَتَوَقَّعُهُ وَسَاعَةٍ لَا يَعْرِفُهَا، فَيُمَزِّقُهُ وَيَجْعَلُ مَصِيرَهُ مَعَ الْخَائِنِينَ. ٤٦ 46
उसका स्वामी एक ऐसे दिन लौटेगा, जिसकी उसने कल्पना ही न की थी और एक ऐसे क्षण में, जिसके विषय में उसे मालूम ही न था तो स्वामी उसके टुकड़े-टुकड़े कर उसकी गिनती अविश्वासियों में कर देगा.
وَأَمَّا ذَلِكَ الْعَبْدُ الَّذِي يَعْمَلُ بِإِرَادَةِ سَيِّدِهِ، فَإِنَّهُ سَيُضْرَبُ كَثِيراً. ٤٧ 47
“वह दास, जिसे अपने स्वामी की इच्छा का पूरा पता था किंतु वह न तो इसके लिए तैयार था और न उसने उसकी इच्छा के अनुसार व्यवहार ही किया, कठोर दंड पाएगा.
وَلكِنَّ الَّذِي لَا يَعْلَمُهَا وَيَعْمَلُ مَا يَسْتَوْجِبُ الضَّرْبَ، فَإِنَّهُ سَيُضْرَبُ قَلِيلاً. فَكُلُّ مَنْ أُعْطِيَ كَثِيراً، يُطْلَبُ مِنْهُ كَثِيرٌ؛ وَمَنْ أُوْدِعَ كَثِيراً، يُطَالَبُ بِأَكْثَرَ. ٤٨ 48
किंतु वह, जिसे इसका पता ही न था और उसने दंड पाने योग्य अपराध किए, कम दंड पाएगा. हर एक से, जिसे बहुत ज्यादा दिया गया है उससे बहुत ज्यादा मात्रा में ही लिया जाएगा तथा जिसे अधिक मात्रा में सौंपा गया है, उससे अधिक का ही हिसाब लिया जाएगा.
جِئْتُ لأُلْقِيَ عَلَى الأَرْضِ نَاراً، فَلَكَمْ أَوَدُّ أَنْ تَكُونَ قَدِ اشْتَعَلَتْ؟ ٤٩ 49
“मैं पृथ्वी पर आग बरसाने के लक्ष्य से आया हूं और कैसा उत्तम होता यदि यह इसी समय हो जाता!
وَلكِنَّ لِي مَعْمُودِيَّةَ أَلَمٍ عَلَيَّ أَنْ أَتَعَمَّدَ بِها، وَكَمْ أَنَا مُتَضَايِقٌ حَتَّى تَتِمَّ! ٥٠ 50
किंतु मेरे लिए बपतिस्मा की प्रक्रिया निर्धारित है और जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, कैसी दुःखदायी है इसकी पीड़ा!
أَتَظُنَّونَ أَنِّي جِئْتُ لأُرْسِيَ السَّلامَ عَلَى الأرْضِ؟ أَقُولُ لَكُمْ: لا، بَلْ بِالأَحْرَى الانْقِسَامَ: ٥١ 51
क्या विचार है तुम्हारा—क्या मैं पृथ्वी पर मेल-मिलाप के लिए आया हूं? नहीं! मेल-मिलाप नहीं, परंतु फूट के लिए.
فَإِنَّهُ مُنْذُ الآنَ يَكُونُ فِي الْبَيْتِ الْوَاحِدِ خَمْسَةٌ فَيَنْقَسِمُونَ: ثَلاثَةٌ عَلَى اثْنَيْنِ، وَاثْنَانِ عَلَى ثَلاثَةٍ ٥٢ 52
अब से पांच सदस्यों के परिवार में फूट पड़ जाएगी तीन के विरुद्ध दो और दो के विरुद्ध तीन.
فَالأَبُ يَنْقَسِمُ عَلَى ابْنِهِ، وَالابْنُ عَلَى أَبِيهِ، وَالأُمُّ عَلَى بِنْتِهَا، وَالْبِنْتُ عَلَى أُمِّهَا، وَالْحَمَاةُ عَلَى كَنَّتِهَا، وَالْكَنَّةُ عَلَى حَمَاتِهَا!» ٥٣ 53
वे सब एक दूसरे के विरुद्ध होंगे—पिता पुत्र के और पुत्र पिता के; माता पुत्री के और पुत्री माता के; सास पुत्र-वधू के और पुत्र-वधू सास के.”
وَقَالَ أَيْضاً لِلْجُمُوعِ: «عِنْدَمَا تَرَوْنَ سَحَابَةً تَطْلُعُ مِنَ الْغَرْبِ، تَقُولُونَ حَالاً: الْمَطَرُ آتٍ! وَهكَذَا يَكُونُ. ٥٤ 54
भीड़ को संबोधित करते हुए प्रभु येशु ने कहा, “जब तुम पश्चिम दिशा में बादल उठते देखते हो तो तुम तुरंत कहते हो, ‘बारिश होगी’ और बारिश होती है.
وَعِنْدَمَا تَهُبُّ رِيحُ الْجَنُوبِ، تَقُولُونَ: سَيَكُونُ حَرٌّ! وَهكَذَا يَكُونُ. ٥٥ 55
जब पवन दक्षिण दिशा से बहता है तुम कहते हो, ‘अब गर्मी पड़ेगी,’ और ऐसा ही हुआ करता है.
يَا مُنَافِقُونَ! تَعْرِفُونَ أَنْ تُمَيِّزُوا مَنْظَرَ الأَرْضِ وَالسَّمَاءِ، فَكَيْفَ لَا تُمَيِّزُونَ هَذَا الزَّمَانَ؟ ٥٦ 56
पाखंडियों! तुम धरती और आकाश की ओर देखकर तो भेद कर लेते हो किंतु इस युग का भेद क्यों नहीं कर सकते?
وَلِمَاذَا لَا تُمَيِّزُونَ مَا هُوَ حَقٌّ مِنْ تِلْقَاءِ أَنْفُسِكُمْ؟ ٥٧ 57
“तुम स्वयं अपने लिए सही गलत का फैसला क्यों नहीं कर लेते?
فَفِيمَا أَنْتَ ذَاهِبٌ مَعَ خَصْمِكَ إِلَى الْمُحَاكَمَةِ، اجْتَهِدْ فِي الطَّرِيقِ لِتَتَصَالَحَ مَعَهُ، لِئَلّا يَجُرَّكَ إِلَى الْقَاضِي، فَيُسَلِّمَكَ الْقَاضِي إِلَى الشُّرَطِيِّ، وَيُلْقِيَكَ الشُّرَطِيُّ فِي السِّجْنِ. ٥٨ 58
जब तुम अपने शत्रु के साथ न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत होने जा रहे हो, पूरा प्रयास करो कि मार्ग में ही तुम दोनों में मेल हो जाए अन्यथा वह तो तुम्हें घसीटकर न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत कर देगा, न्यायाधीश तुम्हें अधिकारी के हाथ सौंप देगा और अधिकारी तुम्हें जेल में डाल देगा.
أَقُولُ لَكَ: إِنَّكَ لَنْ تَخْرُجَ مِنْ هُنَاكَ حَتَّى تَكُونَ قَدْ وَفَّيْتَ مَا عَلَيْكَ إِلَى آخِرِ فَلْسٍ!» ٥٩ 59
मैं तुमसे कहता हूं कि जब तक तुम एक-एक पैसा लौटा न दो बंदीगृह से छूट न पाओगे.”

< لُوقا 12 >