< لاويّين 19 >
وَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: | ١ 1 |
याहवेह ने मोशेह को यह आदेश दिया,
«قُلْ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ: كُونُوا قِدِّيسِينَ لأَنِّي أَنَا الرَّبَّ إِلَهَكُمْ قُدُّوسٌ. | ٢ 2 |
“इस्राएल वंशजों की पूरी सभा को यह आदेश दो, ‘पवित्र बनो, क्योंकि मैं याहवेह, तुम्हारा परमेश्वर पवित्र हूं.
لِيُوَقِّرْ كُلُّ إِنْسَانٍ أُمَّهُ وَأَبَاهُ، وَرَاعُوا سُبُوتِي. فَأَنَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ. | ٣ 3 |
“‘तुममें से हर एक अपने माता-पिता का सम्मान करे और मेरे शब्बाथों का पालन करे; मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं.
وَلا تَتَحَوَّلُوا لِعِبَادَةِ الأَوْثَانِ، وَلا تَصُوغُوا لأَنْفُسِكُمْ آلِهَةً مَسْبُوكَةً، فَأَنَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ. | ٤ 4 |
“‘मूरतों की ओर न फिरना, और न स्वयं के लिए धातु के देवता गढ़ना; मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं.
وَمَتَى ذَبَحْتُمْ ذَبِيحَةَ سَلامٍ لِلرَّبِّ فَلْتَكُنْ ذَبِيحَةَ رِضًى. | ٥ 5 |
“‘जब तुम याहवेह को मेल बलि भेंट करो, तो इसे इस रीति से भेंट करो कि वह स्वीकार किए जाओ.
تَأْكُلُونَهَا فِي الْيَوْمِ الأَوَّلِ وَالثَّانِي مِنْ تَقْرِيبِهَا، وَفِي الْيَوْمِ الثَّالِثِ تُحْرِقُونَ مَا تَبَقَّى مِنْهَا بِالنَّارِ. | ٦ 6 |
जिस दिन तुम इसे भेंट करो, उसी दिन तथा उसके अगले दिन इसको खाया जाए, किंतु जो तीसरे दिन तक बचा हुआ है, उसको आग में जला दिया जाए.
أَمَّا الأَكْلُ مِنْهَا فِي الْيَوْمِ الثَّالِثِ فَذَلِكَ نَجَاسَةٌ مُنْكَرَةٌ. | ٧ 7 |
पर तीसरे दिन तक बचा हुआ मांस को खाया जाना स्वीकार नही किया जाएगा, क्योंकि यह अशुद्ध है.
وَالآكِلُ مِنْهَا يُعَاقَبُ بِذَنْبِهِ لأَنَّهُ قَدْ دَنَّسَ قُدْسَ الرَّبِّ فَتُسْتَأْصَلُ تِلْكَ النَّفْسُ مِنْ بَيْنِ شَعْبِهَا. | ٨ 8 |
ऐसा हर एक व्यक्ति, जो इसको खाता है, वह अपने अधर्म का भार स्वयं उठाएगा, क्योंकि उसने याहवेह की पवित्र वस्तु को अशुद्ध किया है, तब उस व्यक्ति को प्रजा से बाहर निकाल दिया जाए.
وَعِنْدَمَا تَحْصُدُ مَحْصُولَ حَقْلِكَ لَا تَحْصُدْ زَوَايَاهُ وَلا تَلْتَقِطْ مَا يَتَنَاثَرُ مِنْ حَصِيدِكَ. | ٩ 9 |
“‘जब तुम अपने देश में पहुंचने के बाद, उपज इकट्ठा करोगे, तो तुम अपने खेतों के कोने-कोने तक की उपज इकट्ठा न कर लेना, न ही उपज की सिल्ला.
لَا تَرْجِعْ لِتَجْمَعَ بَقَايَا عَنَاقِيدِ كَرْمِكَ، وَلا تَلْتَقِطْ مَا يَنْفَرِطُ مِنْهَا، بَلِ اتْرُكْهُ لِلْمِسْكِينِ وَلِعَابِرِي السَّبِيلِ، فَأَنَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ. | ١٠ 10 |
न ही अपनी अंगूर की बारी से सारे अंगूर इकट्ठा कर लेना, और न ही अपनी अंगूर की बारी के नीचे गिरे हुए फलों को इकट्ठा करना; तुम उन्हें दरिद्रों तथा विदेशियों के लिए छोड़ देना. मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं.
لَا تَسْرِقْ، وَلا تَكْذِبْ، وَلا تَغْدُرْ بِصَاحِبِكَ، | ١١ 11 |
“‘तुम चोरी न करना. “‘न ही धोखा देना. “‘न एक दूसरे से झूठ बोलना.
لَا تَحْلِفْ بِاسْمِي كَاذِباً، فَتُدَنِّسَ اسْمَ إِلَهِكَ. فَأَنَا الرَّبُّ. | ١٢ 12 |
“‘तुम मेरे नाम की झूठी शपथ न लेना और इस प्रकार अपने परमेश्वर का नाम अशुद्ध न करना; मैं ही याहवेह हूं.
لَا تَظْلِمْ قَرِيبَكَ، وَلا تَسْلُبْ وَلا تُرْجِئْ دَفْعَ أُجْرَةِ أَجِيرِكَ إِلَى الْغَدِ. | ١٣ 13 |
“‘तुम अपने पड़ोसी को न लूटना. “‘न ही उसकी किसी वस्तु को ज़बरदस्ती छीनना. भाड़े पर लाए गए किसी मज़दूर की मजदूरी तुम्हारे पास रात से सुबह तक रखी न रह जाए.
لَا تَشْتُمِ الأَصَمَّ، وَلا تَضَعْ عَثْرَةً فِي طَرِيقِ الأَعْمَى، بَلِ اتَّقِ إِلَهَكَ. فَأَنَا الرَّبُّ. | ١٤ 14 |
“‘तुम किसी बहिरे को शाप न देना, न ही अंधे के सामने ठोकर का पत्थर रखना, परंतु अपने परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना; मैं ही याहवेह हूं.
لَا تَظْلِمُوا فِي الْقَضَاءِ، وَلا تَتَحَيَّزُوا لِمِسْكِينٍ وَلا تُحَابُوا عَظِيماً. احْكُمْ لِقَرِيبِكَ بِالْعَدْلِ. | ١٥ 15 |
“‘तुम निर्णय देने में अन्याय न करना; तुम दरिद्र के प्रति भेद-भाव न करना, न ही ऊंचे लोगों का सम्मान तुम्हारे निर्णय को प्रभावित करने पाए, परंतु तुम अपने पड़ोसी का सही प्रकार से न्याय करना.
لَا تَسْعَ فِي الْوِشَايَةِ بَيْنَ شَعْبِكَ، وَلا تَرْتَكِبْ مَا يُعَرِّضُ حَيَاةَ جَارِكَ لِلْخَطَرِ، فَأَنَا الرَّبُّ. | ١٦ 16 |
“‘तुम अपने लोगों के बीच निंदा करते न फिरना. “‘यदि तुम्हारे पड़ोसी का जीवन खतरे में हो तो तुम शांत न बने रहना; मैं ही याहवेह हूं.
لَا تُبْغِضْ أَخَاكَ فِي قَلْبِكَ، بَلْ إِنْذَاراً تُنْذِرُهُ لِئَلّا تَكُونَ شَرِيكاً فِي ذَنْبِهِ. | ١٧ 17 |
“‘अपने भाई से घृणा न करना; तुम अपने पड़ोसी को फटकार अवश्य लगाना; ऐसा न हो कि उसके पाप के दोष तुम पर आ जाए.
لَا تَنْتَقِمْ وَلا تَحْقِدْ عَلَى أَحَدِ أَبْنَاءِ شَعْبِكَ، وَلَكِنْ تُحِبُّ قَرِيبَكَ كَمَا تُحِبُّ نَفْسَكَ، فَأَنَا الرَّبُّ. | ١٨ 18 |
“‘बदला न लेना, और न ही अपने लोगों की संतान से कोई बैर रखना, परंतु तुम अपने पड़ोसी से वैसा ही प्रेम करना, जैसा प्रेम तुम्हें स्वयं से है; मैं ही याहवेह हूं.
أَطِيعُوا شَرَائِعِي. لَا تُزَاوِجْ بَهَائِمَكَ مِنْ جِنْسَيْنِ، وَلا تَزْرَعْ حَقْلَكَ مِنْ صِنْفَيْنِ، وَلا تَلْبَسْ ثَوْباً مَنْسُوجاً مِنْ مَادَّتَيْنِ مُخْتَلِفَتَيْنِ. | ١٩ 19 |
“‘मेरी विधियों का पालन करना. “‘तुम अपने पशुओं में दो भिन्न प्रकार के पशुओं का मेल न कराना; “‘तुम अपने खेत में दो भिन्न प्रकार के बीज न बोना. “‘न ही वह वस्त्र पहनना, जिसमें दो प्रकार की सामग्रियों का मिश्रण किया गया हो.
إِنْ عَاشَرَ رَجُلٌ أَمَةً مَخْطُوبَةً لِرَجُلٍ آخَرَ، وَلَمْ تَكُنْ قَدِ افْتُدِيَتْ أَوْ أُعْتِقَتْ فَلْيُؤَدَّبَا، وَلا يُقْتَلا، لأَنَّهَا لَمْ تَكُنْ مَعْتُوقَةً. | ٢٠ 20 |
“‘यदि कोई व्यक्ति उस स्त्री से, जो दासी है और किसी अन्य की मंगेतर है, तथा किसी भी प्रकार से उसका दाम नहीं चुकाया गया, न ही उसे स्वतंत्र किया गया है, सहवास कर लेता है, तब उन्हें दंड तो दिया जाएगा किंतु मृत्यु दंड नहीं, क्योंकि वह स्त्री उस समय दासत्व में थी.
وَلْيَأْتِ الرَّجُلُ بِكَبْشٍ إِلَى الرَّبِّ ذَبِيحَةَ إِثْمٍ عِنْدَ مَدْخَلِ خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ، | ٢١ 21 |
वह व्यक्ति मिलनवाले तंबू के द्वार पर दोष बलि के लिए एक मेढ़ा याहवेह को भेंट करे.
فَيُكَفِّرُ عَنْهُ الْكَاهِنُ بِكَبْشِ الإِثْمِ أَمَامَ الرَّبِّ مِنْ أَجْلِ خَطِيئَتِهِ الَّتِي ارْتَكَبَهَا، فَيَغْفِرُ لَهُ الرَّبُّ خَطِيئَتَهُ. | ٢٢ 22 |
फिर पुरोहित दोष बलि के उस मेढ़े के साथ याहवेह के सामने उस व्यक्ति तथा उसके द्वारा किए गए पाप के लिए प्रायश्चित पूरा करे, तब उसके द्वारा किया गया पाप क्षमा कर दिया जाएगा.
وَمَتَى دَخَلْتُمْ دِيَارَ كَنْعَانَ، وَغَرَسْتُمْ أَشْجَاراً ذَاتَ أَثْمَارٍ تُؤْكَلُ فَاحْسِبُوا مَحْصُولَ سَنَوَاتِهَا الثَّلاثِ الأُولَى مُحَرَّماً، وَتَكُونُ مَحْظُورَةً عَلَيْكُمْ فَلا تَأْكُلُوا مِنْهَا، | ٢٣ 23 |
“‘जब तुम उस देश में प्रवेश करके सभी प्रकार के खानेवाले फलों के वृक्षों को उगाओगे, तो याद रहे कि इन बोए हुए वृक्षों के फल तुम्हारे लिए वर्जित होंगे. पहले तीन वर्षों के लिए ये फल तुम्हारे लिए वर्जित होंगे; इनको न खाया जाए.
أَمَّا ثَمَرُ السَّنَةِ الرَّابِعَةِ فَيَكُونُ كُلُّهُ مُخَصَّصاً لِتَمْجِيدِ الرَّبِّ، | ٢٤ 24 |
किंतु चौथे वर्ष इसके सारे फल याहवेह की स्तुति में भेंट पवित्र फल होंगे.
وَفِي السَّنَةِ الْخَامِسَةِ تَأْكُلُونَ مِنْ ثَمَرِهَا، لِتَزْدَادَ لَكُمْ غَلَّتُهَا، فَأَنَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ. | ٢٥ 25 |
पांचवें वर्ष तुम इनको खा सकते हो कि यह तुम्हें बहुत मात्रा में फल दे सके; याहवेह तुम्हारा परमेश्वर मैं ही हूं.
لَا تَأْكُلُوا لَحْماً بِدَمِهِ، وَلا تُمَارِسُوا الْعِرَافَةَ وَالْعِيَافَةَ. | ٢٦ 26 |
“‘तुम किसी भी वस्तु को लहू के साथ न खाना. “‘न ही शकुन विचारना अथवा जादू-टोना करना.
لَا تَحْلِقُوا رُؤُوسَكُمْ حَلْقاً مُسْتَدِيراً، وَلا تُقَلِّمْ جَانِبَيْ لِحْيَتِكَ. | ٢٧ 27 |
“‘तुम अपनी कनपटी के बाल न कतरना और न अपनी दाढ़ी को किनारों से काटना.
لَا تَجْرَحُوا أَجْسَامَكُمْ حُزْناً عَلَى مَيْتٍ، وَلا تَرْسِمْ وَشْماً عَلَيْهِ. فَأَنَا الرَّبُّ. | ٢٨ 28 |
“‘मृतकों के लिए तुम अपनी देह में कोई चीरा न लगवाना, न ही कोई चिन्ह गुदवाना: मैं ही याहवेह हूं.
لَا تُدَنِّسِ ابْنَتَكَ فَتَبْذُلَهَا لِلْفُجُورِ، لِئَلّا تَزْنِيَ الأَرْضُ وَتَمْتَلِئَ بِالرَّذِيلَةِ. | ٢٩ 29 |
“‘अपनी पुत्री को वेश्या बनाकर उसे भ्रष्ट न करना, ऐसा न हो कि देश में वेश्यावृत्ति भर जाए, और यह कामुकता से परिपूर्ण हो जाए.
رَاعُوا شَرَائِعَ سُبُوتِي، وَأَجِلُّوا مَقْدِسِي، فَأَنَا الرَّبُّ. | ٣٠ 30 |
“‘तुम मेरे शब्बाथों का पालन करो और मेरे पवित्र स्थान का सम्मान; मैं ही याहवेह हूं.
لَا تَضِلُّوا وَرَاءَ مُسْتَحْضِرِي الأَرْوَاحِ، وَلا تَطْلُبُوا التَّوَابِعَ، فَتَتَنَجَّسُوا بِهِمْ. فَأَنَا الرَّبُّ. | ٣١ 31 |
“‘तुम ओझाओं और तांत्रिकों की ओर न फिरना; उनकी खोज करने के द्वारा तुम स्वयं को दूषित न कर लेना. मैं ही याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं.
قِفْ فِي حَضْرَةِ كِبَارِ السِّنِّ، وَوَقِّرِ الشُّيُوخَ، وَاتَّقِ إِلَهَكَ، فَأَنَا الرَّبُّ. | ٣٢ 32 |
“‘तुम बूढ़े व्यक्ति के सामने खड़े हुआ करो, और बूढ़ों की उपस्थिति का सम्मान करना, तथा अपने परमेश्वर का भय मानना; मैं ही याहवेह हूं.
إِذَا أَقَامَ فِي أَرْضِكُمْ غَرِيبٌ فَلا تَظْلِمُوهُ، | ٣٣ 33 |
“‘जब कोई अपरिचित तुम्हारे बीच तुम्हारे देश में रहता है, तो तुम उसके साथ अन्याय न करना.
وَلْيَكُنْ لَكُمُ الْغَرِيبُ الْمُقِيمُ عِنْدَكُمْ كَالْمُوَاطِنِ. تُحِبُّهُ كَمَا تُحِبُّ نَفْسَكَ، لأَنَّكُمْ كُنْتُمْ غُرَبَاءَ فِي أَرْضِ مِصْرَ. فَأَنَا الرَّبُّ. | ٣٤ 34 |
जो अपरिचित तुम्हारे बीच में रह रहा है, तुम्हारे लिए वह तुम्हारे मध्य एक स्वदेशी के समान हो, और तुम उससे वैसा ही प्रेम करना; जैसा तुम स्वयं से करते हो, क्योंकि मिस्र देश में तुम परदेशी थे; मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं.
لَا تَجُورُوا فِي الْقَضَاءِ، وَلا تَغُشُّوا فِي الْقِيَاسِ أَوِ الْوَزْنِ أَوِ الْكَيْلِ، | ٣٥ 35 |
“‘तुम न्याय करने, नापतोल तथा मात्रा में अन्याय न करना.
بَلِ اسْتَخْدِمُوا مَوَازِينَ عَادِلَةً وَعِيَارَاتٍ عَادِلَةً وَمَكَايِيلَ عَادِلَةً، فَأَنَا الرَّبُّ إِلَهُكُمُ الَّذِي أَخْرَجَكُمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ. | ٣٦ 36 |
तुम्हारी तुला, बाट, किलो और लीटर यथार्थ हों; मैं याहवेह ही तुम्हारा परमेश्वर हूं, जो तुम्हें मिस्र देश से निकालकर लाया हूं.
فَاحْفَظُوا جَمِيعَ فَرَائِضِي وَأَحْكَامِي وَاعْمَلُوا بِها، فَأَنَا الرَّبُّ». | ٣٧ 37 |
“‘फिर तुम मेरी विधियों और सभी नियमों का पालन करना और उनको मानते रहना; मैं ही याहवेह हूं.’”