< أيُّوب 17 >

تَلِفَتْ رُوحِي وَانْطَفَأَتْ أَيَّامِي، وَالْقَبْرُ مُعَدٌّ لِي. ١ 1
“मेरा प्राण निकलने पर है, मेरे दिन पूरे हो चुके हैं; मेरे लिये कब्र तैयार है।
الْمُسْتَهْزِئُونَ يُحَاصِرُونَنِي، الَّذِينَ تَشْهَدُ عَيْنِي مُشَاجَرَاتِهِمْ. ٢ 2
निश्चय जो मेरे संग हैं वह ठट्ठा करनेवाले हैं, और उनका झगड़ा-रगड़ा मुझे लगातार दिखाई देता है।
كُنْ لِي ضَامِناً عِنْدَ نَفْسِكَ، إِذْ مَنْ يُمْكِنُ أَنْ يَكُونَ كَفِيلِي؟ ٣ 3
“जमानत दे, अपने और मेरे बीच में तू ही जामिन हो; कौन है जो मेरे हाथ पर हाथ मारे?
فَأَنْتَ حَجَبْتَ الْفِطْنَةَ عَنْ قُلُوبِهِمْ، لِذَلِكَ لَنْ تُظْفِرَهُمْ، ٤ 4
तूने उनका मन समझने से रोका है, इस कारण तू उनको प्रबल न करेगा।
وَلْتَتْلَفْ عُيُونُ أَبْنَاءِ مَنْ يَشِي بِأَصْحَابِهِ طَمَعاً فِي أَمْلاكِهِمْ. ٥ 5
जो अपने मित्रों को चुगली खाकर लूटा देता, उसके बच्चों की आँखें अंधी हो जाएँगी।
لَقَدْ جَعَلَنِي مَثَلاً لِلأُمَمِ، وَصَارَ وَجْهِي مَبْصَقَةً. ٦ 6
“उसने ऐसा किया कि सब लोग मेरी उपमा देते हैं; और लोग मेरे मुँह पर थूकते हैं।
كَلَّتْ عَيْنَايَ حُزْناً وَأَصْبَحَتْ أَعْضَائِي كَالظِّلِّ، ٧ 7
खेद के मारे मेरी आँखों में धुंधलापन छा गया है, और मेरे सब अंग छाया के समान हो गए हैं।
فَزِعَ الْمُسْتَقِيمُونَ مِنْ هَذَا، وَثَارَ الْبَرِيءُ عَلَى الْفَاجِرِ، ٨ 8
इसे देखकर सीधे लोग चकित होते हैं, और जो निर्दोष हैं, वह भक्तिहीन के विरुद्ध भड़क उठते हैं।
أَمَّا الصِّدِّيقُ فَيَتَمَسَّكُ بِطَرِيقِهِ، وَيَزْدَادُ الطَّاهِرُ الْيَدَيْنِ قُوَّةً. ٩ 9
तो भी धर्मी लोग अपना मार्ग पकड़े रहेंगे, और शुद्ध काम करनेवाले सामर्थ्य पर सामर्थ्य पाते जाएँगे।
وَلَكِنِ ارْجِعُوا جَمِيعُكُمْ، تَعَالَوْا كُلُّكُمْ، فَلا أَجِدُ فِيكُمْ حَكِيماً. ١٠ 10
१०तुम सब के सब मेरे पास आओ तो आओ, परन्तु मुझे तुम लोगों में एक भी बुद्धिमान न मिलेगा।
قَدْ عَبَرَتْ أَيَّامِي، وَتَمَزَّقَتْ مَآرِبِي الَّتِي هِيَ رَغْبَاتُ قَلْبِي. ١١ 11
११मेरे दिन तो बीत चुके, और मेरी मनसाएँ मिट गई, और जो मेरे मन में था, वह नाश हुआ है।
يَجْعَلُونَ اللَّيْلَ نَهَاراً، وَعَلَى الرَّغْمِ مِنَ الظُّلْمَةِ يَقُولُونَ:’إِنَّ النُّورَ قَرِيبٌ!‘ ١٢ 12
१२वे रात को दिन ठहराते; वे कहते हैं, अंधियारे के निकट उजियाला है।
إِذَا رَجَوْتُ أَنْ تَكوُنَ الْهَاوِيَةُ مَقَرّاً لِي، وَمَهَّدْتُ فِي الظَّلامِ فِرَاشِي، (Sheol h7585) ١٣ 13
१३यदि मेरी आशा यह हो कि अधोलोक मेरा धाम होगा, यदि मैंने अंधियारे में अपना बिछौना बिछा लिया है, (Sheol h7585)
وَإِنْ قُلْتُ لِلْقَبْرِ أَنْتَ أَبِي، وَلِلدُّودِ أَنْتَ أُمِّي أَوْ أُخْتِي، ١٤ 14
१४यदि मैंने सड़ाहट से कहा, ‘तू मेरा पिता है,’ और कीड़े से, ‘तू मेरी माँ,’ और ‘मेरी बहन है,’
فَأَيْنَ إِذاً آمَالِي؟ وَمَنْ يُعَايِنُ رَجَائِي؟ ١٥ 15
१५तो मेरी आशा कहाँ रही? और मेरी आशा किसके देखने में आएगी?
أَلا تَنْحَدِرُ إِلَى مَغَالِيقِ الْهَاوِيَةِ، وَنَسْتَقِرُّ مَعاً فِي التُّرَابِ؟» (Sheol h7585) ١٦ 16
१६वह तो अधोलोक में उतर जाएगी, और उस समेत मुझे भी मिट्टी में विश्राम मिलेगा।” (Sheol h7585)

< أيُّوب 17 >