< أيُّوب 36 >

وَاسْتَطْرَدَ أَلِيهُو: ١ 1
फिर एलीहू ने यह भी कहा,
«تَحَمَّلْنِي قَلِيلاً فَأَزِيدَكَ اطِّلاعاً، فَمَازَالَ عِنْدِي مَا أَقُولُهُ نِيَابَةً عَنِ اللهِ، ٢ 2
“कुछ ठहरा रह, और मैं तुझको समझाऊँगा, क्योंकि परमेश्वर के पक्ष में मुझे कुछ और भी कहना है।
لأَنِّي أَتَلَقَّى عِلْمِي مِنْ بَعِيدٍ وَأَعْزُو بِرّاً لِصَانِعِي. ٣ 3
मैं अपने ज्ञान की बात दूर से ले आऊँगा, और अपने सृजनहार को धर्मी ठहराऊँगा।
حَقّاً إِنَّ كَلامِي صَادِقٌ، لأَنَّ الْكَامِلَ فِي الْمَعْرِفَةِ حَاضِرٌ مَعَكَ. ٤ 4
निश्चय मेरी बातें झूठी न होंगी, वह जो तेरे संग है वह पूरा ज्ञानी है।
اللهُ قَدِيرٌ وَلَكِنَّهُ لَا يَحْتَقِرُ الإِنْسَانَ، هُوَ قَدِيرٌ عَظِيمُ الْقُدْرَةِ وَالْفَهْمِ. ٥ 5
“देख, परमेश्वर सामर्थी है, और किसी को तुच्छ नहीं जानता; वह समझने की शक्ति में समर्थ है।
لَا يُبْقِي عَلَى حَيَاةِ الشِّرِّيرِ إِنَّمَا يَقْضِي حَقَّ الْبَائِسِينَ. ٦ 6
वह दुष्टों को जिलाए नहीं रखता, और दीनों को उनका हक़ देता है।
لَا يَغُضُّ طَرْفَهُ عَنِ الصِّدِّيقِينَ، بَلْ يُقِيمُهُمْ مَعَ الْمُلُوكِ عَلَى الْعُرُوشِ إِلَى الأَبَدِ فَيَتَعَظَّمُونَ. ٧ 7
वह धर्मियों से अपनी आँखें नहीं फेरता, वरन् उनको राजाओं के संग सदा के लिये सिंहासन पर बैठाता है, और वे ऊँचे पद को प्राप्त करते हैं।
وَإِنْ رُبِطُوا بِالْقُيُودِ، وَوَقَعُوا فِي حِبَالِ الشَّقَاءِ، ٨ 8
और चाहे वे बेड़ियों में जकड़े जाएँ और दुःख की रस्सियों से बाँधे जाए,
عِنْدَئِذٍ يُبْدِي لَهُمْ أَفْعَالَهُمْ وَآثَامَهُمْ إِذْ سَلَكُوا بِغُرُورٍ. ٩ 9
तो भी परमेश्वर उन पर उनके काम, और उनका यह अपराध प्रगट करता है, कि उन्होंने गर्व किया है।
يَفْتَحُ آذَانَهُمْ لِتَحْذِيرَاتِهِ، وَيَأْمُرُهُمْ بِالتَّوْبَةِ عَنْ إِثْمِهِمْ. ١٠ 10
१०वह उनके कान शिक्षा सुनने के लिये खोलता है, और आज्ञा देता है कि वे बुराई से दूर रहें।
فَإِنْ أَطَاعُوا وَعَبَدُوهُ، يَقْضُونَ أَيَّامَهُمْ بِرَغْدٍ، وَسِنِيهِمْ بِالنِّعَمِ. ١١ 11
११यदि वे सुनकर उसकी सेवा करें, तो वे अपने दिन कल्याण से, और अपने वर्ष सुख से पूरे करते हैं।
وَلَكِنْ إِنْ عَصَوْا فَبِحَدِّ السَّيْفِ يَهْلِكُوا، وَيَمُوتُوا مِنْ غَيْرِ فَهْمٍ. ١٢ 12
१२परन्तु यदि वे न सुनें, तो वे तलवार से नाश हो जाते हैं, और अज्ञानता में मरते हैं।
أَمَّا فُجَّارُ الْقُلُوبِ فَيَذْخَرُونَ لأَنْفُسِهِمْ غَضَباً، وَلا يَسْتَغِيثُونَ بِاللهِ حِينَ يُعَاقِبُهُمْ. ١٣ 13
१३“परन्तु वे जो मन ही मन भक्तिहीन होकर क्रोध बढ़ाते, और जब वह उनको बाँधता है, तब भी दुहाई नहीं देते,
يَمُوتُونَ فِي الصِّبَا بَيْنَ مَأْبُونِي الْمَعَابِدِ. ١٤ 14
१४वे जवानी में मर जाते हैं और उनका जीवन लुच्चों के बीच में नाश होता है।
أَمَّا الْمُبْتَلَوْنَ فَيُنْقِذُهُمْ فِي بَلائِهِمْ، وَبِالضِّيقِ يَفْتَحُ آذَانَهُمْ. ١٥ 15
१५वह दुःखियों को उनके दुःख से छुड़ाता है, और उपद्रव में उनका कान खोलता है।
يَجْتَذِبُكَ مِنَ الضِّيقِ إِلَى رَحْبٍ طَلِيقٍ، وَيَمْلأُ مَائِدَتَكَ بِالأَطْعِمَةِ الدَّسِمَةِ. ١٦ 16
१६परन्तु वह तुझको भी क्लेश के मुँह में से निकालकर ऐसे चौड़े स्थान में जहाँ सकेती नहीं है, पहुँचा देता है, और चिकना-चिकना भोजन तेरी मेज पर परोसता है।
وَلَكِنَّكَ مُثْقَلٌ بِالدَّيْنُونَةِ الْوَاقِعَةِ عَلَى الأَشْرَارِ، فَالدَّعْوَى وَالْقَضَاءُ يُمْسِكَانِكَ. ١٧ 17
१७“परन्तु तूने दुष्टों का सा निर्णय किया है इसलिए निर्णय और न्याय तुझ से लिपटे रहते हैं।
فَاحْرِصْ لِئَلّا يُغْرِيَكَ الغَضَبُ بالسُّخْرِيَةِ، أَوْ تَصْرِفَكَ الرِّشْوَةُ الْعَظِيمَةُ عَنِ الحَقِّ ١٨ 18
१८देख, तू जलजलाहट से भर के ठट्ठा मत कर, और न घूस को अधिक बड़ा जानकर मार्ग से मुड़।
أَيُمْكِنُ لِثَرَائِكَ أَوْ لِجُهُودِكَ الْجَبَّارَةِ أَنْ تَدْعَمَكَ فَلا تَغْرَقَ فِي الْكَآبَةِ؟ ١٩ 19
१९क्या तेरा रोना या तेरा बल तुझे दुःख से छुटकारा देगा?
لَا تَتَشَوَّقْ إِلَى اللَّيْلِ حَتَّى تَجُرَّ النَّاسَ خَارِجاً مِنْ بُيُوتِهِمْ. ٢٠ 20
२०उस रात की अभिलाषा न कर, जिसमें देश-देश के लोग अपने-अपने स्थान से मिटाएँ जाते हैं।
احْتَرِسْ أَنْ تَتَحَوَّلَ إِلَى الشَّرِّ، فَإِنَّ هَذَا مَا اخْتَرْتَهُ عِوَضاً عَنِ الشَّقَاءِ. ٢١ 21
२१चौकस रह, अनर्थ काम की ओर मत फिर, तूने तो दुःख से अधिक इसी को चुन लिया है।
انْظُرْ، إِنَّ اللهَ يَتَمَجَّدُ فِي قُوَّتِهِ. أَيُّ مُعَلِّمٍ نَظِيرُهُ؟ ٢٢ 22
२२देख, परमेश्वर अपने सामर्थ्य से बड़े-बड़े काम करता है, उसके समान शिक्षक कौन है?
مَنْ سَنَّ لَهُ طُرُقَهُ أَوْ قَالَ لَهْ: لَقَدِ ارْتَكَبْتَ خَطَأً؟ ٢٣ 23
२३किसने उसके चलने का मार्ग ठहराया है? और कौन उससे कह सकता है, ‘तूने अनुचित काम किया है?’
لَا تَنْسَ أَنْ تُعَظِّمَ عَمَلَهُ الَّذِي يَتَغَنَّى بِهِ النَّاسُ. ٢٤ 24
२४“उसके कामों की महिमा और प्रशंसा करने को स्मरण रख, जिसकी प्रशंसा का गीत मनुष्य गाते चले आए हैं।
لَقَدْ شَهِدَهُ النَّاسُ كُلُّهُمْ، وَتَفَرَّسُوا فِيهِ مِنْ بَعِيدٍ. ٢٥ 25
२५सब मनुष्य उसको ध्यान से देखते आए हैं, और मनुष्य उसे दूर-दूर से देखता है।
فَمَا أَعْظَمَ اللهَ! وَنَحْنُ لَا نَعْرِفُهُ، وَعَدَدُ سِنِيهِ لَا يُسْتَقْصَى. ٢٦ 26
२६देख, परमेश्वर महान और हमारे ज्ञान से कहीं परे है, और उसके वर्ष की गिनती अनन्त है।
لأَنَّهُ يَجْتَذِبُ قَطَرَاتِ الْمَاءِ، وَيَجْعَلُ سُحُبَهُ تَهْطِلُ أَمْطَاراً، ٢٧ 27
२७क्योंकि वह तो जल की बूँदें ऊपर को खींच लेता है वे कुहरे से मेंह होकर टपकती हैं,
تَسْكُبُهَا السَّمَاوَاتُ وَتَصُبُّهَا بِغَزَارَةٍ عَلَى الإِنْسَانِ. ٢٨ 28
२८वे ऊँचे-ऊँचे बादल उण्डेलते हैं और मनुष्यों के ऊपर बहुतायत से बरसाते हैं।
أَهُنَاكَ مَنْ يَفْهَمُ كَيْفَ تَنْتَشِرُ السُّحُبُ، وَكَيْفَ تُرْعِدُ سَمَاؤُهُ؟ ٢٩ 29
२९फिर क्या कोई बादलों का फैलना और उसके मण्डल में का गरजना समझ सकता है?
فَانْظُرْ كَيْفَ بَسَطَ بُرُوقَهُ حَوَالَيْهِ وَتَسَرْبَلَ بِلُجَجِ الْبَحْرِ. ٣٠ 30
३०देख, वह अपने उजियाले को चहुँ ओर फैलाता है, और समुद्र की थाह को ढाँपता है।
هَكَذَا يُطْعِمُ اللهُ الشُّعُوبَ وَيُزَوِّدُهُمْ بِالْغِذَاءِ بِوَفْرَةٍ. ٣١ 31
३१क्योंकि वह देश-देश के लोगों का न्याय इन्हीं से करता है, और भोजनवस्तुएँ बहुतायत से देता है।
يَمْلأُ يَدَيْهِ بِالْبُرُوقِ وَيَأْمُرُهَا أَنْ تُصِيبَ الْهَدَفَ. ٣٢ 32
३२वह बिजली को अपने हाथ में लेकर उसे आज्ञा देता है कि निशाने पर गिरे।
إِنَّ رَعْدَهُ يُنْذِرُ بِاقْتِرَابِ الْعَاصِفَةِ، وَحَتَّى الْمَاشِيَةُ تُنْبِئُ بِدُنُوِّهَا. ٣٣ 33
३३इसकी कड़क उसी का समाचार देती है पशु भी प्रगट करते हैं कि अंधड़ चढ़ा आता है।

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