< أيُّوب 2 >

ثُمَّ مَثَلَ بَنُو اللهِ مَرَّةً أُخْرَى فِي حَضْرَةِ الرَّبِّ، وَانْدَسَّ الشَّيْطَانُ أَيْضاً فِي وَسَطِهِمْ، ١ 1
फिर एक दिन जब स्वर्गदूत याहवेह की उपस्थिति में एकत्र हुए, शैतान भी उनके मध्य में आया था, कि वह स्वयं को परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करे.
فَسَأَلَ الرَّبُّ الشَّيْطَانَ: «مِنْ أَيْنَ جِئْتَ؟» فَأَجَابَ الشَّيْطَانُ: «مِنَ الطَّوَافِ فِي الأَرْضِ وَالتَّجَوُّلِ فِيهَا». ٢ 2
याहवेह ने शैतान से प्रश्न किया, “तुम कहां से आ रहे हो?” शैतान ने याहवेह को उत्तर दिया, “पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते तथा इसकी चारों दिशाओं में डोलते-डालते आया हूं.”
فَقَالَ الرَّبُّ لِلشَّيْطَانِ: «هَلْ رَاقَبْتَ عَبْدِي أَيُّوبَ فَإِنَّهُ لَا نَظِيرَ لَهُ فِي الأَرْضِ، فَهُوَ رَجُلٌ كَامِلٌ صَالِحٌ، يَتَّقِي اللهَ وَيَحِيدُ عَنِ الشَّرِّ، وَحَتَّى الآنَ لَا يَزَالُ مُعْتَصِماً بِكَمَالِهِ، مَعَ أَنَّكَ أَثَرْتَنِي عَلَيْهِ لأُهْلِكَهُ مِنْ غَيْرِ دَاعٍ». ٣ 3
याहवेह ने शैतान से प्रश्न किया, “क्या तुमने अय्योब, मेरे सेवक पर ध्यान दिया है? क्योंकि पृथ्वी पर कोई भी उसके तुल्य नहीं है. वह सीधा, ईमानदार, परमेश्वर के प्रति श्रद्धा युक्त तथा बुराई से दूर रहनेवाला व्यक्ति है. अब भी वह अपनी खराई पर अटल है, जबकि तुम्हीं हो जिसने उसे नष्ट करने के लिए मुझे अकारण ही उकसाया था.”
فَأَجَابَ الشَّيْطَانُ: «جِلْدٌ بِجِلْدٍ، فَالإِنْسَانُ يَبْذُلُ كُلَّ مَا يَمْلِكُ فِدَاءَ نَفْسِهِ. ٤ 4
शैतान ने याहवेह को जवाब दिया, “खाल का विनिमय खाल से! अपने प्राणों की रक्षा में मनुष्य अपना सर्वस्व देने के लिए तैयार हो जाता है.
وَلَكِنْ حَالَمَا تَمُدُّ يَدَكَ إِلَيْهِ وَتَمَسُّ عَظْمَهُ وَلَحْمَهُ فَإِنَّهُ فِي وَجْهِكَ يُجَدِّفُ عَلَيْكَ». ٥ 5
अब आप उसकी हड्डी तथा मांस को स्पर्श कीजिए; तब वह आपके सामने आपकी निंदा करने लगेगा.”
فَقَالَ الرَّبُّ لِلشَّيْطَانِ: «هَا أَنَا أُسَلِّمُهُ إِلَيْكَ، وَلَكِنِ احْفَظْ نَفْسَهُ». ٦ 6
यह सुनकर याहवेह ने शैतान को उत्तर दिया, “सुनो, अब वह तुम्हारे अधिकार में है; बस इतना ध्यान रहे कि उसका जीवन सुरक्षित रहे.”
فَانْصَرَفَ الشَّيْطَانُ مِنْ حَضْرَةِ الرَّبِّ، وَابْتَلَى أَيُّوبَ بِقُرُوحٍ انْتَشَرَتْ فِي بَدَنِهِ كُلِّهِ، مِنْ قِمَّةِ الرَّأْسِ إِلَى أَخْمَصِ الْقَدَمِ، ٧ 7
शैतान याहवेह की उपस्थिति से चला गया और जाकर अय्योब पर ऐसा प्रहार किया कि उनकी देह पर, तलवों से लेकर सिर तक, दुखदाई फोड़े निकल आए.
فَجَلَسَ أَيُّوبُ وَسَطَ الرَّمَادِ وَتَنَاوَلَ شَقْفَةً يَحُكُّ بِها قُرُوحَهُ. ٨ 8
वह राख में जा बैठे और एक ठीकरे के टुकड़े से स्वयं को खुजलाने लगे.
فَقَالَتْ لَهُ زَوْجَتُهُ: «أَمَازِلْتَ مُعْتَصِماً بِكَمَالِكَ؟ جَدِّفْ عَلَى اللهِ وَمُتْ». ٩ 9
यह सब देख उनकी पत्नी ने उनसे कहा, “क्या तुम अब भी अपनी खराई को ही थामे रहोगे? परमेश्वर की निंदा करो और मर जाओ!”
فَأَجَابَهَا: «أَنْتِ تَتَكَلَّمِينَ كَالْجَاهِلاتِ! أَنَقْبَلُ الْخَيْرَ مِنْ عِنْدِ اللهِ وَالشَّرَّ لَا نَقْبَلُ؟». فِي هَذَا كُلِّهِ لَمْ تَرْتَكِبْ شَفَتَا أَيُّوبَ خَطَأً فِي حَقِّ اللهِ. ١٠ 10
किंतु अय्योब ने उसे उत्तर दिया, “तुम तो मूर्ख स्त्रियों के समान बक-बक करने लगी हो. क्या हमारे लिए यह भला होगा कि परमेश्वर से सुख स्वीकार करते जाएं और दुःख कुछ भी नहीं?” इन सभी स्थितियों में अय्योब ने अपने मुख द्वारा कोई पाप नहीं किया.
وَعِنْدَمَا سَمِعَ أَصْحَابُ أَيُّوبَ الثَّلاثَةُ بِمَا حَاقَ بِهِ مِنْ شَرٍّ، تَوَافَدُوا إِلَيْهِ مِنْ مَقَرِّ إِقَامَتِهِمْ، وَهُمْ أَلِيفَازُ التَّيْمَانِيُّ، وَبِلْدَدُ الشُّوحِيُّ، وَصُوفَرُ النَّعْمَاتِيُّ، بَعْدَ أَنْ تَوَاعَدُوا عَلَى الاجْتِمَاعِ عِنْدَهُ لِلرِّثَاءِ لَهُ وَلِتَعْزِيَتِهِ. ١١ 11
जब अय्योब के तीन मित्रों को अय्योब की दुखद स्थिति का समाचार प्राप्‍त हुआ, तब तीनों ही अपने-अपने स्थानों से अय्योब के घर आ गए, तेमानी से एलिफाज़, शूही से बिलदद तथा नआमथ से ज़ोफर. इन तीनों ने योजना बनाई कि सहानुभूति एवं सांत्वना देने के लिए वे अय्योब से भेंट करेंगे.
وَإِذْ رَأَوْهُ مِنْ بَعِيدٍ لَمْ يَعْرِفُوهُ لِفَرْطِ مَا حَلَّ بِهِ، فَرَفَعُوا أَصْوَاتَهُمْ بِالْبُكَاءِ، وَمَزَّقَ كُلُّ وَاحِدٍ جُبَّتَهُ وَذَرَّوْا تُرَاباً فَوْقَ رُؤُوسِهِمْ نَحْوَ السَّمَاءِ، ١٢ 12
जब वे दूर ही थे तथा उन्होंने अय्योब की ओर देखा, तो वे उन्हें पहचान ही न सके. वे उच्च स्वर में रोने लगे. हर एक ने अपने-अपने वस्त्रों को फाड़कर अपने-अपने ऊपर धूल डाल ली.
وَمَكَثُوا جَالِسِينَ مَعَهُ عَلَى الأَرْضِ سَبْعَةَ أَيَّامٍ وَسَبْعَ لَيَالٍ، لَمْ يُكَلِّمْهُ فِيهَا أَحَدٌ مِنْهُمْ بِكَلِمَةٍ لِشِدَّةِ مَا كَانَ عَلَيْهِ مِنْ كَآبَةٍ. ١٣ 13
तब वे जाकर अय्योब के निकट भूमि पर सात दिन एवं सात रात्रि चुप बैठे रहे, क्योंकि उनके सामने यह पूर्णतः स्पष्ट था कि अय्योब की पीड़ा अत्यंत भयानक थी.

< أيُّوب 2 >