< مَراثِي إرْمِي 2 >
كَيْفَ خَيَّمَ الرَّبُّ فِي غَضَبِهِ بِالظَّلامِ عَلَى ابْنَةِ صِهْيَوْنَ، وَطَرَحَ مِنَ السَّمَاءِ إِلَى الأَرْضِ جَلالَ إِسْرَائِيلَ، وَلَمْ يَذْكُرْ مَوْطِئَ قَدَمَيْهِ فِي يَوْمِ سُخْطِهِ؟ | ١ 1 |
हमारे प्रभु ने कैसे अपने कोप में ज़ियोन की पुत्री को एक मेघ के नीचे डाल दिया है! उन्होंने इस्राएल के वैभव को स्वर्ग से उठाकर पृथ्वी पर फेंक दिया है; उन्होंने अपनी चरण चौकी को अपने क्रोध के अवसर पर स्मरण न रखा.
قَدْ هَدَمَ الرَّبُّ مِنْ غَيْرِ رَحْمَةٍ جَمِيعَ مَسَاكِنِ يَعْقُوبَ. قَوَّضَ بِغَضَبِهِ مَعَاقِلَ ابْنَةِ يَهُوذَا، وَأَلْحَقَ الْعَارَ بِالْمَمْلَكَةِ وَحُكَّامِهَا، إِذْ سَوَّاهَا بِالأَرْضِ. | ٢ 2 |
प्रभु ने याकोब के समस्त आवासों को निगल लिया है उन्होंने कुछ भी नहीं छोड़ा है; अपने कोप में उन्होंने यहूदिया की पुत्री के गढ़ नगरों को भग्न कर दिया है. उन्होंने राज्य तथा इसके शासकों को अपमानित किया है, उन्होंने उन सभी को धूल में ला छोड़ा है.
بَتَرَ فِي احْتِدَامِ غَضَبِهِ كُلَّ قُوَّةِ إِسْرَائِيلَ. رَدَّ يَمِينَهُ إِلَى الْوَرَاءِ أَمَامَ الأَعْدَاءِ، وَاشْتَعَلَ مِثْلَ نَارٍ مُلْتَهِبَةٍ فِي إِسْرَائِيلَ، تَلْتَهِمُ كُلَّ مَا حَوْلَهَا. | ٣ 3 |
उन्होंने उग्र क्रोध में इस्राएल के समस्त बल को निरस्त कर दिया है. उन्होंने उनके ऊपर से अपना सुरक्षा देनेवाला दायां हाथ खींच लिया है, जब शत्रु उनके समक्ष आ खड़ा हुआ था. वह याकोब में प्रचंड अग्नि बन जल उठे जिससे उनके निकटवर्ती सभी कुछ भस्म हो गया.
وَتَّرَ قَوْسَهُ كَعَدُوٍّ. نَصَبَ يَمِينَهُ كَمُبْغِضٍ. ذَبَحَ كَعَدُوٍّ كُلَّ عَزِيزٍ فِي عُيُونِنَا. وَسَكَبَ سُخْطَهُ كَنَارٍ عَلَى خَيْمَةِ ابْنَةِ صِهْيَوْنَ. | ٤ 4 |
एक शत्रु के सदृश उन्होंने अपना धनुष खींचा; एक विरोधी के सदृश उनका दायां हाथ तत्पर हो गया. ज़ियोन की पुत्री के शिविर में ही उन सभी का संहार कर दिया; जो हमारी दृष्टि में मनभावने थे उन्होंने अपने कोप को अग्नि-सदृश उंडेल दिया.
وَأَصْبَحَ الرَّبُّ كَعَدُوٍّ، فَقَوَّضَ إِسْرَائِيلَ، وَهَدَمَ جَمِيعَ قُصُورِهَا، وَدَمَّرَ حُصُونَهَا، وَأَكْثَرَ النَّوْحَ وَالْعَويِلَ فِي ابْنَةِ صِهْيَوْنَ. | ٥ 5 |
हमारे प्रभु ने एक शत्रु का स्वरूप धारण कर लिया है; उन्होंने इस्राएल को निगल लिया है. उन्होंने समस्त राजमहलों को मिटा दिया है और इसके समस्त गढ़ नगरों को उन्होंने नष्ट कर दिया है. यहूदिया की पुत्री में उन्होंने विलाप एवं रोना बढ़ा दिया है.
نَقَضَ مَظَلَّتَهُ كَمَا يُنْقَضُ كُوخٌ مِنَ الأَغْصَانِ فِي حَدِيقَةٍ، وَرَدَمَ مَقَرَّ مُجْتَمَعِهِ. جَعَلَ الرَّبُّ صِهْيَوْنَ تَنْسَى مَوَاسِمَ أَعْيَادِهَا وَسُبُوتَهَا. وَنَبَذَ بِاحْتِدَامِ سُخْطِهِ الْمَلِكَ وَالْكَاهِنَ. | ٦ 6 |
अपनी कुटीर को उन्होंने ऐसे उजाड़ दिया है, मानो वह एक उद्यान कुटीर था; उन्होंने अपने मिलने के स्थान को नष्ट कर डाला है. याहवेह ने ज़ियोन के लिए उत्सव तथा शब्बाथ विस्मृत करने की स्थिति ला दी है; उन्होंने अपने प्रचंड कोप में सम्राट तथा पुरोहित को घृणास्पद बना दिया है.
كَرِهَ الرَّبُّ مَذْبَحَهُ، وَتَبَرَّأَ مِنْ مَقْدِسِهِ، وَسَلَّمَ أَسْوَارَ قُصُورِهَا إِلَى يَدِ الأَعْدَاءِ الَّذِينَ عَلا هُتَافُهُمْ فِي بَيْتِ الرَّبِّ كَمَا كَانَ يَعْلُو هُتَافُنَا فِي الأَعْيَادِ. | ٧ 7 |
हमारे प्रभु को अब अपनी ही वेदी से घृणा हो गई है और उन्होंने पवित्र स्थान का त्याग कर दिया है. राजमहल की दीवारें अब शत्रु के अधीन हो गई है; याहवेह के भवन में कोलाहल उठ रहा है मानो यह कोई निर्धारित उत्सव-अवसर है.
عَزَمَ الرَّبُّ أَنْ يُقَوِّضَ سُورَ ابْنَةِ صِهْيَوْنَ. مَدَّ خَيْطَ الْقِيَاسِ وَلَمْ يَرُدَّ يَدَهُ عَنْ سَحْقِهَا، فَاسْتَبْكَى الْمِتْرَسَةَ وَالسُّورَ فَسَقَطَا مَعاً. | ٨ 8 |
यह याहवेह का संकल्प था कि ज़ियोन की पुत्री की दीवारें तोड़ी जाएं. मापक डोरी विस्तीर्ण कर विनाश के लिए उन्होंने अपने हाथों को न रोका. परिणामस्वरूप किलेबंदी तथा दीवार विलाप करती रही; वे वेदना-विलाप में एकजुट हो गईं.
غَاصَتْ فِي الأَرْضِ بَوَّابَاتُهَا، دَمَّرَ وَحَطَّمَ مَزَالِيجَهَا. نَفَى مَلِكَهَا وَرُؤَسَاءَهَا بَيْنَ الأُمَمِ. زَالَتِ الشَّرِيعَةُ، وَلَمْ يَعُدْ أَنْبِيَاؤُهَا يَحْصُلُونَ عَلَى رُؤْيَا مِنْ عِنْدِ الرَّبِّ. | ٩ 9 |
उसके प्रवेश द्वार भूमि में धंस गए; उन्होंने उसकी सुरक्षा छड़ों को तोड़कर नष्ट कर दिया है. उसके राजा एवं शासक अब राष्ट्रों में हैं, नियम-व्यवस्था अब शून्य रह गई है, अब उसके भविष्यवक्ताओं को याहवेह की ओर से प्रकाशन प्राप्त ही नहीं होता.
يَجْلِسُ شُيُوخُ ابْنَةِ صِهْيَوْنَ عَلَى الأَرْضِ صَامِتِينَ. عَفَّرُوا بِالرَّمَادِ رُؤُوسَهُمْ، وَارْتَدَوْا الْمُسُوحَ، وَطَأْطَأَتْ عَذَارَى أُورُشَلِيمَ رُؤُوسَهُنَّ إِلَى الأَرْضِ. | ١٠ 10 |
ज़ियोन की पुत्री के पूर्वज भूमि पर मौन बैठे हुए हैं; उन्होंने अपने सिर पर धूल डाल रखी है तथा उन्होंने टाट पहन ली है. येरूशलेम की युवतियों के सिर भूमि की ओर झुके हैं.
كَلَّتْ عَيْنَايَ مِنَ الْبُكَاءِ، جَاشَتْ أَحْشَائِي وَأُرِيقَتْ كَبِدِي عَلَى الأَرْضِ حُزْناً لِدَمَارِ ابْنَةِ شَعْبِي، لأَنَّ الأَطْفَالَ وَالرُّضَّعَ غُشِيَ عَلَيْهِمْ فِي شَوَارِعِ الْمَدِينَةِ. | ١١ 11 |
रोते-रोते मेरे नेत्र अपनी ज्योति खो चुके हैं, मेरे उदर में मंथन हो रहा है; मेरा पित्त भूमि पर बिखरा पड़ा है; इसके पीछे मात्र एक ही कारण है; मेरी प्रजा की पुत्री का सर्वनाश, नगर की गलियों में मूर्च्छित पड़े हुए शिशु एवं बालक.
يَقُولُونَ لأُمَّهَاتِهِمْ بَاكِينَ: «أَيْنَ الْخُبْزُ وَالْخَمْرُ؟» ثُمَّ يُغْشَى عَلَيْهِمْ كَالْجَرْحَى فِي شَوَارِعِ الْمَدِينَةِ، حِينَ تُهْرَقُ حَيَاتُهُمْ فِي أَحْضَانِ أُمَّهَاتِهِمْ. | ١٢ 12 |
वे अपनी-अपनी माताओं के समक्ष रोकर कह रहे हैं, “कहां है हमारा भोजन, कहां है हमारा द्राक्षारस?” वे नगर की गली में घायल योद्धा के समान पड़े हैं, अपनी-अपनी माताओं की गोद में पड़े हुए उनका जीवन प्राण छोड़ रहे है.
بِمَاذَا أُنْذِرُكِ وَبِأَيِّ شَيْءٍ أُشَبِّهُكِ يَا ابْنَةَ أُورُشَلِيمَ؟ بِمَاذَا أُقَارِنُكِ فَأُعَزِّيَكِ أَيَّتُهَا الْعَذْرَاءُ ابْنَةُ صِهْيَوْنَ؟ إِنَّ خَرَابَكِ عَظِيمٌ كَالْبَحْرِ، فَمَنْ ذَا يُبْرِئُكِ؟ | ١٣ 13 |
येरूशलेम की पुत्री, क्या कहूं मैं तुमसे, किससे करूं मैं तुम्हारी तुलना? ज़ियोन की कुंवारी कन्या, तुम्हारी सांत्वना के लक्ष्य से किससे करूं मैं तुम्हारा साम्य? तथ्य यह है कि तुम्हारा विध्वंस महासागर के सदृश व्यापक है. अब कौन तुम्हें चंगा कर सकता है?
رَأَى لَكِ أَنْبِيَاؤُكِ رُؤىً بَاطِلَةً خَادِعَةً. لَمْ يَفْضَحُوا إِثْمَكِ لِيَرُدُّوا سَبْيَكِ. إِنَّمَا رَأَوْا لَكِ وَحْياً كَاذِباً مُضِلاً. | ١٤ 14 |
तुम्हारे भविष्यवक्ताओं ने तुम्हारे लिए व्यर्थ तथा झूठा प्रकाशन देखा है; उन्होंने तुम्हारी पापिष्ठता को प्रकाशित नहीं किया, कि तुम्हारी समृद्धि पुनःस्थापित हो जाए. किंतु वे तुम्हारे संतोष के लिए ऐसे प्रकाशन प्रस्तुत करते रहें, जो व्यर्थ एवं भ्रामक थे.
كُلُّ عَابِرِي السَّبِيلِ صَفَّقُوا عَلَيْكِ بِالأَيَادِي فَرَحاً. صَفَرُوا وَهَزُّوا رُؤُوسَهُمْ عَلَى ابْنَةِ أُورُشَلِيمَ وَتَسَاءَلُوا: أَهَذِهِ هِيَ الْمَدِينَةُ الَّتِي تُدْعَى كَامِلَةَ الْجَمَالِ وَبَهْجَةَ الأَرْضِ بِأَسْرِهَا؟ | ١٥ 15 |
वे सब जो इस ओर से निकलते हैं तुम्हारी स्थिति को देखकर उपहास करते हुए; येरूशलेम की पुत्री पर सिर हिलाते तथा विचित्र ध्वनि निकालते हैं: वे विचार करते हैं, “क्या यही है वह नगरी, जो परम सौन्दर्यवती तथा समस्त पृथ्वी का उल्लास थी?”
قَدْ فَتَحَ جَمِيعُ أَعْدَائِكِ أَفْوَاهَهُمْ. يُصَفِّرُونَ وَيُحَرِّقُونَ الأَسْنَانَ. يَهْتِفُونَ: قَدِ ابْتَلَعْنَاهَا. هَذَا هُوَ الْيَوْمُ الَّذِي طَالَ انْتِظَارُنَا لَهُ. قَدْ عِشْنَا وَشَهِدْنَاهُ! | ١٦ 16 |
तुम्हारे सभी शत्रु तुम्हारे लिए अपमानपूर्ण शब्दों का प्रयोग करते हुए; विचित्र ध्वनियों के साथ दांत पीसते हुए उच्च स्वर में घोषणा करते हैं, “देखो, देखो! हमने उसे निगल लिया है! आह, कितनी प्रतीक्षा की है हमने इस दिन की; निश्चयतः आज वह दिन आ गया है आज वह हमारी दृष्टि के समक्ष है.”
نَفَّذَ الرَّبُّ قَضَاءَهُ، وَحَقَّقَ وَعِيدَهُ الَّذِي حَكَمَ بِهِ مُنْذُ الْحِقَبِ السَّالِفَةِ. هَدَمَ وَلَمْ يَرْأَفْ، فَأَشْمَتَ بِكِ الْخَصْمَ، وَعَظَّمَ قُوَّةَ عَدُوِّكِ. | ١٧ 17 |
याहवेह ने अपने लक्ष्य की पूर्ति कर ही ली है; उन्होंने अपनी पूर्वघोषणा की निष्पत्ति कर दिखाई; वह घोषणा, जो उन्होंने दीर्घ काल पूर्व की थी. जिस रीति से उन्होंने तुम्हें फेंक दिया उसमें थोड़ी भी करुणा न थी, उन्होंने शत्रुओं के सामर्थ्य को ऐसा विकसित कर दिया, कि शत्रु तुम्हारी स्थिति पर उल्लसित हो रहे हैं.
اسْتَغَاثَتْ قُلُوبُهُمْ بِالرَّبِّ. لِتَجْرِ الدُّمُوعُ، يَا أَسْوَارَ ابْنَةِ صِهْيَوْنَ، كَالنَّهْرِ لَيْلاً وَنَهَاراً. لَا تَسْتَكِينِي وَلا تَكُفَّ عَيْنَاكِ عَنِ الْبُكَاءِ. | ١٨ 18 |
ज़ियोन की पुत्री की दीवार उच्च स्वर में अपने प्रभु की दोहाई दो. दिन और रात्रि अपने अश्रुप्रवाह को उग्र जलधारा-सदृश प्रवाहित करती रहो; स्वयं को कोई राहत न दो, और न तुम्हारी आंखों को आराम.
قُومِي وَانْتَحِبِي فِي الرُّبْعِ الأَوَّلِ مِنَ اللَّيْلِ. اسْكُبِي كَالْمَاءِ قَلْبَكِ فِي مَحْضَرِ الرَّبِّ. ارْفَعِي إِلَيْهِ يَدَيْكِ مِنْ أَجْلِ نُفُوسِ أَطْفَالِكِ الْمَغْشِيِّ عَلَيْهِمْ مِنَ الْجُوعِ عِنْدَ نَاصِيَةِ كُلِّ شَارِعٍ. | ١٩ 19 |
उठो, रात्रि में दोहाई दो, रात्रि प्रहर प्रारंभ होते ही; जल-सदृश उंडेल दो अपना हृदय अपने प्रभु की उपस्थिति में. अपनी संतान के कल्याण के लिए अपने हाथ उनकी ओर बढ़ाओ, उस संतान के लिए, जो भूख से हर एक गली के मोड़ पर मूर्छित हो रही है.
انْظُرْ يَا رَبُّ وَتَأَمَّلْ! بِمَنْ صَنَعْتَ هَذَا؟ أَعَلَى النِّسَاءِ أَنْ يَأْكُلْنَ ثَمَرَةَ بُطُونِهِنَّ، وَأَطْفَالَ حَضَانَتِهِنَّ؟ أَيَتَحَتَّمُ عَلَى الْكَاهِنِ وَالنَّبِيِّ أَنْ يُقْتَلا فِي مَقْدِسِ الرَّبِّ؟ | ٢٠ 20 |
“याहवेह, ध्यान से देखकर विचार कीजिए: कौन है वह, जिसके साथ आपने इस प्रकार का व्यवहार किया है? क्या यह सुसंगत है कि स्त्रियां अपने ही गर्भ के फल को आहार बनाएं, जिनका उन्होंने स्वयं ही पालन पोषण किया है? क्या यह उपयुक्त है कि पुरोहितों एवं भविष्यवक्ताओं का संहार हमारे प्रभु के पवित्र स्थान में किया जाए?
قَدِ انْطَرَحَ الصَّبِيُّ وَالشُّيُوخُ فِي غُبَارِ الطُّرُقَاتِ. سَقَطَ عَذَارَايَ وَشُبَّانِي بِالسَّيْفِ. قَدْ قَتَلْتَهُمْ فِي يَوْمِ غَضَبِكَ، وَنَحَرْتَهُمْ مِنْ غَيْرِ رَحْمَةٍ. | ٢١ 21 |
“सड़क की धूलि में युवाओं एवं वृद्धों के शव पड़े हुए हैं; मेरे युवक, युवतियों का संहार तलवार से किया गया है. अपने कोप-दिवस में आपने उनका निर्दयतापूर्वक संहार कर डाला है.
أَنْتَ دَعَوْتَ، كَمَا فِي يَوْمِ عِيدٍ، مُرَوِّعِيَّ الْمُحِيطِينَ بِي. فَلَمْ يُفْلِتْ وَلَمْ يَنْجُ أَحَدٌ فِي يَوْمِ سُخْطِكَ يَا رَبُّ. قَدْ أَفْنَى عَدُوِّي الَّذِينَ حَضَنْتُهُمْ وَرَبَّيْتُهُمْ. | ٢٢ 22 |
“आपने तो मेरे आतंकों का आह्वान चारों ओर से इस ढंग से किया, मानो आप इन्हें किसी उत्सव का आमंत्रण दे रहे हैं. यह सब याहवेह के कोप के दिन हुआ है, इसमें कोई भी बचकर शेष न रह सका; ये वे सब थे, जिनका आपने अपनी गोद में रखकर पालन पोषण किया था, मेरे शत्रुओं ने उनका सर्वनाश कर दिया है.”