< أيُّوب 38 >

ثُمَّ قَالَ الرَّبُّ لأَيُّوبَ مِنَ الْعَاصِفَةِ: ١ 1
तब स्वयं याहवेह ने तूफान में से अय्योब को उत्तर दिया:
«مَنْ ذَا الَّذِي يُظْلِمُ الْقَضَاءَ بِكَلامٍ مُجَرَّدٍ مِنَ الْمَعْرِفَةِ؟ ٢ 2
“कौन है वह, जो अज्ञानता के विचारों द्वारा मेरी युक्ति को बिगाड़ रहा है?
اشْدُدْ حَقَوَيْكَ كَرَجُلٍ لأَسْأَلَكَ فَتُجِيبَنِي ٣ 3
ऐसा करो अब तुम पुरुष के भाव कमर बांध लो; तब मैं तुमसे प्रश्न करना प्रारंभ करूंगा, तुम्हें इन प्रश्नों का उत्तर देना होगा.
أَيْنَ كُنْتَ عِنْدَمَا أَسَّسْتُ الأَرْضَ؟ أَخْبِرْنِي إِنْ كُنْتَ ذَا حِكْمَةٍ. ٤ 4
“कहां थे तुम, जब मैंने पृथ्वी की नींव डाली थी? यदि तुममें कुछ भी समझ है, मुझे इसका उत्तर दो.
مَنْ حَدَّدَ مَقَايِيسَهَا، إِنْ كُنْتَ حَقّاً تَعْرِفُ؟ أَوْ مَنْ مَدَّ عَلَيْهَا خَيْطَ الْقِيَاسِ؟ ٥ 5
यदि तुम्हें मालूम हो! तो मुझे बताओ, किसने पृथ्वी की नाप ठहराई है? अथवा, किसने इसकी माप रेखाएं निश्चित की?
عَلَى أَيِّ شَيْءٍ اسْتَقَرَّتْ قَوَاعِدُهَا؟ وَمَنْ وَضَعَ حَجَرَ زَاوِيَتِهَا؟ ٦ 6
किस पदार्थ पर इसका आधार स्थापित है? किसने इसका आधार रखा?
بَيْنَمَا كَانَتْ كَوَاكِبُ السَّمَاءِ تَتَرَنَّمُ مَعاً وَمَلائِكَةُ اللهِ تَهْتِفُ بِفَرَحٍ. ٧ 7
जब निशांत तारा सहगान में एक साथ गा रहे थे तथा सभी स्वर्गदूत उल्लासनाद कर रहे थे, तब कहां थे तुम?
مَنْ حَجَزَ الْبَحْرَ بِبَوَّابَاتٍ، عِنْدَمَا انْدَفَقَ مِنْ رَحِمِ الأَرْضِ، ٨ 8
“अथवा किसने महासागर को द्वारों द्वारा सीमित किया, जब गर्भ से इसका उद्भव हो रहा था;
حِينَ جَعَلْتُ السُّحُبَ لِبَاساً لَهُ وَالظُّلْمَةَ قِمَاطَهُ، ٩ 9
जब मैंने इसके लिए मेघ परिधान निर्मित किया तथा घोर अंधकार को इसकी मेखला बना दिया,
عِنْدَمَا عَيَّنْتُ لَهُ حُدُوداً، وَأَثْبَتُّ بَوَّابَاتِهِ وَمَغَالِيقَهُ فِي مَوَاضِعِهَا، ١٠ 10
तथा मैंने इस पर सीमाएं चिन्हित कर दीं तथा ऐसे द्वार बना दिए, जिनमें चिटकनियां लगाई गईं;
وَقُلْتُ لَهُ: إِلَى هُنَا تُخُومُكَ فَلا تَتَعَدَّاهَا، وَهُنَا يَتَوَقَّفُ عُتُوُّ أَمْوَاجِكَ؟ ١١ 11
तथा मैंने यह आदेश दे दिया ‘तुम यहीं तक आ सकते हो, इसके आगे नहीं तथा यहां आकर तुम्हारी वे सशक्त वाली तरंगें रुक जाएंगी’?
هَلْ أَمَرْتَ مَرَّةً الصُّبْحَ فِي أَيَّامِكَ، وَأَرَيْتَ الْفَجْرَ مَوْضِعَهُ، ١٢ 12
“क्या तुमने अपने जीवन में प्रभात को यह आदेश दिया है, कि वह उपयुक्त क्षण पर ही अरुणोदय किया करे,
لِيَقْبِضَ عَلَى أَكْنَافِ الأَرْضِ وَيَنْفُضَ الأَشْرَارَ مِنْهَا؟ ١٣ 13
कि यह पृथ्वी के हर एक छोर तक प्रकट करे, कि दुराचारी अपने-अपने छिपने के स्थान से हिला दिए जाएं?
تَتَشَكَّلُ كَطِينٍ تَحْتَ الْخَاتَمِ، وَتَبْدُو مَعَالِمُهَا كَمَعَالِمِ الرِّدَاءِ. ١٤ 14
गीली मिट्टी पर मोहर लगाने समान परिवर्तन जिसमें परिधान के सूक्ष्म भेद स्पष्ट हो जाते हैं.
يَمْتَنِعُ النُّورُ عَنِ الأَشْرَارِ، وَتَتَحَطَّمُ ذِرَاعُهُمُ الْمُرْتَفِعَةُ. ١٥ 15
सूर्य प्रकाश की उग्रता दुर्वृत्तों को दुराचार से रोके रहती है, मानो हिंसा के लिए उठी हुई उनकी भुजा तोड़ दी गई हो.
هَلْ غُصْتَ إِلَى يَنَابِيعِ الْبَحْرِ، أَمْ دَلَفْتَ إِلَى مَقَاصِيرِ اللُّجَجِ؟ ١٦ 16
“अच्छा, यह बताओ, क्या तुमने जाकर महासागर के स्रोतों का निरीक्षण किया है अथवा सागर तल पर चलना फिरना किया है?
هَلِ اطَّلَعْتَ عَلَى أَبْوَابِ الْمَنِيَّةِ، أَمْ رَأَيْتَ بَوَّابَاتِ ظِلالِ الْمَوْتِ؟ ١٧ 17
क्या तुमने घोर अंधकार में जाकर मृत्यु के द्वारों को देखा है?
هَلْ أَحَطْتَ بِعَرْضِ الأَرْضِ؟ أَخْبِرْنِي إِنْ كُنْتَ بِكُلِّ هَذَا عَلِيماً. ١٨ 18
क्या तुम्हें ज़रा सा भी अनुमान है, कि पृथ्वी का विस्तार कितना है, मुझे बताओ, क्या-क्या मालूम है तुम्हें?
أَيْنَ الطَّرِيقُ إِلَى مَقَرِّ النُّورِ، وَأَيْنَ مُسْتَقَرُّ الظُّلْمَةِ؟ ١٩ 19
“कहां है प्रकाश के घर का मार्ग? वैसे ही, कहां है अंधकार का आश्रय,
حَتَّى تَقُودَهَا إِلَى تُخُومِهَا وَتَعْرِفَ سُبُلَ مَسْكَنِهَا؟ ٢٠ 20
कि तुम उन्हें यह तो सूचित कर सको, कि कहां है उनकी सीमा तथा तुम इसके घर का मार्ग पहचान सको?
حَقّاً أَنْتَ تَعْرِفُهَا لأَنَّكَ آنَئِذٍ كُنْتَ قَدْ وُلِدْتَ وَعِشْتَ أَيَّاماً طَوِيلَةً! ٢١ 21
तुम्हें वास्तव में यह मालूम है, क्योंकि तब तुम्हारा जन्म हो चुका होगा! तब तो तुम्हारी आयु के वर्ष भी अनेक ही होंगे!
هَلْ دَخَلْتَ إِلَى مَخَازِنِ الثَّلْجِ، أَمْ رَأَيْتَ خَزَائِنَ الْبَرَدِ، ٢٢ 22
“क्या तुमने कभी हिम के भंडार में प्रवेश किया है, अथवा क्या तुमने कभी हिम के भण्डारगृह देखे हैं,
الَّتِي ادَّخَرْتُهَا لأَوْقَاتِ الضِّيقِ، لِيَوْمِ الْمَعْرَكَةِ وَالْحَرْبِ؟ ٢٣ 23
उन ओलों को जिन्हें मैंने पीड़ा के समय के लिए रखा हुआ है युद्ध तथा संघर्ष के दिनों के लिए?
مَا هُوَ السَّبِيلُ إِلَى مَوْضِعِ انْتِشَارِ النُّورِ، أَوْ أَيْنَ تَتَوَزَّعُ الرِّيحُ الشَّرْقِيَّةُ عَلَى الأَرْضِ؟ ٢٤ 24
क्या तुम्हें मालूम है कि प्रकाश का विभाजन कहां है, अथवा यह कि पृथ्वी पर पुरवाई कैसे बिखर जाती है?
مَنْ حَفَرَ قَنَوَاتٍ لِسُيُولِ الْمَطَرِ، وَمَمَرّاً لِلصَّوَاعِقِ، ٢٥ 25
क्या तुम्हें मालूम है कि बड़ी बरसात के लिए धारा की नहर किसने काटी है, अथवा बिजली की दिशा किसने निर्धारित की है,
لِيُمْطِرَ عَلَى أَرْضٍ مُقْفِرَةٍ لَا إِنْسَانَ فِيهَا، ٢٦ 26
कि रेगिस्तान प्रदेश में पानी बरसायें, उस बंजर भूमि जहां कोई नहीं रहता,
لِيُرْوِيَ الأَرْضَ الْخَرِبَةَ، وَلِيَسْتَنْبِتَ الأَرْضَ عُشْباً؟ ٢٧ 27
कि उजड़े और बंजर भूमि की प्यास मिट जाए, तथा वहां घास के बीजों का अंकुरण हो जाए?
هَلْ لِلْمَطَرِ أَبٌ؟ وَمَنْ أَنْجَبَ قَطَرَاتِ النَّدَى؟ ٢٨ 28
है कोई वृष्टि का जनक? अथवा कौन है ओस की बूंदों का उत्पादक?
وَمِنْ أَيِّ أَحْشَاءٍ خَرَجَ الْجَمَدُ، وَمَنْ وَلَدَ صَقِيعَ السَّمَاءِ؟ ٢٩ 29
किस गर्भ से हिम का प्रसव है? तथा आकाश का पाला कहां से जन्मा है?
تَتَجَلَّدُ الْمِيَاهُ كَحِجَارَةٍ وَيَتَجَمَّدُ وَجْهُ الْغَمْرِ. ٣٠ 30
जल पत्थर के समान कठोर हो जाता है तथा इससे महासागर की सतह एक कारागार का रूप धारण कर लेती है.
هَلْ تَرْبِطُ سَلاسِلَ الثُّرَيَّا، أَمْ تَفُكُّ عُقَدَ الْجَوْزَاءِ؟ ٣١ 31
“अय्योब, क्या तुम कृतिका नक्षत्र के समूह को परस्पर गूंथ सकते हो, अथवा मृगशीर्ष के बंधनों को खोल सकते हो?
هَلْ تَهْدِي كَوَاكِبَ الْمَنَازِلِ فِي فُصُولِهَا، أَمْ تَهْدِي النَّعْشَ مَعَ بِنَاتِهِ؟ ٣٢ 32
क्या तुम किसी तारामंडल को उसके निर्धारित समय पर प्रकट कर सकते हो तथा क्या तुम सप्‍त ऋषि को दिशा-निर्देश दे सकते हो?
هَلْ تَعْرِفُ أَحْكَامَ السَّمَاوَاتِ، أَمْ أَسَّسْتَ سُلْطَتَهَا عَلَى الأَرْضِ؟ ٣٣ 33
क्या तुम आकाशमंडल के अध्यादेशों को जानते हो, अथवा क्या तुम पृथ्वी पर भी वही अध्यादेश प्रभावी कर सकते हो?
هَلْ تَرْفَعُ صَوْتَكَ آمِراً الْغَمَامَ فَيَغْمُرَكَ فَيْضُ الْمِيَاهِ؟ ٣٤ 34
“क्या यह संभव है कि तुम अपना स्वर मेघों तक प्रक्षेपित कर दो, कि उनमें परिसीमित जल तुम्हारे लिए विपुल वृष्टि बन जाए?
هَلْ فِي وُسْعِكَ أَنْ تُطْلِقَ الْبُرُوقَ فَتَمْضِيَ وَتَقُولَ لَكَ: هَا نَحْنُ طَوْعَ أَمْرِكَ؟ ٣٥ 35
क्या तुम बिजली को ऐसा आदेश दे सकते हो, कि वे उपस्थित हो तुमसे निवेदन करें, ‘क्या आज्ञा है, आप आदेश दें’?
مَنْ أَضْفَى عَلَى الْغُيُومِ حِكْمَةً وَأَنْعَمَ عَلَى الضَّبَابِ بِالْفَهْمِ؟ ٣٦ 36
किसने बाज पक्षी में ऐसा ज्ञान स्थापित किया है, अथवा किसने मुर्गे को पूर्व ज्ञान की क्षमता प्रदान की है?
مَنْ لَهُ الْحِكْمَةُ لِيُحْصِيَ النُّجُومَ، وَمَنْ يَصُبُّ الْمَاءَ مِنْ مَيَازِيبِ السَّمَاءِ، ٣٧ 37
कौन है वह, जिसमें ऐसा ज्ञान है, कि वह मेघों की गणना कर लेता है? अथवा कौन है वह, जो आकाश के पानी के मटकों को झुका सकता है,
حِينَ يَتَلَبَّدُ التُّرَابُ وَتَتَمَاسَكُ كُتَلُ الطِّينِ؟ ٣٨ 38
जब धूल मिट्टी का ढेला बनकर कठोर हो जाती है, तथा ये ढेले भी एक दूसरे से मिल जाते हैं?
هَلْ تَصْطَادُ الْفَرِيسَةَ لِلَّبُؤَةِ، أَمْ تُشْبِعُ جُوعَ الأَشْبَالِ، ٣٩ 39
“अय्योब, क्या तुम सिंहनी के लिए शिकार करते हो, शेरों की भूख को मिटाते हो
حِينَ تَتَرَبَّصُ فِي الْعَرَائِنِ وَتَكْمُنُ فِي أَوْجَارِهَا؟ ٤٠ 40
जो अपनी कन्दरा में दुबकी बैठी है, अथवा जो झाड़ियों में घात लगाए बैठी है?
مَنْ يُزَوِّدُ الْغُرَابَ بِصَيْدِهِ إِذْ تَنْعَبُ فِرَاخُهُ مُسْتَغِيثَةً بِاللهِ، وَتَهِيمُ لاِفْتِقَارِهَا إِلَى الْقُوتِ؟ ٤١ 41
कौवों को पौष्टिक आहार कौन परोसता है, जब इसके बच्‍चे परमेश्वर को पुकारते हैं, तथा अपना भोजन खोजते हुए भटकते रहते हैं?

< أيُّوب 38 >