< أيُّوب 16 >
«قَدْ سَمِعْتُ كَثِيراً مِثْلَ هَذَا الْكَلامِ وَأَنْتُمْ كُلُّكُمْ مُعَزُّونَ مُتْعِبُونَ. | ٢ 2 |
“मैं ऐसे अनेक विचार सुन चुका हूं; तुम तीनों ही निकम्मे दिलासा देनेवाले हो!
أَمَا لِهَذَا اللَّغْوِ مِنْ نِهَايَةٍ؟ وَمَا الَّذِي يُثِيرُكَ حَتَّى تَرُدَّ عَلَيَّ؟ | ٣ 3 |
क्या इन खोखले उद्गारों का कोई अंत नहीं है? अथवा किस पीड़ा ने तुमसे ये उत्तर दिलवाए हैं?
فِي وُسْعِي أَنْ أَتَكَلَّمَ مِثْلَكُمْ لَوْ كُنْتُمْ مَكَانِي، وَأُلْقِيَ عَلَيْكُمْ أَقْوَالَ مَلامَةٍ، وَأَهُزَّ رَأْسِي فِي وُجُوهِكُمْ، | ٤ 4 |
तुम्हारी शैली में मैं भी वार्तालाप कर सकता हूं, यदि मैं आज तुम्हारी स्थिति में होता; मैं तो तुम्हारे सम्मान में काव्य रचना कर देता और अपना सिर भी हिलाता रहता.
بَلْ كُنْتُ أُشَجِّعُكُمْ بِنَصَائِحِي، وَأُشَدِّدُكُمْ بِتَعْزِيَاتِي. | ٥ 5 |
मैं अपने शब्दों के द्वारा तुममें साहस बढ़ा सकता हूं; तथा मेरे विचारों की सांत्वना तुम्हारी वेदना कम करती है.
إِنْ تَكَلَّمْتُ لَا تُمْحَى كَآبَتِي، وَإِنْ صَمَتُّ، فَمَاذَا يُخَفِّفُ الصَّمْتُ عَنِّي؟ | ٦ 6 |
“यदि मैं कुछ कह भी दूं, तब भी मेरी वेदना कम न होगी; यदि मैं चुप रहूं, इससे भी मुझे कोई लाभ न होगा.
إِنَّ اللهَ قَدْ مَزَّقَنِي حَقّاً وَأَهْلَكَ كُلَّ قَوْمِي. | ٧ 7 |
किंतु परमेश्वर ने मुझे थका दिया है; आपने मेरे मित्र-मण्डल को ही उजाड़ दिया है.
لَقَدْ كَبَّلْتَنِي فَصَارَ ذَلِكَ شَاهِداً عَلَيَّ، وَقَامَ هُزَالِي لِيَشْهَدَ ضِدِّي. | ٨ 8 |
आपने मुझे संकुचित कर दिया है, यह मेरा साक्षी हो गया है; मेरा दुबलापन मेरे विरुद्ध प्रमाणित हो रहा है, मेरा मुख मेरा विरोध कर रहा है.
مَزَّقَنِي غَضَبُهُ، وَاضْطَهَدَنِي. حَرَّقَ عَلَيَّ أَسْنَانَهُ. طَعَنَنِي عَدُوِّي بِنَظْرَاتِهِ الْحَادَّةِ. | ٩ 9 |
परमेश्वर के कोप ने मुझे फाड़ रखा है जैसे किसी पशु को फाड़ा जाता है, वह मुझ पर दांत पीसते रहे; मेरे शत्रु मुझ पर कोप करते रहते हैं.
فَغَرَ النَّاسُ أَفْوَاهَهُمْ عَلَيَّ، لَطَمُونِي تَعْيِيراً عَلَى خَدِّي، وَتَضَافَرُوا عَلَيَّ جَمِيعاً. | ١٠ 10 |
मजाक करते हुए वे मेरे सामने अपना मुख खोलते हैं; घृणा के आवेग में उन्होंने मेरे कपोलों पर प्रहार भी किया है. वे सब मेरे विरोध में एकजुट हो गए हैं.
أَسْلَمَنِي اللهُ إِلَى الظَّالِمِ، وَطَرَحَنِي فِي يَدِ الأَشْرَارِ. | ١١ 11 |
परमेश्वर ने मुझे अधर्मियों के वश में कर दिया है तथा वह मुझे एक से दूसरे के हाथ में सौंपते हैं.
كُنْتُ مُطْمَئِنّاً مُسْتَقِرّاً، فَزَعْزَعَنِي الرَّبُّ وَقَبَضَ عَلَيَّ مِنْ عُنُقِي، وَحَطَّمَنِي وَنَصَبَنِي لَهُ هَدَفاً. | ١٢ 12 |
मैं तो निश्चिंत हो चुका था, किंतु परमेश्वर ने मुझे चूर-चूर कर दिया; उन्होंने मुझे गर्दन से पकड़कर इस रीति से झंझोड़ा, कि मैं चूर-चूर हो बिखर गया; उन्होंने तो मुझे निशाना भी बना दिया है.
حَاصَرَنِي رُمَاتُهُ وَشَقَّ كُلْيَتَيَّ مِنْ غَيْرِ رَحْمَةٍ، أَهْرَقَ مَرَارَتِي عَلَى الأَرْضِ. | ١٣ 13 |
उनके बाणों से मैं चारों ओर से घिर चुका हूं. बुरी तरह से उन्होंने मेरे गुर्दे काटकर घायल कर दिए हैं. उन्होंने मेरा पित्त भूमि पर बिखरा दिया.
اقْتَحَمَنِي مَرَّةً تِلْوَ مَرَّةٍ، وَهَاجَمَنِي كَجَبَّارٍ. | ١٤ 14 |
वह बार-बार मुझ पर आक्रमण करते रहते हैं; वह एक योद्धा समान मुझ पर झपटते हैं.
خِطْتُ مِسْحاً عَلَى جِلْدِي، وَمَرَّغْتُ عِزِّي فِي التُّرَابِ. | ١٥ 15 |
“मैंने तो अपनी देह पर टाट रखी है तथा अपना सिर धूल में ठूंस दिया है.
احْمَرَّ وَجْهِي مِنَ الْبُكَاءِ، وَغَشِيَتْ ظِلالُ الْمَوْتِ أَهْدَابِي، | ١٦ 16 |
रोते-रोते मेरा चेहरा लाल हो चुका है, मेरी पलकों पर विषाद छा गई है.
مَعَ أَنَّنِي لَمْ أَقْتَرِفْ ظُلْماً، وَصَلاتِي مُخْلِصَةٌ. | ١٧ 17 |
जबकि न तो मेरे हाथों ने कोई हिंसा की है और न मेरी प्रार्थना में कोई स्वार्थ शामिल था.
يَا أَرْضُ لَا تَسْتُرِي دَمِي، وَلا يَكُنْ لِصُرَاخِي قَرَارٌ. | ١٨ 18 |
“पृथ्वी, मेरे रक्त पर आवरण न डालना; तथा मेरी दोहाई को विश्रान्ति न लेने देना.
هُوَذَا الآنَ شَاهِدِي فِي السَّمَاءِ، وَكَفِيلِي فِي الأَعَالِي | ١٩ 19 |
ध्यान दो, अब भी मेरा साक्षी स्वर्ग में है; मेरा गवाह सर्वोच्च है.
أَمَّا أَصْحَابِي فَهُمُ السَّاخِرُونَ بِي، لِذَلِكَ تَفِيضُ دُمُوعِي أَمَامَ اللهِ، | ٢٠ 20 |
मेरे मित्र ही मेरे विरोधी हो गए हैं. मेरा आंसू बहाना तो परमेश्वर के सामने है.
لَكَمْ أَحْتَاجُ لِمَنْ يُدَافِعُ عَنِّي أَمَامَ اللهِ، كَمَا يُدَافِعُ إِنْسَانٌ عَنْ صَدِيقِهِ. | ٢١ 21 |
उपयुक्त होता कि मनुष्य परमेश्वर से उसी स्तर पर आग्रह कर सकता, जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी से.
إِذْ مَا إِنْ تَنْقَضِي سَنَوَاتُ عُمْرِي الْقَلِيلَةُ حَتَّى أَمْضِيَ فِي طَرِيقٍ لَا أَعُودُ مِنْهَا. | ٢٢ 22 |
“क्योंकि जब कुछ वर्ष बीत जायेंगे, तब मैं वहां पहुंच जाऊंगा, जहां से कोई लौटकर नहीं आता.